Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 11 भोगे हुए दिन (मेहरुन्निसा परवेज)
भोगे हुए दिन पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर।
प्रश्न 1.
जावेद और सोफिया इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं, इनका परिचय आप अपने शब्दों में दें। .
उत्तर-
जावेद और सोफिया शांदा साहब की विधवा बेटी की संतान है। शांदा साहब अपने समय के एक लोकप्रिय शायर थे। अब अपनी वृद्धावस्था में अपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। अपर्याप्त आय से गृहस्थी का खर्च कठिनाई से चलता है। बेटी एक उर्दू प्राइमरी विद्यालय में अध्यापन कार्य करती है। शांदा साहब का सौ रुपए सकरार से पेंशन मिलती है। घर के सामने की जमीन पर एक पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी की एक दूकान है। इस सीमित आय से ही वे अपनी पारिवारिक समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। अर्थाभाव से बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। जावेद (नाती) एक स्कूल में तीसरे वर्ग में पढ़ रहा है, वह बहुत सुशील एवं अनुशासित. लड़का है। पढ़ाई के अतिरिक्त गृहकार्यों में सहयोग करता है।
पिता के प्यार से वंचित वह अपनी नाना-नानी के संरक्षण में अपने भविष्य का निर्माण करने में व्यस्त है। सोफिया सात साल की उसकी बहन है। अर्थाभाव से उसका नामांकन विद्यालय में नहीं हुआ है। घर पर ही कुछ पढ़ लेती है। जलावन की लकड़ी की दुकान में बैठकर लकड़ी भी बेचती है। घर के अन्य कार्य भी करती है। भोली-भाली वह लड़की अपनी वर्तमान स्थिति से ही सन्तुष्ट है। दोनों ही बच्चे इस दयनीय स्थिति में भी विचलित नहीं हैं। पारिवारिक कार्यों को, दोनों बच्चे अपनी सामर्थ्य के अनुसार कर रहे हैं।
शांदा साहब से मिलने आए शमीम इन बच्चों की कर्तव्यनिष्ठा एवं लगन से प्रभावित हैं। वे इस बात से चकित भी हैं कि इस परिवार का हर व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग कर रहा है, जिसे उन्होंने यह कहते हुए व्यक्त किया है-“इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।”
वस्तुत: जावेद तथा सोफिया, दोनों ही प्रशंसा एवं सहानुभूति के पात्र हैं। “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी के वस्तुतः यह दोनों ही प्रमुख पात्र हैं, क्योंकि कहानी इनके इर्द गिर्द ही घूमती रहती है।
प्रश्न 2.
पुरानी बातें शांदा साहब को क्यों पीड़ा दे रही थी?
उत्तर-
शांदा साहब का अतीत स्वर्णिम रहा है। वे अपने समय के एक प्रसिद्ध शायर रहे हैं जिन्हें सुनने के लिए अपार जनसमूह एकत्र होता था। कवि सम्मेलनों में उन्हें समम्मान आमंत्रित किया जाता था तथा श्रोतागण मंत्र मुग्ध हो उनकी शायरी का आनन्द लेते थे। महाकवि इकबाल उनके घनिष्ठ मित्रों में थे तथा अनेक मुशायरों (कवि सम्मेलनों) में दोनों एक साथ कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे। दोनों में बराबर पत्राचार भी होता रहता था। शांदा साहब को उस दौर में, देखने तथा उनकी शायरी का आनन्द लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। एक ही शेर (कविता) को अनेकों बार पढ़वाया जाता था, ऐसी दीवानगी थी श्रोताओं में। समय बदला, अब ढलती हुई उम्र में वे अप्रासंगिक हो गए हैं, महत्वहीन हो गए हैं।
ठीक ही कहा गया है कि उगते हुए सूरज की सभी पूजा करते हैं, अस्ताचल में जाते सूर्य की नहीं। यही शांदा साहब की पीड़ा का मुख्य कारण है। उनकी विषादपूर्ण प्रतिक्रिया-उनके द्वारा यह कहा जाना-,”बेटा, मैंने अपनी इन आँखों से दो दौरे देखे हैं, एक वह वक्त जब मेरे नाम से दूर-दूर से लोग आते हैं, एक-एक शेर को हजारों बार पढ़वाया जाता था। दूसरा वक्त अब देख रहा हूँ, वही लोग जो मेरे दीवाने थे, अब मुझे भूल गए हैं।
“कितनी मार्मिक है उनकी यह उक्ति। उनकी मान्यता है,-“शायर को उस वक्त मर जाना चाहिए, जब लोग उसे पसंद करते हों, दीवाने हों।” शांदा साहब लोगों की इस मनोवृत्ति से अत्यन्त विक्षुब्ध थे। अत: उनका कहना था कि व्यक्ति को तभी तक जीवित रहना चाहिए जब तक उसकी उपयोगिता है। मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे दिन” शीर्षक कहानी में शांदा साहब द्वारा इस वास्तविकता से उपजी पीड़ा का सफल चित्रण किया गया है।
प्रश्न 3.
कहपानी में शमीम की भूमिका का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी के शमीम एक पात्र है जो अपने गृह नगर से एक वयोद्धद शायर (कवि) शांदा साहब से मिलने के लिए काफी फासला तय करके आए है। शांदा साहब एक जमाने के अद्वितीय शायर थे। उनको सुनने के लिए सुदूर क्षेत्रों से श्रोतागण कवि सम्मेलनों में उपस्थित होते थे। शमीम उनके प्रशंसकों में थे। अत: उनसे मिलने की तीव्र उत्कंठा लिए शमीश उनके यहाँ पहुँचते हैं। शांदा साहब के महन व्यक्तित्व के ही अनुरूप उनके घर का वातावरण होगा, ऐसी शमीम की धारण थी। किन्तु वहाँ अनुमान के विपरीत सब कुछ था। एक जीर्ण-शीर्ण मकान, उसके अन्दर के फर्नीचर तथा अन्य सामान शांदा साहब की आर्थिक स्थिति का सजीव चित्र प्रस्तुत कर रहे थे। परिवार में उनकी पत्नी, विधवा लड़की, एक नाती तथा एक नातिनी। वहाँ रहने के क्रम में शमीम को वहाँ की स्थिति का पर्याप्त ज्ञान हो गया।
उनलोगों से उसे सहज सहानुभूति हो गई और एक गहरा लगाव सा अनुभव हुआ। मात्र दो दिन में ही उसका मन उस घर में लग गया है वहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा है। शमीम एक संवेदनशील, भावुक व्यक्ति है। वह शांदा साहब को अत्यन्त आदर की दृष्टि से देखता है। जावेद और सोफिया इन दोनों बच्चों के प्रति उसके हृदय में प्रगाढ़ स्नेह एवं सहानुभूति उत्पन्न हो गई है। परिवार के सभी सदस्यों को निरंतर अपनी दिनचर्या में लगे देखकर उसे आश्चर्यचकित प्रसन्नता होती है। उसे यह बात अजीब लग रही थी कि ‘उस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।” उक्त तथ्य वस्तुतः सराहनीय एवं अनुकरणीय प्रतीत हुआ।
इस प्रकार शमीम की समस्त संवेदनाएँ उस परिवार की विपन्नावस्था से जुड़ गई हैं।
प्रश्न 4.
