Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Bihar Board Class 11 History बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 1.
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर:

  • 14-15 वीं शताब्दी में यूनानी और रोम सभ्यता की प्राचीनता को पुनर्जीवित किया गया।
  • प्राचीन लेखकों की रचनाओं का अध्ययन किया गया।
  • उन्होंने मानवतावाद के अध्ययन पर जोर दिया।
  • कला और चित्रकला को पुनर्जीवित किया गया।

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं Question Answer Bihar Board Class 11 History प्रश्न 2.
इस काल की इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टाओं की तुलना कीजिए?
उत्तर:

  • इस काल में इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला दोनों का प्रयत्न नगरों को सजाने में किया गया।
  • इटली में रोम के अवशेषों के आधार पर एक नवीन वास्तुकला की शैली अपनाई गई जिसको ‘क्लासिकी शैली’ कहा गया। इस्लामी कला में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया।
  • इटली में भवनों के चित्र बनाये गये, मूर्तियों का निर्माण किया और विभिन्न प्रकार की आकतियां उकेरी गई। इस्लामी वास्तुकला में इतनी सजावट पर जोर नहीं दिया गया।

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपरा के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 3.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर:
रोम तथा यूनानी विद्वानों ने कई क्लासिक ग्रंथ लिखे थे। परंतु शिक्षा के प्रसार के अभाव में इन गूढ ग्रंथों को पढ़ना संभव नहीं था। परंतु तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी में इटली में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ इन ग्रंथों का अनुवाद भी हुआ। इन्हीं ग्रंथों तथा इन पर लिखी गई टिप्पणियों ने इटली के लोगों को मानवतावादी विचारों से परिचित करवाया।

इटली में ही सर्वप्रथम विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में मानवतावादी विषय भी पढ़ाए जाने लगे। इन विषयों में प्राकतिक विज्ञान, मानव शरीर रचना विज्ञान, खगोल शास्त्र औषधि विज्ञान, गणित आदि विषय शामिल थे। इन विषयों ने लोगों की सोंच को मानव और उसकी भौतिक सुख-सुविधाओं पर केंद्रित किया।

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपरा पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 4.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए?
उत्तर:

  • वेनिस के धर्माधिकारी और सामन्त वर्ग राजनैतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे परन्तु फ्रांस में ये शक्तिशाली थे।
  • वेनिस में नगर के धनी व्यापारी और महाजन लोग नगर के शासन में सक्रियता से भाग लेते थे। फ्रांस में ऐसा नहीं था।

Badalti Hui Sanskritik Parampara Question Answer Bihar Board Class 11 History प्रश्न 5.
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावादी विचारधारा की विशिष्टायें –

  • मानतावादी विचारधारा के अंतर्गत मानव के विभिन्न कल्याणकारी कार्यों पर ध्यान दिया जाता था।
  • इसमें मानव के सभी पक्षों की ओर आकर्षित किया जाता है इसलिए सभी विषयों-व्याकरण, भूगोल, इतिहास, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्र, कविता और नीति दर्शन के अध्ययन पर जोर दिया जाता है।
  • मानव के कल्याण के लिए सभी को आपस में वाद-विवाद और विचार-विमर्श करना चाहिए । डेला मिरेनडोला के अनुसार ऐसा करना दिमाग को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है।
  • मानवतावादी विचारों को कला के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। इसमें मानव रुचियों का विशेष ध्यान रखा गया । इसी के फलस्वरूप विद्वान, कूटनीतिज्ञ, धर्मशास्त्री और कलाकार हुए।
  • मानव के रूप को यथार्थ रूप देने का प्रयास किया गया वैज्ञानिकों से भी इस कार्य में सहयोग दिया।
  • मानवतावाद के अंतर्गत मानव को विशेष महत्व दिया जाने लगा और उसकी प्रशंसा में अनेक कव्य लिखे गये।
  • 15 वीं शताब्दी में अनेक पुस्तकें मुद्रित हुई जिनका मूल विषय मानव ही था।
  • मानवतावाद के महिलाओं की विकृत स्थिति को सुधारने का प्रयास किया गया।

Badalti Hui Sanskriti Parampara Bihar Board Class 11 History प्रश्न 6.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुचिंतित विवरण दीजिए।
उत्तर:
17वीं शताब्दी में विश्व आधुनिक युग में प्रवेश कर चुका था। अतः इसने एक नया रूप धारण कर लिया था जो पूर्ववर्ती विश्व से निम्नलिखित बातों में भिन्न था –

  • यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ रही थी।
  • अब एक विशेष प्रकार की ‘नगरीय-संस्कृति’ विकसित हो रही थी। नगर के लोग यह सोचने लगे थे कि वे गाँव के लोगों से अधिक ‘सभ्य’ हैं।
  • फ्लोरेंस, वेनिस और रोम जैसे नगर कला और विद्या के केंद्र बन गए थे। नगरों को राजाओं और चर्च से थोड़ी बहुत स्वायत्तता (autonomy) मिली थी।
  • धनी और अभिजात वर्ग के लोग कलाकारों तथा लेखकों के आश्रयदाता थे।
  • मुद्रण के आविष्कार से अनेक लोगों को छपी हुई पुस्तकों उपलब्ध होने लगीं।
  • यूरोप में इतिहास की समझ विकसित होने लगी थी। लोग अपने ‘आधुनिक विश्व’ की तुलना यूनान तथा रोम की प्राचीन दुनिया से करने लगे थे।
  • अब यह माना जाने लगा था कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना धर्म चुन सकता है।
  • चर्च के, पृथ्वी के केंद्र संबंधी विश्वासों को वैज्ञानिकों ने गलत सिद्ध कर दिया था । वे अब सौर-मंडल को समझने लगे थे। उन्होंने सौर-मंडल के सूर्य-केंद्रित सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • नवीन भौगोलिक ज्ञान ने इस विचार को उलट दिया कि भूमध्यसागर विश्व का केंद्र है। इस विचार के पीछे यह मान्यता रही थी कि यूरोप विश्व का केंद्र है।

Bihar Board Class 11 History बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Notes Bihar Board Class 11 History प्रश्न 1.
‘मानववाद’ से आप क्या समझते हैं? पुनर्जागरण काल की कला और साहित्य में मानववाद के उदाहरण दें।
उत्तर:
मानववाद से अभिप्राय उस दृष्टिकोण से है जिसमें वर्तमान समस्याओं को महत्त्व दिया जाता है। पुनरिण काल के साहित्यकारों तथा कलाकारों ने मानव के वर्तमान में विशेष रुचि ली। इसीलिए उस साहित्य को ‘मानविकी’ कहा जाता है।

Badalti Hui Sanskriti Parampara Ke Question Answer Bihar Board Class 11 History प्रश्न 2.
पुनर्जागरण को आधुनिक युग का प्रारंभ क्यों समझा जाता है? दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • आधुनिक युग का आरंभ पुनर्जागरण से हुआ। इस युग में पुरानी और मध्यकालीन रूढ़िवादी मान्यताएं समाप्त होने लगी। मानव जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन हुए।
  • अनेक नवीन वैज्ञानिक आविष्कार हुए। कला तथा साहित्य के क्षेत्र में नवीन विचाराधाराओं का उदय हुआ।

बदलती हुई सांस्कृतिक परम्परा Class 11 Bihar Board History प्रश्न 3.
आधुनिक युग कब आरंभ हुआ? इस युग को लाने में किन बातों ने सहायता की?
उत्तर:
सामंती व्यवस्था के विघटन के साथ ही आधुनिक युग का आरंभ हुआ। चार बातों ने आधुनिक युग लाने में सहायता दी-व्यापार का विकास, नगरों का जन्म, समाज में मध्यम वर्ग का उदय तथा रिनसा (पुनर्जागरण) । भौगोलिक खोजों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

Badalti Hui Sanskritik Parampara Bihar Board Class 11 History प्रश्न 4.
रिनसां अथवा पुनर्जाकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पंद्रहवीं शताब्दी में इटली में पुनर्जागरण आया, जिसे रिनैसा कहते हैं। यूरोप में अज्ञान के लंबे अंधकार युग के बाद ज्ञान का एक नया आंदोलन आरंभ हुआ। यूरोप के लोगों के मन में यूरोप की प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के प्रति फिर से रुचि उत्पन्न हुई।

Badalti Hui Sanskriti Bihar Board Class 11 History प्रश्न 5.
यूरोप में हुए पुनर्जागरण के कोई दो प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
पुनर्जागरण के कारण लोगों के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –

  • नवीन विचारों भावनाओं तथा मान्यताओं के उदय से अंधविश्वासों का अंत हुआ।
  • लोगों में मानवतावाद का प्रसार हुआ। फलस्वरूप मनुष्य साहित्यिक रचनाओं और कला-कृतियों का मुख्य विषय बन गया।

बदलती हुई सांस्कृतिक परम्परा Pdf Bihar Board Class 11 History प्रश्न 6.
छापेखाने का आविष्कारक किनको समझा जाता है? यूरोप में पहली छपी हुई पुस्तक कौन-सी थी?
उत्तर:
छापेखाने का आविष्कारक गुटेनबर्ग तथा कैस्टर नामक दो व्यक्तियों को माना जाता है। उन्होंने पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में छापेखाने का आविष्कार किया। इस आविष्कार से साहित्य तथा ज्ञान के प्रसार में बड़ी सहायता मिली। यूरोप में छापने वाली सबसे पहली पुस्तक पंभवतः गुटेनबर्ग की बाइबिल थी।

Badalti Hui Sanskriti Parampara Project Bihar Board Class 11 History प्रश्न 7.
धर्म-सुधार आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन से हमारा अभिप्राय उस आंदोलन से है जिसे मार्टिन लूथर ने रोमन चर्च में प्रचलित अनुचित रीति-रिवाजों के विरोध में चलाया। इस आंदोलन के समर्थकों ने प्रष्ट परंपराओं को समाप्त करके सुधरी हुई परंपरा स्थापित करने का प्रयत्न किया।

बदलती हुई सांस्कृतिक परम्परा Project Bihar Board Class 11 History प्रश्न 8.
धर्म सुधार लहर अथवा प्रोटेस्टेंट लहर के कोई दो परिणाम लिखो।
उत्तर:

  • ईसाई धर्म दो भागों में बँट गया और लोगों का धर्म संबंधी दृष्टिकोण बदल गया।
  • स्वयं पोप को भी अपनी बेटियों का पता चला और उसने काऊटर रिफॉर्मेशन द्वारा अपनी स्थिति बचा ली।

प्रश्न 9.
चौदहवीं शताब्दी में यूरोपीय इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत क्या हैं?
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी में यूरोपीय इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत यूरोप तथा अमेरिका के अभिलेखागारों तथा संग्रहालयों आदि में दस्तावेज, मुद्रित पुस्तकें, मूर्तियाँ, वस्र आदि हैं। कई भवन भी हमें इस समय के इतिहास की जानकारी देते हैं।

प्रश्न 10.
बहार्ट ने 14वीं से 17वीं शताब्दी तक इटली में पनप रही ‘मानवतावादी’ संस्कृति के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
बहार्ट ने लिखा है कि इटली में पनप रही ‘मानवतावादी संस्कृति’ इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में स्वयं निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है। ऐसा व्यक्ति ‘आधुनिक’ था जबकि ‘मध्यकालीन मानव’ पर चर्च का नियंत्रण था ।

प्रश्न 11.
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली की राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दशा कैसी थी?
उत्तर:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक केंद्रों का विनाश हो गया था। वहाँ कोई एकीकृत सरकार नहीं थी। रोम का पोप केवल अपने ही राज्य में सार्वभौम था। समस्त यूरोप की राजनीति में वह इतना मजबूत नहीं था।

प्रश्न 12.
इटली के वेनिस तथा जिनेवा नगर यूरोप के अन्य क्षेत्रों से किस प्रकार भिन्न थे? कोई दो बिंदु लिखिए।
उत्तर:
इटली के वेनिस तथा जिनेवा नगर यूरोप के अन्य क्षेत्रों से निम्नलिखित बातों में भिन्न थे –

  • यहाँ पर धर्माधिकारी तथा सामंत वर्ग राजनैतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे
  • धनी व्यापारी तथा महाजन नगर के शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। इससे नागरिकता की भावना पनपने लगी।

