Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 5 भारतीय चित्रपट

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 5 भारतीय चित्रपट Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 5 भारतीय चित्रपट

Bihar Board Class 9 Hindi भारतीय चित्रपट Text Book Questions and Answers

भारतीय चित्रपट Bihar Board Class 9 प्रश्न 1.
उन्नीसवीं और बीसवीं शती ने दुनिया को कई करिश्मे दिखाए। लेखक ने किस करिश्मे का वर्णन विस्तार से किया है?
उत्तर-
लेखक ने उनसवीं और बीसवीं शती के करिश्मे में गैस की रोशनी, बिजली का चमत्कार, टेलीग्राम, टेलीनकोण, जादू, रेल, मोटर इत्यादि करिश्मे के विषय में विस्तार से वर्णन किया है।

Class 9 Hindi Chapter 5 Bihar Board प्रश्न 2.
भारतीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब फालके का महत्व बताइए।
उत्तर-
सबसे पहले 6 जुलाई, 1896 ई. में बम्बई में पहलीबार सिनेमा दिखाया गया। 1984 में पहली बार बम्बई की जनता को रूपहले पर्दे पर कछ भारतीय दश्य देखने को मिले। उस समय सावे दादा ने ल्युमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर, फोटो डेवलप करने की मशीन या मशीनें खरीदकर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर लिया था। सावे दादाने सर आर० पी० पराजपे पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बढ़ाई। इसी तरह लोकमान्य तिलक, गोखले आदि पर भी फिल्म बनाई। लेकिन दादा साहब फालके द्वारा बनाई गई फीचर फिल्म हरिश्चंद्र से पहले की एक फिल्म बनी थी उसका नाम ‘भक्त पुंडलीक’ था। इतिहास ने दादा साहब फालके को ही भारतीय फिल्म उद्योग का जनक माना सावे दादा को नहीं। भारत सरकार ने भी फिल्म के सर्वोच्च पुरस्कार को दादा साहब फालके पुरस्कार कहके ही इतिहास की बंदना की है।

Class 9 Hindi Chapter 5 Question Answer Bihar Board Class 9 प्रश्न 3.
सावे दादा कौन थे? भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को पाठ के माध्यम से समझाइए।
उत्तर-
सावे दादा भारतीय फिल्म को शुरू करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने शालिनी स्टूडियो की स्थापना की थी। मझोले कद के गोरे चिट्टे, दुबली-पतली कायावाले सावे दादा को देखकर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि ये ही भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदि पुरुष है। उन्होंने भारतीय ल्यमायर ब्रदसे के प्रोजेक्टर, फोटो डेवलप करने की मशीन या मशीनें खरीदकर भारतीय फिल्म का एक तरह से राष्ट्रीकरण कर लिया था। वे इंगलैंड जाकर एक कैमरा भी लाए थे और शायद इंगलैंड और फ्रांस के सिनेमा से ग्राफी कला विशेषज्ञों से भेंट करके उन्होंने भारत में इस उद्योग को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की थीं।

भारतीय सिनेमा के जनक कौन थे Bihar Board Class 9 प्रश्न 4.
लेखक ने सावे दादा की तुलना में दादा साहब फालके को क्यों भारतीय सिनेमा का जनक माना? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सावे दा ने भी बहुत सी डक्यूमेंटरी फिल्म बनाई और उस समय के नेताओं जैसे गोखले तिलक पर भी फिल्में बनाई लेकिन दादा साहब फाल्के ने एक फीचर फिल्म बनाई जिसका नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था और उससे भी पहले उन्होंने एक फिल्म बनाई थी जिसका नाम ‘भक्त पुंडलीक था। इसी तुलना के आधार पर सावे दादा की तुलना में दादा साहब फाल्के को ही भारतीय सिनमा का जनक माना गया और भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च शिखर सम्मान पुरस्कार दादा साहब फाल्के के नाम पर रखा गया है।