‘शायर को उस वक्त मर जाना चाहिए, जब लोग उसे पसंद करते हों, दीवान हों।’ इस कथन के मर्म को अपने शब्दों में उद्घाटित करें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी से उधृत उपरोक्त वाक्य कटु सत्य पर आधारित है। प्रसंग है-शांदा साहब एक लब्धप्रतिष्ठ शायर हैं। एक समय था जब उनके लाखों प्रशंसक थे। श्रोतागण मंत्र मुग्ध होकर उनकी कविता पाठ को सुनते थे। एक-एक कविता को पुनः सुनाने के लिए आग्रः किया जाता था। श्रोताओं की तालियों से पूरा सम्मेलन स्थल गूंज उठता था। महाकवि इकबाल उनके समकालीन थे तथा शांदा साहब के घनिष्ठ मित्र थे। अनेकों कवि-सम्मेलनों एवं अन्य आयोजनों में दोनों व्यक्ति एक साथ सम्मिलित हुए थे।
अनेकों प्रशस्ति पत्र एवं कवि इकबाल के साथ पत्राचार की एक लम्बी श्रृंखला थी तथा उन पत्रों से उनका बक्सा भरा हुआ था। उक्त पत्रों को बक्सा से निकाल कर वह शमीम को पढ़ने को देते हैं। कितने गौरवशाली रहे होंगे वे दिन। अब स्थिति यह है कि समय के थपेड़ों ने उन्हें अशक्त बना दिया है। वृद्धावस्था में अब वह ऊर्जा एवं सामर्थ्य नहीं है। योग्यता है, किन्तु ओजपूर्ण भाषा में सशक्त अभिव्यक्ति की क्षमता का ह्रास हो गया है। अतः अब न वह श्रोताओं और प्रशंसकों की भीड़ है और नहीं उक्त सम्मेलनों के लिए निमंत्रण।
इसी संदर्भ में शांदा साहब को लगता है कि शायर को अपने उत्कर्ष काल में ही मर जाना चाहिए। यदि वह दीर्घ काल तक जीवित रहता है, शारीरिक तथा मानसिक रूप से अशक्त हो जाता है तो गुमनामी के गहन अंधकार में लुप्त हो जायेगा। जीवित रहते भी वह मृतवत् हो जाता है। उसका मर जाना ही श्रेयस्कर है। अतः अपनी शोहरत के स्वर्णिम काल में ही उसे इस संसार से विदा ले लेनी चाहिए।
प्रश्न 5.
“हमलोग तो और नंगे हो गए हैं। बेटा मैंने अपनी इन आँखों से दो दौर देखे हैं।” इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए बताएं कि यहाँ किन दो दौरों की चर्चा है।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी एक शायर के जीवन का सजीव चित्रण है।
शायद जब तक सफलता के सोपान पर निरंतर चढ़ता हुआ प्रसिद्धि के शिखर पर अग्रसर होता जाता है तब तक वह अपने प्रशंसकों तथा श्रोताओं का चहेता बना रहता है। उस समय वह स्वप्न में भी नहीं सोचता कि कभी ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे जब वह ढेला के समान उस गौरवशाली स्थान से पृष्ठभूमि में जा पहुँचेगा। उपेक्षा तथा अनादर का दंश उसे झेलना पड़ेगा।
उपरोक्त परिस्थितियों को याद कर प्रतिक्रिया स्वरूप शायर शांदा साहब उद्विग्न होकर शमीम से अपने विगत जीवन के अनुभव का वर्णन कर रहे हैं। उनके जीवन में दो दौर आए हैं, दोनों में काफी विरोधाभास है। वस्तुतः दोनों में छत्तीस का सम्बन्ध है। एक दौर था उत्कर्ष का जब उन्हें बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों में सादर आमंत्रित किया जाता था। उनके श्रोताओं और प्रशंसकों की संख्या लाखों में थी। उनकी शेरों (कविताओं) को सुनने के लिए लोग लालायित रहते थे। उस स्वर्णिम काल में शायर ने कभी स्वप्न में भी यह आशा नहीं की थी कि दुर्दिन की वह घड़ी उसका इन्तजार कर रही है जब वह अप्रासंगिक हो जाएगा तथा लोग उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर गुमनामी के अंधकारपूर्ण धरातल पर ला देंगे।
यही वह दूसरा दौर है जो बेहद दु:खद तथ दुर्भाग्यपूर्ण है। शोहरत की बुलंदियों पर सवार महान शायद शांदा साहब आज एक निरीह एवं निर्बल इंसान हो गए हैं, अब वह महफिलें नहीं सजर्ती, कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं किन्तु शांदा उसमें शायरी पेश करने के लिए आमंत्रित नहीं किए जाते क्योंकि वह अब महत्त्वहीन हो चुके हैं। वे इन दोनों दौरों के प्रत्यक्ष गवाह बन गए हैं। .. अतः कवि की अन्तर्वेदना मुखरित हो जाती है तथा शांदा साहब जैसे महान कलाकार (शायर) को यह करने पर विवश करती है, ‘हमलोग तो और नंगे हो गए हैं। बेटा मैंने अपनी इन आँखों से दो दौर देखे हैं।” इस कटु-अनुभव के भुक्तभोगी केवल शांदा साहब की नहीं, वरन् उनके जैसी असंख्य प्रतिभाएँ और साधक हैं।।
प्रश्न 6.
