Bihar Board 12th Biology Model Papers
Bihar Board 12th Physics Model Question Paper 3 in Hindi
परिक्षार्थियों के लिए निर्देश :
- परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
- दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
- इस पत्र को ध्यानपूर्वक पढ़ने के लिए पन्द्रह मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
- इस प्रश्न-पत्र के दो खण्डों में है, खण्ड-अ एवं खण्ड-ब ।
- खण्ड-अ में 35 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है, इनका उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR-शीट में दिये गये सही वृत्त को काले / नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार के व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का OMR-शीट में प्रयोग करना मना है, अन्यथा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा।
- खण्ड-ब में गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, 18 लघुउत्तरीय प्रश्न हैं, जिनमें से किन्ही 10 प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। इसके अतिरिक्त खण्ड-ब में 06 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न भी दिए गए हैं, जिनमें से किन्हीं 3 प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 05 अंक निर्धारित हैं।
- किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक-यंत्र का इस्तेमाल वर्जित है।
समय : 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक : 70
खण्ड-अ : वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न संख्या 1 से 35 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गए सही विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें। (35 × 1 = 35)
प्रश्न 1.
सटोली कोशिकाएँ किस हार्मोन द्वारा नियंत्रित होता है ?
(a) ल्यूटनाइजिंग हार्मोन
(b) वृद्धि हार्मोन (जी. एच.)
(c) फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन
(d) प्रोलेक्टिन
उत्तर:
(c) फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन
प्रश्न 2.
शुक्राणु जनन की प्रक्रिया में शुक्राणु की उत्पत्ति कहाँ से होती है ?
(a) शुक्रजनक नलिका
(b) शुक्राणु सहायक नलिका
(c) रक्त वाहिनियों
(d) (a) और (b)
उत्तर:
(a) शुक्रजनक नलिका
प्रश्न 3.
दोनों माला-डी. क्या है ?
(a) बुखार की दवा
(b) गर्भ निरोधक गोलियाँ
(c) जॉन्डीस की दवा
(d) विटामिन की गोलियाँ
उत्तर:
(b) गर्भ निरोधक गोलियाँ
प्रश्न 4.
ओपेरिन तथा हालडेन ने किस विकास सिद्धांत को दिया था ?
(a) प्राकृतिक वरण
(b) स्वतः जनन सिद्धांत
(c) रासायनिक विकास का सिद्धांत
(d) अंगों का उपयोग एवं अनुपयोग
उत्तर:
(c) रासायनिक विकास का सिद्धांत
प्रश्न 5.
मिलर प्रयोगशाला में क्या बनाए थे ?
(a) मिथेन
(b) अमीनो एसिड
(c) हाइड्रोजन
(d) अमोनिया
उत्तर:
(b) अमीनो एसिड
प्रश्न 6.
भ्रूण-पोष में कितने क्रोमोजोम होते हैं ?
(a) n
(b) 2n
(c) 31
(d) (a) एवं (c) दोनों
उत्तर:
(c) 31
प्रश्न 7.
वायु परागित पुष्प सामान्यतः होते हैं
(a) आकर्षक
(b) छोटे
(c) रंगहीन
(d) (b) एवं (c) दोनों
उत्तर:
(d) (b) एवं (c) दोनों
प्रश्न 8.
विडल जाँच से किसका पता चलता है ?
(a) एड्स
(b) मलेरिया
(c) तपेदिक
(d) टायफाइड
उत्तर:
(d) टायफाइड
प्रश्न 9.
कान्हा राष्ट्रीय अभ्यारण्य मशहूर है
(a) पक्षियों के लिए
(b) घड़ियाल / मगर के लिए
(c) गैन्डा के लिए
(d) बाघ के लिए
उत्तर:
(d) बाघ के लिए
प्रश्न 10.
प्रतिकोडोन पाए जाते हैं
(a) m-RNA में
(b) r-RNA में
(c) t-RNA में
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) t-RNA में
प्रश्न 11.
‘ग्रीन मफलर’ प्रदूषण किससे संबंधित है ?
(a) मिट्टी
(b) हवा
(c) ध्वनि
(d) जल
उत्तर:
(c) ध्वनि
प्रश्न 12.
मानव जीनोम परियोजना की खोज किसने की?
(a) फ्रांसिस कॉलिनस एवं रॉडरिक
(b) वाट्सन एवं क्रिक
(c) बीडल एवं टैटम
(d) पॉल बर्ग एवं वोलमैन
उत्तर:
(a) फ्रांसिस कॉलिनस एवं रॉडरिक
प्रश्न 13.
भ्रूण-पोष की उत्पत्ति किससे होती है ?
(a) पराग नलिका से
(b) लघु बीजाणु से
(c) लघु बीजाणुघानी से
(d) गुरु बीजाणु से
उत्तर:
(d) गुरु बीजाणु से
प्रश्न 14.
बच्चों में मंगोलिज्म या डाउन सिंड्रोम होने के क्या कारण हैं ?
(a) नलीसोमी
(b) जीन उत्परिवर्तन
(c) ट्राइसोमी
(d) मोनोसोमी
उत्तर:
(c) ट्राइसोमी
प्रश्न 15.
इनमें से किस क्रिया से DDT की सांद्रता अगली पोषी स्तर में बढ़ती है ?
(a) जल-प्रस्फुटन
(b) जैव-आवर्धन
(c) सुपोषण
(d) ओजोन प्रदूषण
उत्तर:
(b) जैव-आवर्धन
प्रश्न 16.
Bt-विष का प्रभाव किस कीट-वर्ग पर होता है ?
(a) लेपिडोस्टेरान
(b) कोलियोस्टेरान
(c) डायस्टेरान
(d) उपरोक्त सभी पर
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी पर
प्रश्न 17.
द्विसंकर क्रॉस में अनुलक्षणी (फेनोटाइपिक) अनुपात होता है
(a) 3 : 1
(b) 1 : 2 : 1
(c) 9 : 7
(d) 9 : 3 : 3 : 1
उत्तर:
(d) 9 : 3 : 3 : 1
प्रश्न 18.
निम्न में से किसे कॉपर-टी रोकता है ?
(a) निषेचन
(b) आरोपण
(c) अण्डोत्सर्ग
(d) वीर्यपतन
उत्तर:
(a) निषेचन
प्रश्न 19.
कानों पर बाल की बहुलता का जीन पाया जाता है
(a) X – क्रोमोजोम पर
(b) Y – क्रोमोजोम पर
(c) लिंग निर्धारणीय क्रोमोजोम पर
(d) अलिंगी क्रोमोजोम पर
उत्तर:
(b) Y – क्रोमोजोम पर
प्रश्न 20.