प्रश्न 13.
पादुआ और बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन के केंद्र थे। क्यों?
उत्तर:
पादुआ और बालोनिया के नगरों के मुख्य क्रियाक ” व्यापार और वाणिज्य संबंधी थे। इसलिए यहाँ वकीलों और नोटरी की बहुत अधिक आवश्यकता होती थी। इसी कारण यहाँ के विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन का केंद्र बन गए।

प्रश्न 14.
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर:
14वीं और 15वीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के धार्मिक, साहित्यिक – तथा कलात्मक तत्त्वों को पुनर्जीवित किया गया।

प्रश्न 15.
15वीं शताब्दी के आरंभ में किन लोगों को ‘मानवतावदा’ कहा जाता है?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के आरंभ में उन अध्यापकों को ‘मानवतावादी’ कहा जाता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास तथा नीतिदर्शन आदि विषय पढ़ाते थे।

प्रश्न 16.
प्राचीन रोमन तथा यूनानी लेखकों की रचनाओं के गहन अध्ययन पर क्यों बल दिया गया?
उत्तर:
प्राचीन रोमन एवं यूनानी सभ्यता को एक विशिष्ट सभ्यता माना गया। इन्हें बारीकी से समझने के लिए प्राचीन रोमन तथा यूनानी लेखकों की रचनाओं के गहन अध्ययन पर बल दिया गया। पेट्रार्क जैसे दार्शनिकों का मत था कि केवल धार्मिक शिक्षा से कुछ विशेष नहीं सीखा जा सकता।

प्रश्न 17.
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को ‘नये युग’ अथवा आधुनिक युग का नाम क्यों दिया?
उत्तर:
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को मध्यकाल से अलग करने के लिए ‘नये युग’ का नाम दिया। उनका यह तर्क था कि ‘मध्ययुग’ में चर्च ने लोगों की सोच को बुरी तरह जकड़ रखा था इसलिए यूनान और रोमवासियों का समस्त ज्ञान उनके दिमाग से निकल चुका था। परंतु 15वीं शताब्दी के आरंभ में यह ज्ञान फिर से जीवित हो उठा।

प्रश्न 18.
टॉलेमी की रचना ‘अलमजेस्ट’ की विषय-वस्तु की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
टॉलेमी रचित ‘अलमजेस्ट’ नामक ग्रंथ खगोल विज्ञान से संबंधित था जो यूनानी भाषा में लिखा गया था। बाद में इसका अनुवाद अरबी भाषा में भी हुआ। इस ग्रंथ में अरबी भाषा के विशेष अवतरण ‘अल’ का उल्लेख है जो यूनानी और अरबी भाषा के बीच रहे संबंधों को दर्शाता है।

प्रश्न 19.
स्पेन के दार्शनिक इन रूश्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
स्पेन का दार्शनिक इन रूश्द एक अरबी दार्शनिक था। उसने दार्शनिक ज्ञान (फैलसुफ) तथा धार्मिक विश्वासों के बीच चल रहे तनावों को सुलझाने की चेष्टा की। उसकी पद्धति को ईसाई चिंतकों ने अपनाया ।

प्रश्न 20.
लोगों तक मानवतावादी विचारों को पहुंचाने में किन बातों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
उत्तर:

  • स्कूलों तथा विश्वविद्यालायों में मानवतावादी विषय पढ़ाए जाने लगे।
  • कला, वास्तु कला तथा साहित्य ने भी मानतावादी विचारों के प्रसार में प्रभावी भूमिका निभाई।

प्रश्न 21.
आडीयस वेसेलियस (Andreas Vesalius) कौन थे?
उत्तर:
आंड्रीयस वेसेलियस (1514-64 ई.) पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ (dissection) की। इससे आधुनिक शरीर-क्रिया विज्ञान (Physiology) का प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 22.
‘यथार्थवाद’ क्या था?
उत्तर:
शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी तथा सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप प्रदान किया। इसी को बाद में ‘यथार्थवाद’ (realism) का नाम दिया गया। यथार्थवाद की यह परंपरा उन्नसीवीं शताब्दी तक चलती रही।

प्रश्न 23.
माईकील एंजिलो बुआनारोती (Michael Angelo Buonarotti) कौन था? इटली की कला के क्षेत्र में उसका क्या योगदान था?
उत्तर:
माईकल एंजिलो बुआनारोती (1475-1564 ई.) एक कुशल चित्रकार, मूर्तिकार तथा वास्तुकार था। उसने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत पर चित्रकारी की और ‘दि पाइटा’ नाम से मूर्ति बनाई। उसने सेंट पीटर गिरजाघर के गुबंद का डिजाइन भी तैयार किया। ये सभी कलाकृतियाँ रोम में ही हैं।

प्रश्न 24.
समुद्री खोजों के पीछे वास्तविक प्रेरक तत्त्व क्या थे?
उत्तर:

  • नए स्थानों की खोज करके लोगों को दास बनाना और दास व्यापार से भारी मुनाफा कमाना।
  • व्यापार वृद्धि तथा धन कमाने की प्रबल इच्छा का उत्पन्न होना।
  • मसाले और सोना प्राप्त करके यश कमाना।

प्रश्न 25.
नए देशों की खोजों से कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले?
उत्तर:

  • नए मार्गों का पता लगने के बाद यूरोपीय लोगों ने अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में व्यापार करना आरंभ कर दिया।
    दासों का क्रय-विक्रय होने लगा।
  • पादरियों ने इन उपनिवेशों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू किया जिसके फलस्वरूप यह धर्म विश्व का सबसे महान् धर्म बन गया।

प्रश्न 26.
यूरोपीय लोगों के जीवन पर धर्म-युद्धों के दो अच्छे प्रभाव बताएँ।
उत्तर:

  • इन युद्धों से भौगोलिक खोजों के ज्ञान का विस्तार हुआ।
  • यूरोपवासी इस्लामी जगत् के संपर्क में आए। उन्होंने इस्लामिक जगत् की कला एवं विज्ञान संबंधी ज्ञान को अपनाया।

प्रश्न 27.
‘कॉस्टैनटाइन के अनुदान’ नामक दस्तावेज के प्रति मानवतावादियों की क्या प्रतिक्रिया थी? इससे उन राजाओं को क्यों खुशी हुई, जो चर्च के हस्तक्षेप से दुःखी थे?
उत्तर:
मानवतावादियों ने लोगों को बताया कि चर्च को उसकी न्यायिक और वित्तीय शक्तियाँ ‘कांस्टैनटाइन के अनुदान’ नामक दस्तावेज के अनुसार मिली थी। उन्होंने कहा कि यह दस्तावेज जालसाजी से तैयार करवाया गया। इस बात ने चर्च के अधिकारों के औचित्य को चुनौती दी जिससे राजाओं को खशी हुई।

प्रश्न 28.
पाप स्वीकारोक्ति (indulgences) नामक दस्तावेज क्या था?
उत्तर:
पाप स्वीकारोक्ति दस्तावेज चर्च द्वारा जारी एक दस्तावेज था। चर्च कहता था कि यह दस्तावेज व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति दिला सकता है। चर्च इस दस्तावेज को बेचकर खूब धन बटोर रहा था।

प्रश्न 29.
मानवतावादी युग में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
इस युग में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी थी। वे दुकान चलाने में अपने पति की सहायता करती थीं । जब उनके पति लंबे समय के लिए व्यापार के लिए कहीं दूर जाते थे, तो वे उनका कारोबार संभालती थीं। किसी व्यापारी की कम आयु में मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी परिवार का बोझ संभालती थी।

प्रश्न 30.
माचिसा ईसाबेला दि इस्ते (Isabellad’ Este) कौन थी?
उत्तर:
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते (1474-1539 ई.) मंदुआ राज्य की एक प्रतिभाशाली महिला थी। उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया था।

प्रश्न 31.
दो मानवतावादी लेखकों के नाम बताएँ। यह भी बताएं कि उन्होंने क्या विचार व्यक्त किए? एक-एक बिंदु लिखिए।
उत्तर:
दो मानवतावादी लेखक थे-फ्रेनसेस्को बरबारी (Francesco Barbaro) तथा लोरेंजो वल्ला (Lorenzo’ Valla) –

  • फ्रेनसेस्को बरबारो (1390-1454 ई.) ने अपनी एक पुस्तक में संपत्ति अधिग्रहण करने को एक विशेष गुण कहकर उसका समर्थन किया।
  • लोरेंजो वल्ला (1406-1457 ई.) ने अपनी पुस्तक ऑनप्लेजर में ईसाई धर्म द्वारा भोग-विलास पर लगाई गई पाबंदी की आलोचना की।

प्रश्न 32.
मानवतावादी संस्कृति का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ? कोई दो बिंदु लिखिए।
उत्तर:

  • मानवतावादी संस्कृति से मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर हो गया।
  • इटली के निवासी भौतिक संपत्ति, शक्ति तथा गौरव की ओर आकृष्ट हुए।

प्रश्न 33.
15वीं शताब्दी में यूरोप में विचारों का प्रसार व्यापक रूप से तेजी से क्यों होने लगा?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में यूरोप में बड़ी संख्या में पुस्तके छपने लगीं। इनका क्रय-विक्रय भी होने लगा। अतः अब विद्यार्थियों को केवल अध्यापकों के व्याख्यानों के नोट्स पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। वे बाजार से पुस्तकें खरीद कर पढ़ सकते थे। इससे विचारों के व्यापक और तीव्र प्रसार में सहायता मिली।

प्रश्न 34.
वाणिज्य और व्यापार की वृद्धि के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:

  • वाणिज्य और व्यापार वृद्धि के कारण यूरोप के लोग समृद्ध बने।
  • यूरोप के देशों ने खोजे गए प्रदेशों में उपनिवेश बसाए जिनको उन्होंने मंडियों के रूप। में प्रयुक्त किया।

प्रश्न 35.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वंनिस इटली का नगर था। यह गणराज्य था। यह चर्च तथा सामंतो के प्रभाव से लगभग मुक्त था। नगर के धनी व्यापारी तथा महाजन सरकार में सक्रिय भूमिका निभाते थे। नगर में नागरिकता के विचारों का तेजी से प्रसार हो रहा था। इसके विपरीत फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र स्थापित था, जहाँ जनसाधारण नागरिक अधिकारों से वंचित थे।

प्रश्न 36.
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावादा विचारों के मुख्य अभिलक्षण निम्नलिखित थे –

  1. मानव जीवन की धर्म के नियंत्रण से मुक्ति।
  2. मानव का भौतिक सुख-सुविधाओं पर बल।
  3. मानव द्वारा संपत्ति तथा शक्ति का अधिग्रहण।
  4. मानव की गरिमा का बढ़ावा।
  5. मानव का आदर्श जीवन।

प्रश्न 37.
इस काल (पुनर्जागरण काल) की इटली की वास्तुकला और इस्लाम वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इटली तथा इस्लामी वास्तुकला दोनों में ही भव्य भवनों का निर्माण हुआ। इस्लामी वास्तुकला में विशाल मस्जिदें बनी, तो इटली में भव्य कुथीडूल तथा मठ बनाए गए। इन भवनों की सजावट की ओर विशेष ध्यान दिया गया। मेहराब तथा स्तंभ इन भवनों की मुख्य विशेषताएँ थीं।

प्रश्न 38.
16वीं शताब्दी में यूरोप में होने वाली मुद्रण प्रौद्योगिकी के विकास के लिए यूरोपवासी किसके ऋीण थे और क्यों?
उत्तर:
सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में क्रांतिकारी मुद्रण प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। इसके लिए यूरोपीय लोग चीनियों तथा मंगोल शासकों के ऋणी थे। इसका कारण यह था कि यूरोप के व्यापारी और राजनयिक मंगोल शासकों के राज-दरबार में अपनी यात्राओं के दौरान इस तकनीक से परिचित हुए थे।

प्रश्न 39.
वाद-विवाद को प्लेटो और अरस्तु ने किस प्रकार महत्त्व दिया?
उत्तर:
उनका कहना था कि जहाँ तक हो सके हमें विचारगोष्ठियों में जाना चाहिए और वाद-विवाद करना चाहिए। जिस प्रकार शरीर को मजबूत बनाने के लिए व्यायाम जरूरी है उसी प्रकार दिमाग की ताकत को बढ़ाने के लिए शब्दों के दंगल में उतरना जरूरी है इससे दिमागी ताकत बढ़ने के साथ-साथ बुद्धि और अधिक ओजस्वी होती है।