“और मैं सोच रहा था-अगर आज इकबाल होते तो।” इस कथन का क्या अभिप्राय है? अगर आज इकबाल होते तो क्या होता? अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी के एक पात्र शमीम अपने शहर से चलकर वयोवृद्ध, लब्ध प्रतिष्ठ शायर शांदा साहब से मिलने उनके शहर जाते हैं। शादा साहब के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा है। वह शांदा साहब के मुशायरों में शरीक होता रहा है तथा स्वयं भी अपने शहर में उनके कार्यक्रम का उसने आयोजन किया है। इसलिए उनसे मिलने की तीव्र उत्कण्ठा लिए जब उनके घर पर पहुँचता है तो शांदा साहब काफी प्रसन्न होते हैं। शांदा साहब की प्रसिद्धि के प्रतिकूल उनके घर की दयनीय स्थिति देखकर वह चकित हो जाता है।
शायर साहब की धर्मपत्नी एक विधवा बेटी, एक नाती जावेद तथा नातिन सोफिया, यही उनका छोटा-सा परिवार है। अपने दो दिन वहाँ ठहरने के क्रम में शमीम को उनकी कष्टपूर्ण स्थिति का पूरा परिचय मिल गया। शांदा साहब के आय के श्रोत अपर्याप्त हैं। सौ रुपए सरकारी पेंशन, बेटी का उर्दू प्रामइरी स्कूल में अध्यापन द्वारा वेतन तथा घर के सामने की जमीन पर एक वृक्ष के नीचे जलावन की लकड़ी की छोटी-सी दूकान, जिसका तराजू पेड़ के नीचे टंगा है।
शांदा साहब वृद्ध एवं दुर्बल हो गए हैं। अब उनको कवि सम्मेलन में नहीं बुलाया जाता। वह गुमनामी के दौर से गुजर रहे हैं। जर्जर मकान, में किसी प्रकार गुजर-बसर कर रहे हैं। महाकवि इकबाल उनके विभिन्न मित्र थे। अक्सर साथ-साथ कवि गोष्ठियों में जाया करते थे। उनके बीच पत्राकार भी होता रहता था।
अर्थाभाव से बच्चों की शिक्षा-दीक्षा समुचित ढंग से नहीं हो पा रही थी। जावेद एक विद्यालय में तीसरे वर्ग में पढ़ रहा है। सात वर्ष की सोफिया घर पर लकड़ी बेचती तथा घर के काम करती है। जावेद भी उसकी सहायता करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य गृहस्थी के काम में दिन-रात लगा हुआ है। कोई व्यक्ति एक क्षण भी नहीं बर्बाद करना चाहता।
शमीम साहब वहाँ दो दिन ठहरने के बाद, जब ताँगा पर सवार होकर वापिस लौट रहे थे तो उन्हें लकड़ी तथा तराजू के पास सोफिया बैठी दीख पड़ी। उस समय उनके हृदय में यह विचार आया कि अगर आज इकबाल होते तो……। शमीम इसी उधेड़बुन में थे कि यदि महाकवि इकबाल होते तथा इस पर घर की ऐसी परिस्थिति से अवगत होते तो उनपर इसकी क्या प्रतिक्रिया होती तथा वे क्या कदम उठाते।
मैं समझता हूँ कि यदि इकबाल जीवित होते तो शांदा की इस दयनीय स्थिति से निश्चित रूप से द्रवित हो जाते। वे शांदा के लिए सरकार तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं से आर्थिक सहायता के लिए प्रयत्न करते। साथ ही स्वयं भी उन्हें अपने स्तर पर समुचित सहयोग करते। जिससे बच्चों के पठन-पाठन सहित घर की अन्य समस्याओं का काफी हद तक समाधान हो सके।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि शमीम के मस्तिष्क में यह विचार तब उठा वह तांगा पर सवार स्टेशन की ओर जा रहा था। सोफिया को लकड़ी एवं तराजू के पास बैठे देखकर ही उनकी उक्त प्रतिक्रिया थी। इससे यह भी विचार बनता है कि जावेद तथा सोफिया के भविष्य निर्माण तथा उत्तम शिक्षा का प्रबंध महाकवि इकबाल द्वारा किया जाता। वे उनलोगों के भविष्य से खिलवाड़ होते देखना संभवतः पसंद नहीं करते।
प्रश्न 7.
कहानी के शीर्षक “भोगे हुए दिन” की सार्थकता पर विचार करें। [Board Model 2009(A)]
उत्तर-
किसी भी रचना का शीर्षक उसका द्वार है जिसे देखकर ही अन्दर जाने की इच्छा-अनिच्छा होती है। अगर द्वार आकर्षक है तो अन्दर झाँकने या अन्दर की बात जानने का लोभ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है। अतः रचना का शीर्षक आकर्षक होना अत्यावयक है। दूसरी बात है, उसकी संक्षिप्ततां और रचना के मूल भाव का संवहन करना।
इस दृष्टि से हम पाते हैं कि कहानी का “भोगे हुए दिन” शीर्षक अत्यन्त उपयुक्त है। कहानी की कथावस्तु अपने उद्देश्य को परस्पर एक दूसरे में पिरोने में पूर्णतया सफल हुई। “भोगे हुए दिन” का आखिर तात्पर्य क्या है? कौन लोग हैं, जिनसे यह सम्बंधित है तथा उन लोगों का जीवन किन ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों से होकर गुजरा, यह उत्सुकता अन्तस्तल में बनी रहती है। कहानी एक वयोवृद्ध शायर के अपने स्वर्णित अतीत एवं वर्तमान के अभाव और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष एवं पराभव की गाथा। शायर की विधवा बेटी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी दृष्टिपात करती है-यह कहानी।
अपने वैभवपूर्ण अतीत को भुलाकर वह अपने समक्ष उपस्थित विकराल समस्याओं का सामना धैर्य एवं साहस के साथ कर रही है। एक उर्दू प्राइमरी विद्यालय में वह अध्यापिका के पद पर है तथा परिवार की समस्याओं के समाधान में सक्रिय योगदान कर रही है। उसके दोनों बच्चे-जावेद एवं सोफिया भी प्रतिकूल परिस्थितियों में परिवार की समस्याओं के समाधान, अतीव सहनशीलता एवं लगन से कर रहे हैं।
इस प्रकार कहानी एक लब्धप्रतिष्ठा शायर के जीवन की गहराइयों में जाकर उनके जीवन के दोनों पहलुओं को उजागर करती है। अतः यह शीर्षक सभी दृष्टिकोणों से सार्थक तथा उपयुक्त है।
प्रश्न 8.