‘पारिस्थितिक तंत्र’ शब्द के उपयोग का श्रेय दिया जाता है
(a) गार्डनर को
(b) ओडम को
(c) टॉन्सली को
(d) वार्मिंग को
उत्तर:
(c) टॉन्सली को
प्रश्न 21.
प्रत्येक पादप कोशिका से पूर्ण पौधा बन सकता है । इस गुण को कहते हैं
(a) क्लोनिंग
(b) सोमाक्लोनल
(c) टोटीपोटेन्सी
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) टोटीपोटेन्सी
प्रश्न 22.
विश्व में पाये जाने वाले हॉट स्पोट की संख्या इनमें से कौन-सी है
(a) 25
(b) 9
(c) 34
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 34
प्रश्न 23.
इनमें से कौन प्रोटोजोआ जनित रोग है
(a) हैजा
(b) क्षय रोग
(c) मलेरिया
(d) एड्स.
उत्तर:
(c) मलेरिया
प्रश्न 24.
ऊर्जा का पिरामिड होता है
(a) सदैव उल्टा
(b) सदैव सीधा
(c) उपरोक्त दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) सदैव सीधा
प्रश्न 25.
इनमें से कौन विलुप्त हो गए हैं ?
(a) डोडो
(b) स्टीलर्स सी काड
(c) थाइलेंसीन
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी
प्रश्न 26.
अम्लीय वर्षा के कारक हैं
(a) CO तथा CO2
(b) NO2 तथा NO3
(c) CO2 तथा NO2
(d) NO2 तथा SO2
उत्तर:
(d) NO2 तथा SO2
प्रश्न 27.
आगरा स्थित विश्व प्रसिद्ध ताजमहल को मुख्यतः किस गैस से खतरा है ? .
(a) CO2
(b) NO2
(c) SO2
(d) CFC
उत्तर:
(c) SO2
प्रश्न 28.
भोपाल गैस त्रासदी किस गैस के रिसाव से हुई ?
(a) PAN
(b) स्मांग
(c) मिथाइल आइसोसाइनेट
(d) so
उत्तर:
(c) मिथाइल आइसोसाइनेट
प्रश्न 29.
भ्रूण कोष की उत्पत्ति किससे होती है ?
(a) पराग नलिका से
(b) लघु जीवाणु से
(c) लघु बीजाणुधानी से
(d) गुरु बीजाणु से
उत्तर:
(d) गुरु बीजाणु से
प्रश्न 30.
भ्रूण कोष में कितने क्रोमोजोम होते हैं ?
(a) n
(b) 2n
(c) 3n
(d) (a) एवं (c) दोनों
उत्तर:
(c) 3n
प्रश्न 31.
वायु परागित पुष्प सामान्यतः होते हैं।
(a) आकर्षक
(b) छोटे
(c) रंगहीन
(d) (b) एवं (c) दोनों
उत्तर:
(d) (b) एवं (c) दोनों
प्रश्न 32.
शुक्राणु के मध्य भाग में रहता है
(a) केंद्रक
(b) सेंट्रिओल
(c) माइटोकॉण्ड्रिया
(d) एक्सोनियम
उत्तर:
(c) माइटोकॉण्ड्रिया
प्रश्न 33.
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम कब आरंभ हुआ ?
(a) 1951 में
(b) 1960 में
(c) 1970 में
(d) 1980 में
उत्तर:
(a) 1951 में
प्रश्न 34.
वर्णांधता में रोगी पहचान नहीं कर पाता है
(a) लाल तथा पीला रंग की
(b) लाल तथा नीले रंग की .
(c) लाल तथा हरे रंग की
(d) किसी भी रंग की
उत्तर:
(d) किसी भी रंग की
प्रश्न 35.
प्रतिकोडोन पाए जाते हैं
(a) m – RNA में
(b) r – RNA में
(c) t – RNA में
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) t – RNA में
खण्ड-ब : गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न संख्या 1 से 18 तक सभी लघु उत्तरीय कोटि के प्रश्न हैं। इस कोटि के प्रत्येक के लिए 2 अंक निर्धारित है। आप किन्हीं दस (10) प्रश्नों के उत्तर दें। (10 x 2 = 20)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानतायें बताइये ।
उत्तर:
शुक्राणु जनन तथा अण्ड जनन में समानतायें (Similarities between Spermatogenesis and Oogenesis)
- दोनों ही क्रियाओं में जनन एपिथीलियम (germinal epithelium) की कोशिकाओं का विभाजन होता है ।
- दोनों ही क्रियाओं में तीन प्रावस्थायें होती हैं
- गुणन प्रावस्था (multiplication phase)
- वृद्धि प्रावस्था (growth phase)
- परिपक्वन प्रावस्था (maturation phase)
- दोनों में ही, गुणन प्रावस्था में, समसूत्री विभाजन होता है।
- वृद्धि अवस्था में कोशिकाओं की वृद्धि होती है और पोषण तत्त्वों को संचित करती है।
- दोनों ही में परिपक्वन अवस्था में पहला विभाजन अर्द्धसूत्री तथा दूसरा समसूत्री होता है।
- दोनों की अंतिम अवस्था में अगुणित गैमीट का निर्माण होता है।
प्रश्न 2.
कीट-परागण वाले पौधों की विशेषताएँ लिखें। उत्तर: कीट परागित पौधों की निम्न विशेषताएँ होती हैं।
- पुष्प बड़े, रंगयुक्त तथा आकर्षक होते हैं।
- पुष्प की पंखुड़ियाँ बड़ी होती हैं। छोटी होने की स्थिति में पुष्प के अन्य भाग बड़े तथा आकर्षक हो जाते हैं। पोइनसेटिया की पत्तियाँ फूल वाले भाग में अंशतः या पूर्णतः रंगीन होते हैं। मुसेंडा का कैलिकस (sepal) आकर्षक होता है।
- छोटे फूल एक-साथ गुच्छे में खिलते है। या संयुक्त होकर एक सिर बनाते हैं। उदाहरण-सूर्यमुखी।
- इनके खिलने का एक खास वक्त होता है तभी परागणकर्ता भी उपस्थित रहता है।
- इनसे मकरंद स्रावित होता है जो कीटों को पोषण देता है।
- परागकणों की बाह्य सतह काँटेदार, चिपकने वाली होती है जो परागकिट कहलाती है तथा कीटों में आसानी से चिपक जाती है।
- बहुत सारे फूलों के परागकण खाने योग्य होते हैं जिन्हें कीट खाते हैं। जैसे-गुलाब, मैग्नोलिया।
प्रश्न 3.