प्रश्न 40.
फ़्लोरेंस की प्रसिद्धि में किन दो व्यक्तियों का सबसे अधिक योगदान था?
उत्तर:
फ्लोरेंस की प्रसिद्धि में दाँते अलिगहियरी (Dante Alighieri) तथा कलाकार जोटो (Giotto) का सबसे अधिक योगदान था। अलिगहियरी ने धार्मिक विषयों पर लिखा। जोटो ने जीते-जागते रूपचित्र बनाए जिसने फ्लोरेंस को कलात्मक कृतियों के सृजन का केंद्र बना दिया।

प्रश्न 41.
‘रेनेसा व्यक्ति’ से क्या अभिप्राय है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
‘रेनेसा व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग प्राय: उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों और जो अनेक कलाओं में कुशल हों। पुनर्जागरण काल में ऐसे अनेक महान् लोग हुए जो अनेक रुचियाँ रखते थे और कई कलाओं में कुशल थे। उदाहरण के लिए, एक ही व्यक्ति विद्वान, कूटनीतिज्ञ, धर्मशास्त्र और कलाकार हो सकता था।

प्रश्न 42.
पुनर्जागरण की तीन मुख्य विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
पुनर्जागरण के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  1. इटली के नगर पुनर्जागरण के प्रथम केंद्र थे।
  2. नवीन कला शैली का जन्म हुआ।
  3. वास्तुकला एवं साहित्य का विकास हुआ।

प्रश्न 43.
पुनर्जागरण यूरोप के किस देश में सबसे पहले आरंभ हुआ और क्यों?
उत्तर:
पुनर्जागरण का आरंभ सबसे पहल इटली में हुआ। इसके निम्नलिखित कारण थे –

  1. इटली के अनेक नगर (रोम, मिलान, फ्लारस) वाणिज्य तथा व्यापारिक केंद्र होने के कारण समृद्धशाली थे।
  2. इटली के नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त थे। इसलिए इन नगरों के स्वतंत्र वातावरण से पुनर्जागरण को प्रोत्साहन मिला।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पुनर्जागरण को इतिहास में पुनर्जन्म, पुनर्जागृति, बौद्धिक चेतना तथा सांस्कृतिक विकास आदि नामों से पुकारा जाता है। 13वीं शताब्दी के पश्चात् ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हुई जिनके कारण मनुष्य चेतनायुक्त बना। इसी चेतना को पुनर्जागरण का नाम दिया गया है। पुनर्जागरण को अंग्रजी भाषा में ‘रिनेसा’ कहते हैं जो मूलतः फ्रांसीसी भाषा का एक शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ है-फिर से जागना। यूरोपीय इतिहास के विश्लेषण के संदर्भ में पुनर्जागरण का अपना अलग काल है।

यह काल साधारणत: 14वीं शताब्दी (1350 से 1550 ई०) के बीच माना जाता है। वास्तव में आधुनिक यूरोप का आरंभ पुनर्जागरण से ही स्वीकार किया जाता है। यूरोप प्राचीनकाल में सभ्यता के उत्कर्ष पर पहुँचा हुआ था। यह उत्कर्ष यूनान तथा रोम में देखा गया। मध्यकाल में यूनानी तथा रोमन सभ्यता लगभग लुप्त हो गई। पुनर्जागरण काल में यह एक बार फिर संजीव हो उठी। एक बार फिर लौकिक जगत् के प्रति आस्था दिखाई गई। मानवता का महत्त्व बढ़ा। रुढ़िवादिता का स्थान तर्क ने ले लिया। प्राकृतिक सौंदर्य की फिर से पूजा होने लगी। इन सब बातों का मध्यकाल में कोई स्थान नहीं रहा था। परंतु पुनर्जागरण काल में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हुई जिन्होंने प्राचीन मूल्यों को फिर से स्थापित किया।

प्रश्न 2.
‘पुनर्जागरण’ से एक नए युग का आरंभ हुआ, ऐसा क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
‘पुनर्जागरण’ से निःसंदेह एक नए युग का आरंभ हुआ। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे –

  1. पुनर्जागरण के कारण प्राचीन और मध्यकालीन समाज की रूढ़िवादी मान्यताएं समाप्त होने लगीं। अब लोग अपनी समस्याओं पर विचार करने लगे।
  2. इसके कारण सामंतवादी व्यवस्था के बंधन टूटने लगे और राष्ट्र-राज्यों की स्थापना हुई।
  3. पुनर्जागरण से पूर्व लोगों का चर्च के सिद्धांतों में अंधविश्वास था। परंतु अब लोग उन सिद्धांतों की सच्चाई में संदेह करने लगे और प्रत्येक बात को तर्क की कसौटी पर कसने लगे। फलस्वरूप वैज्ञानिक चिंतन का युग आरंभ हुआ।
  4. पुनर्जागरण के कारण कला और साहित्य के क्षेत्र में अनेक नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ। अनेक साहित्यकारों के व्यंग्यात्मक लेख और चित्रकारों ने अपने चित्रों में दूषित समाज और राजनीति पर प्रहार किया। ये सभी बातें आधुनिक युग की ही सूचक थीं।

प्रश्न 3.
यूरोप में पुनर्जागरण के उदय के क्या कारण थे?
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण के उदय ने निम्नलिखित तत्त्वों ने सहायता पहुँचाई –
1. धर्म युद्ध – नवीन ज्ञान का मार्ग दिखाने में मध्यकाल में लड़े गए धर्म युद्धों ने विशेष भूमिका निभाई। ये धर्म युद्ध (Crusades) तुर्कों से यरुशलम को स्वतंत्र कराने के लिए ईसाइयों ने लई । ये वीं शताब्दी के अंत से 13वीं शताब्दी तक जारी रहे। धर्म युद्धों के कारण यूरोप के सामाजिक, आर्थिक तथा बौद्धिक पक्षों पर गहरा प्रभाव पड़ा।

2. धर्म सुधार आंदोलन – धर्म सुधार आंदोलन की लहर में अनेक विद्वानों ने चर्च के अधिकारों को चुनौती दी। जनसाधारण पहली बार यह सोचने लगा कि चर्च के नियम अंतिम नहीं हैं। इस नवीन दृष्टिकोण से मनुष्य के विचारों में जागृति आई।

3. भौगोलिक खोजें – भौगोलिक खोजों के कारण भी मनुष्य के विचारों में क्रांति आई। मार्को पोलो के दिशा-सूचक (Compass) के अविष्कार के कारण समुद्री यात्रा करने में सुविधा मिली । इटली के वैज्ञानिक गैलीलियों ने दूरबीन का आविष्कार किया। न्यूटन के ब्रांड के विषय ने वैज्ञानिक अनुमानों को सूत्रबद्ध किया। कोपरनिक्स ने अपनी खोजों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि पृथ्वी स्थिर नहीं है बल्कि यह सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। इन नवीन खोजों के कारण नवीन विचारों का जन्म हुआ।

प्रश्न 4.
विज्ञान और दर्शन में अरबों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूरे मध्यकाल में ईसाइ गिरजाघरों और मठों के विद्वान यूनान और रोम के विद्वानों की रचनाओं से परिचित थे। परंतु उन्होंने इन रचनाओं का प्रचार-प्रसार नहीं किया। चौदहवीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तु के ग्रंथों के अनुवाद पढ़े। ये अनुवाद अरब के अनुवादकों की देन थे जिन्होंने अतीत की पांडुलिपियों को सावधानीपूर्वक संरक्षण और अनुवाद किया था।

जिस समय यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रंथों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे, उस समय यूनानी विद्वान अरबी तथा फारसी विद्वानों की कृतियों का अनुवाद कर रहे थे, ताकि उनका यूरोप के लोगों के बीच प्रसार किया जा सके। ये ग्रंथ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान (astronomy) औषधि विज्ञान तथा रसायन विज्ञान से संबंधित थे। टालेमी ने अपनी रचना ‘अलमजेस्ट’ में अरबी भाषा के विशेष अवतरण ‘अल’ का उल्लेख किया है जो यूनानी और अरबी भाषा के बीच रहे संबंधों को दर्शाता है।

मुसलमान लेखकों में अरब के हकीम तथा बुखारा (मध्य एशिया) के दार्शनिक इन-सिना (Ibn-Sina) और आयुर्विज्ञान विश्वकोष के लेखक अल-राजी (रेजेस) शामिल थे। इन्हें इतालवी जगत में ज्ञानी माना जाता था। स्पेन के एक अरब दार्शनिक इब्न-रूश्दी ने दार्शनिक ज्ञान (फैलसुफ) तथा धार्मिक विश्वासों के बीच रहे तनावों को सुलझाने की चेष्टा की। इस पद्धति को ईसाई चिंतकों ने अपनाया।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण काल में व्यापार में वृद्धि तथा नगरों के उदय का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में व्यापार के विकास तथा नगरों के उदय के कारण कई प्राचीन प्रथाएँ भंग हुई और नवीन बातें आरंभ हुई। वास्वत में यूरोप को अंधकार युग से निकाल कर आधुनिक युग में लाने का पूरा श्रेय व्यापारियों तथा नगरों को ही है। यह बात हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं –

(क) व्यापार में वृद्धि का प्रभाव-व्यापार में विकास का निम्नलिखित प्रभाव हुआ:
1. मध्य श्रेणी का उदय-व्यापार में वृद्धि के कारण समाज में एक नवीन श्रेणी का जन्म हुआ। यह श्रेणी थी मध्य श्रेणी जो सामंतों या कृषकों से बिल्कुल अलग थी। इस श्रेणी के पास धन था और धन की सहायता से यह कुछ भी कर सकती थी।

2. राजा का सबल बनाना-व्यापार को उन्नति से पूर्व राजा सामंतों के हा कठपुतली मात्र था। उसे सामंतों से धन मिलता था और वह उनकी सभी बातें स्वीकार करता था। वे यदि अपनी जनता पर अत्याचार भी करते थे तो राजा चुपचाप सहन करता था। परंतु व्यापार का वृद्धि से व्यापारी वर्ग का विकास हुआ जो राजा का सहयोगी था। इस वर्ग से धन प्राप्त करके राजा अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि कर सकता था। सेना के सबल होते ही सामंतवाद का अंत हुआ और राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ।

3. चर्च और सामंतों की शक्ति का हास – तृतीय श्रेणी को सुरक्षा चाहिए थी। यह सुरक्षा उन्हें केवल एक क्षेत्र में नहीं बल्कि सारे राज्य में चाहिए थी। उनका व्यापार दूर-दूर के क्षेत्रों में होता था। इसलिए इस वर्ग ने जी-जान से राजा की सहायता की। राजा सबल हो गया । सबल राजा ने चर्च और सामंतों की स्वेच्छाचारिता पर प्रहार किया और वह उनके बंधन से मुक्त हो गया। यदि ऐसा नहीं होता तो आधुनिक युग के आने में भी सैकड़ों वर्ष लग जाते ।

(ख) नगरों के उदय का महत्त्व-नगरों के उदय का महत्त्व इस प्रकार जाना जा सकता है –
1. सामंतों की दासता से मुक्ति – नगरों के उदय से सामंतों द्वारा लगाये गये बंधन ढीले पड़ गये। नगरों में धनी व्यापारी वर्ग रहता था। उन्होंने धन देकर नगरों को स्वतंत्र कराया। इन नगरों पर अब सामंतों या राजाओं का कोई प्रभाव न रहा।

2. स्वतंत्र वातावरण-इन नगरों में नागरिकों को पूरी स्वतंत्रता मिली। वे स्वतंत्रतापूर्वक सोच सकते थे और अपनी इच्छा अनुसार कोई भी कार्य कर सकते थे। इन स्वतंत्र विचारों ने अंधकार युग को समाप्त किया और आधुनिक युग लाने में सहयोग दिया।