जावेद विद्यालय जाता है। पर सोफिया नहीं क्यों? क्या यह सही है? कहानी के संदर्भ में अपना पक्ष रखें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित कहानी “भोगे हुए दिन” में कहानीकार ने सफल ढंग से एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार एवं परिवार के मुखिया एक शायर के जीवन का चित्रण किया कभी शान-शौकत और शोहरत की जिन्दगी जी रहे शायर शांदा साहब के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है। जब वे अभाव का जीवन जीने को अभिशप्त (विवश) हैं। बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में शांदा साहब के नाती जावेद तथा नतिनी सोफिया की समुचित शिक्षा नहीं हो पा रही है।
जावेद पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है, किन्तु सोफिया नहीं जाती है। इसका मूल कारण घर की दयनीय आर्थिक स्थिति है।
जावेद तथा सोफिया इन दोनों के साथ भेदभाव के एकाधिक कारण हो सकते हैं। पहला कारण यह है कि जावेद लड़का है और सोफिया लड़की। पुरुष प्रधान समाज में लड़कों को लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है, विशेषकर मुस्लिम समाज में।
दूसरा कारण परिवार भी आर्थिक स्थिति भी हो सकती है। दोनों की शिक्षा पर व्यय करने ‘ की अक्षमता, विवशता का कारण प्रतीत होती है। तीसरा कारण जलावन लकड़ी की एक दूकान, जिसको चलाने के लिए अधिकांश समय तक सोफिया ही रहती है जिससे उनका जीवकोपार्जन होता है। साथ ही घर के अन्य कार्यों-बर्तन की सफाई आदि का गृहकार्य भी उस सात वर्षीय बालिका को करना पड़ता है।
उपरोक्त कारणों से ही संभवत: जावेद विद्यालय जाता है, किन्तु सोफिया नहीं जाती है।
प्रश्न 9.
‘भोगे हुए दिन’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
संकेत-कहानी का सारांश के लिए पाठ का सारांश देखें।
प्रश्न 10.
“सात साल की लड़की को भी समय ने कितना निपुण बना दिया था।” इस पंक्ति की प्रसंगत व्याख्या करें।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्ति हमारे पाठ्य-पुस्तक “दिगन्त’ भाग-1 में संकलित ‘भोगे हुए दिन’ शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं। विदुषी लेखिका मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित उपर्युक्त गद्यांश में एक सात वर्षीय बालिका सोफिया की लगन तथा गृह कार्यों में तन्मतया का वर्णन है।
सोफिया शायर शादा साहब की नतिनी (बेटी की बेटी) है। शांदा साहब पहले एक प्रतिष्ठित शायर थे, लेकिन अब उनकी आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी के लिए अपर्याप्त आय के कारण घर के समस्त कार्य परिवार के सदस्यों को ही निपटाना होता है, सोफिया को विद्यालय पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता है। वह घर के सारे कार्य करती है। इतना ही नहीं, घर के आगे एक पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी की एक दुकान, आय के साधन के रूप में, शांदा साहब ने खोला है। सोफिया उस दुकान को भी चलती है।
इस प्रकार सात वर्षीय वह लड़की इतनी निपुण हो गई, जितना एक वयस्क व्यक्ति हो सकता है। उसकी यह निपुणता वस्तुतः प्रशंसनीय तो है ही, विस्मित करने वाला भी है। इस प्रकार कहानीकार ने प्रस्तुत पंक्ति द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि समय के थपेड़े तथा सतत् अभ्यास, अल्पवयस्क को भी प्रवीण बना देता है।
प्रश्न 11.
“इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।” इस कथन का क्या अर्थ है, स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित कहानी “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी में एक प्रतिष्ठित शायर शांदा साहब के पारिवारिक जीवन का वर्णन है।
लब्ध-प्रतिष्ठित वयोवृद्ध शायर शांदा साहब की आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी की व्यवस्था “येन-केन-प्रकारेण’ चल रही है। परिवार का हर सदस्य अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभा रहा है।
शायर साहब से मिलने के लिए एक यहाँ नावागंतुक शमीम आए हैं। वे शायर साहब के बहुत बड़े प्रशंसक रहे हैं। वे शायर की शोहरत एवं लोकप्रियता से काफी प्रभावित थे। वे समझते थे कि प्रसिद्धि के अनुकूल शांदा साहब की हैसियत भी होगी, लेकिन यहाँ आने पर उनकी विपन्नता देखकर उन्हें काफी आश्चर्य एवं निराशा हुई। उन्होंने यह भी पाया कि परिवार का हर सदस्य एक-एक क्षण का सदुपयोग कर रहा है, समय नष्ट नहीं करना चाहता।
शायर की पत्नी दिनभर गृहस्थी के काम में व्यस्त रहती है। उनकी विधवा पुत्री एक उर्दू प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका है तथा प्राइवेट ट्यूशन भी कर लेती है। उसका लड़का जावेद विद्यालय में तीसरा वर्ग का छात्र है, सात वर्षीय पुत्री सोफिया घर के सामने की खुली जगह पर पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी रखकर बेचती है। दोनों बच्चे इसके अतिरिक्त घर के अन्य-कार्यों में भी सहयोग करते हैं।
यह देखकर शमीम को आश्चर्य तथा प्रसन्नता दोनों प्रकार के भाव आते हैं तथा वे सोचने लगते हैं कि इस परिवार का हरेक सदस्य अपने कार्य में व्यस्त है और एक क्षण भी खोना नहीं चाहता है।
प्रश्न 12.