कोलॉस्ट्रम क्या है ? दुग्ध के उत्पादन का नियंत्रण हॉर्मोन द्वारा किस प्रकार किया जाता है ? ।
उत्तर:
जन्म के समय तथा कुछ दिनों के लिए मादा के स्तनों से एक तरल स्त्रावित होता है जिसे कोलॉस्ट्रम कहते हैं। इसमें प्रोटीन व ऊर्जा का आधिक्य होता है । इसमें प्रतिरक्षी पाए जाते हैं जो नए जन्में शिशु में निष्क्रिय प्रतिरक्षा उत्पन्न करते हैं।
प्रसव के तीन या चार दिनों के पश्चात् स्तनों से दुग्ध का संश्लेषण पीयुष ग्रंथि के हॉर्मोन प्रोलैक्टिन (PRL) के द्वारा प्रेरित होता है। ऑक्सीटोसिन की उच्च मात्रा इसके स्राव को प्रेरित करती है। जो नवजात को पोषण प्रदान करता है। दुग्ध में एक अवरोधक पेप्टाइड का होता है । यदि स्तन पूर्णरूप से खाली नहीं होते तो यह पेप्टाइड एकत्रित होकर दुग्ध उत्पादन को रोकते हैं। यह ऑटोक्राईम क्रिया है जिसमें दुग्ध माँग होने पर उत्पन्न होता है।
प्रश्न 4.
गर्भ-निरोध की किन्हीं दो यांत्रिक विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- डायाफ्राम (Diaphragm) – इसे डॉक्टर द्वारा गर्भाशय के मुख (सर्विक्स) पर फिट कर दिया जाता हैं जिससे शुक्राणु सर्विक्स नलिका में प्रवेश नहीं कर सकते ।
- अंतः गर्भाशयी युक्ति (Intrauterine device, IUD) – IUD अथवा लूप (loop) प्लास्टिक अथवा स्टेनलेस स्टील का बना होता है। इसे गर्भाशय में डालं दिया जाता है जिसके कारण गर्भाशय की दीवार में भ्रूण का रोपण नहीं होता।
प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति की पहचान में डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग एक सुनिश्चित पक्का परीक्षण क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि व्यक्ति के शरीर की प्रत्येक कोशिका का डी.एन.ए. एक समान होता है और यह माता-पिता के डी.एन.ए. से मिलता-जुलता होता है। क्योंकि बच्चों को अपना डी.एन.ए. अपने माता-पिता से ही मिलता है। जैसा कि हमारी अंगुलियों के निशानों के विषय में है। वैसे ही हर व्यक्ति का अपना डी.एन.ए. भी सबसे अलग होता है। यदि अपराध स्थल पर अपराधी का कोई एक बाल, रक्त की बूंद अथवा वीर्य पड़ा मिला हो तो उससे अपराधी का डी. एन.ए. पहचानने में मदद मिलती है और संदिग्ध व्यक्ति के डी.एन.ए. से उसकी तलना करके सच पता लगाया जा सकता है।
प्रश्न 6.
आनुवंशिक कोड की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर:
आनुवंशिक कोड की विशेषताएँ (Special features of genetic code)
- प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए कम से कम एक त्रिक (triplet) कोडोन होता है ।
- कोड अपहलासित (degenerate) होता है, अर्थात् एक ही अमीनो अम्ल के लिए एक से ज्यादा कोडोन हो सकते हैं ।
- कोड अनतिव्यापि (non-overlapping) होता है, अर्थात् तीन क्षारकों में एक अमीनो अम्ल कोड होता है, अगले अमीनो अम्ल के लिए तीन क्षारक और चाहिए । पिछले तीन क्षारकों में से कोई भी अगले अमीनो अम्ल के कोडोन में सम्मिलित नहीं होगा । परन्तु हाल में ही वैज्ञानिकों को पता लगा कि जीवाणु भोजी θ × 174 में कुछ जीन नतिव्यापी (overlapping) होते हैं।
- कोड कोमारहित (commaless) होता है, अर्थात् दो कोडोनों के बीच कोमा की आवश्यकता नहीं होती । एक अमीनो अम्ल को कोडित कर देने के बाद अगले तीन क्षारक दूसरे अमीनो अम्ल को स्वतः ही कोडित कर – देते हैं।
- कोड असंदिग्ध (unambiguous) होता है अर्थात् एक निश्चित कोडोन एक निश्चित अमीनो अम्ल को ही प्रदर्शित करेगा ।
- कोड सार्वत्रिक (universal) होता है, अर्थात् सभी जीवधारियों में एक-सा होता है।
प्रश्न 7.
जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ में डार्विन के दो प्रमुख योगदान क्या थे? .
उत्तर:
डार्विन के दो प्रमुख योगदान (Darwin’s two Important Contributions) उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक ऐसा माना जाता था कि जीवधारियों की विभिन्न जातियों की वर्तमान रूप में ही अलग-अलग सृष्टि हुई । जातियों को अपरिवर्तनीय माना जाता था । चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के दो मुख्य योगदान हैं
(i) जातियाँ अपरिवर्तनीय नहीं हैं । पहले से विद्यमान जातियों से ही नई जातियों की उत्पत्ति होती है । जीवधारियों की सभी जातियाँ एक ही पूर्वज से उत्पन्न हुई हैं।
(ii) किसी भी जाति में समयानुसार होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तन कालान्तर में इकट्ठे होकर, मूल जाति से इतने अधिक भिन्न हो जाते हैं कि एक नई जाति का ही उद्भव हो जाता है । वास्तव में, छोटे-छोटे परिवर्तनों के पिछले लाखों वर्षों में एकत्रीकरण के फलस्वरूप ही एककोशिकीय जीवधारियों से वर्तमान जटिल जीवधारियों की उत्पत्ति संभव हुई है ।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर तथा अनेक क्षेपणों (observations) से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर डार्विन (Darwin) ने जीवों के विकास की प्रक्रिया को समझाने के लिए एवं नई जातियों की उत्पत्ति के लिए जो विचार प्रस्तुत किये, उन्हें डार्विन का प्राकृतिक वरण (चयन) वाद (Darwin’s Theory of Natural Selection) या डार्विनवाद (Darwinism) के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 8.