प्रश्न 6.
धर्म-सुधारकों ने पद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक चर्च और पादरियों की किन रीतियों और प्रथाओं के विरुद्ध आपत्ति की।
अथवा
यूरोपीय धर्म-सुधार आंदोलन (प्रोटेस्टेंट लहर) के उत्थान के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रोटेस्टेंट ‘धर्म सुधार’ से अभिप्राय ईसाई धर्म की उस शाखा से है, जो रोमन कैथोलिक चर्च के रीति-रिवाजों के विरोध में आरंभ हुई। इसका जन्मदाता मार्टिन लूथर था। इस धर्म-सुधार आंदोलन के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे –

1. चर्च ने बहुत अधिक धन – संपत्ति इक्ट्ठी कर ली थी। पोप और उच्च पदों पर नियुक्त पादरी लोग भोग-विलास का जीवन व्यतीत करने लगे थे। इस कारण बहुत-से व्यक्ति इनसे घृणा करने लगे थे। यही बात धर्म-सुधार आंदोलन के उत्थान का एक प्रमुख कारण बनी।

2. चर्च में पादरियों के पदों को बेचा जाने लगा था। इसके परिणामस्वरूप लोग चर्च के विरुद्ध हो गए।

3. पोप तथा पादरी माफीनामे (दंडोमुक्तियाँ) बेंचते थे। लोगों को यह बात पसंद न थी। अतः उन्होंने चर्च के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई।

4. पोप जनता से अनेक प्रकार के कर तथा शुल्क वसूल करता था और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता था। इससे लोग चर्च के विरुद्ध हो गए।

प्रश्न 7.
लियोनार्दो-द-विंची की प्रतिभा पर नोट लिखिए।
उत्तर:
इटली का लियोनार्दो-द-विंची पुनर्जागरण काल की एक महानतम विभूति था। उसका जन्म 1452 ई० में हुआ। वह एक चित्रकार, मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, दार्शनिक, कवि एवं गायक सभी कुछ था। यद्यपि उसके चित्र थोड़े हैं, किंतु सभी अनुपम हैं। इन चित्रों में से ‘दि वर्जिन ऑफ दि रॉक्स’ तथा ‘मोनालिसा’ अद्वितीय कृतियाँ हैं। मिलान के गिा घर में चित्रित ‘दि लास्ट सपर’ विश्व के कलात्मक आश्चर्यों में गिना जाता है। उसने एक उड़न मशीन का चित्र बनाया जिसके आधार पर वह ऐसी मशीनें बनाना चाहता था। जिसके द्वारा आकाश में उड़ना संभव हो। ऐसी बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति संभवतः अभी तक पैदा नहीं हुआ।

प्रश्न 8.
मानवतावाद से तुम क्या समझते हो? पुनर्जागरण काल की कला और साहित्य में मानवतावाद के उदाहरण दो।
उत्तर:
पुनर्जागरण से पूर्व दार्शनिक मृत्यु के बाद के परिणामों पर सोच-विचार किया करते थे और वर्तमान जीवन को परलोक की तैयारी समझते थे। पुनर्जागरण से यह दृष्टिकोण बदल गया। अब विचारक मानव की वर्तमान समस्याओं पर विचार करने लगे। मानव के इस दृष्टिकोण को ‘मानवतावाद’ कहा जाता है। इतिहासकार पेट्रार्क को मानवतावाद का पिता स्वीकार किया आता है। मानवतावाद के लेखकों ने मानव को केंद्र-बिंदु माना और उसे ही दर्शाने का प्रयत्न किया।

मानवतावाद तथा पुनर्जागरण काल की कला-मानवतावाद का पुनर्जागरण की कला-कृतियों पर विशेष प्रभाव पड़ा । रेफल तथा माइकेल एंजिलो ने जो चित्र बनाए, वे भले ही धन से संबंधित थे, परंतु उनका आधार मानव था। उन्होंने अपनी मूर्तियों में जीसस को मानव शिशु के रूप में दिखाया। उन्होंने उनकी माता को वात्सल्यमयी मां के रूप में दर्शाया । इस काल की अन्य मानवतावादी रचनाओं में मोनालिसा, मेडोना आदि विश्व-विख्यात रचनाएँ सम्मिलित हैं।

मानवतावाद तथा पुनर्जागरण काल का साहित्य-मानवतावाद ने पुनर्जागरण काल के साहित्य को भी खूब प्रभावित किया । सेक्सपीयर, दाँते आदि साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का विषय ईश्वर को नहीं बल्कि मानव को बनाया । उन्होंने मानव की भावानाओं, शक्तियों तथा त्रुटियों की पूर्ण विवेचना की। इस काल की प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाओं में यूटोपिया, हैमलेट, डिवाइन कॉमेडी के नाम लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
मानवतावादियों ने मध्ययुग तथा आधुनिक युग के बीच किस प्रकार अंतर किया?
उत्तर:
मानवतावादी समझते थे कि वे अंधकार की कई शताब्दियों के बाद सभ्यता को नया जीवन दे रहे हैं। उनका मानना था कि रोमन साम्राज्य के टूटने के बाद ‘अंधकार युग’ शुरू हो गया था। मानवतावादियों की भाँति बाद के विद्वानों ने भी बिना कोई प्रश्न उठाए यह मान लिया कि यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के बाद ‘नये युग’ का उदय हुआ। ‘मध्यकाल’ का प्रयोग रोम साम्राज्य के पतन के बाद एक हजार वर्ष की समयावधि के लिए किया गया। उनका यह तर्क था कि ‘मध्ययुग’ में चर्च ने लोगों की सोंच को बुरी तरह जकड़ रखा था। इसलिए यूनान और रोमनवासियों का समस्त ज्ञान उनके दिमाग से निकल चुका था। मानवतावादियों ने ‘आधुनिक’ शब्द का प्रयोग पंद्रहवीं शताब्दी से आरंभ होने वाले के लिए किया।

मानवतावादियों और बाद के विद्वानों द्वारा प्रयुक्त काल क्रम (Periodisation) इस प्रकार था –
Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 10.
रिनेसा अथवा पुनर्जागरण से क्या अभिप्राय है? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
पुनर्जागरण ‘रिनेसा’ का हिंदी रूपांतर है। इसका अर्थ अथवा पुनर्जागृति है। पुनर्जागरण वास्तव में एक ऐसा आंदोलन था जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी राष्ट्र मध्य युग के अंधकार से निकल कर आधुनिक युग के प्रकाश में साँस लेने लगे। वे आधुनिक युग के विचारों और शैलियों से प्रभावित हुए । मानव ने स्वतंत्र रूप से विचार करना आरंभ किया जिससे साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में नवीन कीर्तिमान स्थापित हो गए।

विशेषताएँ-पुनर्जागरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  • इटली के नगर-राज्य पुनर्जागरण के प्रथम केंद्र बन गये।
  • नवीन कला शैली का जन्म हुआ।
  • वास्तुकला एवं साहित्य का विकास हुआ।
  • प्राचीन विधियों तथा ज्ञान को नया जीवन मिला।
  • अनेक नवीन नगरों का उदय हुआ।
  • मानव में स्वतंत्र चिंतन और मानवता का विकास हुआ।

प्रश्न 11.
पुनर्जागरण के दो प्रमुख कारण तथा तीन परिणाम लिखिए।
उत्तर:
कारण-पुनर्जागरण के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

  • मध्यकाल के अंत में नगरों का विकास हुआ। यहाँ का वातावरण स्वतंत्र था तथा लोग संपन्न थे। अतः इस वातावरण ने पुनर्जागरण के विचारों को प्रोत्साहित किया।
  • कुस्तुनतुनिया पर तुकों का अधिकार हो गया। अत: विद्वान इटली आ गए। इधर छापेखाने का आविष्कार हुआ। इससे पुनर्जागरण को बल मिला।

परिणाम –

  • पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप कला तथा साहित्य की कृतियों में मानवतावाद को प्राथमिकता दी गई।
  • विज्ञान के क्षेत्र में दिशासूचक यंत्र, सूक्ष्मदर्शी यंत्र, दूरबीन तथा अन्य खोजें हुई।
  • भूगोल के क्षेत्र में नवीन खोजें हुई। अमेरिका, भारत तथा कई अन्य देशों की खोज की गई।

प्रश्न 12.
कोपरनिकस तथा उसके ब्रह्मांड संबंधी विचारों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ईसाइयों की यह धारणा थी कि मनुष्य पापी है। इस बात पर वैज्ञानिकों ने एक अलग दृष्टिकोण द्वारा आपत्ति की। यूरोपीय विज्ञान के क्षेत्र में एक युगांतकारी परिवर्तन कोपरनिकस (1473-1543 ई.) के विचारों से आया। ईसाइयों को यह विश्वास था कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और इस कारण वह स्थिर है। यह ब्रह्मांड (Universe) का केंद्र है जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह (Celestial Planets) घूम रहे हैं। परंतु कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।

कोपरनिकस एक निष्ठावान ईसाई था। वह इस बात से भयभीत था कि उसकी इस नयी खोज के प्रति परम्परावादी ईसाई धर्माधिकारियों की घोर प्रतिक्रिया हो सकती है। यही कारण था कि वह अपनी पांडुलिपि ‘डि रिवल्यूशनिबस’ (De revolutionibus-परिभ्रमण) को प्रकाशित नहीं कराना चाहता था। जब वह अपनी मृत्यु-शैय्या पर पड़ा था तब उसने यह पांडुलिपि अपने अनुयायी जोशिम रिटिकस (Joachim Rheticus) को सौंप दी। परंतु उसके विचारों को ग्रहण करने में लोगों को थोड़ा समय लगा।।

प्रश्न 13.
कोपरनिकस के सौरमंडलीय विचारा को आगे बढ़ाने में किन-किन वैज्ञानिकों का योगदान रहा ओर क्या?
उत्तर:
कोपरनिकस के सौरमंडलीय विचारों को आगे बढ़ाने में कई वैज्ञानिकों का योगदान रहा –
1. खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर (Johannes Kepler, 1571-1630 ई.) ने अपने ग्रंथ कॉस्मोग्राफिकल मिस्ट्री (Cosmographical Mystery-खगोलीय रहस्य) में सौरमंडल के सूर्य-केंद्रित सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। इससे यह सिद्ध हुआ कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार पथ पर नहीं बल्कि दीर्घ वृत्ताकार (ellipses) पथ पर परिक्रमा करते हैं।

2. गैलिलियो गैलिली (1564-1642 ई.) ने अपने ग्रंथ ‘दि मोशन (The Motion, गति) में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की।

3. न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से विज्ञान को एक नई दिशा मिली।

प्रश्न 14.
‘वैज्ञानिक क्रांति’ क्या थी? इसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
विचारकों (वैज्ञानिकों) ने हमें बताया कि ज्ञान का आधार विश्वास न होकर अन्वेषण एवं प्रयोग है। जैसे-जैसे इन वैज्ञानिकों ने ज्ञान की खोज का मार्ग दिखाया वैसे-वैसे भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग अन्वेषण कार्य होने लगे। इतिहासकारों ने मनुष्य और प्रकृति के ज्ञान के इस नए दृष्टिकोण को वैज्ञानिक क्रांति का नाम दिया। परिणामस्वरूप संदेहवादियों और आस्तिकों के मन में सृष्टि की रचना के स्रोत के रूप में ईश्वर का स्थान प्रकृति लेने लगी। यहाँ तक कि जिन्होंने ईश्वर में अपना विश्वास बनाए रखा वे भी एक दूरस्थ ईश्वर की बात करने लगे।

उनमें यह विश्वास पनपने लगा कि ईश्वर भौतिक संसार में जीवन को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता है। इस प्रकार के विचारों को वैज्ञानिक संस्थाओं ने लोकप्रिय बनाया। फलस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र में एक नयी वैज्ञानिक संस्कृति की स्थापना हुई। 1670ई० में बनी पेरिस अकादमी तथा 1662 ई. में लंदन में गठित रॉयल सोसाइटी ने वैज्ञानिक संस्कृति के प्रसार में महत्त्वपूर्ण निभाई।

प्रश्न 15.
विगली पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विगली का जन्म 1484 ई० में स्विट्जरलैंड में हुआ था। उसने धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया था। लूथर की तरह वह भी क्षमा पत्रों का विरोधी था। उसने ज्यूरिख को अपना केंद्र बनाया और धर्म को नए ढंग से परिभाषित करना आरंभ किया। 1525 ई. में उसने रोम से संबंध तोड़कर एक रिफाई चर्च (Reformed Church) की स्थापना की। उसने बाइबिल को धर्म का एक मात्र स्रोत बताया और पादरियों द्वारा विवाह न करने का डटकर विरोध किया।