“तराजू के एक पल्ले पर धूप थी, दूसरे में आम की परछाई पड़ी थी। आम की परछाई वाला पल्ला नीचे था, मानो धूप और परछाई दोनों से तौला जा रहा हो।” यह एक बिंब है। इसका अर्थ शिक्षक की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी से उद्धत इन पक्तियों में विद्वान कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज ने सफलतापूर्वक जीवन के दोनों पहलुओं-सम्पन्नता एवं विपन्नता सुख-दुख को बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रित किया है। जीवन में सुख और दुःख, धूप-छाँव की भाँति आते-जाते हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कहानीकार यह कहना चाहते हैं कि सुप्रसिद्ध शायर शांदा साहब के जीवन में सुख और दुख दोनों प्रकार के दिन आए हैं, अपनी युवावस्था उन्होंने प्रसिद्धि एवं समृद्धि के सुख में व्यतीत किए हैं। वर्तमान में वृद्ध एवं दुर्बल शायर-आर्थिक विपन्नता एवं अभाव के दौर से गुजर रहे हैं। इस प्रकार प्रतीकात्मक ढंग से कहानीकार ने कहानी में अपने भाव व्यक्त किए हैं। शमीम शायर साहब ने मिलने आता है। दरवाजे के सामने के पेड़ पर तराजू टंगा है, उसका एक पलड़ा धूप में है और ऊपर की ओर उठा हुआ है। दूसरा पलड़ा छाँव में झुका हुआ है छाँव में झुका हुआ पलड़ा शायर साहब के समृद्धिशाली दिनों का प्रतिनिधित्व करता है तथा धूप मे ऊपर की ओर उठा हुआ पलड़ा उनके अभावों के वर्तमान दौर को प्रतिबिम्बित करता है।
इस प्रकार यह एक बिम्ब है जिसका प्रयोग कहानीकार ने बड़े ढंग से किया है।
भोगे हुए दिन भाषा की बात प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में मिश्र वाक्य और संयुक्त वाक्य चुनें तथा उन्हें सरल वाक्य में बदलें
(क) जावेद मेरे सामने से निकला और लड़की के पास गया।
(ख) मैंने देखा, पीछे की दालान सूनी है।
(ग) मेरा एक शागिर्द है, जम्मू में, बेचारा वही भेजता रहता है।
(घ) जावेद अंदर चला गया, लौटा तो गेहूँ का पीपा उठाए आया।
उत्तर-
(क) जावेद मेरे सामने से निकला और लड़की के पास गया। संयुक्त वाक्य सरल वाक्य-जावेद मेरे सामने से निकलकर लड़की के पास गया।
(ख) मैंने देखा, पीछे की दालान सूनी है।-मिश्र वाक्य सरल वाक्य-मैंने पीछे की सूनी दालान को देखा।
(ग) मेरा एक शागिर्द है, जम्मू में, बेचारा वही भेजता रहता है।-मिश्र वाक्य सरल वाक्य-जम्मू में रहने वाला मेरा एक शागिर्द भेजता रहता है।
(घ) जावेद अंदर चला गया, लौटा तो गेहूँ का पीपा उठाए आया।-मिश्र वाक्य सरल वाक्य-जावेद अंदर से गेहूँ का पीपा उठाए लौट आया।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें गहरी साँस लेना, नंगा होना, गला भर आना, करवटें बदलना।
उत्तर-
नंगा होना (बेआबरू होना)-आज सबके सामने कर्ज के पैसे मांग कर तूने मुझे नंगा कर दिया।
गला भर आना (भाव विहल होना)-बेटे के दूर जाने के समय माँ का गला भर आया। करवटें बदलना (बैचेनी होना)-भय और चिन्ता के मारे वे सारी रात करवटें बदलते रहे।
आँखें मूंदना (ध्यान न देना, मर जाना)-उसे सिगरेट पीता देख मैंने आँखें मूंद ली। बचपन में ही उसके पिता ने आँखें मूंद ली थीं।
हाथ मिलाना (दोस्ती करना)-आज-कल मोहन और सोहन ने हाथ मिला लिया है।
प्रश्न 3.
इस पाठ से मुहावरों का सावधानी से चयन करें और उनका स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-
प्रश्न संख्या 2 के उत्तर देखें।
प्रश्न 4.
पाठ से अव्यय शब्दों का चुनाव करें और उनका स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-
‘भोगे हुए दिन’ पाठ में प्रस्तुत कुछ अव्यय शब्दों के उदाहरण और उनका वाक्यगत प्रयोग निम्नलिखित हैं अब-शांदा साहब का समय अब ठीक नहीं रहा। नीचे-चौकी के नीचे बिल्ली बैठी है।
और-राम और श्याम पढ़ने गये। अरे-अरे ! यह क्या हो गया। पास-मेरे पास कुछ नहीं है।
अक्सर-अक्सर राम और श्याम में झगड़ा होता रहता है। ऊपर-रहीम छत के ऊपर गया है। कि-उसने देखा कि वहाँ कोई नहीं है। फिर-मोहन के जाने के बाद फिर क्या हुआ? बाहर-वह घर से बाहर निकला। अंदर-इस मकान के अंदर चोर घुसा है। सामने-सिपाही के सामने चोर को बोलने की हिम्मत नहीं हुई। लेकिन-वह चाहता तो बोलता, लेकिन उसे मौका ही न मिला। वहीं-वहीं पर लाठी पड़ा था।
अन्य महत्त्वपर्ण प्रश्नोत्तर
भोगे हुए दिन लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“भोगे हुए दिन” का वातावरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
“भोगे हुए दिन” वातावरण प्रधान कहानी है। इसमें शांदा साहब के विपन्न परिवेश का मार्मिक चित्रण है। मरम्मत के बिना शांदा साहब की ही भाँति बूढ़ा और निस्तेज होता बड़ा सा घर आय के लिए नाती और नतनी सहित शांदा साहब द्वारा लकड़ी बेचना, विधवा पुत्री द्वारा स्कूल में पढ़ाने के बाद बचे समय में देर रात तक ट्यूशन पढ़ाकर कुछ अधिक आय करना, बच्चों के मैले कपड़े, साधारण रसोई घर तथा गुसलखाना ये सब पुकार-पुकार कर घर के आर्थिक अभाव की कहानी कह रहे हैं। स्वयं शांदा साहब की बातों से उनकी गरीबी और बुढ़ापा से उत्पन्न उदासी भरी जिन्दगी का बोध होता है।
प्रश्न 2.
शांदा साहब के दुःख पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
शांदा साहब के तीन दुःखों का वर्णन लेखिका ने किया है। प्रथम यह कि वे बूढ़े हो गये हैं। उनको सहारा देने वाला कोई युवा हाथ नहीं है। मात्र एक विधवा पुत्री है। वह भी मास्टरी और ट्यूशन के सहारे अपने दो बच्चों को लेकर संघर्ष कर रही है। दूसरा दुःख है कि गरीबी से लड़ने का पुख्ता प्रबंध उनके पास नहीं है जिसके बल पर वे बेसहारा बुढ़ापे मुकाबला करते। इन दोनों से बड़ा तीसरा दुःख है न पूछे जाने का। एक जमाने में अपनी शायरी का जलवा दिखाने वाले, अच्छे-अच्छे शायरों की गलतियाँ ठीक करने वाले और और इकबाल जैसे बड़े शायर के घनिष्ठ शांदा साहब आज जीते जी इतने अप्रासंगिक हो गये हैं कि नयी पीढ़ी के शायर उनका नाम तक नहीं जानते। तभी तो वे कामना करते हैं कि शायर को तभी मर जाना चाहिए जब लोग उसे पसंद करते हों, दीवाने हों।
भोगे हुए दिन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शांदा साहब से शमीम का क्या रिश्ता है?
उत्तर-
एक मुशायरे में शांदा साहब को शमीम ने अपने यहाँ टिकाया बुजुर्ग समझकर। इसी अवसर के कारण परिचय हुआ जो आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध में बदल गया।
प्रश्न 2.
शांदा साहब के मकान की दशा कैसी है?
उत्तर-
शांदा साहब का मकान पुराना है, बेमरम्मत है। उसे देखने पर लगता है कि अजीव तरह की उदासी ने उसे घेरे रखा है।
प्रश्न 3.
शमीम कौन है?
उत्तर-
शमीम जंगदलपुर का रहने वाला है। वह भी संभवत, शायर है, युवा शायर। वह शांदा साहब से परिचित है और आदर करता है।
प्रश्न 4.
शांदा साहब कैसे शायर हैं?