बंदना क्या है Class 9 Bihar Board प्रश्न 5.
भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीक के महत्व को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीकी का महत्वपूर्ण स्थान है। फ्रांस के ल्युमीयेर ब्रदर्स के एजेंट उन्नसवीं सदी के इस तिलस्म को दिखाने के लिए भारत में लाये थे। अमेरीका में भी यह दिखाया जा रहा था। आज की सिनेमा की तरह उस समय के सिनेमा में छोटी-छोटी तस्वीरें थीं। किसी समुद्र में स्नान के दृश्य दिखाए गए और किसी में कारखाने से छूटते हुए मजदूरों का दृश्य, हल्की फुल्की झांकियां देखने को मिलती थी।

कक्षा 9 की हिंदी की किताब का पहला पाठ Bihar Board प्रश्न 6.
अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होती थी, क्यों?
उत्तर-
पश्चिमी तकनीक पर आधारित सिनेमा किसी कहानी पर आधारित नहीं होती थी। उस समय छोटे-छाटे चित्र, हल्की-फुल्की झाँकियाँ दिखाई जाती थी क्योंकि उस समय पूर्ण रूप से फिल्म तकनीक का विकास नहीं हो पाया था।

प्रश्न 7.
भारत में पहली बार सिनेमा कब और कहाँ दिखाया गया?
उत्तर-
1897 ई० में पहली बार मुंबई की जनता को रूपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य दिखाया गया।

प्रश्न 8.
सिनेमा दिखलाने के लिए अखबारों में क्या विज्ञापन निकला? इस विज्ञापन का बम्बई की जनता पर क्या असर हुआ था?
उत्तर-
सिनेमा दिखलाने के लिए अखबार में विज्ञापन निकाला कि जिंदा तिलस्मात् देखिए फोटुएँ आपको चलती-फिरती टोड़तो दिखलाई पड़ेगा। टिकट एक रुपिया इस विज्ञापन ने बंबई में तहलका मचा दिया।

प्रश्न 9.
1897 में पहली बार बम्बई की जनता को रुपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले। उन दृश्यों को लिखें।
उत्तर-
1897 में जो कुछ दृश्य देखने को मिले। उनमें बंबई की नारली पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन का त्योहार, दिल्ली के लाल किले और अशोक की लाट वगैरह के चंद दृश्यों की झलक के साथ-साथ लखनऊ में इमामबाड़ों भी रूपहले पर्दे पर चमके।

प्रश्न 10.
कलकत्ते में स्टार थियेटर की स्थापना किसने की? ।
उत्तर-
मिस्टर स्टीवेंसन नामक एक अंग्रेज सज्जन ने स्टार थियेटर की स्थापना की।

प्रश्न 11.
भारत में फिल्म उद्योग किस तरह स्थापित हुआ? इसकी स्थापना में किन-किन व्यक्तियों ने योगदान दिया।
उत्तर-
भारतीय फिल्म उद्योग की स्थापना बहत ही तिलसस्माई ढंग से ही। इसकी स्थापना में सावे दादा, दादा फाल्के, मिस्टर स्टीवेंशन इत्यादि व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 12.
पहली फीचर फिल्म कौन थी?
उत्तर-
पहली फीचर फिल्म भक्त पुंडलीक’ थी।

प्रश्न 13.
भारत की पहली बॉक्स-ऑफिस हिट फिल्म किसे कहा जाता है?
उत्तर-
‘लंकादहन’ पहली बॉक्स आफिस हीट फिल्म थी।

प्रश्न 14.
जे. एफ० मादन का भारतीय फिल्म में योगदान रेखांकित करें।
उत्तर-
जे. एफ० मादन ने 1917 में एलफिंस्टन बाइस्कोप कंपनी नामक फिल्म संस्था बनाई और दादा साहब फाल्के की तरह वे भी फीचर फिल्म बनाने लगे।

प्रश्न 15.
शुरुआती दौर की फिल्म को लोग क्या कहते थे?
उत्तर-
शुरुआती दौर की फिल्म को लोग जादुई तिलस्म कहते थे।

प्रश्न 16.
‘राजा हरिश्चन्द्र फिल्म’ में स्त्रियों का पार्ट भी पुरुषों ने ही किया था। क्यों?
उत्तर-
श्री फिरोज रंगूनवाला ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि दादा साहब फालके ने पहले तो वेश्या वर्ग की कुछ स्त्रियों को अपनी फिल्म में काम करने के लिए राजी कर लिया था लेकिन बाद में कैमरा के सामने आने पर वे शरमा गई। कुछ एक को तो उनके संरक्षक दलाल ही भगाकर ले गए और इस प्रकार राजा हरिश्चन्द्र की रानी मास्टर साडंके को ही बनना पड़ा।

नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखें।

1. उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों ने दुनिया को ऐसे-ऐसे करिश्मे दिखलाए कि लोग बस दाँतों तले उँगली दबा-दबा के ही रह गए। आँखें अचम्भे से फट-फट पड़ीं। गपोड़ियों की गप्पों का बाजार ठप पड़ गया, क्योंकि वे लोग जो झूठे बयान करते थे, वह देर-सबेर साइंस का । करिश्मा बनकर सच साबित हो जाता था। गैस की रोशनी, बिजली का चमत्कार, टेलीग्राम, टेलीफोन के जादू, रेल, मोटर वगैरह-वगैरह जो पहले किसी ने देखे सने तक न थे, जिंदगी की असलियत बनकर हमारे सामने आ गए थे। सिनेमा का आविष्कार भी उन्नीसवीं सदी के बीतते न बीतते जादू बनकर जमाने के लिए सिर पर चढ़कर बोलने लगा। 6 टी. जुलाई 1896 का दिन हिंदुस्तान और खासकर बंबई के लिए एक अनोखा दिन था जब पहली बार भारत में सिनेमा दिखलाया गया।
(क) लेखक और पाठ के नाम लिखें।
(ख) उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों के करिश्मों का क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) विज्ञान के कौन-कौन से आविष्कार हमारे सामने असलियत बनकर आए?
(घ) कौन-सा दिन हिंदुस्तान खासकर बंबई के लिए एक अनोखा दिन था और क्यों?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) लेखक-अमृतलाल नागर, पाठ-भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक।

(ख) उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों में जो करिश्में दिखाई पड़े वे वैज्ञानिक आविष्कारों के रूप में थे। वे सभी वैज्ञानिक आविष्कार काफी आश्चर्यजनक और विस्मयपूर्ण थे। उन्हें देखकर और उनके प्रभाव को पाकर सभी लोग दाँतों तले ऊँगली दबाने लगे।

(ग) उस समय विज्ञान के कई आश्चर्यजनक आविष्कार हुए जिनमें गैस की रोशनी, बिजली, टेलीग्राम, टेलीफोन, रेलगाड़ी, मोटरगाड़ी आदि के आविष्कार प्रमुख रूप से शामिल हैं। ये सारे आविष्कार मानव जीवन में बिलकुल असलियत के रूप में प्रकट हुए और मानव जीवन पर इनका अद्वितीय प्रभाव पड़ा।

(घ) 6 जुलाई 1896 का दिन हिंदुस्तान खासकर बंबई के लिए एक अनोखा दिन था। इस अनोखेपन का एकमात्र कारण यह था कि उस दिन सिनेमा के आविष्कार के फलस्वरूप बंबई शहर में पहली बार सिनेमा दिखलाया गया। यह घटना सचमुच अतिशय आश्चर्यजनक और महत्त्वपूर्ण थी।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने 19वीं और 20वीं सदी में हुए वैज्ञानिक आविष्कारों की विलक्षणता की चर्चा की है। लेखक ने बताया है कि उन दोनों सदियों में गैस, बिजली, रेल, मोटर, टेलीफोन आदि वैज्ञानिक उपकरणों के आविष्कार ने जगत को चमत्कृत कर दिया। इन आविष्कारों में सिनेमा के आविष्कार ने तो और जादू का काम किया। जब 6 जुलाई 1896 के दिन बंबई में पहली बार सिनेमा दिखाया गया तो यह तिथि एक ऐतिहासिक तिथि के रूप में मान्य हो गई।