अनेक लोग कट्टर कैथोलिक बने रहे। विगली ने इन लोगों को बलात् प्रोटेस्टेंट बनाने का प्रयास किया जिसके कारण स्विट्जरलैंड में गृह युद्ध छिड़ गया। अंत में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार धर्म के संबंध में अंतिम अधिकार स्थानीय सरकारों को मिल गया । इस प्रकार आज भी जर्मनी की भांति स्विट्जरलैंड में भी कैथोलिक एवं प्रोटेस्टैंट दोनों ही हैं।

प्रश्न 16.
मानवतावादी संस्कृति ने मनुष्य की एक संकल्पना प्रस्तुत की। वह क्या थी?
उत्तर:
मानवतावादी संस्कति से मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर हआ। इटली के निवासी अब भौतिक संपत्ति, शक्ति और गौरव से बहुत अधिक आकृष्ट हुए। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि वे अधार्मिक बन गए। वेनिस के मानवतावादी फ्रेनचेस्को बरबारो (Francesco Barbaro) ने अपनी एक पुस्तिका में संपत्ति अधिग्रहण करने को एक विशेष गुण कहकर उसका समर्थन किया। लोरेंजो वल्ला (I renzo Valla) जिसका वह विश्वाः था कि इतिहास का अध्ययन मनुष्य को पराकाष्ठा का जीवन व्यतोत करने के लिए प्रेरित करता है, ने अपनी पुस्तक ‘आनप्लेजर’ में ईसाई धर्म की भोग-विलास पर लगाई गई रोक की आलोचना की।

इस समय लोग शिष्टाचार का भी पूरा ध्यान रखते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को विनम्रता से बोलना चाहिए, ठीक ढंग से कपड़े पहनने चाहिए और सभ्य व्यवहार करना चाहिए। मानवतावादी के अनुसार व्यक्ति कई माध्यमों से अपने जीवन को आदर्श बना सकता है। इसके लिए शक्ति और संपत्ति का होना आवश्यक नहीं है।

प्रश्न 17.
मानवतावाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
पुनर्जागरण की एक मूल विशेषता मानवतावाद थी। मानवतावाद का अर्थ है-मनुष्यों में रुचि लेना तथा उसका आदर करना । मानवतावाद मनुष्य की समस्याओं का अध्ययन करता है, मानव जीवन के महत्त्व को स्वीकार करता है तथा उसके जीवन को सुधारने एवं समृद्ध बनाने का प्रयास करता है। पुनर्जागरण काल में परलोक की अपेक्षा इहलोक को महत्व दिया गया जिसमें हम रहते हैं, और यही मानवतावाद है। मानवतावाद के समर्थक मानवतावादी कहलाए।

पैट्रार्क अग्रणी मानवतावादी था। उसने अंधविश्वासों तथा धर्माधिकारियों की जीवन प्रणाली की आलोचना की। उसने परलोक चिंतन की अपेक्षा लौकिक जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने पर बल दिया। इटली के नागरिकों ने मानवतावाद का समर्थन इसलिए किया क्योंकि वे धार्मिक बंधनों के परिणामस्वरूप अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों को विकसित करने में असमर्थ थे। वास्तव में धर्म-निरपेक्षता की भावना मानवतावाद की मुख्य विचारधारा थी।

प्रश्न 18.
पश्चिमी रोम साम्राज्य के पतन के पश्चात् किन परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता पहुंचाई?
उत्तर:
पश्चिमी रोम साम्राज्य के पतन के बाद इटली के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक केंद्रों का विनाश हो गया। इस समय कोई भी एकीकृत सरकार नहीं थी। रोम का पोप अपने राज्य में अवश्यक सार्वभौम था, परंतु पूरे यूरोप की राजनीति में वह इतना मजबूत नहीं था। काफी समय से पश्चिमी यूरोप के क्षेत्र सामंती संबंधों के कारण नया रूप ले रहे थे और लातीनी चर्च के नेतृत्व में उनका एकीकरण हो रहा था।

पूर्वी यूरोप में बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन के अधीन बदलाव आ रहे थे। उधर कुछ और पश्चिम में इस्लाम एक साझी सभ्यता का निर्माण कर रहा था। इटली कमजोर देश था। यह अनेक टुकड़ों में बँटा हुआ था। इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता पहुँचाई।

प्रश्न 19.
इटली के नगरों को नया जीवन किस प्रकार मिला?
उत्तर:
बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के बीच व्यापार की वृद्धि से इटली के तटवर्ती बंदरगाह फिर से जीवित हो उठे । बारहवीं शताब्दी में जब मंगोलों ने चीन के साथ ‘रेशम मार्ग’ द्वारा व्यापार आरंभ किया तो पश्चिमी यूरोप के देशों के व्यापार को बढ़ावा मिला । इसमें इटली के नगरों ने मुख्य भूमिका निभाई। ये नगर स्वयं को स्वतंत्र नगर राज्यों का एक समूह मानते थे। वेनिस और जनेवा इटली के दो सबसे महत्त्वपूर्ण नगर थे।

वे यूरोप के अन्य क्षेत्रों से इस दृष्टि में अलग थे कि यहाँ पर धर्माधिकारी तथा सामंत वर्ग राजनीति में शक्तिशाली नहीं थे। धनी व्यापारी तथा महाजन नगर के शासन में सक्रिय भाग लेते थे। इससे नागरिकता की भावना पनपने लगी। यहाँ तक कि जब नइ नगरों का शासन सैनिक तानाशाहों के हाथ में था, तब भी इन नगरों के निवासी अपने आ को यहाँ का नागरिक कहने में गर्व अनुभव करते थे।

प्रश्न 20.
पुनर्जागरण काल में चित्रकला के विकास पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में जिस कला का सर्वाधिक विकास हुआ वह थी चित्रकला यह धार्मिक प्रभावों से मुक्त हुई और चित्रकारों ने विषयों का चुनाव सीधे जीवन से किया। इस चित्रकला का सर्वाधिक विकास इटली में हुआ। पलास्टर और लकड़ी के स्थान पर कैनवास का प्रयोग होने लगा। इस समय के महान चित्रकारों में:-गियोयो में से कियो, माइकल एन्जेलो एवं लियोनार्डो द विंची प्रमुख था। माईकल ऐन्जेलो ने ‘दि पाइटा’ नामक चित्र में मां की वात्सल्यता को उभारा तो विंची ने मोनालिसा एवं ‘लास्ट सपर’ जैसे चित्रों की जीवंत चित्रकारी के लिये रेखा ज्ञान, नरकंकालों एवं शरीर क्रिया विज्ञान का अध्ययन किया।

प्रश्न 21.
कॉपरनिकस की खोज का महत्व बतावें।
उत्तर:
कॉपरनिकस (1473-1543) ने घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। यह एक क्रांतिकारी विचारधारा थी जो पूर्व की मान्यताओं के विपरीत थी। ईसाईयों का यह विश्वास था कि पृथ्वी स्थिर है, जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूमते हैं। कॉपरनिकस के सिद्धान्त के पश्चात् केपलर (1571-1630 ई०) और गैलिलियो ने भी इस सिद्धान्त के तथ्यों को सिद्ध किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मानवतावाद के उदय तथा विकास में विश्वविद्यालयों के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में विश्वविद्यालय सर्वप्रथम इटली के शहरों में स्थापित हुए। ग्याहरवीं शताब्दी में पादुआ और बोलोना (Bologna) विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र थे। इसका कारण यह था कि इन नगरों के मुख्य क्रियाकलाप व्यापार वाणिज्य संबंधी थे। इसलिए वकीलों और नोटरी की बहुत अधिक आवश्यकता होती थी। ये लोग नियमों को लिखते थे, व्याख्या करते थे और समझौते तैयार करते थे। इनके बिना बड़े पैमाने पर व्यापार करना संभव नहीं था।

परिणामस्वरूप कानून को रोमन संस्कृति के संदर्भ में पड़ा जाने लगा। फाचेस्को पेट्रार्क (3041348 ई.) इस परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है। पेट्रार्क के लिए पुराकाल एक विशिष्ट सभ्यता थी जिसे प्राचीन यूनानियों और रोमानों के वास्तविक शब्दों के माध्यम से ही अच्छी तरह समझा जा सकता था। अतः उसने इस बात पर बल दिया कि इन प्राचीन लेखकों की रचनाओं का बारीकी से अध्ययन किया जाना चाहिए।

नया शिक्षा कार्यक्रम इस बात पर आधारित था कि अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षा से नहीं सीख सकते । इस नयी संस्कृति को उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने ‘मानवतावाद’ का नाम दिया । पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभ में मानवतावादी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकार शास्त्र, कविता, इतिहास, नीति दर्शन आदि विषय पढ़ाते थे। मानवतावाद को अंग्रेजी में ‘यूमेनिटिज्म’ कहते हैं ‘ह्यूमेनिटिज’ शब्द लातीनी शब्द ‘ह्यूमैनिटास’ से बना है। कई शताब्दियों पहले रोम के वकील एवं निबंधकार सिसरो (Cicero, 106-43 ई० पू०) ने इसे ‘संस्कृति’ के अर्थ में लिया था। इस प्रकार मानवता पद को ‘मानवतावादी संस्कृति’ कहा गया।

इन क्रांतिकारी विचारों ने अनेक विश्वविद्यालयों का ध्यान आकर्षित किया। इनमें एक नव स्थापित विश्वविद्यालय फ्लोरेंस भी था जो पेट्रार्क का स्थायी नगर-निवास था। इस नगर ने तेरहवीं शताब्दी के अंत तक व्यापार या शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष उन्नति नहीं की थी। परंतु पंद्रहवीं शताब्दी में सब कुछ बदल गया।

किसी भी नगर की पहचान उसके महान् नागरिकों तथा उसकी संपन्नता से बनती है। फ्लोरेंस की प्रसिद्धि में दो लोगों का बड़ा हाथ था। ये व्यक्ति थे-दाँते अलिगहियरी (Dante Alighieri) तथा कालकार जोटो (Giotto)। दाँते ने धार्मिक विषयों पर। लिखा और जोटो ने जीते-जागते रूपचित्र (Portrait) बनाए। उनके द्वारा बनाए रूपचित्र काफी सजीव थे। इसके बाद फ्लोरेंस कलात्मक कृतियों का सृजन केंद्र बन गया और यह इटली के सबसे बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा।

‘रिसा व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग, प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों और वह अनेक कलाओं में कुशल हो। पुनर्जागरण काल में अनेक महान् लोग हुए जो अनेक रुचियाँ रखते थे और कई कलाओं में कुशल थे। उदाहरण के लिए एक ही व्यक्ति विद्वान, कूटनीतिज्ञ, धर्मशास्त्रज्ञ और कलाकार हो सकता था।

प्रश्न 2.
पुनर्जागरण से क्या तात्पर्य है? इसकी मुख्य विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण ‘रिनेसा’ का हिंदी रूपांतर है। इसका अर्थ पुनर्जन्म है। पुनर्जागरण वास्तव में एक ऐसा आंदोलन था जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी राष्ट्र मध्य युग के अंधकार से निकलकर आधुनिक युग के प्रकाश में सांस लेने लगे। वे आधुनिक युग के विचारों और शैलियों से प्रभावित हुए। मानव ने स्वतंत्र रूप से विचार करना आरंभ किया जिससे साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में नवीन कीर्तिमान स्थापित हुए।

पुनर्जागरण की विशेषताएँ –
1. तर्क की प्रधानता – पुनर्जागरण ने मध्यकालीन धर्म तथा परमपराओं में बंधे समाज को मुक्त किया और तर्क को बढ़ावा दिया। इस दिशा में अरस्तु के तर्कशास्त्र ने मार्गदर्शन किया। पेरिस, बोलोने, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज आदि विश्वविद्यालयों ने तर्क की विचारधारा का महत्त्व बढ़ाया। अब उसी बात को सही स्वीकार किया जाने लगा जो तर्क की कसौटी पर सही प्रमाणित हो।

