Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 4 मिल की प्रायोगिक विधियाँ

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 4 मिल की प्रायोगिक विधियाँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 4 मिल की प्रायोगिक विधियाँ

Bihar Board Class 11 Philosophy मिल की प्रायोगिक विधियाँ Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसमें केवल दोनों उदाहरणों की आवश्यकता होती है –
(क) व्यतिरेक विधि
(ख) अन्वय विधि
(ग) अवशेष विधि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) व्यतिरेक विधि

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प्रश्न 2.
मिल की प्रायोगिक विधि को जाना जाता है –
(क) निराकरण विधि के रूप में
(ख) संयोजन विधि के रूप में
(ग) वियोजन विधि के रूप में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) निराकरण विधि के रूप में

प्रश्न 3.
व्यतिरेक विधि से प्राप्त निष्कर्ष होते हैं –
(क) निश्चित
(ख) अनिश्चित
(ग) संदिग्ध
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) निश्चित

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प्रश्न 4.
अवशेष-विधि एक विशेष रूप है –
(क) व्यतिरेक विधि का
(ख) अन्वय विधि का
(ग) संयुक्त विधि का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) व्यतिरेक विधि का

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन एक प्रमाण तथा खोज दोनों की विधि है?
(क) अवशेष विधि
(ख) व्यतिरेक विधि
(ग) अन्वय विधि
(घ) संयुक्त विधि
उत्तर:
(क) अवशेष विधि

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प्रश्न 6.
अन्वय विधि –
(क) निरीक्षण प्रधान विधि है
(ख) प्रयोग प्रधान विधि है
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) निरीक्षण प्रधान विधि है

प्रश्न 7.
मिल की प्रायोगिक विधियाँ हैं –
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर:
(क) पाँच

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प्रश्न 8.
मिल की प्रयोगात्मक विधियों में कौन-सी विधि कारण की मात्रा की व्याख्या करती है –
(क) अन्वय विधि (Method of agreement)
(ख) व्यतिरेक विधि (Method of difference)
(ग) संयुक्त अन्वय व्यतिरेक विधि (Joint method of agreement)
(घ) सहगामी सहचर विधि (Method of concomitant variations)
उत्तर:
(घ) सहगामी सहचर विधि (Method of concomitant variations)

प्रश्न 9.
घटना के यथार्थ कारण जानने के लिए किसने प्रायोगिक विधियों का वर्णन किया?
(क) मिल (Mill) ने
(ख) हेवेल ने
(ग) डेकार्ट ने
(घ) किसी ने नहीं
उत्तर:
(क) मिल (Mill) ने

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प्रश्न 10.
मिल ने कारण के गुणात्मक लक्षणों को आधार बनाकर जिन प्रायोगिक विधियों का निर्माण किया था। वह है –
(क) अन्वय विधि
(ख) व्यतिरेक विधि
(ग) संयुक्त अन्वय व्यतिरेक विधि
(घ) अवशेष विधि
उत्तर:
(ग) संयुक्त अन्वय व्यतिरेक विधि

प्रश्न 11.
कारण के परिमाणात्मक लक्षणों के आधार मिल द्वारा बनाई गई विधियाँ हैं –
(क) सहचरी परिवर्तन विधि
(ख) अवशेष विधि
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों

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प्रश्न 12.
प्रमाण की विधि (Method of proof) है –
(क) व्यतिरेक विधि
(ख) अन्वय विधि
(ग) अवशेष विधि
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) व्यतिरेक विधि

प्रश्न 13.
खोज की विधि है –
(क) अन्वय विधि
(ख) व्यतिरेक विधि
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) अन्वय विधि

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प्रश्न 14.
किसके द्वारा स्थाई कारणों के कार्य का पता लगाया जा सकता है?
(क) अन्वय विधि
(ख) व्यतिरेक विधि
(ग) सहचरी परिवर्तन विधि
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ग) सहचरी परिवर्तन विधि

प्रश्न 15.
निगमन पर आधारित प्रयोग विधि है –
(क) अवशेष विधि
(ख) अन्वय विधि
(ग) व्यतिरेक विधि
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) अवशेष विधि

Bihar Board Class 11 Philosophy मिल की प्रायोगिक विधियाँ Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किस विधि में केवल दो उदाहरणों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
व्यतिरेक विधि में केवल दो उदाहरणों की आवश्यकता होती है। एक उदाहरण भावात्मक होते हैं और दूसरा निषेधात्मक।

प्रश्न 2.
किस विधि में सह परिणामों को कारण-कार्य मान लेने का भ्रम होता है?
उत्तर:
अन्वय विधि में सह परिणामों को कारण-कार्य मान लेने का भ्रम होता है।

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प्रश्न 3.
प्रमाण की विधि (Method of proof) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
व्यतिरेक विधि (Method of difference) को प्रयोग प्रधान विधि होने के कारण प्रमाण विधि कहा जाता है।

प्रश्न 4.
प्रयोगात्मक विधियाँ किसे कहते हैं? अथ्वा, प्रयोगात्मक विधियाँ क्या हैं?
उत्तर:
कार्य-कारण सम्बन्ध निश्चित करने की विधियों को प्रयोगात्मक विधियाँ कहते हैं।

प्रश्न 5.
मिल की प्रायोगिक विधियाँ कितनी हैं?
उत्तर:
मिल की प्रायोगिक विधियाँ पाँच हैं। वे हैं-अन्वय विधि, व्यतिरेक विधि, संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि, सहचारी-परिवर्तन-विधि तथा अवशेष विधि।