2. भारत में इस काम को शुरू करनेवाले पहले व्यक्ति एक सावे दादा थे।
दुर्भाग्यवश उनका असली नाम मैं भूल गया हूँ। मैं 1941 में जब स्वर्गीय मास्टर विनायक की एक फिल्म ‘संगम’ लिखने के लिए कोल्हापुर गया था तब शालिनी स्टूडियोज में उनके दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे मिला था। मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे, दुबली-पतली कायावाले सावे दादा को देखकर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ये अपने जमाने के बहुत बड़े कैमरामैन और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदिपुरुष रहे होंगे। मुझे तो अब याद नहीं कि सावे दादा कोल्हापुर ही के निवासी थे या बंबई, पुणे के, पर बंबइया मार्का हिंदी वे मजे में बोल लेते थे। उन्होंने ल्यूमीयेर ब्रदर्स के प्रोटेक्टर, फोटो डेवलप करने की मशीन या मशीनें खरीद कर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर लिया था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) लेखक, किनका असली नाम भूल रहा था? लेखक को उनके प्रथम दर्शन कब और किस संदर्भ में हुए थे।
(ग) लेखक द्वारा चर्चित व्यक्ति के कायिक स्वरूप का चित्रांकन करें।
(घ) वह व्यक्ति किस धंधे से किस रूप में जुड़ा हुआ था?
(ङ) उसकी कार्यगत उपलब्धि की संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्तों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) लेखक भारत में सिनेमा के काम को शुरू करनेवाले प्रथम व्यक्ति सावे दादा के मूल माम को भूल रहा था। लेखक को उनके प्रथम दर्शन का सुयोग तब मिला था, जब वह (लेखक) 1941 में स्वर्गीय मास्टर विनायक की एक फिल्म ‘संगम’ लिखने के लिए कोल्हापुर गया हुआ था। वहीं शालिनी स्टूडियोज में उसे उनके दर्शन हुए।

(ग) लेखक द्वारा चर्चित व्यक्ति सावे दादा थे। वे मॅझोले कद के एक गोरे-चिट्टे और दुबली-पतली कायावाले व्यक्ति थे। उनकी यह कायिक बनलट अति सामान्य और सरल थी जिसमें उनके व्यक्तित्व की विलक्षणता का कोई चिन्ह नहीं था, कोई खास पहचान का आधार नहीं था।

(घ) वह व्यक्ति, अर्थात् सावे दादा अपने जमाने के बहुत बड़े कैमरामैन थे और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदिपुरूष के रूप में भी मान्य थे। वे बंबइया मार्का हिंदी मजे में बोल लेते थे। उन्होंने ल्युमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर, फोटो को डेवलप करने की मशीन खरीदी थी और भारत में इस कार्य, अर्थात् धंधे को एक राष्ट्रीय रूप दे डाला था।

(ङ) सावे दादा की भारतीय फिल्म जगत में बड़ी विलक्षण उपलब्धि थी। वे एक विशिष्ट कैमरामैन थे। उन्होंने पहली बार एक सुचर्चित और विलक्षण कैमरामैन के रूप में मशीन के द्वारा फोटो को डेवलप करने का कार्य काफी कुशलता के साथ किया था। इसके लिए उन्होंने ल्यूमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्ट खरीद लिए थे और इस कार्य को आश्चर्यजनक स्वरूप दिया था।