स्व-प्रतिरक्षा क्या है ? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
उच्चतर कशेरुकियों में विकसित स्मृति-आधारित उपार्जित प्रतिरक्षा अपनी कोशिकाओं और विजातीय जीवों (जैसे-रोगाणु) के बीच भेद कर सकने की क्षमता पर आधारित है। भेद कर सकने की इस क्षमता का आधार क्या है, यह हमें अभी भी पता नहीं चला है । फिर भी इस बारे में दो उपसिद्धांतों को समझना होगा । पहला, उच्चतर कशेरूकी विजातीय अणुओं और विजातीय जीवों को भी पहचान सकते हैं।
प्रयोगात्मक प्रतिरक्षा विज्ञान इस संबंध में जानकारी देता है। दूसरा, कभी-कभी आनुवंशिक और अज्ञात कारणों से शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है । इसके फलस्वरूप शरीर को क्षति पहुँचती है और यह स्वप्रतिरक्षा रोग कहलाता है। हमारे समाज में बहुत से लोग आमवाती संधिशोथ (रूमेटोयाट आर्थाइटिस) से प्रभावित हैं जो एक स्व-प्रतिरक्षा रोग है।
प्रश्न 9.
औद्योगिक राष्ट्र किस प्रकार जैव संसाधनों का दोहन कर रहे हैं?
उत्तर:
- आनुवंशिक संसाधनों का संग्रह करके उनका पेटेंट करा रहे हैं। USA के ‘बासमती’ चावल में संपूर्ण जननद्रव्य पर पेटेंट व्यवहार लागू होगा ।
- जैव संसाधनों के विश्लेषण से मूल्यवान जैव अणुओं की पहचान की जा रही है। किसी जीव द्वारा उत्पादित किसी अणु को जैव अणु कहा जाता है। इन जैव अणुओं को पेटेंट कराने के बाद उनका व्यापारिक उपयोग किया जाता है।
- जैव संसाधनों से मूल्यवान जीनों को क्लोन करके उनका पेटेंट कराया जा रहा है। इन जीनों के उपयोग से व्यापारिक उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं।
- परंपरागत ज्ञान उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग किया जाता है। कई बार परंपरागत ज्ञान का ही पेटेंट कराया जाता है।
प्रश्न 10.
नगरीय सीवेज की तुलना में औद्योगिक उत्सर्ज को प्रबंधित करना क्यों ज्यादा कठिन है ? भारी धातु संक्रमण से उत्पन्न होने वाले एक रोग का नाम बताएँ।
उत्तर:
नगरीय सीवेज की तुलना में औद्योगिक उत्सर्ज को प्रबंधित करना ज्यादा कठिन है क्योंकि इनमें अनेक अजैवनिम्नीकरणीय प्रदूषक जैसे भारी धातु तथा अम्ल मौजूद रहते हैं। भारी धातु संक्रमित जल से गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। पारे द्वारा जहरीलेपन का शिकार मिनामाटा बीमारी जापान की मिनामाटा खाडी से (Hg) संक्रमित मछलियाँ खाने के कारण हुई । कैडमियम प्रदूषण से इटाई-इटाई बीमारी एवं लीवर तथा फेफड़े का कैंसर हो जाता है।
प्रश्न 11.
पुनर्योगज डीएनए क्या हैं ?
उत्तर:
पुनर्योगज डीएनए (Recombinant DNA)-सन् 1972 में यह पता चला कि किसी एक जीव से DNA का खंड लेकर, दूसरे जीव के DNA के साथ शरीर से बाहर (परखनली) में संकरण कराना संभव है । इस संकरण से प्राप्त DNA को पुनर्योगज DNA (Recombinant DNA) कहा गया ।
प्रश्न 12.
टीकों का निर्माण कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
टीकों (Vaccines) का निर्माण-अनेक बीमारियों जैसे चेचक, डिप्थीरिया, टिटनेस व पोलियो आदि की रोकथाम के लिए टीके लगाए जाते हैं। परंतु इन टीकों को तैयार करने की वर्तमान विधि काफी कठिन एवं खर्चीली है । आशा की जाती है कि क्लोनिंग द्वारा न केवल इन रोगों के टीकों को, अपितु अनेक अन्य रोगों के टीकों को भी बहुत कम खर्च कर तैयार किया जा सकता है।
गत वर्षों में मलेरिया पर काबू पाने के लिए टीकों के निर्माण की दिशा में कुछ प्रगति हुई है । इनमें से कुछ टीके तो मच्छर द्वारा काटे जाने के समय रक्षा करते हैं, तथा कुछ टीके उन लोगों के लिए हैं जिन्हें मलेरिया हो चुका है । मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम से स्पोरोजोइट एंटीजन के जीन को पृथक् कर लिया जाता है। इस जीन के माध्यम से या तो एंटीजन संश्लेषित किया जाता है । (जिससे टीका तैयार किया जाता है), या इसे किसी जीवाणु में अन्य परजीवियों के एंटीजनों के साथ प्रत्यारोपित किया जाता है ताकि सम्मिश्र टीका (composite vaccine) मिल सके।
प्रश्न 13.
निम्न शब्दों को परिभाषित करें-(क) अधिगमन, (ख) समतापमंडल, (ग) समुदाय तथा (घ) जीवमंडल ।
उत्तर:
(क) अधिगमन – जीव एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लंबी दूरी या कम दूरी का संचालन करते हैं। कई जीव जो कि उड़ान भरते हैं या तैरते हैं, वे विस्तृत अभिगमन को अपनाते हैं।
(ख) समतापमंडल – वायुमंडल में 30-35 किमी. तक क्षोभमंडल के ऊपर का भाग समतामंडल कहलाता है। इसकी भी जीवनरक्षणी ओजोन की परत पाई जाती है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती हैं।
(ग) समुदाय – पौधों, प्राणियों, जीवाणुओं तथा कवकों की जनसंख्याओं का एकत्रीकृत समूह जो एक ही क्षेत्र में रहता है तथा आपस में पारस्परिक क्रिया करती हैं। समुदायों में एक खास प्रजाति की बनावट तथा संरचना होती है।
(घ) जीवमंडल – भूमंडलीय स्तर पर पृथ्वी पर स्थित सभी स्थलीय तथा जलीय पारितंत्र मिलकर जीवमंडल का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 14.
घासस्थल क्या है ? सवाना से यह किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
घासस्थल पारिस्थितिक तंत्र में वृक्षहीन शाकीय पौधों के आवरण रहते हैं जो कि विस्तृत प्रकार की घास जाति (फैमिली-पोएसी) द्वारा प्रभावी रहते हैं।
घास के साथ कई तरह के तृणेतर (द्विबीजपत्री जाति) हैं, खासकर फली जो नाइट्रोजन व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
घासस्थल में पेड़ों तथा झाड़ियों का सर्वथा अभाव होता है किन्तु सवाना में पेड़ों तथा झाड़ियों के क्षेत्र पाए जाते हैं। अधिकतर सवाना मानवकृत होते हैं। सभी सवाना की उत्पत्ति मौलिक उष्णकटिबंधीय वनों के अपघटन से
प्रश्न 15.