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प्रश्न 6.
घटना के यथार्थ कारण जानने के लिए किसने प्रायोगिक विधियों का वर्णन किया?
उत्तर:
जे. एस. मिल ने घटना के यथार्थ कारण जानने के लिए प्रायोगिक विधियों का वर्णन किया।

प्रश्न 7.
मिल ने कारण के परिमाणात्मक लक्षण (Quantitative marks of cause) के आधार पर कितनी प्रायोगिक विधियों का निर्माण किया?
उत्तर:
मिल ने कारण के परिमाणात्मक लक्षण के आधार पर दो प्रायोगिक विधियों का निर्माण किया। वे हैं-सहचारी-परिवर्तन-विधि (The method of concomitant variations) एवं अवशेष-विधि (The method of residues)।

प्रश्न 8.
अन्वय विधि के मुख्य दोष क्या हैं? अथवा, अन्वय विधि की मुख्य सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
अन्वय विधि का मुख्य दोष है कि यह बहुकारणवाद (Plurality of causes) की समस्या से ग्रस्त है। दूसरा दोष यह है कि निरीक्षण-प्रधान विधि के कारण निरीक्षण के सभी दोष इसमें शामिल हैं।

प्रश्न 9.
खोज की विधि (Method of discovery) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अन्वय विधि को मुख्यतः निरीक्षण पर आधारित होने के कारण खोज की विधि कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
कौन-सी प्रायोगिक विधि निगमन पर आधारित विधि है?
उत्तर:
अवशेष विधि (The method of residues) निगमन पर आधारित विधि है।

प्रश्न 11.
किस विधि से स्थायी कारणों के कार्य का पता लगाया जा सकता है?
उत्तर:
सहचारी-परिवर्तन-विधि (The method of concomitant variations) से स्थायी। कारणों के कार्य का पता लगाया जाता है।

प्रश्न 12.
किस विधि को ‘दुहरा अन्वय विधि’ (Double agreement) कहा जाता है?
उत्तर:
संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक-विधि (The joint method of agreement and differ ence) को दुहरा अन्वय विधि कहा जाता है।

प्रश्न 13.
बहिष्करण या निराकरण की विधि (Method of elimination) से आप क्या समझते हैं? अथवा, बहिष्करण या निराकरण विधि का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
बहिष्करण का अर्थ होता है ‘हटाना’ या ‘छाँटना’। किसी घटना के कारण या कार्य का पता तब चलता है जब अनावश्यक बातों को छाँटकर आवश्यक तथ्यों को निकाल लिया जाता है। इसे ही मिल ने निराकरण की विधि कहा है। मिल की प्रायोगिक विधियाँ ही निराकरण की विधियाँ हैं।

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प्रश्न 14.
अन्वय विधि (Method of agreement) के दो मुख्य गुण बताएँ।
उत्तर:
अन्वय विधि निरीक्षण कि विधि होने के कारण इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है। दूसरा, निरीक्षण की विधि होने के कारण इसमें कारण से कार्य की ओर या कार्य से कारण की ओर बढ़ते हैं।

प्रश्न 15.
मिल ने कारण के गुणात्मक लक्षणों को आधार बनाकर कितने प्रायोगिक विधियों का निर्माण किया?
उत्तर:
मिल ने कारण के गुणात्मक लक्षणों को आधार बनाकर तीन प्रायोगिक विधियों का निर्माण किया। वे हैं-अन्वय विधि, व्यतिरेक-विधि एवं संयुक्त-अन्वय व्यतिरेक विधि।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अन्वय विधि के दोष क्या हैं?
उत्तर:
अन्वय विधि के निम्न दोष पाए जाते हैं –

  1. इसमें कई उदाहरणों को निरीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है। इसलिए इसमें बहुकारणवाद का दोष आ जाता है।
  2. यह विधि निरीक्षण पर आधारित है, इससे सूक्ष्म एवं गुप्त परिस्थिति का निरीक्षण न हुआ हो, जो कि घटना का वास्तविक कारण और कार्य हो। इन्द्रियों के द्वारा सूक्ष्म तत्त्वों का निरीक्षण संभव नहीं हो पाता है।
  3. इसमें एक ही कारण के दो सहपरिणामों (Co-effects) को एक-दूसरे के कारण कार्य समझने की गलती करते हैं। जैसे दिन के पहले गत और गन के पहले दिन नियत रूप से आते हैं।
  4. इसमें यह त्रुटि है कि उपाधि को पूर्ण कारण मान लिया जाता है।
  5. इस विधि को कागज पर सांकेतिक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करना आसान है जो कौमन अक्षर रहता है। यह कारण या कार्य तुरत बतला देते हैं। परन्तु, वास्तविक जगत में इसका व्यवहार आसान नहीं है।
  6. यह विधि एकांकी भी है क्योंकि यह केवल भावात्मक उदाहरणों में अन्वय देखता है। निषेधात्मक उदाहरणों पर विचार नहीं करता है।

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प्रश्न 2.
अन्वय विधि क्या है?
उत्तर:
अन्वय विधि मिल साहब के प्रयोगात्मक विधि का एक प्रथम रूप है। इसकी परिभाषा इस प्रकार से दी गई है। “यदि किसी जाँच की जानेवाली घटना के दो या उससे अधिक उदाहरणों में उस घटना के अतिरिक्त एक और बात सामान्य हो तो वह बात जो सब उदाहरणों से मिलती है उस घटना के साथ कारण-कार्य का संबंध रखती है।” इसे सांकेतिक उदाहरण के द्वारा दिखाया गया है।
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∴ A, X का कारण है या ‘X’ A का कार्य है। यहाँ A सभी उदाहरणों के पूर्ववर्तियों में सामान्य रूप से उपस्थित है अतः ‘X’ घटना का कारण – ‘A’ ही है।