3. मुझे यह भी याद पड़ता है कि भारतीय फिल्म उद्योग के जनक माने जाने वाले दादा साहब फाल्के द्वारा बनाई गई फीचर फिल्म ‘हरिश्चंद्र’ से पहले भी एक फीचर फिल्म बनी थी उसका नाम शायद “भक्त पुंडलीक” था। दुर्भाग्यवश मैं उसके निर्माता का नाम भूल चुका हूँ। (इनका नाम था दादा साहब तोरणे-संपादक) हो सकता है वह फिल्म दादा साहब फाल्के ने ही बनाई हो। जो भी हो, इतिहास ने दादा साहब फाल्के को ही भारतीय फिल्म उद्योग का जनक माना, सावे दादा को नहीं। इसका कारण शायद यह भी हो सकता है कि दादा साहब फाल्के ने केवल एक ही नहीं, वरन् कई फीचर फिल्में एक के बाद एक बनाई और इस प्रकार उन्होंने ही इस उद्योग की नींव जमाई। सावे दादा ने छोटी-मोटी डाक्यूमेंट्री फिल्में तो बहुत बनाईं और समय को देखते हुए पैसा भी अच्छा ही कमाया और यदि पहली  फीचर फिल्म ‘भक्त पुंडलीक’ उन्हीं की बनाई सिद्ध हो तो भी उनकी अपेक्षा दादा साहब फाल्के को ही भारतीय फिल्मों का जनक मानना, मेरी समझ में उचित है। भारत सरकार ने भी फिल्म के सर्वोच्च पुरस्कार को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ कहके ही इतिहास की रचना की है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) लेखक के अनुसार भारतीय फिल्म उद्योग के जनक कौन माने जाते हैं और क्यों?
(ग) भारतीय फिल्म उद्योग के जनक माने जानेवाले किस व्यक्ति के रूप में किस दूसरे व्यक्ति का भी नाम आता है? क्या वह उचित है?
(घ) भारत सरकार द्वारा घोषित सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम क्या है और उसका यह नामकरण क्यों किया गया है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) लेखक के अनुसार भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब फाल्के माने जाते हैं। इसका कारण यह था कि दादा साहब फाल्के ने ही भारत में फिल्म उद्योग की नींच डाली थी और इस क्रम में उन्होंने एक नहीं अनेक फीचर फिल्में और डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाई थी और इस फिल्म उद्योग को एक मजबूत आधार दिया था।

(ग) भारतीय फिल्म उद्योग के जनक के रूप में एक दूसरे व्यक्ति दादा साहब तोरणे-संपादक का नाम आता है, जिन्होंने लेखक के कथनानुसार शायद दादा साहब फाल्के के पूर्व ही ‘भक्त पुंडलीक’ नामक एक फीचर फिल्म बनाई थी, लेकिन यह बात निश्चयात्मक रूप से नहीं कही जा सकती है। इसीलिए ‘दादा साहब तोरणे-संपादक को निश्चयात्मक रूप से भारतीय फिल्म उद्योग का जनक नहीं माना जा सकता है।

(घ) भारत सरकार द्वारा घोषित सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम

साहब फाल्के पुरस्कार है। इसका यह नामकरण भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब के नाम पर किया गया है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने भारतीय फिल्म उद्योग के जनक के रूप में दादा साहब फाल्के की भूमिका और उनकी उपलब्धियों की चर्चा की है। दादा साहब फाल्के ही ऐसे विशिष्ट व्यक्ति थे जिन्होंने सर्वप्रथम भारतीय फिल्म जगत को कई फीचर तथा डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाकर दी और इस उद्योग को एक मजबूत आधार दिया। इसीलिए, भारत सरकार ने इनके नाम पर ही सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार की घोषणा की।

4. 1940 में मेरे मित्र किशोर साहू की पहली फिल्म ‘बहुरानी’ का उद्घाटन दादा साहब फाल्के के कर-कमलों द्वारा ही संपन्न हुआ था। बहूरानी के अर्थपति मेरे दूसरे मित्र स्वर्गीय द्वारका दास डागा थे। वे बड़े पढ़े-लिखे सुरुचिपूर्ण, साहित्यिक व्यक्ति थे। उन्हीं के कारण ‘बहुरानी’ के निर्माण-काल में फिल्मी दुनिया से मेरा संबंध जुड़ा। दादा साहब फाल्के से मुझे दो-तीन बार भेंट करने के सुअवसर प्राप्त हुए थे। वे बड़े दबंग, जोश में आकर बड़े झपाटे से बोलने लगते थे। वे स्वयं को बात-बात में महत्त्व देने से तो न चूकते थे, परंतु उनमें अच्छाई यह थी कि वे नई पीढ़ी के महत्त्व को एकदम नकारते न थे।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) किशोर साहू कौन थे? उनके द्वारा बनाई पहली फिल्म कौन थी और उसका उद्घाटन किसने किया था? ।
(ग) स्वर्गीय द्वारिकादास डागा कौन थे? उनकी चारित्रिक विशेषता क्या थी?
(घ) लेखक के अनुसार दादा साहेब फाल्के से भेंट होने पर उनकी कौन-सी चारित्रिक विशेषता प्रकट होती थी?
(ङ) दादा साहेब फाल्के की किसी एक खास स्वाभाविक विशेषता का उल्लेख करें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) किशोर साहू लेखक के मित्र थे, उनके द्वारा बनाई पहली फिल्म ‘बहूरानी’ थी जिसका उद्घाटन दादा साहब फाल्के ने किया था। यह फिल्म 1940 में बनी थी।