2. प्रयोग का महत्त्व – रोजर बेकर (1214-1294 ई.) के अनुसार हम ज्ञान को दो प्रकार से प्राप्त करते हैं-वाद-विवादों द्वारा तथा प्रयोग द्वारा। परंतु वाद-विवाद से प्रश्न का अंत हो जाता है और हम भी इस पर विचार करना बंद कर देते हैं। इससे न तो संदेह समाप्त होता है और न ही मस्तिष्क को संतुष्टि प्राप्त होती है। यह बात तब-तक नहीं होती जब-तक कि अनुभव एवं प्रयोग द्वारा सत्य की प्राप्ति नहीं हो पाती । रोजर बेकर के इन विचारों ने प्रयोग एवं प्रेक्षण को बढ़ावा दिया।

3. मानववाद – पुनर्जागरण की एक मूल विशेषता मानववाद थी। मानववाद का अर्थ है-मनुष्य में रुचि लेना तथा इसका आदर करना। मानववाद मनुष्य की समस्याओं का अध्ययन करता है, मानव जीवन के महत्त्व को स्वीकार करता है तथा उसके जीवन को सुधारने एवं समृद्ध बनाने का प्रयास करता है। पुनर्जागरण काल में परलोक की अपेक्षा इहलोक को महत्त्व दिया गया जिसमें हम रहते हैं और यही मानववाद है।

4. सौंदर्य की उपासना – पुनर्जागरण की एक अन्य विशेषता थी-सौंदर्य की उपासना। कलाकारों ने अपनी कतियों में मनष्य की मोहिनी 7.1 प्रस्तुत करने का प्रयास किया। मालसा की मुग्ध करने वाली मुस्कान इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण का जन्म सर्वप्रथम इटली में ही क्यों हुआ?
उत्तर:
पुनर्जागरण का उदय एवं प्रसार 1350 ई० से 1550 ई० के बीच इटली में हुआ। यहाँ से इसका प्रसार जर्मनी, इंग्लैंड, फ्राँस तथा यूरोपीय राष्ट्रों में हुआ। इटली में पुनर्जागरण के उदय के मुख्य कारण इस प्रकार थे –

(क) इटली एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। इटली के इस बढ़ते व्यापार तथा इसकी समृद्धि ने पुनर्जागरण की प्रवृत्तियों को बल प्रदान किया।
1. देश में मिलान, नेपल्स, फ्लोरेंस, वेनिस आदि नगरों की स्थापना हुई। इन नगरों के व्यापारी बाल्कन प्रायद्वीप, पश्चिमी एशिया, बिजेंटाइन तथा मिस्र की यात्रा करते थे। यहाँ उनकी भेंट ईरानी व्यापारियों से होती रहती थी। इस संपर्क और विचार-विनिमय से एक-दूसरे के विचारों को अपनाने की क्षमता :त्पन्न हुई। इसके अतिरिक्त अधिकांश संग्रहालय, सार्वजनिक पुस्तकालय और नाट्यशालाएँ नगरों में ही स्थापित की गईं, गाँवों में नहीं। इससे इटली के सांस्कृतिक जीवन को नवीन दिशा मिली।

2. इटली की समृद्धि ने धनी व्यापारिक मध्यम वर्ग को जन्म दिया। इस वर्ग ने सामंतों तथा पोप की परवाह करना बंद कर दिया और इसने मध्यकालीन मान्यताओं का उल्लंघन किया । इससे इटली में पुनर्जागरण की भावना को बल मिला।

3. अनेक व्यापारियों ने सम्राटों, साहित्याकारों तथा कलाकारों को प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप साहित्यकारों तथा कलाकारों को स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला। अकेले फ्लोरेंस नगर ने ही असंख्य कलाकारों और साहित्यकारों को आश्रय दिया। दाँते, पेट्रार्क, बुकासियों, एंजेली, लियोनादी, जिबर्टी, मैक्यावली आदि लेखक एवं कलाकार सभी इसी नगर में उभरे थे। अतः स्पष्ट है कि धन की वृद्धि ने कला तथा कलाकारों की शिक्षा को पुनर्जागरण की ओर प्रवाहित कर दिया।

(ख) इटली में पुनर्जाकरण के पनपने का एक अन्य कारण यह था कि यह प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थान रहा था। इटली के नगरों में विद्यमान प्राचीन रोमन सभ्यता के अनेक स्मारक आज भी लोगों को पुनर्जागरण की याद मिलाते हैं। वे इटली को प्राचीन रोम की भांति महान् देखना चाहते थे। इस तरह प्राचीन रोमन संस्कृति पुनर्जागरण के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध

(ग) रोम सारे पश्चिमी यूरोपीय ईसाई जगत् का केंद्र था। पोप यहीं निवास करता था। कुछ पोप पुना॥रण की भावना से प्रेरित होकर विद्वानों को रोम लाए और उनसे यूनानी पांडुलिपियों का लातीनी भाषा में अनुवाद करवाया। पोप निकोलस पंचम ने वैटिकन पुस्तकालय की स्थापना की। उसने सेंट पीटर्स का गिरजाघर भी बनवाया। इन कार्यों का प्रभाव अन्य स्थानों पर भी पड़ना स्वाभाविक था।

(घ) रानीतिक दृष्टि से इटली पुनर्जागरण के लिए उपयुक्त था। पवित्र रोम साम्राज्य के पतन के साथ-साथ उत्तरी इटली में अनेक स्वतंत्र नगर-राज्यों का उदय हो रहा था। इसके अतिरिक्त इटली में सामंती प्रथा अधिक दृढ़ नहीं थी। परिणामस्वरूप इन नगर-राज्यों के स्वतंत्र एवं स्वछंद वातावरण ने वहाँ क नागरिकों में नवीन विचारों को विकसित किया।

(ङ) मध्यकालीन यूरोप में शिक्षा पर धर्म का प्रभाव था, परंतु इटली में व्यापार के विकास के कारण शिक्षा धर्म के बन्धनों में मुक्त थी। यहाँ पाठ्यक्रम में व्यावसायिक ज्ञान, भौगोलिक ज्ञान आदि को उपयुक्त स्थान प्राप्त था। परिणामस्वरूप विज्ञान तथा तर्क को बल मिला।

(च) 1453 ई० में तुर्को ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। वहाँ के अधिकांश यूनानी विद्वान, कलाकार और व्यापारी भाग कर सबसे पहले इटली के नगरों में आए और यहीं पर बस गए। ये विद्वान अपने साथ प्राचीन साहित्य को अनेक अनमोल पांडुलिपियाँ भी लाये । कुछ विद्वानों ‘ने इटली के विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य करके नवीन चेतना जागृत की।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण की अग्रणी विभूतियाँ कौन थीं? कला, साहित्य तथा विज्ञान के क्षेत्रों में पुनर्जागकरण को विभिन्न उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जाकरण के काल में अनेक महान् विभूतियों का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी प्रतिभा तथा आविष्कारों से, साहित्य तथा विज्ञान को नये आयाम प्रदान किए। इनमें से प्रमुख विभूतियों तथा उनकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है –

1. पेटॉर्क – पेट्रॉर्क इटली का एक महान् लेखक तथा कवित था। उसे रोम के सम्राट ने 1341 ई० में राजकवि की उपाधि से विभूषित किया। उसे मानववाद का प्रतीक स्वीकार किया जाता है। उसने तत्कालीन समाज की आलोचना की और प्रचलित शिक्षा-प्रणाली पर तीखे प्रहार किए।

2. माइकल एंजिलो – यह पुनर्जागरण काल का एक महान् कलाकार था। यह चित्रकार तथा उच्च कोटि का मूर्तिकार था। उसकी चित्रकला की सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ रोम के गिरजाघर सिस्तीन की छत में दिखाई देती हैं। उसका एक चित्र ‘दि फॉल ऑफ मैन’ विश्वविख्यात है। उसे मानवतावाद का दूत स्वीकार किया जाता है।

3. रफेल – इटली का यह महान् चित्रकार, माइकेल एंजिली तथा लियोनार्दो-द-विंची का समकालीन था। उसकी सर्वप्रथम कृति ईसा की माता मेंडोना का चित्र है जो आज भी रोम की शोभा है। उसने ईसाई धर्म से संबंधित विषयों पर अनेक चित्र बनाए और गिरजाघरों तथा महलों की दीवारों को उपदेशात्मक विषयों से सुसज्जित किया।

4. टॉमस मोर – टॉमस मोर का जन्म लंदन में हआ था। वह इंग्लैंड का चांसलर भी रहा। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में एक आदर्श समाज का चित्र प्रस्तुत किया। टॉमस मोर पर इंग्लैंड की सरकार ने मुकदमा चलाया था और 1535 ई० में उसे फाँसी दे दी गई थी।

5. मेकियावली – इटली के नगर फ्लोरेंस के इन निवासी को आधुनिक राजनीति दर्शन का पिता माना जाता है। उसने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक ‘दि प्रिंस (The Prince) में राज्य की नई कल्पना का चित्र प्रस्तुत किया है। इसमें उसने शासन करने की कला का वर्णन भी किया है। उसके अनुसार धर्म और राजनीति का कोई संबंध नहीं है। उसके विचारों का आधुनिक शासन-प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ा।

6. लियोनार्दो-द-विंची – इटली का यह महापुरुष बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी था। वह चित्रकार, मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, दार्शनिक, कवि और भी सभी कुछ था। उसने हवाई जहाज बनाने का भी प्रयत्न किया। उसके चित्रों में ‘दि लास्ट सपर’ चित्र बहुत प्रसिद्ध है।

7. गुटेनबर्ग – वह जर्मनी के मेंज नगर का निवासी था। प्रारंभ में वह हीरे और दर्पणों पर पॉलिश किया करता था। उसने मुद्रण के लिए आवश्यक वस्तुओं तथा कल पुर्जा का आविष्कार किया। वह प्रथम व्यक्ति था जिसने 1450 ई० के लगभग छापाखाना तैयार किया।

8. मार्टिन लूथर – मार्टिन लूथर जर्मनी का निवासी था। 1517 ई० में उसने रोम की धार्मिक यात्रा की। यहाँ उसने पोप और चर्च की बुराइयाँ देखीं। वापस आकर उसने इन बुराइयों के विरुद्ध सुधार आंदोलन आरंभ किया। इसे आंदोलन के परिणामस्वरूप ईसाई धर्म की प्रोटेस्टेंट शाखा का प्रचलन हुआ। उसने जर्मन भाषा में बाईबिल का अनुवाद किया। चर्च के विरुद्ध लिखे गए ग्रंथ में उसकी पुस्तक
‘टेबल टॉक’ अति प्रसिद्ध है। उसने मुक्ति पत्रों का घोर विरोध किया।

9. जॉन वाइक्लिफ – वह इंग्लैड का रहने वाला था। ‘सुधार आंदोलन’ का ‘प्रभात का सितारा’ कहा जाता है, क्योंकि उराने लूथर से पूर्व ईसाई धर्म में सुधार के प्रयत्न किए। उसने अपने विद्यार्थियों की सहायता से इ. बेल का अनुवाद अपनी मातृभाषा में किया। चर्च ने उसे ‘नास्तिक’ घोषित किया और उसकी कई रचनाएँ जला दी गई।

10. गैलीलियों – गैलीलियो का जन्म इटली के नगर पीसा में हुआ। वह एक उच्च कोटि का गणितज्ञ था। 1609 ई० में उसने दूरबीन का आविष्कार किया जिसके परिणामस्वरूप सामुद्रिक यात्राएँ सरल बन
गई। वह उन पहले व्यक्तियों में से था जिन्होंने घोषणा की कि पृथ्वी एक ग्रह है जो सूर्य के चारों ओर घूमती है।

11. कोपरनिकस – यह पोलैंड का निवासी था। वह नक्षत्र विद्या का ज्ञाता था। उसका मुख्य योगदान आकाश के विभिन्न ग्रहों की गतियों की जानकारी देना था। उसने यह बताया कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।

12. दाँते – यह इटली का महानतम् कवि था। उसे इतिहास में ‘दस नीरव शताब्दियों की वाणी’ कहा जाता है। उसने सेना में भी कार्य किया था। वह न्यायाधीश भी रहा। उसने जीवन में बहुत कष्ट झेला। उन्हीं यातनाओं ने उसे श्रेष्ठ कवि बना दिया। ‘डिवाइन कॉमेडी’ उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसमें दाँते ने स्वर्ग और नरक की काल्पनिक यात्रा का वर्णन किया है।

13. जॉन हस – वह प्राग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था। उसने चर्च की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई। परिणामस्वरूप उसे पोप के आदेशानुसार जीवित जला दिया गया।

14. फ्रांसिस बेकिन – फ्रांसिस बेकिन अंग्रेजी राजनीतिज्ञ तथा साहित्यकार था। वह अपने ‘श्रेष्ठ निबंधों के लिए विश्वविख्यात है।

15. हार्वे – हार्वे इंग्लैंड का इंग्लैंड का रहने वाला था। उसने 1610 ई० में इस बात का वर्णन किया कि रक्त किस प्रकार दिल से शरीर के सब भागों में जाता है और फिर लौलकर दिल में आता है।

16. वेसिलियस – यह बेज्लियम का रहने वाला था। उसने पहली बार मानवीय शरीर का पूर्ण अपनी पुस्तक में किया । पुस्तक का नाम था-De Humani Corporis Fabrica.