प्रश्न 3.
अवशेष विधि क्या निगमनात्मक है?
उत्तर:
कुछ लोगों के अनुसार अवशेष विधि का स्वरूप निगमनात्मक है। निगमन में आधार वाक्य से निष्कर्ष को निकाला जाता है। उसी प्रकार आगमन में ज्ञात कारण के कार्य को सम्मिलित कार्य से निकाल कर व शेष कार्य और बचे हुए कारण में संबंध स्थापित करते हैं। पुनः आगमन में विशिष्ट उदाहरणों का निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण आगमन के लिए आवश्यक है। अवशेष विधि में निरीक्षण से काम नहीं किया जाता है। बल्कि गणना (Calculation) से काम लेते हैं। घटाने की प्रक्रिया एक प्रकार की गणना है, अतः इसका आंतरिक स्वरूप निगमनात्मक है न कि आगमनात्मक है।

लेकिन यह धारणा ठीक नहीं है। निगमन की मदद लेते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यह पूर्णतया निगमनात्मक है। इस तरह सभी विधियाँ निगमनात्मक हो जाती है क्योंकि सभी विधियाँ कारणता के नियम से निकाली गई हैं। इसलिए इस विधि को निगमनात्मक कहना न्याय संगत न होगा। अतः निष्कर्ष निकलता है कि अवशेष विधि निगमनात्मक नहीं है। मात्र गणना की क्रिया देखकर इसे निगमनात्मक नहीं कहना चाहिए। अनुभव आगमन के स्वरूप को बतलाता है। अतः इसका स्वरूप आगमनात्मक है न कि निगमनात्मक।

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प्रश्न 4.
अन्वय विधि के गुण क्या हैं?
उत्तर:
अन्वय विधि के निम्नलिखित गुण या लाभ हैं –

  1. अन्वय विधि निरीक्षण प्रधान होने के कारण इसका क्षेत्र बहुत विशाल है क्योंकि इस विधि 1 के अंतर्गत निरीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है। निरीक्षण सभी घटनाओं का होता है।
  2. इस विधि में कारण से कार्य की ओर या कार्य से कारण की ओर बढ़ सकते हैं। इस प्रकार की सुविधाएँ दूसरे विधि में नहीं है।
  3. यह विधि सर्वसाधारण की विधि है, इसका उपयोग कोई भी कर सकता है।
  4. इस विधि से प्राकृतिक घटनाओं जैसे-भूकंप, बाढ़, महामारी इत्यादि के कारण का पता अच्छी तरह लगती है। इन घटनाओं का निरीक्षण ही होता है, इन पर प्रयोग संभव नहीं है। अतः, इन घटनाओं के कारण का पता लगाने में अन्वय विधि ही सक्षम एवं समर्थ हैं।

प्रश्न 5.
निराकरण के सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
मिल साहब द्वारा बताई गई पाँच प्रयोगात्मक विधियों को निराकरण की विधियाँ के नाम से भी पुकारा जाता है। निराकरण का अर्थ है जाँच की जानेवाली घटना के संबंध में अनावश्यक बातों का छाँट देना या असंबंधित स्थितियों को दूरकर कार्य-कारण संबंध की स्थापना करना! निराकरण का अर्थ ही है जो कारण नहीं उसे दूर हटाकर। मिल साहब के अनुसार कारण की व्याख्या उसके गुण और परिमाण दोनों के आधार पर की गई है।

कारण के गुणात्मक स्वरूप को बताते हुए मिल साहब कहते हैं “कारण नियम, आसन्न अनौपाधिक, पूर्ववर्ती घटना है तथा कारण के परिमाण को बताते हुए कहा गया है” कारण और कार्य परिमाण के अनुसार बिल्कुल ही बराबर होते हैं। A cause is equal to effect according to quantity इस तरह हमें ऐसा करने के लिए निराकरण की सहायता लेनी पड़ती है। जिस तरह फुलवारी में घास की पत्ती बढ़ जाने पर हम उसे छाँट देते हैं ताकि फूल-पौधे ठीक से बढ़ सकें, उसी तरह सही कारण को जानने के लिए हमें बहुत-सी अनावश्यक बातों को छाँट या हटा देना पड़ता है।

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प्रश्न 6.
मिल के प्रयोगात्मक विधि क्या हैं?
उत्तर:
आगमन का उद्देश्य सामान्य यथार्थ वाक्य की रचना करना है इसका अर्थ है – दो घटनाओं के बीच कारण-कार्य संबंध की स्थापना करना। मिल ने प्रयोगात्मक विधि के द्वारा आगमन के उद्देश्य की प्राप्ति करने का प्रयास किया। प्रयोगात्मक विधि के द्वारा केवल किसी घटना का पता नहीं लगाया जाता है। बल्कि उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनावश्यक बातों को छाँट भी दिया जाता है। मिल के मुख्यतः पाँच प्रयोगात्मक विधि हैं –

  1. अन्वय विधि
  2. व्यतिरेक विधि
  3. संयुक्त अन्वय व्यतिरेक विधि
  4. सहगामी विवरण विधि और
  5. अवशेष विधि

इन पाँचों विधियों के द्वारा कारण से कार्य और कार्य से कारण की ओर बढ़ते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
व्यतिरेक विधि क्या है? इसके गुण-दोष की व्याख्या करें।
उत्तर:
व्यतिरेक विधि मुख्य रूप से प्रयोग पर आधारित विधि हैं इसमें जिन दो उदाहरणों की आवश्यकता पड़ती है वे प्रयोग से ही प्राप्त होते हैं। फिर भी निरीक्षण के क्षेत्र में भी व्यवहार कर कार्य-कारण संबंध स्थापित किया जाता है। मिल साहब ने इसका परिभाषा इस प्रकार दिए हैं।