आवास ह्रास एवं विखंडन से जैव विविधता को किस प्रकार खतरा हो रहा है ?
उत्तर:
जिस आवास में कोई जीव रहता है वहाँ उसके जीवित रहने, प्रजनन करने के लिए अनुकूल वातावरण पाया जाता है । जब प्राकृतिक आवास को मानवीय क्रियाओं यथा वनोन्मूलन, आग, निम्नभूमि की भराई आदि द्वारा खत्म कर दिया जाता है तो जीव को दो मुश्किलों का सामना करना पड़ता है – (i) प्रजनन दर में कमी, (ii) पलायन (स्थानांतरण)। दोनों ही परिस्थितियों में जीव का अस्तित्व संकट में होता है। दूसरी जगह पर स्थानांतरण से नए परिवेश में नए प्रकार के प्रतियोगियों के साथ संघर्ष उन्हें तितर-बितर कर देता है। वन का एक टुकड़ा जो शस्यभूमि, फलोहान, रोपित पेड़-पौधों या शहरी क्षेत्र से घिरा हो, विखंडित आवासों का उदाहरण है। अधिशोषण के फलस्वरूप किसी जाति विशेष का माप इतना घट जाता है। कि वह जाति विलुप्त हो जाती है।
प्रश्न 16.
गर्भ-निरोधक किन्हें कहते हैं? स्त्रियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले किन्हीं दो गर्भ-निरोधकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्राकृतिक तथा यांत्रिक विधियों द्वारा निषेचन को रोकना तथा गर्भ-निरोधक विधियों द्वारा अण्डे और शुक्राणु के संलयन को रोका जाता है।
स्त्रियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो गर्भ-निरोधकों के नाम इस प्रकार हैं
(i) गर्भ-निरोधक गोलियाँ (Contraceptive pills) – गर्भ-निरोधक गोलियों को रोज खाना पड़ता है, जिनसे मादा में अण्डोत्सर्ग नहीं होता। इन
गोलियों से केवल अण्डोत्सर्ग नहीं हो सकता है, और रजोचक्र या रक्तस्राव एवं गर्भाशय की दीवार के अस्तर का उतरना सामान्य रूप से होता रहता है।
(ii) डायाफ्राम (Diaphragm) – इसे डॉक्टर द्वारा गर्भाशय के मुख (सर्विक्स) पर फिट कर दिया जाता है जिससे शुक्राणु सर्विक्स नलिका में प्रवेश नहीं कर सकते।
प्रश्न 17.
मनुष्यों में लिंग निर्धारण का आधार क्या है?
उत्तर:
एक युग्मक में 22 अलिंग सूत्र तथा 1 लिंग गुणसूत्र होता है। जब माता का अण्डा तथा पिता का शुक्राणु परस्पर संलीन होते हैं, तब फिर से द्विगुणित संख्या प्राप्त हो जाती है। युग्मज से एक व्यष्टि बनता है जिसका लिंग इस बात पर निर्भर करता है कि उस में दो X गुणसूत्र हैं या एक X और एक Y। दो X गुणसूत्रों वाले युग्मजों से मादाएँ बनती हैं और एक X तथा एक Y गुणसूत्रों वाले युग्मजों से नर बनते हैं।
अण्डे सभी एक प्रकार के होते हैं। इनमें 22 अलिंग सूत्र तथा एक अकेला X गुणसूत्र होता है। शुक्राणु दो प्रकार के होते हैं – (i) 22 गुणसूत्र तथा एक X गुणसूत्र या (ii) 22 गुणसूत्र तथा एक Y गुणसूत्र वाले। जब अण्डे से X-धारी शुक्राणु संलयित होता है, तब संतान मादा होती है जिसमें 44 अलिंगसूत्र तथा दो X गुणसूत्र होते हैं तब संतान मादा होती है जिसमें 44 अलिंगसूत्र होते हैं। यदि Y-धारी शुक्राणु अण्डे से संलयित होता है तब एक नर संतान होती है जिसमें 44 अलिंग सूत्र और X और Y लिंग सूत्र होते हैं।
प्रश्न 18.
सैन्ट्रल डोग्मा से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सैन्ट्रल डोग्मा (Central dogma) – जीवधारियों में प्रोटीनों का संश्लेषण प्राय: DNA के ही प्रत्यक्ष नियंत्रण में होता है । जिन जीनों में DNA नहीं होता, वहाँ अवश्य यही कार्य RNA के नियंत्रण में होता है । किसी विशिष्ट पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में पाये जाने वाले अमीनो अम्लों के अनुक्रम का निर्धारण DNA श्रृंखला के किसी खंड विशेष में क्षारकों के अनुक्रम पर निर्भर करता है । न्यूक्लीक अम्लों द्वारा प्रोटीन रचना का नियंत्रण RNA के माध्यम से होता है।
द्विकुंडलित DNA में निहित सूचना RNA को दी जाती है, जो दूत की भाँति कार्य करता है और पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के निर्माण के लिए इसकी सूचना का अनुवाद होता है । इस प्रकार सूचना DNA से m-RNA; m-RNA से पॉलीपेप्टाइड शृंखला की ओर प्रवाहित होती है
DNA → m-RNA → Protein सूचना के एक ही दिशा में इस प्रवाह को अणु जीव विज्ञान में सैन्ट्रल डोग्मा (Central dogma) कहते थे । यद्यपि 1970 में ऐसे प्रमाण भी उपलब्ध हुए हैं, जिनके अनुसार RNA से भी DNA का संश्लेषण संभव है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नों संख्या 19 से 24 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है । इस कोटि के प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित है । आप किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दें। (3 x 5 = 15)
प्रश्न 19.