उत्तर-
शांदा साहब हिन्दुस्तान के पुराने शायरों में से हैं। मुशायरे में उनके नाम से लोग जमा हो जाते थे। वे और इकबाल एक-दूसरे के घनिष्ठ थे। वे उच्च कोटि के शायर हैं।
प्रश्न 5.
फातिमा कौन है?
उत्तर-
फातमा शांदा साहब की विधवा पुत्री है जो पति के मरने के बाद अपने बच्चों के साथ पिता के पास रहती है, वह एक स्कूल शिक्षिका है।
प्रश्न 6.
शांदा साहब सन्दूक में से क्या निकाल कर शमीम को दिखाते हैं।
उत्तर-
उसमें इकबाल साहब द्वारा शांदा साहब को लिखे गये पत्र थे जो दोनों की घनिष्ठता और आत्मीयता को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 7.
शांदा साहब क्यों मर जाना चाहते हैं?
उत्तर-
शांदा साहब जीवित हैं मगर उनकी पूछ समाप्त हो गयी है, नयी पीढ़ी उनका नाम। तक नहीं जानती। अपने शहर नागपुर के मुशायरे में भी लोग उन्हें नहीं बुलाते हैं। इसलिए वे मर जाना चाहते हैं। वस्तुत शांदा साहब अपने जीवन से बहुत निराश हैं।
प्रश्न 8.
भोगे हुए दिन नामक कहानी की लेखिका कौन हैं?।
उत्तर-
भोगे हुए दिन नामक कहानी की लेखिका मेहरून्निसा परवेज हैं।
प्रश्न 9.
जावेद और सोफिया कौन हैं?
उत्तर-
जावेद और सोफिया शांदा साहब की विधवा पुत्री फातिमा के पुत्र और पुत्री हैं।
प्रश्न 10.
सोफिया स्कूल क्यों नहीं जाती है?
उत्तर-
सोफिया एक मुस्लिम परिवार की लड़की है। इसमें परदा-प्रथा लागू है। साथ ही उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं जिससे कि पढ़ाई का खर्च पूरा हो सके। इसीलिए सोफिया स्कूल नहीं जाती है।
प्रश्न 11.
फातिमा कौन थी?
उत्तर-
फातिमा शांदा साहब की विधवा पुत्री थी, जो एक शिक्षिका भी थी।
प्रश्न 12.
2005 ई. में भारत के राष्ट्रपति द्वारा लेखिका मेहरून्निसा परवेज को कौन-सा पुरस्कार दिया गया था?
उत्तर-
2005 ई. में भारत के राष्ट्रपति द्वारा लेखिका मेहरून्निसा परवेज को पद्मश्री का पुरस्कार दिया गया था।
भोगे हुए दिन वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
‘भोगे हुए दिन’ के लेखिका हैं
(क) मेहरुन्निसा परवेज
(ख) कृष्णा सोवती
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) सुभद्रा कुमारी ‘चौहान’
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
मेहरुन्निसा परवेज का जन्म हुआ था।
(क) 10 सितम्बर, 1944
(ख) 9 अगस्त, 1942
(ग) 15 जुलाई, 1931
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
मेहरुन्निसा जन्मस्थान था
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) बिहार
(ग) झारखंड
(घ) मध्यप्रदेश
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 4.
चरारे शरीफ में हिंसा के समय मिशन की सांप्रदायिक सद्भाव यात्रा में कहाँ गईं?
(क) पूर्वी पाकिस्तान
(ख) कश्मीर
(ग) नोआ खाली
(घ) लाहौर
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 5.
2005 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा कौन सम्मान प्राप्त हुआ?
(क) पद्मश्री
(ख) साहित्य सम्मान
(ग) विशिष्ट सम्मान
(घ) इनमें से सभी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 6.
मेहरुन्निसा कौन-सी त्रैमासिक पत्रिका का संपादन किया?
(क) समर लोक
(ख) कारेजा
(ग) सोने का बेसर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
इनके पिता का नाम…………था।’
उत्तर-
ए० एच० खान।
प्रश्न 2.
कोरजा उपन्यास पर उ०प्र० हिन्दी संस्थान का……….सम्मान प्राप्त हुआ?
उत्तर-
साहित्य भूषण।
प्रश्न 3.
उनकी दृष्टि…………और मानवीय होती है।
उत्तर-
समाजशास्त्रीय।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी………..से ली गई है।
उत्तर-
मेरी बस्तर की कहानियाँ।
प्रश्न 5.
मेहरुन्निसा परवेज लिखित ‘भोगे हुए दिन’ शीर्षक कहानी में एक शायर के जीवन का………….चित्रण है।
उत्तर-
मार्मिक।
प्रश्न 6.
वस्तुतः जावेद तथा सोफिया, दोनों ही…………..के पात्र हैं।
उत्तर-
प्रशंसा एवं सहानुभूति।
प्रश्न 7.
भोगे हुए दिन कहानी में शांदा. साहब द्वारा……………का सफल चित्रण किया गया है।
उत्तर-
वास्तविकता से उपजी पीड़ा।
प्रश्न 8.
शमीम की समस्त संवेदनाएँ उस परिवार की………..से जुड़ गई है।
उत्तर-
विपन्नावस्था।
प्रश्न 9.
समय के थपेड़े तथा सतत अभ्यास, अल्प वयस्क को भी…………..बना देता है।
उत्तर-
प्रवीण।
प्रश्न 10.
जीवन में सुख और दुःख…………की भाँति आते हैं।
उत्तर-
धूप और छाँव।
प्रश्न 11.