17. सर्वेतम – सर्वेतस स्पेन का रहने वाला था। वह एक महान् योद्धा और सफल लेखक था। उसकी रचित Don Quixote विश्व की महानतम् रचनाओं में गिनी जाती है और इसका लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस पुस्तक में मध्यकालीन सामंतों की वीर गाथाओं का वर्णन है।

प्रश्न 5.
16वीं तथा 17वीं शताब्दी के दौरान हुए धर्म-सुधार (प्रोटेस्टेंट) आंदोलन के कारणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
धर्म – सुधार आंदोलन से हमारा अभिप्राय उस आंदोलन से है जिसे जर्मनी के मार्टिन लूथर ने रोमन चर्च में प्रचलित अनुचित रीति-रिवाजों के विरोध में चलाया। इस आंदोलन के समर्थकों ने प्रष्ट परंपराओं को समाप्त करके सुधरी हुई परंपरा स्थापित करने का प्रयत्न किया। उन्होंने रोमन चर्च से पृथक होकर एक नए प्रोटेस्टेंट चर्च की स्थापना की। इस प्रकार ईसाई धर्म के अनुयायी दो गुटों में विभाजित हो गए-कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट। धर्म सुधार आंदोलन पर्पनी से यूरोप के अन्य देशों में भी फैल गया । इसे स्विट्जरलैंड में विगली तथा फ्रांस में काल्विन ने आ गे बढ़ाया।

कारण – धर्म सुधार आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे –
1. मध्यकाल में रोमन कैथोलिक चर्च पश्चिमी यूरोप में अपना प्रभुत्व जमाए हुए था। इसमें सर्वोच्च स्थान पोप का था। वह यूरोप की समस्त ईसाई जनता का नेतृत्व करता था। चर्च की आपर शक्ति के कारण इसमें कई दोष आ गए थे। पुनर्जागरण के फलस्वयप सामान्य ज्ञान और विवेक के आधार पर जनता का चर्च में विश्वास कम होने लगा। लोग पूजा-पाठ का चर्च के संगठन की आलोचना करने लगे।

2. पोप की शक्ति असीम थी। वह विभिन्न देशों में पादरियों की नियुक्ति करता था। चर्च की अपनी अलग अदालत थी। चर्च के पदाधिकारी राज्य के नियमों से मुक्त थे। पोप राज-कार्यों में हस्तक्षेप किया करता था। इसलिए राजा पोप से मुक्त होने के लिए किसी अवसर की खोज में थे।

3. राष्ट्रीय राज्यों के उदय के साथ राजाओं की शक्ति बढ़ी। वे पोप के अंतर्राष्ट्रीय अधिकारों पर अंकुश चाहते थे। इसलिए राजाओं ने धर्म सुधार आंदोलन को गति दी।

4. व्यापारी वर्ग भी चर्च के विरुद्ध था। वे चर्च की विपुल संपत्ति का लाभ उठाना चाहते थे। अतः उन्होंने चर्च के विरुद्ध राजाओं का समर्थन किया।

5. पादरी नैतिक रूप से पतन की ओर अग्रसर थे। अत: चर्च में जनता की आस्था कम होने लगी थी। चर्च जन-साधारण से अनेक प्रकार के कर और शुल्क वसूल करता था। यह धन देश के बाहर जाता था। सबसे अधिक भूमि का स्वामी चर्च ही था। चर्च को कर देना पाप समझा जाता था। पश्चिम यूरोप में चर्च की जागीरों में उनके कर्मचारी आतंक मचाते थे। अतः जनता भी कॅथोलिक चर्च के विरुद्ध आवाज उठाने लगी।

6. धर्म सुधार आंदोलन का मूल कारण जनता में पुनर्जागरण का प्रसार ही था। इस युग में प्रचलित मान्याताओं तथा विश्वासों का तर्क की कसौटी पर परीक्षण किया गया। तर्क की कसौटी पर पोष तथा पादरियों के अधिकार तथा व्यवहार खरे नहीं उतरे। अतः धार्मिक दोषों का विरोध होना स्वाभाविक ही था।

प्रश्न 6.
धर्म सुधार आंदोलन के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
धर्म सुधार आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम निकले –
1. सामाजिक परिणाम – इस आंदोलन के कारण अंधविश्वासों और आडंबरों का अंत हुआ। साधारण नागरिक को बाइबिल का अध्ययन करने की सुविधा प्राप्त हो गई। वैज्ञानिकों को भी अपने मध्यकाल में स्वतंत्रता मिली। चर्च की संपत्ति का किसानों तथा मध्य वर्ग में वितरण होने लगा और लोग चर्च के कर-भार से मुक्त हो गए।

2. कैथोलिक धर्म में सुधार आंदोलन – कैथोलिक धर्म में अनेक सुधार हुए। कैथोलिक चर्च में सुधार के लिए ट्रेंट में एक परिषद् बुलाई गई। इसकी बैठकें अठारह साल तक चली। पोप की प्रधानता और उसके चर्च तथा धर्म ग्रथों की व्याख्या के अधिकार स्वीकार किए गए। इबिल का लेटिन में अनुवाद भी प्रामाणिक माना गया। चर्च ने क्षमा-पत्र बेचना बंद कर दिया। चर्च के अधिकारियों के प्रशिक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाया गया।

3. गजनीतिक परिणाम – राजनीतिक जीवन में चर्च का प्रभाव कम हुआ। ग तरह राजाआ का शक्ति बढ़ी। पोप का बाहय हस्तक्षेप समाप्त हो गया। इस प्रकार राष्ट्रीय राज्यों के निर्माण में बड़ा योगदान मिला।

4. वाणिज्य तथा व्यापार को प्रोत्साहन – पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप सामंतवादी व्यवस्था का अंत हो गया तथा व्यापार की प्रगति हुई। व्यापार की प्रगति के कारण एक समृद्ध मध्यम वर्ग का उदय हुआ।

5. राष्ट्रीय भाषा तथा साहित्य का प्रसार – धर्म सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप लोक भाषाओं तथा साहित्य का विकास हुआ। मार्टिन लूथर ने बाइबिल का अनुवाद जर्मन भाषा में किया। धर्म संबंधी लेख उसने जर्मन भाषा में प्रकाशित कराए। अन्य देशों में भी धर्म का प्रचार वहाँ की लोकभाषा में ही किया गया। जो प्रतिष्ठा कभी लैटिन भाषा को प्राप्त थी, वह अब लोक भाषाओं को मिलने लगी।

प्रश्न 7.
प्रति सुधार आंदोलन से क्या तात्पर्य है? वह कैथोलिक चर्च में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में कहाँ तक सफल रहा?
उत्तर:
चर्च तथा पोप की असीमित शक्ति और पोप तथा पादरियों के आडंबरपूर्ण कार्यों के विरुद्ध धर्म सुधार आंदोलन चला था। फलस्वरूप एक नए सुधारवादी धर्म (प्रोटेस्टेंट) का उदय हुआ। आरंभ में पोप तथा चर्च सुधारवादी आंदोलन के प्रति उदासीन रहे। परंतु जब इस आंदोलन ने जोर पकड़ा तो पोप को अपनी बेटियों का अनुभव हुआ। उसने अपने चर्च में सुधार लाने के लिए अपनी ओर से एक आंदोलन चलाया । इस आंदोलन को प्रति सुधार आंदोलन अथवा काउंटर रिफॉर्मेशन कहा जाता है। कैथोलिक चर्च की बुराइयों को दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए

1. प्रति सुधार आंदोलन ने कैथोलिक चर्च की सर्वोच्च सत्ता को पुनः स्थापित करने के लिए तीन तरफा प्रयास किया। 1545 ई० में पोप पाल तृतीय ने ट्रेंट की परिषद् (Council of Trent) बुलाई। प्रोटेस्टेंटवाद से निपटने के तरीकों पर विचार किया गया। इस उद्देश्य से प्रोटेस्टेंटवादियों तथा कैथोलिक के बीच सैद्धांतिक झगड़ों को समाप्त करने के निर्णय लिया गया। इस परिषद् ने चर्द की प्रशासनिक बुराइयों को समाप्त करने तथा अनैतिक कार्यों पर रोक लगाने का निर्णय भी लिया। इसके अतिरिक्त इस परिषद् ने कुछ पुस्तकों की एक सूची तैयार करवाई। कैथोलिकों को इन पुस्तकों को पढ़ाने के लिए मना कर दिया गया।

2. धर्म प्रचारकों की एक संस्था स्थापित की गई। ये धर्म प्रचारक जेसुइट कहलाए। इस संगठन का नेता लोयोला (Loyola) नामक एक स्पेनिश था।

3. कैथोलिक चर्च ने अपनी इंकविजिशन (चर्च की अदालत) नामक संस्था की पुनः स्थापना की। इन प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भले ही समस्त यूरोप को पोप की सत्ता के अधीन नहीं लाया जा सका, तो भी ये प्रयास प्रोटेस्टेंटवाद के और अधिक प्रसार को रोकने में सफल रहे।

प्रश्न 8.
मानवतावादी विचारों का प्रचार किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
मानवतावादी अपनी बात लोगों तक तरह-तरह से पहँचाते थे। यद्यपि विश्वविद्यालय में मुख्य रूप से कानून, आयुर्विज्ञान और धर्मशास्त्र ही पढ़ाए जाते थे फिर भी धीरे-धीरे मानवतावादी विषय भी स्कूलों में पढ़ाये जाने लगे। ऐसा केवल इटली में ही नहीं, बल्कि यूरोप के अन्य देशों में भी हुआ। पुनर्जागरण काल में मानवतावादी विचारों के प्रसार में केवल औपचारिक शिक्षा ने ही योगदान नहीं दिया। इसमें कला, वास्तुकला और साहित्य ने भी प्रभावी भूमि निभाई।

नए कलाकारों को पहले के कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्रों से प्रेरणा मिली। रोमन संस्कृति के भौतिक अवशेषों की उतनी ही उत्कंठा के साथ खोज की गई जितनी कि प्राचीन ग्रंथों की। रोम साम्राज्य के पतन के एक हजार वर्षों बाद भी प्राचीन राम और उसके वीरान नगरों के खंडहरों से कलात्मक वस्तुएँ प्राप्त हुई। शताब्दियों पहले बनी पुरुषों एवं नियों की संतुलित मूर्तियों ने इतालवी वास्तुविदों को उस परंपरा को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। 1416 ई. में दोनातल्लो (Donatello, 1386-1466) ने सजीव मूर्तियाँ बनाकर एक नयी परंपरा स्थापित की।

प्रश्न 9.
चित्रकारों ने इतालवी कला को यथार्थवादी रूप कैसे प्रदान किया?
उत्तर:
कालकारों को मूल आकृति जैसी सटीक मूर्तियाँ बनाने की चाह को वैज्ञानिकों के कार्यों ने और अधिक प्रेरित किया। नर-कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशाला में गए। बेल्जियम मूल के आंडीयस बेसेलियम (1514-64 ई.) पादुआ