द्विसंकर संकरण क्या हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्विसंकर संकरण (Dihybrid corss)-मेण्डल के दिमाग में यह प्रश्न उठा कि क्या विभिन्न लक्षण, वंशागति के दौरान उसी प्रकार से एक-दूसरे से व्यवहार करते हैं, जैसे कि एक ही लक्षण के दो रूप एक-संकर संकरण में करते हैं। इसके लिए उन्होंने अपने प्रयोग उसी प्रकार से दोहराए जैसे कि एक-संकर संकरण में किए थे। परंतु अंतर सिर्फ इतना था कि अब एक लक्षण के बजाय उन्होंने दो लक्षण लिये थे।
सबसे पहले, उन्होंने मटर की ऐसी किस्मों का विकास किया जो दो लक्षणों में तद्रूप प्रजननी (true-breeding) अर्थात् शुद्ध वंशक्रमी थीं।
इसके बाद उन्होंने दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने पीले रंग के गोल बीजों (yellow round seeds) वाले मटर का संकरण झुरींदार हरे बीजों (wrinkled green seeds) वाले मटर के साथ कराया। इस संकरण के फलस्वरूप सभी पौधों से प्राप्त सभी बीज (जो F, पीढ़ी को प्रदर्शित करते हैं) पीले व गोल थे। ये दोनों लक्षण प्रभावी थे।
स्पष्ट है कि दोनों लक्षणों (बीज के प्रकार व रंग) के प्रभावी रूप उसी प्रकार F, पीढ़ी में प्रकट हुए जैसे कि वे अलग-अलग एक संकर संकरण में हुए थे। F, पीढ़ी के बीजों से उगे पौधों में स्व-परागण होने दिया गया। इस परागण के फलस्वरूप प्राप्त बीजों (जोकि F, पीढ़ी को प्रदर्शित करते हैं) का अध्ययन करने पर पता चला कि ये चार प्रकार के थे-दो प्रकार तो मूल पीढ़ी के-(पीले गोल व झुरींदार हरे) थे। इनके अतिरिक्त दो और प्रकार के बीज पाये गये-पीले झुरींदार व हरे गोल जिनका अनुपात इस प्रकार था 9 भाग पीले गोल, 3 भाग हरे गोल, 3 भाग पीले झुर्रिदार, 1 भाग हरे झुरींदार निष्कर्ष-जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है। एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।
प्रश्न 20.
HIV वाइरस का सचित्र उदाहरण देते हुए AIDS के संचरण की विधि, लक्षण, बचाव और उपचार का वर्णन करो।
उत्तर:
एड्स (AIDS-Acquired ImmunoDeficiency Syndrome) अर्थात् अर्जित प्रतिरक्षान्यूनता संलक्षण उत्पन्नकारी जीव-एड्स एक विषाणु (virus) से होता है जिसे HIV (Human Immunodeficiency Virus) अथवा ‘मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु’ कहते हैं। एक बार शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद यह विषाणु संक्रमित व्यक्ति के देह तरलों तथा रक्त कोशिकाओं में पनपता है।
संचरण विधि-एड्स का संचरण निम्न में से किसी एक प्रकार से हो सकता है
- प्रभावित व्यक्ति से यौन सम्पर्क होने पर
- उन्हीं सुइयों का प्रयोग करना जो प्रभावित व्यक्ति पर प्रयोग की गई हैं
- ऐसे रक्त का शरीर में चढ़ाना जिसमें एड्स के वाइरस मौजूद हों
- किसी प्रभावित व्यक्ति से लिए गए अंगों का प्रत्यारोपण
- कृत्रिम वीर्य सेचन
- प्रसव के समय माँ से बच्चे में पहुँचना।
प्रगटन काल – औसत समय 28 महीने का है हालाँकि यह 15 से 57 महीनों पर कम या अधिक हो सकता है।
लक्षण-पीड़ित व्यक्ति में निम्न में से एक या अधिक लक्षण होते दिखाई देते हैं – (i) एक प्रकार का फेफड़ों का रोग हो जाता है। (ii) त्वचा का कैंसर हो सकता है। (iii) तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है। (iv) मस्तिष्क में बहुत क्षति हो सकती है, जिससे याद्दाश्त खत्म हो सकती है। (बोलने की क्षमता जाती रहती है और सोचने की शक्ति भी नहीं रहती। (v) प्लेटलेट्स (थाम्बोसाइटो) की संख्या घट जाती है जिससे रक्तस्राव हो सकता है। (vi) गंभीर मामलों में लसीका ग्रंथियाँ (lymph nodes) सूज जाती है तथा बुखार होता है और वजन गिर जाता है। रोग के अपनी पूर्ण चरम दशा में पहुँच जाने पर रोगी की तीन वर्ष के अंदर मृत्यु हो सकती है।
विषाणु बचाव और उपचार-HIV के संक्रमण के प्रति अभी तक कोई औषधि अथवा वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। अतः निम्नलिखित उपायों के द्वारा सावधानी बरतनी चाहिए –
- HIV संक्रमण से युक्त व्यक्ति के साथ कोई भी यौन सम्पर्क नहीं होना चाहिए।
- डिस्पोजेबल सुइयों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- जरूरतमंद व्यक्ति के लिए चढ़ाया जाने वाला रक्त HIV रोगाणु से मुक्त होना चाहिए।
- वेश्यागमन तथा समलैंगिकता से बचना चाहिए।
- कंडोम का प्रयोग करना चाहिए।
एड्स का एलिसा (ELISA) परीक्षण से पता लगाया जा सकता है।
प्रश्न 21.