“If an instance in which the phenomenon under investigation occurs and an instance in which it does not occur, have every circumstance in common save one that one occuring only in the former the circumstance in which alone the two instances differ is the effect of the cause, or an indisperisable part of the cause of the phenomenon.” अर्थात् “यदि किसी एक उदाहरण में जाँच की जानेवाली घटना घटती हो और दूसरे उदाहरण में जाँच की जानेवाली घटना नहीं घटती हो, सभी बातें समान हों, केवल यही भेद पाया जाए कि प्रथम उदाहरण में किसी एक बात का भाव हो और केवल उसी का दूसरे उदाहरण में अभाव, तो उस बात का उस घटना से कार्य-कारण संबंध पाया जाता है या घटना के कारण का आवश्यक अंश रहता है।” इसकी भाषा के विश्लेषण करने पर निम्नलिखित बातें हम पाते हैं।

  1. जाँच की जानेवाली घटना के दो उदाहरण दिए जाते हैं। एक उदाहरण में घंटना उपस्थित रहती है और दूसरे उदाहरण में घटना अनुपस्थित रहती है।
  2. दोनों उदाहरणों में एक परिस्थिति को छोड़ कर सभी कुछ समान ही रहते हैं। वह परिस्थिति एवं उदाहरण में स्थित रहती है तथा दूसरे उदाहरण में नहीं।
  3. वह परिस्थिति की अवस्था जिसमें दोनों उदाहरणों को भिन्न पाते हैं घटना का कारण या कार्य होता है या घटना के कारण का आवश्यक अंग होता है। जैसे-सांकेतिक उदाहरण –
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∴ A और X में कार्य कारण-संबंध है यहाँ ‘A’ के रहने पर X और Aके अनुपस्थित रहने पर X भी अनुपस्थित रहता है। इसके दो रूप में पूर्ववर्ती में से एक पूर्ववर्ती को निकाल देते हैं जिससे अनुवर्ती में से भी कोई बात घट जाती है। जैसे-पूर्ववर्ती में से ‘A’ घटता है तो अनुवर्ती में भी ‘A’ घट जाता है दूसरा रूप-पूर्ववर्ती में कुछ जोड़ देते हैं तो अनुवर्ती में भी कुछ जुट जाता है। जैसे –
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इसलिए D और X में कार्य-कारण संबंध है।

वास्तविक उदाहरण:
जब किसी व्यक्ति को मादा अनोफिल मच्छर काटता है, तो उसे मलेरिया हो जाता है और जब किसी व्यक्ति को मादा अनोफिल मच्छर नहीं काटता है, तो उसे मलेरिया नहीं होता है। इस तरह निष्कर्ष निकलता है कि मादा अनोफिल मच्छर ही मलेरिया का कारण है। अतः सांकेतिक एवं वास्तविक दोनों प्रकार के उदाहरणों से स्पष्ट है कि दो उदाहरणों में सभी बातें समान रहती हैं केवल एक बात का अंतर रहता है और वह घटना का कार्य या कारण होता है।

गुण (Merits):

व्यतिरेक विधि के निम्नलिखित गुण हैं –

  1. इस विधि का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि जो कार्य-कारण संबंध स्थापित होता है वह निश्चित होता है क्योंकि यह विधि प्रयोग की विधि है। अन्वय और संयुक्त विधि की तुलना में इसका निष्कर्ष विश्वसनीय होता है।
  2. इस विधि में केवल दो उदाहरण लिये जाते हैं। अतः, परिश्रम कम लगता है। समय भी बचता है।
  3. जबकि अन्वय एवं संयुक्त विधियों में समय एवं श्रम अधिक लगता है।
  4. अन्वय विधि से कारण का जो संकेत मिलता है उसकी जाँच इस विधि से कर सकते हैं। अन्वय विधि कारण को प्रमाणित नहीं करती है। केवल कारण का संकेत करती है। अन्वय विधि से प्राप्त निष्कर्ष की जाँच अतिरिक्त विधि में की जा सकती है क्योंकि यह प्रयोग प्रधान विधि है।
  5. यह विधि हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए भी लाभप्रद है, जैसे-एक किसान समझता है कि जिस साल अच्छी वर्षा होती है धान की फसल अच्छी होती है और वर्षा के अभाव में धान की फसल भी खराब होती है, अतः अच्छी वर्षा धान के लिए उपयोगी कारण है।
  6. यह विधि बहुकारणवाद से उत्पन्न कठिनाइयों को बहुत अंश में दूर करती है।

व्यतिरेक विधि के दोष (Demerits):

  1. व्यतिरेक विधि प्रयोग प्रधान विधि होने के कारण उसका क्षेत्र सीमित हो जाता है। प्राकृतिक घटनाओं, जैसे-बाढ़, भूकंप, महामारी पर इस विधि का व्यवहार नहीं हो सकता है।
  2. इसमें केवल कारण से कार्य की ओर जाते हैं क्योंकि यह विधि प्रयोग पर आधारित है।
  3. इसमें कारण और कारणांश (Condition) में भेद नहीं कर पाते हैं। कारणांश ही पूर्ण कारण हो जाता है। जैसे-दाल, सब्जी में नमक मिलाकर भोजन करने में अच्छा लगता है। यदि नमक नहीं मिला है तो भोजन अच्छा नहीं लगता है। यहाँ नमक कारणांश है जो कारण बन जाता है, स्वादिष्ट भोजन का।
  4. इस विधि का व्यवहार असावधानी पूर्वक करने से Post hoc ergo propter hoc (यत्पूर्व सकारणम्) का दोष हो जाता है जैसे किसी पुत्र के उत्पन्न होने पर उसकी माँ का देहान्त होना उस बच्चे के जन्म देने का कारण मानते हैं। फिर भी त्रुटियों के बावजूद यह विधि सबसे अच्छी विधि मानी गई है। इसलिए इसे Method of part excullance कहते हैं। इनकी महत्ता मिल बहुत बताते हैं।