सोफिया का स्कूल नहीं जाना उसकी…………का परिचायक है।
उत्तर-
आर्थिक दशा।
भोगे हुए दिन लेखक परिचय – मेहरुन्निसा परवेज (1944)
हिन्दी की आधुनिक लेखिकाओं में मेहरुन्निसा परवेज एक महत्त्वपूर्ण नाम है। इसका जन्म मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के ‘बहला’ में 10 दिसम्बर, 1944 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम ए. एच. खान है। मेहरुन्निसा परवेज को हिन्दी-उर्दू के अतिरिक्त मध्यप्रदेश की विवध बोलियों-हलबी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, मालवी आदि की भी अच्छी-खासी जानाकरी है। सामाजिक कार्यों के प्रति इनकी आरम्भ हो ही अभिरुचि रही है और इन्होंने बस्तर के आदिवासियों और शोषित दलित जातियों-समुदायों की तेहतरी के लिए लेखन तथा अन्य गतिविधियों में विशेष सक्रियता दिखायी है। ये 1995 ई. में चरारे शरीफ में हिंसा के समय गाँधी शांति मिशन की सांप्रदायिक सद्भावना यात्रा में कश्मीर गईं। लंदन, फ्रांस, रूस आदि की साहित्यिक-सामाजिक यात्राओं और सम्मेलनों में भी इनकी उल्लेखनीय एवं सराहनीय सहभागिता रही है।
समसामयकि महिला कथाकारों के बीच मेहरुन्निसा की विशिष्ट पहचान है। वे सामाजिक-साहित्यिक गतिविधियों के साथ-साथ लेखन में भी निरंतर ……….. रहती हैं। उनके कथा साहित्य में यूँ तो मुस्लिम मध्यवर्ग के जीवन के विश्वसनीय अंतरंग चित्र मिलते ही हैं, परन्तु जैसे-जैसे उनके अनुभवों का दायरा बढ़ता गया और पर्यवेक्षण का विस्तार होता गया है, वैसे-वैसे उसमें मध्यवर्ग और नारी समस्या के अतिरिक्त अन्य विषयों से जुड़ी विविधाएँ भी आती गईं हैं। वे अपने विषय पात्र और परिवंश पर खोजी निगाह रखती हैं। उनकी रचनाओं में यद्यपि उच्छल भावुकता नहीं होती. पर भावना की ताकत यथार्थबोधे से उपजी समझ के कठोर संयम के कारण रचना के दायरे में ही रूपांतरित होकर एक ऐसी ऊर्जा में बदल जाती है कि पाठक को गहरी तृप्ति अथवा अतृप्ति की अनुभूति होने लगती है और इसी अर्थ में उनका साहित्य समय के निहायत जरूरी संवाद और संप्रेषण का साहित्य हो जाता है।
मेहरुन्निसा अब भी निरन्तर लिख रही हैं और अभी उनसे हिन्दी संसार को एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं की आशा और अपेक्षा है। उनकी अब तक की प्रकाशित कृतियों में प्रमुख हैं-आँखों की दहलीज, उसका धार, कोरजा, अकेला पलाश, समरांगण, पासंग (उपन्यास), आदम और हव्वा, टहनियों पर धूप, गलत पुरुष, फाल्गुनी, अंतिम चढ़ाई, सोने का बेसर, अयोध्या से वापसी, ढहता कुतुबमीनार, रिश्ते, कोई नहीं, समर, लाल गुलाब, मेरी बस्तर की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) आदि। मेहरुन्निसा ने लेखन के अतिरिक्त ‘समरलोक’ त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी किया है तथा ‘लाजो बिटिया’ जैसी टेलीफोन एवं ‘वीरांगना रानी अवंतीबाई’ नामक धारावाहिक का निर्माण एवं निर्देशन भी किया है। अपनी उल्लेखनीय साहित्यिक उपलब्धियों के लिए वे 1995 ई. में लंदन में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में विशिष्ट सम्मान, 2003 ई. में ‘भारत भाषा भूषण’ सम्मान तथा 2005 ई. में भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘पदमश्री’ अलंकरण से . सम्मानित-पुरस्कृत हो चुकी हैं।
भोगे हुए दिन पाठ का सारांश
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी में एक शावर के जीवन का ‘मार्मिक चित्रण है। उसमें मानव-जीवन के अनेक पहलुओं को अत्यन्त कुशल ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जीवन के उतार चढ़ाव को इस कहानी में सफलतर पूर्वक उकेरा गया है। लेखिका ने ‘समाज की विसंगतियों एवं लोगों की मानसिकता का सशक्त एवं सजीव मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। इस कहानी द्वारा लेखिका की विद्धता तथा समाज के अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करने की क्षमता का अपूर्व परिचय मिलता है।
कहानी शांदा साहब नामक एक जाने जाने (प्रसिद्ध वयोवृद्ध शायर के मकान से प्रारम्भ होती है। शायर साहब समय की मार के साक्षी हैं। कभी वह महाकवि इकबाल के मित्रों में थे तथा उनके साथ बड़े-बड़े मुशायरों में सादर आमंत्रित किए जाते थे। किन्तु अब वे पूर्णतः उपेक्षित जीवन बिता रहे हैं। उनकी धर्म पत्नी, एक विधवा बेटी तथा एक नाती एवं एक नतनी का छोटा परिवार है। जीर्णशीर्ण मकान में एकान्तवास का जीवन, जीविकोपार्जन के लिए अपर्याप्त आमदनी तथा दयनीय स्थिति उनकी नियति बन गई है।
शांदा साहब के प्रशंसक शमीम जब दूसरे शहर से उनसे मिलने आते हैं तो उनकी प्रसिद्धि के विपरीत घर की स्थिति देखकर स्तब्ध रह जाते हैं। उनके घर के सामने एक पेड़ के नीचे उनकी जलावन की लकड़ी की दुकान है, उनकी बेटी एक उर्दू प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका है, उन्हें सरकार की ओर से सौ रुपये पेंशन मिलती है। इन्हीं पैसों से घर का खर्च चलता है। वर्तमान समाज की स्वार्थपरता तथा अपनी उपेक्षा का विषाद उनके उद्गारों में स्पष्ट प्रतिबिम्बित होता है। उनकी व्यथा की झलक निम्नोक्त पंक्तियों में मिलती है, “हमलोग तो और नंगे हो गए हैं, बेटा मैंने अपनी आँखों से दो दौर देखे हैं।” अपने स्वर्णिम अतीत को याद कर वे उद्धिग्न हो जाते हैं क्योंकि अब वे अप्रासंगिक हो गए हैं।
शमीम साहब की उनकी नतिनी सोफिया के प्रति असीम सहानुभूति है। उन्हें इस बात का दुःख है कि सात बरस की वह लड़की विद्यालय पढ़ने नहीं जाती, लकड़ी की दुकान पर बैठती है तथा घर का काम करती है।
इस प्रकार शांदा साहब की पीड़ा शमीम को उद्विग्न कर देती है जो उसके वहाँ से लौटते समय स्पष्ट झलकती है।
इस कहानी द्वारा विदुषी कहानीकार ने मनुष्य की स्वार्थपरता का भी सफल चित्रण किया है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण शांदा साहब स्वयं हैं। किसी व्यक्ति का मान सम्मान एवं यशः गान, आज के युग में उसकी उपयोगिता के आधार पर ही दिया जाता है। कहानीकार अपने इस प्रयास में पूर्ण सफल हुई है।