न्यूक्लिक अम्लों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
न्यूक्लिक अम्लों के कार्य (Functions of Nucleic Acids)न्यूक्लिक अम्लों के दो मुख्य कार्य हैं-(i) प्रतिकृतित्व (Replication)
(ii) प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis)
(i) प्रतिकृतित्व (Replication)
जैव अणु (Biomolecule) का यह गुण है, अपने जैसे अणु को संश्लेषित करना । DNA अणुओं में यह प्रतिकृतित्व का गुण होता है । DNA अणुओं में विद्यमान क्षारकों का क्रम ही जेनेटिक सूचनाओं का आधार है, जिससे पैतृक गुण अपनी संतति में आते हैं। कोशिका विभाजन के साथ नाभिक और DNA विभाजन होता है। और दोनों नई पुत्री कोशिका में पैतृक गुणों की पुरावृत्ति हो इसके लिए आवश्यक है कि DNA अणुओं का विभाजन इस प्रकार हो कि दोनों पुत्री नाभिकों में DNA के क्षारों का क्रम बिल्कुल समान हो ।
DNA अणुओं में यह गुण ही उनका प्रतिकृतित्व कहलाता है । इस प्रक्रिया में DNA की डबल हेलिक्स पहले धीरे-धीरे खुलती है और इस प्रकार पृथक् हुई दो इकाइयाँ, दो नई इकाइयों को संश्लेषित करने के लिए प्रेरित करती है। एक इकाई के प्रत्येक क्षार के सामने उसके पूरक क्षारक के निर्माण के साथ न्यूक्लिओटाइडों का निर्माण होता जाता है तथा प्रत्येक इकाई डबल हेलिक्स बनाती जाती है। इस प्रकार एक DNA अणु से उसके दो प्रतिरूप दो प्रतिकृतियाँ तैयार हो जाती हैं, प्रतिकृत तंतुओं में क्षारों का सही क्रम चित्र 11.4 में देखें।
(ii) प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) – DNA अणुओं में क्षारक क्रम के रूप में समस्त जेनेटिक सूचनाएँ इकट्ठी रहती हैं और उन्हीं के निर्देशानुसार प्रोटीनों का संश्लेषण होता है। प्रोटीनों का संश्लेषण दो पदों में संपन्न होता है-(a) अनुलेखन (Transcription), (b) अनुवाद या स्थानांतरण (Translation) अनुलेखन (Transcription) में DNA अणु के क्रम की नकल में पूरक RNA अणु बनता है जिसे संदेशवाहक RNA m(RNA) कहा जाता है। यह प्रक्रिया उसी प्रकार संपन्न होती है जैसी प्रतिकृतित्व के दौरान DNA के निर्माण में हुई, बस एक अंतर यह है कि DNA में ऐडिनीन (A) का पूरक थाइमीन था जबकि RNA में थाइमीन (T) के स्थान पर यूरेसिल (U) होता है।
अनुलेखन के बाद m-RNA कोशिका नाभिका से कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम पर चला जाता है, वहाँ ये प्रोटीन संश्लेषण के लिए साँचे (template) का काम करता है। m-RNA के अणुओं के न्यूक्लिओटाइडों को तीन के क्रम में पढ़ते हैं और इस प्रकार के प्रत्येक त्रियक (Triplet) को एक कोडोन (coden) कहते हैं। प्रत्येक कोडोन एक एमीनो अम्ल से संबद्ध होता है। ये m-RNA अणु tRNA व राबोसोमल कणों के माध्यम से प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करते हैं। जिस t-RNA के न्यूक्लिओटाइड m-RNA से मेल खाते जाएँगे वही एमीनो अम्ल r-RNA द्वारा प्रोटीन श्रृंखला से पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़ते जाएँगे और इस प्रकार पॉलिपेप्टाइड शृंखला बढ़ती जाएगी। प्रत्येक एमीनो अम्ल में कम से कम एक सुसंगत t-RNA होता है ।
t-RNA अणु के एक सिरे पर एक ट्राइन्यूक्लिओटाइड क्षार क्रम होता है अर्थात् m-RNA (एन्टिकोडोन) पर किसी ट्राइन्यूक्लिओटाइड क्षार क्रम का पूरक । t-RNA अणु का दूसरे सिरे पर तीन न्यूक्लिओटाइड का एक विशिष्ट क्षार क्रम होता है-CCA, सिरे पर एडीनीन न्यूक्लिओटाइड पर प्रदर्शित शर्करा पर – OH समूह के साथ (एमीनो अम्ल के जुड़ने का स्थान)।
यह OH समूह विशिष्ट एमीनो अम्ल के साथ संयुक्त होता है और इसे m-RNA तक ले जाता है। m-RNA और t-RNA के बीच जटिल को एक अन्य प्रकार के RNA जिसे राइबोसोम (Ribosome) RNA कहते हैं द्वारा स्थिर किया जाता है। एमीनो अम्ल को स्थानांतरण करने के बाद, t-RNA वापिस जाने के लिए मुक्त हो जाता है, और क्रिया दोहराई जाती है । इस प्रकार, एमीनो अम्ल में विशिष्ट क्रम के साथ प्रोटीन उत्पन्न हो जाती है। किसी विशिष्ट प्रोटीन के संश्लेषण का संकेत DNA में निहित है। DNA के न्यूक्लिओटाइडों के क्रम से ही प्रोटीनों के एमीनो अम्लों के क्रम का निर्धारण हुआ। DNA के इस क्रम को जीन (gene) कहते हैं और जीव कोशिकाओं में प्रत्येक प्रोटीन का अपना एक विशिष्ट जीन होता है। न्यूक्लिओटाइड त्रियक व एमीनो अम्लों के संबंध को जैव उत्पत्ति संकेत या जेनेटिक कोड (genetic code) कहते हैं।
जेनेटिक कोड (genetic code) की चार मान्य विशेषताएँ –
- यह सार्वत्रिक है
- यह विकृत है। इसका अर्थ है कि एक से अधिक कोडोन एमीनो अम्ल के कोड का कार्य कर सकते है।
- यह अल्प विराम रहित है।
- कोडोन का तीसरा क्षार कम विशिष्ट है।
कोडोन के प्रथम दो क्षार अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कोशिकाओं में प्रोटीनों के संश्लेषण की प्रक्रिया अत्यंत द्रुत गति से संपन्न होती है और एक सेकंड में लगभग 20 एमीनो अम्ल जुड़ जाते हैं। जंतुओं के शरीर में रेडियोएक्टिव एमीन इंजैक्ट (inject) करने के 1 मिनट बाद, रेडियोएक्टिव प्रोटीन पाई जा सकती है।
प्रश्न 22.
पारजीवी जंतुओं का उत्पादन क्यों किया जाता है ? इस तरह के परिवर्तन से मानव को क्या लाभ है ?