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प्रश्न 2.
सहगामी विचरण विधि की सोदाहरण व्याख्या करें। इसके गुण और दोषों को बताएँ।
उत्तर:
सहचारी या सहगामी विचरण विधि अन्वय एवं व्यतिरेक विधि का एक रूप है। इस विधि के द्वारा कारण-कार्य संबंध का पता इस बात को देखकर लगाया जाता है कि किन दो घटनाओं में साथ-साथ परिवर्तन होता है, इस विधि में परिवर्तन के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है। इसकी परिभाषा मिल ने दिया है। (What ever phenomenon varies in any manner whatever another phenomenon varies in some particular manner is either a cause or an effect of that phenomenon or is connected with it through some fact of causation) अर्थात् जब कोई घटना किसी दूसरी घटना के साथ किसी खास नियम से घटती है या बढ़ती है तो उन दोनों में कारण-कार्य का संबंध रहता है। इस परिभाषा की निम्नलिखित विशेषताएँ हम विश्लेषण करने पर पाते हैं।

  1. इस विधि में दो या दो से अधिक उदाहरणों के निरीक्षण हो सकते हैं।
  2. उन उदाहरणों में दो अवस्थाएँ होती हैं-पूर्ववर्ती और अनुवर्ती।
  3. इसमें परिमाण के आधार पर निष्कर्ष की स्थापना की जाती है।
  4. इसमें बदलने वाली अवस्था के वीच कारण-कार्य का संबंध रहता है। दो घटनाएँ साथ-साथ बढ़े, दो घटना साथ-साथ घटे, यह प्रक्रिया उसी अनुपात में होती है।

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∴ A और X में कार्य-कारण संबंध है। इसमें A और X में समानुपाती परिवर्तन हम देखते हैं। अन्वय विधि की तरह ही एक अवस्था में समानता है तथा दूसरी अवस्था में भिन्नता है।
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यहाँ A और X कार्य – कारण संबंध है। यह उदाहरण व्यतिरेक विधि का रूपांतरण है। वास्तविक उदाहरण –

(क) जैसे-जैसे बुखार बढ़ता है थर्मामीटर का पारा बढ़ता है और जैसे-जैसे बुखार घटता है थर्मामीटर का पारा भी घटता है। अतः, दोनों में कार्य-कारण का संबंध है।
(ख) जैसे-जैसे ऊपर की ओर अर्थात् ऊँचाई पर जाते हैं ठंडा बढ़ता है, अतः कार्य-कारण का संबंध है एवं किसी वस्तु की माँग बढ़ती है तो उस वस्तु की कीमत बढ़ती है। माँग घटने पर कीमत भी घट जाती है। अतः, माँग और कीमत (Demand and price) में कार्य कारण संबंध है।
(ग) देखा गया है कि Frustration जैसे – जैसे बढ़ता है हिंसात्मक प्रवृत्ति भी वैसे-वैसे बढ़ती है।

गुण (Merits):

  1. इससे लाभ है कि जब हम किसी घटना के परिणाम या वेग को जानना चाहते हैं तो इस विधि की सहायता लेकर जान लेते हैं।
  2. प्रकृति के अन्दर कुछ ऐसे तत्त्व हैं जिनके बीच कारण-कार्य के संबंध को पता लगाने के लिए सहगामी विचरण विधि की सहायता लेते हैं। यह विधि बिल्कुल सर्वोत्तम विधि है। वायुमंडल का दबाव, ताप, घर्षण, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इत्यादि के बीच कारण-कार्य का पता इस विधि द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है।
  3. कारण को निश्चित करने के लिए कल्पना की सहायता ली जाती है यह इसी विधि से प्राप्त किया जाता है।
  4. जहाँ घटना के वेग और परिणाम की माप होती है वहाँ यह विधि अन्वय और व्यतिरेक विधि से अधिक लाभदायक है।
  5. बेन साहब के अनुसार, असाधारण परिस्थिति में यह विधि बहुत उपयोगी है।
  6. धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्रों में इस विधि से कारण का पता लगता है। जैसे–अंधविश्वास ही धार्मिक उपद्रव में पाया जाता है। जनसंख्या और मृत्यु में आवश्यक संबंध है। इसी तरह अज्ञानता की मात्रा जितनी अधिक होगी दुःख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है।

दोष या सीमाएँ (Demerits):

  1. यह विधि केवल परिमाणतः परिवर्तन में सफलीभूत होती है। गुणगत परिवर्तन में इस विधि का व्यवहार कर कारण का पता नहीं लगा सकते।
  2. यहाँ भी सहपरिणामों को एक-दूसरे का कारण समझने की भूल की संभावना बनी रहती
  3. इस विधि का अंतिम सीमा है कि जब परिवर्तन एकाएक होता है, वहाँ इस विधि का व्यवहार नहीं कर सकते हैं। इस विधि का व्यवहार नहीं होता है जहाँ धीरे-धीरे परिवर्तन क्रमशः होता है।