भोगे हुए दिन कठिन शब्दों का अर्थ
बासी-जो ताजा न हो। बरखुरदार-खुशनसीब, बेटा। दालान-बरामदा। ‘ बावर्चीखाना-रसोईघर। जाफरी-बाँस या लकड़ी से बनी हुई टट्टी। मुशायरा-कवि सम्मेलन। तखत-चौकी। खाला-मौसी। गुसलखाना-स्नान घर। निपुण-दक्ष। उस्ताद-गुरु। शागिर्द-शिष्य, चेला। पेबंद-वह टुकड़ा जिससे कपड़े के छेद को ढंका जाए। अफसोस-दुःख। स्तब्ध-भौंचक्का। सूराख-छेद। चट्टी-सस्ती चप्पल। वजीफा-पेंशन। गुलदान-वह पात्र जिसमें तरह-तरह के फूल सजाए जाते हैं।
भोगे हुए दिन महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या
1. “सात साल की लड़की को भी समय ने निपुण बना दिया था” इस पंक्ति की संप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्य पुस्तक ‘दिगन्त’ के ‘भोगें हुए दिन’ शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं। विदुषी लेखिका (कहानीकार) मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित उपरोक्त गद्यांश में एक सात वर्ष की बालिका सोफिया की लगन तथा गृहकार्यों में तन्मयता का वर्णन है।
सोफिया शायर शांदा साहब की नतिनी है। शांदा साहब एक प्रतिष्ठित शायर हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी के लिए अपर्याप्त आय के कारण घर के समस्त कार्य परिवार के सदस्यों को ही निपटाना होता है, सोफिया को स्कूल पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता है। वह घर के सारे कार्य करती है। इतना ही नहीं घर के आगे एक पेड़ के नीचे जलावन-लकड़ी की एक दूकान, आय के साधन के रूप में; शांदा साहब ने खोला है। सोफिया उस दूकान को भी चलाती है।
इस प्रकार सात वर्षीय वह लड़की इतनी निपुण हो गई है, जितना एक व्यस्क व्यक्ति हो सकता है। उसकी यह निपुणता वस्तुतः प्रशंसनीय तो है ही, विस्मित करने वाला भी है। इस प्रकार कहानीकार ने उक्त पक्ति द्वारा यह बताने का प्रयास किया है। समय के थपेड़े तथा सतत् अभ्यास, अल्पवयस्क को भी प्रवीण बना देता है।
2. “इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है, “इस कथन का क्या अर्थ है, स्पष्ट करें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित कहानी “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी में एक प्रतिष्ठित शायर शांदा साहब के पारिवारिक जीवन का वर्णन है।
वयोवृद्ध शायर की आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी की व्यवस्था “येन केन-प्रकारेण” चल रही है। परिवार का हर सदस्य अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभा रहा है। . शायर के यहाँ नवागंतुक शमीम उनसे मिलने आए हैं। वे शायर के प्रशांसक रहे हैं। वे शायर की शोहरत एवं लोकप्रियता से काफी प्रभावित थे। वे समझते थे कि पर उनकी विपन्नता देखकर उन्हें काफी आश्चर्य एवं निराशा हुई। उन्होंने यह भी पाया कि परिवार का हर सदस्य एक-एक क्षण का सदुपयोग कर रहा है, समय नष्ट नहीं करना चाहता। शायर की पत्नी दिनभर गृहस्थी के काम में व्यस्त रहती हैं। उनकी विधवा पुत्री एक उर्दू प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका हैं तथा प्राइवेट ट्यूशन भी कर लेती हैं। उसका लड़का जावेद विद्यालय में तीसरा वर्ग का छात्र है, सात वर्षीय पुत्री सोफिया घर के सामने की खुली जगह पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी रखकर बेंचती है। दोनों बच्चे इसके अतिरिक्त घर के अन्य-कार्यों में भी सहयोग करते हैं।
यह देखकर शमीम को आश्चर्य तथा प्रसन्नता दोनों प्रकार के भाव आते हैं तथा वे सोचने लगते हैं कि उस परिवार का हरेक सदस्य अपने कार्य में व्यस्त है और एक क्षण भी खोना नहीं चाहता है।
3. “तराजू के एक पल्ले पर धूप थी, दूसरे में आम की परछाई पड़ी थी। आम की परछाई वाला पल्ला नीचे था, मानो धूप और परछाई दोनों से तौला जा रहा हो।” वह एक बिंब है। इसका अर्थ शिक्षक की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी से उद्धृत इन पंक्तियों में कहानीकार ने सफलतापूर्वक जीवन के दोनों पहलुओं-सम्पन्नता एवं विपन्नता को बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रित किया है। जीवन में सुख और दु:ख धूप और छाँव की भाँति आते हैं।
उपरोक्त पंक्तियों में कहानीकार का आशय यह है कि सुप्रसिद्ध शायर शांदा साहब के जीवन में दोनों प्रकार के दिन आए हैं, अपनी युवावस्था उन्होंने प्रसिद्धि एवं समृद्धि के सुखद दिनों में व्यतीत किए हैं। वर्तमान में वृद्ध एवं दुर्बल शायर-आर्थिक विपन्नता एवं अभाव के दौर से गुजर रहे हैं। इस प्रकार प्रतीकात्मक ढंग से कहानीकार ने कहानी में अपने भाव व्यक्त किए हैं। शमीम शायर साहब से मिलने आता है। दरवाजे के सामने के पेड़ पर तराजू टंगा है, उसका एक पलड़ा पर आम के पेड़ की छाया पड़ रही है तथा वह नीचे की ओर झुका हुआ है जबकि दूसरा पलड़ा धूप में है और ऊपर की ओर उठा हुआ है। छाँव में झुका हुआ पलड़ा शायर के समृद्धिशाली दिनों का प्रतिनिधित्व करता है तथा धूप में ऊपर की ओर उठा हुआ पलड़ा उनके अभावों के वर्तमान दौर को प्रतिबिम्बित करता है।
इस प्रकार यह एक बिम्ब है जिसका प्रयोग कहानीकार ने बड़े कुशल ढंग से किया है।
4. जावेद पढ़ने के लिए स्कूल जाता है, किन्तु सोफिया नहीं जाती है। इसके लिए लेखक ने किन-किन कारणों का उल्लेख किया है स्पष्ट करें। [B.M. 2009(A)]
उत्तर-
लेखक ने पहला कारण शांदा साहब की आर्थिक स्थिति को माना है और जावेद लड़का है और सोफिया लड़की। पुरुष प्रधान समाज में लड़कों को लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है, विशेषकर मुस्लिम समाज में। दूसरा कारण परिवार की आर्थिक स्थिति है दोनों की शिक्षा पर व्यय करने की अक्षमता, विवशता का कारण प्रतीत होती है।
तीसरा कारण जलावन लकड़ी की दूकान, जिसको चलाने के लिए अधिकांश समय तक सोफिया ही रहती है जिससे उनका जीविकोपार्जन होता है। साथ ही घर के अन्य कार्यों-बर्तन की सफाई आदि का गृह कार्य भी उस सात वर्षीय बालिका को करना पड़ता है।