उत्तर:
मानव के लिए पारजीवी जन्तु निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण हैं –
(क) सामान्य शरीर क्रिया व विकास – पारजीवी जन्तुओं का निर्माण विशेषरूप से इस प्रकार किया जाता है जिनमें जीनों के नियंत्रण व इनका शरीर के विकास व सामान्य कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, उदाहरणार्थ-विकास में भागीदार जटिल कारकों जैसे-इंसुलिन की तरह विकास कारक का अध्ययन । दूसरी जाति (स्पीशज) के जींस को प्रवेश कराने के उपरांत उपरोक्त कारकों के निर्माण में होने वाले परिवर्तनों से होने वाले जैविक प्रभाव का अध्ययन तथा कारकों की शरीर में जैविक भूमिका के बारे में सूचना मिलती है।
(ख) रोगों का अध्ययन – अनेकों पारजीवी जंतु इस प्रकार निर्मित किए जाते हैं जिनसे रोग के विकास में जीन की भूमिका क्या होती है ? यह विशिष्ट रूप से निर्मित है जो मानव रोगों के लिए नमूने के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ताकि रोगों के नए उपचारों का अध्ययन हो सके । वर्तमान समय में मानव रोगों जैसे-कैंसर, पुटीय रेशामयता (सिस्टीक फाइब्रोसिस), रूमेटवाएड संधिशोथ व एल्जिमर हेतु पारजीवी नमूने उपलब्ध हैं।
(ग) जैविक उत्पाद – कुछ मानव रोगों के उपचार के लिए औषधि की आवश्यकता होती है जो जैविक उत्पाद से बनी होती है। ऐसे उत्पादों को बनाना अक्सर बहुत महँगा होता है । पारजीवी जंतु जो उपयोगी जैविक उत्पाद का निर्माण करते हैं उनमें डीएनए के भाग (जीनों) को प्रवेश कराते हैं जो विशेष उत्पाद के निर्माण में भाग लेते हैं। उदाहरण मानव प्रोटीन (अल्फा-1 एंटीट्रिप्सीन) का उपयोग इफासीमा के निदान में होता है । ठीक उसी तरह का प्रयास फिनाइल कीटोनूरिया (पीकेयू) व पुटीय रेशामयता के निदान हेतु किया गया है । वर्ष 1977 में सर्वप्रथम पारजीवी गाय ‘रोजी’ मानव प्रोटीन संपन्न दुग्ध (2.4 ग्राम प्रति लीटर) प्राप्त किया गया। इस दूध में मानव अल्फा-लेक्टएल्बुमिन मिलता है जो मानव शिशु हेतु अत्यधिक संतुलित पोषक तत्त्व है जो साधारण गाय के दूध में नहीं मिलता है।
(घ) टीका सुरक्षा – टीकों का मानव पर प्रयोग करने से पहले टीकें की सुरक्षा जाँच के लिए पारजीवी चूहों को विकसित किया गया है। पोलियो टीका की सुरक्षा जाँच के लिए पारजीवी चूहों को उपयोग किया जा चुका है। यदि उपरोक्त प्रयोग सफल व विश्वसनीय पाए गए तो टीका सुरक्षा जाँच के लिए बंदर के स्थान पर पारजीवी चूहों का प्रयोग किया जा सकेगा।
(ङ) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण – यह आविषालुता सुरक्षा परीक्षण कहलाता है। यह वही विधि है जो औषधि आविषालुता परीक्षण हेतु प्रयोग में लाई जाती है। पारजीवी जंतुओं में मिलने वाले कुछ जीन इसे आविषालु पदार्थों के प्रति अतिसंवेदनशील बनाते हैं जबकि अपारजीवी जंतुओं में ऐसा नहीं है। पारजीवी जंतुओं को आविषालु पदार्थों के संपर्क में लाने के बाद पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। उपरोक्त जंतुओं में आविषालुता परीक्षण करने से कम समय में परिणाम प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 23.
निम्न शब्दों की व्याख्या कीजिए-(क) अनुहरण, (ख) दशानुकूलन, (ग) बाह्योष्मीय, (घ) अंत:उष्मीय ।
उत्तर:
(क) अनुहरण – प्राणियों में उत्तरजीविता तथा वृद्धि के लिए विभिन्न परिस्थितियाँ समायोजित होती हैं। कुछ प्राणियों में दो जातियाँ एक-जैसी दिखती हैं इसमें एक अनुहारक तथा दूसरी उसकी प्रतिरूप होती है। अनुहरण की दो प्रजातियाँ हैं
(i) बेटसी अनुहरण – इसमें अनुहारक सुरक्षाहीन होता है लेकिन उसमें प्रतिरूप जैसा प्रति परभक्षी चिह्न होता है । परभक्षी के विरुद्ध सुरक्षात्मक उपाय रहता है । इस प्रकार अनुहारक परभक्षी के आक्रमण से अपने आपको बचाने में सक्षम रहता है। आदिदारुक तितली, वाइसरॉय तितली, द्वारा अनुहारित होती है।
(ii) म्यूलरी अनुहरण – इसमें अनुहारक प्रतिरूप जैसा ही सुरक्षात्मक उपाय दर्शाता है।
(ख) दशानुकूलन – कुछ प्राणियों में वितरण की सहनशीलता सीमा तथा इष्टतम परिसीमा ऋतुओं के अनुसार बदलती है। यदि कुछ पर्यावरणीय कारक उसकी सहनशीलता सीमा को पार कर जाते हैं तो वह जीव विराम की अवस्था में आ जाता है, या वह प्रवास पर चला जाता है, या वह अपने आपको दशानुकुलन की स्थिति में ले आता है। शनैः-शनैः परिवर्तनशील नए वातावरण में धीरे-धीरे शरीर क्रियात्मक अनुकूलन को दशानुकूलन कहते हैं।
(ग) बाह्योष्मीय – शीत रुधिर वाले जीवों में अपने वातावरण के अनुसार अपने शरीर का तापमान बनाए रखने की क्षमता होती हैं। बहुत सारे सक्रिय बाह्योष्मीय जन्तु यथा मेंढक, सर्प आदि अपने शरीर की उष्मा को बनाए रखने के लिए गतिशील रहते हैं या छाया ढूँढ़ते रहते हैं।
(घ) अंत:उष्मीय – उष्म रुधिर धारी जन्तु जैसे पक्षी तथा मनुष्य अपने शरीर की क्रियात्मकता द्वारा एक निश्चित तापमान बनाए रखते हैं। बाह्य तापीय उतार-चढ़ाव का उन पर कोई असर नहीं होता।
प्रश्न 24.
संक्षेप में सवाना जीवोम की व्याख्या करें।
उत्तर:
एक पूर्ण विकसित घास आवरण जिसमें झाड़ी; या छोटे वृक्ष बिखरे हो सवाना कहलाता है । वितरण-मध्य तथा दक्षिण अफ्रीका, भारत, उ. तथा पू. मध्य अफ्रीका एवं उ. ऑस्ट्रेलिया के गर्म भाग ।
विशेषताएँ –
- स्पष्ट आर्द्र तथा शुष्क अवधि वाले वातावरण में पाया जाता है ।
- मृदा नमी की उपलब्धता द्वारा सवाना की जाति, संरचना एवं उत्पादकता निर्धारित होती है।
- उष्णकटिबंधीय सवाना का मुख्य लक्षण है C, प्रकाश संश्लेषी क्षमता वाले घास की प्रजातियों की बहुलता ।
- जड़ प्रणाली, मृदा क्षितिज के ऊपरी 30 सेमी क्षेत्र से ज्यादा विकसित रहती है ।
- वनस्पति जातियों की संख्या कम होती है। काष्ठीय प्रजातियों की ऊँचाई 18 मीटर तक होती है।
भारतीय सवाना की उत्पत्ति – भारतीय सवाना मौलिक उष्णकटिबंधीय वनों के अपघटन द्वारा निर्मित हैं। वर्तमान स्थिति में उसका बने रहना, लगातार चारण सदियों से आग द्वारा संभव हुआ है।
भारतीय सवाना के प्रमुख घास – डाईकैथियम, सेहिमा, फ्रेमाइट्स, सैकेरम आदि।
प्रमुख वृक्ष एवं झाड़ी – प्रोसोपिस, जिजिफस, कैपिरस, एकेसिया, ब्युटिया आदि।