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प्रश्न 3.
अवशेष विधि की सोदाहरण व्याख्या इसके गुण-दोष के साथ करें।
उत्तर:
प्रायोगिक विधियों में अवशेष विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसके द्वारा जटिल कार्य के बचे हुए अंश के कारण का पता लगाते हैं। जटिल कार्य के कुछ अंश के कारण का पता पहले से मालूम रहता है और बचे हुए अंश के कारण का पता अवशेष विधि से लगाते हैं। मिल ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दिए हैं।

(“Subduce from any given phenomenon such parts as is known by previous inductions to be the effect of certain anteced ents and the residues of this phenomenon is this effect of this remaining ante cedents-Mill”) अर्थात् “अगर किसी दी हुई घटना से उस भाग को निकाल दिया जाए तो पहले आगमन के आधार पर कुछ पूर्ववर्ती अवस्थाओं का निष्कर्ष समझा गया है, तो घटनाओं का अवशेष भाग अवश्य ही अवशेष अवस्थाओं का कार्य होगा।” इस परिभाषा में निम्नलिखित विशेषताओं को पाते हैं।

  1. कोई जटिल कार्य दिया रहता है जिसके कुछ अंश के कारण का पता पहले से मालूम रहता है, कार्य के शेष अंश के कारण का पता लगाना रहता है।
  2. जो बातें हमें पहले से ज्ञात रहती है उसे सम्मिलित कार्य से हटा देते हैं।
  3. अब कार्य के बचे अंश तथा कारण (पूर्ववर्ती) के बचे अंश में कार्य-कारण स्थापित करते हैं अर्थात् कारण का शेषांश कार्य के शेषांश का कारण होगा। जैसे –

सांकेतिक उदाहरण –
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यहाँ पहले से मालूम है कि कारण B तथा Z का कारण C है। इसलिए Aनिराकरण है ‘X’ का। यह अवशेष विधि निराकरण के सिद्धान्त पर आधारित है, निराकरण का सिद्धांत है “जो किसी एक वस्तु का कारण है वह किसी अन्य वस्तु का कारण नहीं हो सकता है।” इसलिए B, CX का कारण नहीं होता है B, C तो Y, Z का कारण है इसलिए अनुमान करते हैं कि A ही X का कारण है।

वास्तविक उदाहरण –
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अवशेष विधि के गुण (Merits):

1. इस विधि से आविष्कार में सहायता मिलती है। वैज्ञानिकों को मालूम था कि यूरेनस अपनी गति-निर्धारित मार्ग पर नहीं चलकर कुछ भटक जाता है। वैज्ञानिकों ने किसी अज्ञात कारण की कल्पना की और खोज के द्वारा नेपच्युन ग्रह को खोज निकाला। आर्गन गैस की खोज इसी विधि से हुई है। अतः विज्ञान के क्षेत्र में विशेष कर रसायन शास्त्र में इस विधि से अनेक गैसों और तत्त्वों की खोज हुई है।

2. यही एक विधि है जिसके द्वारा किसी सम्मिलित कार्य के बचे हुए अंश के कारण का पता लगा सकते हैं। अन्वय विधि, संयुक्त विधि, व्यतिरेक विधि एवं सहगामी विचरण विधि से बचे हुए अंश के कारण का पता नहीं लगा सकते हैं।

अवशेष विधि का दोष (Demerits):

  1. इस विधि में प्रथम दोष है कि इसका व्यवहार तब होता है जब हमें पहले से घटना के बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त रहता है। पूर्व ज्ञान आवश्यक है यदि कोई व्यक्ति किसी घटना से पूर्ण अनभिज्ञ है तो कारण का पता नहीं लगा सकता है।
  2. सहगामी विचरण विधि की तरह इस विधि का भी व्यवहार केवल परिमाण संबंधी खोज से है। गुण संबंधी खोज में इसका व्यवहार नहीं हो सकता है।
  3. अवशेष विधि व्यतिरेक विधि का विशेष रूप है इसलिए व्यतिरेक विधि के दोष अवशेष विधि में चले आते हैं। इन त्रुटियों के बावजूद यह विधि विज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी है।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 4 मिल की प्रायोगिक विधियाँ

प्रश्न 4.
संयुक्त अन्वय विधि क्या है? इसके गुण-दोषों की विवेचना करें।
उत्तर:
संयुक्त विधि अन्वय विधि का रूपांतर या विशेष रूप है। यह विधि अन्वय विधि की कमी को दूर करती है। इसमें दो प्रकार के उदाहरणों के समूहों को लिया जाता है।

  1. भावात्मक तथा
  2. अभावात्मक।

इन दोनों के आधार पर निष्कर्ष को निकाला जाता है। इसकी परिभाषा इस प्रकार से दी गई है। “If two or more instances in which the phenomenon occurs have and one circumstance in common while two or more instances in which it does not occur have nothing in common save the absence of the circumstance this circumstance in which lend sets of instance differ is the effect of this cause or an indispensable part of the cause of the phenomenon.” “यदि किसी घटना के दो या दो से अधिक उदाहरणों में कोई एक बात सामान्य रूप से पायी जाए तो उस घटना के अभाव वाले दो या दो से अधिक उदाहरणों में उस घटना की अनुपस्थिति के अलावा और कोई बात सामान्य न हो, तो केवल उस बात का जिसमें दोनों प्रकार के उदाहरणों का भेद रहे घटना का कारण या कार्य या कारण अपना कार्य का आवश्यक अंग होता है।” इस परिभाषा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • इस विधि से कुछ भावात्मक और कुछ अभावात्मक उदाहरण लिये जाते हैं।
  • भावात्मक उदाहरण के लिए दो या दो से अधिक उदाहरणों की जाँच क़रना, उन सभी उदाहरणों में किसी अमुक घटना का या उसका भाव देखना सभी परिस्थितियों में अन्य बातों में विभिन्नता और एक बात में समता का खोजना अनिवार्य है।
  • अतः, घटना की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर निष्कर्ष को निकाला जाता है। जैसे-सांकेतिक उदाहरण –Bihar Board Class 11 Philosiphy chapter 4 मिल की प्रायोगिक विधियाँ