(ग) स्वर्गीय द्वारिकादास डागा लेखक के दूसरे मित्र थे। ये ‘बहूरानी’ फिल्म के अर्थपति थे। डागाजी की चारित्रिक विशेषता यह थी कि वे पढ़े-लिखे, सुरुचिपूर्ण इंसान और साहित्यिक व्यक्ति थे।

(घ) लेखक की मुलाकात दादा साहब से दो-तीन बार हुई जिसमें उनकी चारित्रिक विशेषता इस रूप में प्रकट हुई। वे दबंग और जोशीले स्वभाव के व्यक्ति थे। बातचीत में स्वयं को बहुत महत्त्व देते थे।

(ङ) दादा साहेब की खास स्वाभाविक विशेषता यह थी कि वे बातचीत के क्रम में अपने महत्त्व को तरजीह देते थे, किंतु नई पीढ़ी की महत्ता को भी स्वीकारते थे।

5. बंबई की तरह ही कलकत्ते में एक व्यवसायी जे. एफ० मादन जिन्होंने मादन थियेटर नामक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना भी की थी। 1917 में एलफिंस्टन बाइस्कोप कंपनी नामक फिल्म संस्था चलाई और दादा साहब फाल्के की तरह ही वे भी फीचर फिल्में बनाने लगे। इस तरह 1913 से 1920 तक फिल्मों में क्रमशः पौराणिक कथानक ही अधिकतर हमारे सामने पेश हुए। तीसरे दशक की सबसे महान फिल्मी हस्ती बाबूराव पेंटर थे। साँवला रंग, दुबला-पतला शरीर, आँखों पर चश्मा, लंबी दाढ़ीयुक्त श्री बाबूराव पेंटर का व्यक्तित्व बहुत ही सौम्य और शालीन था। आज के सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक श्री व्ही शांताराम, स्वर्गीय बाबूराव पेंढारकर, भालाजी पेंढारकर तथा स्वर्गीय मास्टर विनायक आदि अनेक जानी-मानी फिल्मी हस्तियों के वे गुरु थे।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) जे. एफ० मादन कौन थे? फिल्म उद्योग के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्यों की संक्षिप्त चर्चा करें।
(ग) तीसरे दशक की सबसे महान भारतीय फिल्मी हस्ती के रूप में किनका नाम लिया जाता है? उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएँ थीं?
(घ) उस समय की किन्हीं चार फिल्मी हस्तियों के नाम लिखें। (ङ) अपने समय के सुप्रसिद्ध फिल्म-निर्माता-निर्देशक के नाम लिखें
और उनकी एक विशिष्ट उपलब्धि की चर्चा करें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) जे. एफ० मादन कलकत्ते के एक पारसी व्यवसायी थे। उन्होंने मादन थियेटर नामक एक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना की थी। उनके द्वारा 1917 में एलफिस्टन बाइस्कोप नामक एक कंपनी चलाई गई थी और दादा साहब फाल्के की तरह उन्होंने कई फीचर फिल्में बनाई थीं।

(ग) तीसरे दशक की सबसे महान फिल्मी हस्ती के रूप में बाबूराम पेंटर का नाम लिया जा सकता है। वे साँवले रंग के, दुबले-पतले शरीर वाले व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही सौम्य और शालीन था।

(घ) ऐसे चार व्यक्ति है जिनके नाम उस समय की फिल्मी हस्तियों में लिए जा सकते हैं-श्री व्ही शांताराम, बाबूराव पेंढारकर, भालजी पेंढारकर और मास्टर विनायक।

(ङ) अपने समय के सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक के रूप में श्री व्ही शांताराम का नाम लिया जाता है। इनकी अति विशिष्ट उपलब्धि यह रही है कि इन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग के क्षेत्र में काफी ख्याति तथा महत्त्वपूर्ण निर्माता और निर्देशक दोनों रूपों में बड़ी अच्छी ख्याति अर्जित की थी।