वास्तविक उदाहरण:
जब परीक्षा के समय मन लगाकर पुस्तकों का अध्ययन किया जाता है तो अच्छी सफलता मिलती है और जब परीक्षा के समय मन लगाकर अध्ययन नहीं किया जाता हे तो परीक्षा में अच्छी सफलता नहीं मिलती है इसलिए अच्छी सफलता का मिलना पुस्तकों का मन लगाकर अध्ययन करना है।

गुण (Merits):

  1. संयुक्त अन्वय विधि निरीक्षण प्रधान विधि है। इसलिये निरीक्षण के जितने भी लाभ हैं वे सभी इसमें पाए जाते हैं। इस विधि का क्षेत्र भी व्यापक है। इसमें निरीक्षण के द्वारा घटनाओं का अध्ययन किया जाता है।
  2. अन्वय विधि में बहुकारणवाद का दोष पाया जाता है। किन्तु, संयुक्त अन्वय विधि में इन बाधाओं को आंशिक रूप में अवश्य दूर किया गया है। इसके लिए अभावात्मक उदाहरणों की संख्या को बढ़ा दी जाए।
  3. इसमें जिस कारण कार्य नियम की स्थापना की चेष्टा की जाती है, उसके सत्य होने में अधिक संभावना पायी जाती है क्योंकि इसमें हम भावात्मक और अभावात्मक दोनों प्रकार के उदाहरणों को पाते हैं।
  4. इस विधि का उपयोग हम व्यावहारिक जीवन में अधिक करते हैं।
  5. निरीक्षण प्रधान विधि होने से इसका क्षेत्र व्यापक एवं विस्तृत है। प्रयोग आधारित रहने के कारण विधि का क्षेत्र संकुचित है। राजनीतिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक घटनाओं पर इसका व्यवहार कर कारण या कार्य का पता लगाना असंभव है।

दोष (Demerits):

  1. संयुक्त अन्वय विधि निरीक्षण प्रधान विधि है इसलिए निरीक्षण के जितने भी दोष हैं इस विधि के भी दोष हो जाते हैं।
  2. दो सहपरिणामों के बारे में जो निष्कर्ष निकाला जाता है, वह सत्य नहीं होता है। इसमें दोष पाया जाता है।
  3. कभी-कभी एक उपाधि या स्थिति को कारण के रूप में समझने से दोष आ जाता है। जैसे दो तीन बार जब बंदूक से गोली निकलती है, तो आवाज होती है। दो-तीन बार गोली नहीं निकलती है तो आवाज भी नहीं होती है। अतः, गोली निकलने को आवाज का कारण मान लेते हैं, परन्तु गोली एक उपाधि है।
  4. यहाँ पर दो घटनाओं में आकस्मिक सहचर देखने पर कार्य-कारण संबंध स्थापित करने की भूल करते हैं। अतः, संयुक्त अन्वय विधि त्रुटि से संयुक्त नहीं है। फिर भी अन्वय विधि से अधिक विश्वसनीय है। इसके निष्कर्ष में सत्य होने की संभावना अधिक रहती है। इसकी त्रुटियों को दूर भी किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
अन्वय विधि के गुण एवं दोषों की व्याख्या करें।
उत्तर:
तार्किकों ने अन्वय विधि का निरीक्षण प्रधान विधि बताए हैं क्योंकि इसके उदाहरण निरीक्षण से प्राप्त होते हैं। मिल साहब ने इसकी परिभाषा में कहा है “If two or more instances of the phenomenon under investigation have only one circumstance in common, the circumstance in which alone are the instances agree is the cause or effect of the given phenomenon.” “यदि जाँच की जानेवाली घटना के दो या दो से अधिक उदाहरणों में एक बात सामान्य हो, तो वह वात जिसमें सभी उदाहरण अनुकूल हो, दी हुई घटना का कारण या कार्य हो।” इस परिभाषा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. जाँच की जानेवाली घटना के दो या उससे अधिक उदाहरण लिये जाते हैं।
  2. अगर घटना कार्य है तो उसके कारण का पता पूर्ववर्तियों के निरीक्षण का उदाहरण जमा करने से होगा।
  3. पूर्ववर्तियों में देखते हैं कि कौन-सी बातें सभी उदाहरगों में सामान्य रूप से पायी जाती हैं। वही घटना का कारण होगी।
  4. यदि घटना कारण है और उसके कार्य का पता लगाना है तो अनुवर्तियों के उदाहरण को जमा करते हैं।
  5. अनुवर्तियों में जो बातें सभी उदाहरणों में सामान्य रूप से पायी जाती हैं वही घटना का कार्य होता है। इस तरह हम देखते हैं कि अन्वय विधि में एक ही बात की समानता (Agreement in one single point) इस विधि का मूल आधार है। जैसे –

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“A is the cause of Xor X is the effect of A.” अर्थात् A ही X का कारण है या X ही A का कार्य है। क्योंकि इसमें A उदाहरणों में उपस्थित है। अतः Aनियम पूर्ववर्ती है और X कार्य का कारण है। इसमें B,C, D, E, F, ‘X’ कार्य का कारण नहीं है। क्योंकि ये नियम पूर्ववर्ती है।

वास्तविक उदाहरण:
मिल साहब अन्वय विधि के माध्यम से एक व्यक्ति की दिनचर्या के आधार पर उसके सिर दर्द का कारण जानना चाहते हैं।
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मंगलवार:
पकौड़ी खाना, मांस खाना, दूध पीना, रात में शीत में सोना सिर दर्द यहाँ सिर दर्द का कारण बाहर में रात में शीत में सोना ही है क्योंकि सभी उदाहरणों में रात में शीत में सोना सभी दिन है और अन्य कारण सभी दिन उपस्थित नहीं है। अतः सिर दर्द का कारण शीत में सोना मान लिया जाता है। मिल की इस विधि को अन्वय विधि कहते हैं।
गुण या लाभ-अन्वय विधि से निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. अन्वय विधि-निरीक्षण प्रधान विधि होने के कारण व्यापक क्षेत्र रखता है। इसका व्यवहार सभी क्षेत्रों में होता है। प्रयोग की तुलना में।
  2. इस विधि से कारण से कार्य तथा कार्य से कारण का पता लगाते हैं। इस तरह इस विधि में दोनों सुविधाएँ हैं, क्योंकि यह निरीक्षण प्रधान विधि है।
  3. इससे प्राकृतिक घटनाओं का पता आसानी से लगाया जाता है। भृकंप, बाढ़, महामारी इत्यादि के कारणों का पता अच्छी तरह लग जाती है। क्योंकि इन सभी घटनाओं का निरीक्षण ही होता है।
  4. इन पर प्रयोग संभव नहीं है। अतः, इन प्राकृतिक घटनाओं के कारण का पता लगाने में अन्वय विधि ही सक्षम एवं समर्थ है।
  5. यह सरल विधि है। इसका व्यवहार सभी लोग कर सकते हैं। क्योंकि निरीक्षण प्रयोग की तुलना में आसान एवं सरल है। जबकि प्रयोग का काम कठिन है।
  6. निरीक्षण से जितने लाभ हैं वे सभी इस विधि के गुण हैं या लाभ हैं।

दोष:
1. चूँकि यह निरीक्षण प्रधान विधि है क्योंकि अन्वय विधि निरीक्षण पर आधारित होने के कारण सूक्ष्म एवं गुप्त परिस्थितियों का निरीक्षण संभव नहीं भी हो पाता है जो कि घटना का वास्तविक कारण और कार्य हो। इन्द्रियों के द्वारा भी सूक्ष्म तत्त्वों का निरीक्षण संभव नहीं हो पाता है। अतः, वास्तविक कारण खोजने में भूल हो सकती है।

2. कभी-कभी दो घटनाओं में आकस्मिक सहचर के आधार पर दोनों में कार्य-कारण संबंध स्थापित करने की भूल कर बैठते हैं। जैसे-जब-जब मेरे घर में अमुक संबंधी आते हैं तो मेरा नौकर बीमार पड़ जाता है।
अन्वय विधि के अनुसार नौकर का बीमार पड़ना अमुक संबंधी के आने पर एक घटना है जिसका कारण संबंधी के आने से है। लेकिन ऐसा निर्णय लेना अन्याय एवं अतार्किक है। इन दोनों में घटनाओं में आकस्मिक संबंध हैं जो इस विधि की त्रुटि है।

3. एक ही कारणं के दो सहपरिणामों (Co-effects) को एक-दूसरे का कारण-कार्य समझने की गलती करते हैं। जैसे-दिन के पहले रात्रि और रात्रि के पहले दिन नियत रूप से आते हैं। अन्वय विधि के आधार पर दिन और रात एक-दूसरे के कारण-कार्य हो जाते हैं। इसी तरह बिजली और बादल का गर्जन सदा एक साथ पाए जाते हैं। ये भी एक-दूसरे के कारण और कार्य हो जाते हैं। परन्तु, ये सभी सहपरिणाम है जो अन्वय विधि के दोष हैं।

4. इसमें उपाधि को पूर्ण मान लिया जाता है, जो एक भूल है।

5. अन्वय विधि का बहुकारणवाद सिद्धांत से मेल नहीं है। इसलिए कहा गया है कि “The doctrine of plurality of causes for frustrates the method of Agreement.”

6. इस विधि को कागज पर सांकेतिक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करना आसान है। क्योंकि जो कॉमन अक्षर है उसे कारण या कार्य तुरंत बता दिया जाता है। किन्तु, वास्तविक जगत में इसका व्यवहार आसान नहीं है। प्रकृति की घटनाएँ बहुत जटिल होती हैं।

7. यह विधि एकांगी है क्योंकि यह केवल भावात्मक उदाहरणों में अन्वय करता है निषेधात्मक उदाहरणों पर विचार नहीं करता है।

8. निरीक्षण प्रधान विधि होने से आवश्यक को अनावश्यक से पृथक नहीं कर सकते हैं। क्योंकि कारण के साथ अनावश्यक बातें भी मिली रहती हैं। जिससे वास्तविक कारण का पता लगाना कठिन हो जाता है। अतः, यह विधि अनेक त्रुटियों से पूर्ण है। यह विधि कारण कार्य का संकेत करती है। कार्य-कारण संबंध को सिद्ध नहीं करती है। “The method of Agreement merely suggests but cannot prove a casual connection.” अतः, यह विधि आविष्कार की विधि है प्रमाण की नहीं।