प्रश्न 10.
ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद कैसे उत्पन्न हुआ? अथवा, धर्म-सुधार आंदोलन की भूमिका कैसे तैयार हुई?
उत्तर:
यात्रा, व्यापार, सैनिक विजय तथा कूटनीतिक संपर्कों के कारण इटली के नगरों तथा राजदरबारों का दूर-दूर के देशों से संपर्क स्थापित हुआ। यहाँ के शिक्षित एवं समृद्ध लोगों ने ‘ इटली की नयी संस्कृति को प्रसन्नतापूर्वक अपना लिया। परंतु नए विचार आम आदमी तक न पहुंच सके, क्योंकि वे साक्षर नहीं थे। नये विचारों का प्रसार-पंद्रहवीं और आरंभिक सोलहवीं शताब्दी में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान मानवतावादी विचारों की ओर आकर्षित हुए।

इटली के विद्वानों की भांति उन्होंने भी यूनान तथा रोम के क्लासिकी ग्रंथों और ईसाई धर्मग्रंथों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया। परंतु इटली के विपरीत यूरोप में मानवतावाद ने ईसाई चर्च के अनेक सदस्यों को अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने ईसाइयों को अपने प्राचीन धर्मग्रंथों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने को कहा। उन्होंने अनावश्यक कर्मकांडों को त्यागने की बात भी की और कहा कि उन्हें धर्म में बाद में जोड़ा गया है। मानव के बारे में उनका दृष्टिकोण बिल्कुल नया था। वे उसे एक मुक्त एवं विवेकपूर्ण कर्ता समझते थे। बाद के दार्शनिक बार-बार इसी बात को दोहराते रहे । वे एक दूरवर्ती ईश्वर में विश्वास रखते थे और मानते थे कि मनुष्य को उसी ने बनाया है।

वे यह भी मानते थे कि मनुष्य को अपनी खुशी इसी विश्व में वर्तमान में ही ढूँढ़नी चाहिए। चर्च पर प्रहार-इंग्लैंड के टॉकस मोर (Thomas More 1478-1535 ई.) और हालैंड के इरेस्मस (Erasmus 1466-1536 ई.) का यह मानन था कि चर्च एक लालची संस्था बन गई है जो मनचाहे ढंग से साधारण लोगों से पैसा बटोर रही है। पादरियों द्वारा लोगों से धन ठगने का सबसे सरल तरीका ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ (indulgences) नामक दस्तावेज का विक्रय था जो व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए सभी पापों से छुटकारा दिला सकता था। ईसाइयों को बाईबिल के स्थानीय भाषाओं में छपे अनुवाद से यह पता चल गया कि उनका धर्म ऐसी प्रथाओं की आज्ञा नहीं देता।

किसान तथा राजाओं में चर्च के प्रति असंतोष-यूरोप के लगभग प्रत्येक भाग में किसानों ने चर्च द्वारा लगाए गए विभिन्न करों का विरोध किया। इसके साथ-साथ राजा भी राज-काज में चर्च के हस्तक्षेप से दु:खी थे। परंतु मानवतावादियों ने उन्हें यह बताया कि चर्च की न्यायिक और वित्तीय शक्तियों का आधार कॉस्टैनआइन का अनुदान नामक एक दस्तावेज है। यह दस्तावेज असली नहीं था बल्कि जालसाजी से तैयार किया गया था। यह जानकारी पाकर राजाओं में खुशी की लहर दौड़ गई। इसी घटनाक्रम ने ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद को जन्म दिया और धर्म-सुधार आंदोलन की भूमिका तैयार की।

प्रश्न 11.
यूरोप के (इटली के) साहित्य पर पुनर्जागरण के क्या प्रभाव पड़े।
उत्ता:
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मानव रोवन के प्रत्येक पक्ष में नवीनता आई। साहित्य में भी इस नवीनता के दर्शन हुए। पुनर्जागरण काल में लातीनी तथा यूनानी भाषाओं की अपेक्षा देशी अर्थात् मातृभाषाओं में साहित्य का सृजन किया जाने लगा। इस तरह इस काल में इतालवो, फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, अंग्रेजी, डच, स्वीडिश आदि बोलचाल की भाषाएँ विकसित हुई। पॉडत नेहरू भी लिखते हैं कि ‘इस प्रकार यूरोप की भाषाओं ने प्रगति की और वे इतनी संपन्न एवं शक्तिशाली हो गई कि उन्होंने आज की सुंदर भाषाओं का रूप धारण कर लिया।

इन्हीं सुंदर भाषाओं में साहित्य की रचना हुई। और तो और बाइबिल का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ। पुनर्जागरण काल में केवल भाषाई परिवर्तन ही नहीं हुआ, बल्कि विषय-वस्तु संबंधी परिवर्तन भी हुए। मध्यकालीन साहित्य का मुख्य विषय धर्म था। परंतु इस युग के साहित्य में धार्मिक विषयों के स्थान पर मनुष्य जीवन और समस्याओं को महत्व दिया गया। अब साहित्य आलोचना प्रधान, मानववादी और व्यक्तिवादी हो गया।

इतालवी साहित्य-पुनर्जागरण काल में इटली के साहित्याकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा यूरोप के विद्वानों के लिए नवीन दिशाएँ प्रस्तुत की। इन साहित्याकारों में दाँते (1265-1321 ई.), फ्रांचेस्को पैट्रार्क (1304-1374 ई.), ज्योवानी बुकासियो (1313-1375) प्रमुख थे। इन तीनों ने क्रमशः अपनी कविताओं, जीवनियों और कथाओं से इटली के साहित्य को समृद्ध बनाने का प्रयत्न किया।

1. दाँते (Dante) – दाँते एक महान् कवि था। प्रायः उसकी तुलना विद्वान होमर के साथ की जाती है। उसकी रचना ‘डिवाइन कॉमेडी’ (Divine Comedy) विश्वविख्यात है। यह एक काल्पनिक कथा है। इसमें एक यात्रा का चित्र प्रस्तुत किया गया है। दाँते इस काल्पनिक यात्रा में नरक तथा स्वर्ग की यात्रा करता है। हम सबसे पहले नरक की यातनाओं और पीड़ाओं का दृश्य देखते हैं। इसके पश्चात् हम पापमोचन स्थल देखते हैं जहाँ संयम और कठोर जीवन से आत्मशुद्धि होती है और अंत आत्मिक सुख से होता है।

दाँते ने इसीलिए इसे ‘कॉमेडी’ (सुखांत) कहा है। इस पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य को नैतिक तथा संयमी जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देना है। उसने लोगों को मानव प्रेम, देश-प्रेम तथा प्रकृति प्रेम की शिक्षा दी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विषय-वस्तु मध्यकालीन और आध्यात्मिक है, फिर भी इसमें साहित्यिक श्रेष्ठता से युका आध्यात्मिक विषय का एक सरस चित्रण है। ‘दाँते को इतालवी कविता का पिता’ कहा जाता है।

2. पेदा (Patrare) – पेट्रार्क को ‘मानववाद का पिता’ कहा जाता है। मानवतावाद के प्रतिनिधि के रूप में उसे पुनर्जागरण का भी प्रथम व्यक्ति स्वीकार किया जाता है। अनेक इतिहासकार उसे दाँते से उच्च स्थान प्रदान करते हैं। उनका कहना है कि दति की ‘डिवाइन कॉमेडी’ में मध्यकाल की झलक है, जबकि पेट्रार्क की कविता नवीनता लिए हुए है। पेट्राक ने लोगों का ध्यान शिक्षा और साहित्य के स्थान पर यूनानी तथा रोमन साहित्य की विशिष्टता की ओर आकर्षित किया। उसकी कविताओं में प्रकृति और मनुष्य के हर्ष तथा विषाद का मार्मिक वर्णन मिलता है। उसने यूनानी और लातीनी भाषा के पुराने हस्तलिखित ग्रंथों को खोजने और उनका संग्रह करने में बड़ा उत्साह दिखाया।

उसने अनेक पस्तकालय खोले और लोगों में पस्तकों के लिए रुचि पैदा की। कविता के अतिरिक्त उसने होमर, सिसरो, लिवी आदि प्राचीन लेखकों की रचनाओं में गहन रुचि दिखाई । उसने इनके साथ काल्पनिक पत्राचार किया। ये पत्र उसकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुए। इन पत्रों से पता चलता है कि उसका प्राचीन सभ्यात के प्रति बडा लगाव था। उसका सबसे बड़ा योगदान है कि उसने देशवासियों में प्राचीन यूनानी एवं रोमन साहित्य में अभिरुचि पैदा की।

3. बुकासियों (Bocacio) – बुकासियो पेट्रार्क का शिष्य था। उसने पुनर्जागरण का पूर्ण प्रतिनिधित्व किया। कहानीकार के रूप में उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति ‘डैकेमैरोन’ (Deccacmeron) है। इस हास्य प्रधान रचना में कुल एक सौ कहानियाँ हैं जिनमें एक नवीन शैली का विकास किया गया है। इनमें इटली के तत्कालीन संपन्न समाज में फैले नैतिक भ्रष्टाचार का वर्णन है। दाँते, पेट्रार्क तथा बुकासियो के अतिरिक्त एरिआस्ट्रो, दासो, सैल्यूतानी आदि ने अपने-अपने ढंग से इतालवी साहित्य को समृद्ध बनाया।

प्रश्न 12.
पुनर्जागरण काल से विज्ञान के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण उन्नति हुई। इसके प्रमुख कारण थे –

  • धर्म-सुधार आंदोलर ने लोगों को चर्च के नियंत्रण से मुक्ति दिलाई। अब उन्हें स्वतंत्र रूप से विचार करने का अवसर प्राप्त हुआ।
    मानववाद के विकास से बौद्धिक विकास को बढ़ावा मिला।
  • दार्शनिकों की विचार-प्रणाली में अंतर आया। अब वे भविष्य के विषय में भी सोचने लगे। उनका यह दूरदर्शी दृष्टिकोण नवीन वैज्ञानिक आविष्कारों का आधार बना।
  • राष्ट्रीय राज्यों के उदय तथा नवीन सामाजिक व्यवस्था के विकास से भी वैज्ञानिक विचारधारा को प्रोत्साहन मिला।
  • नए देशों की खोज से लागों की जिज्ञासा बढ़ी। परिणामस्वरूप उनके दृष्टिकोण में भी परिवर्तन हुआ।
  • पुनर्जागरण काल के विद्वान परंपरागत विचारों को अंधाधुंध स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

वे प्रत्येक बात को तर्क की कसौटी पर कसना चाहते थे। अंग्रेज विद्वान फ्रांसिस बेकन ने लोगों के सम्मुख ये विचार प्रस्तुत किए-“ज्ञान की प्राप्ति केवल प्रेक्षण और प्रयोग करने से ही हो सकती है। जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, उसे पहले अपने चारों ओर घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन करना चाहिए। फिर उसे स्वयं से प्रश्न करना चाहिए कि इन घटनाओं के पीछे क्या कारण हैं। जब वह किसी घटना के संभावित कारण के विषय में कोई धारणा बना ले, तो उसकी प्रयोगात्मक ढंगे से जाँच करे।” इस तार्किक दृष्टिकोण ने वैज्ञानिक प्रगति को संभव बनाया। इस काल में हुई वैज्ञानिक प्रगति का वर्णन इस प्रकार है

1. दूसरी शताब्दी में यूनानी खगोल शास्त्री टॉलमी ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था कि पृथ्वी विश्व के केंद्र में स्थित है। परंतु 16वीं शताब्दी में पोलैंड के वैज्ञानिक कोपरनिकस (1473-1543 ई.) ने इस सिद्धांत को असत्य सिद्ध कर दिखाया। उसने बताया कि पृथ्वी एक ग्रह है और यह सूर्य के चारों ओर घूमती है। उसने यह निष्कर्ष गणना एवं प्रेक्षण के पश्चात् ही निकाला था। परंतु उसके द्वारा प्रतिपादित इस नवीन सिद्धांत का घोर विरोध हुआ, क्योंकि यह बाइबिल के प्रतिकूल था।

अत: पोप के आदेश पर उसे अपने नए विचारों का प्रसार बंद करना पड़ा। तत्पश्चात् इटली के वैज्ञानिक जाइडिनी ब्रूनो (1548-1600 ई.) ने कोपरनिकस के सिद्धांत का समर्थन किया और इसे फिर से प्रचलित करने का प्रयास किया। परंतु रोम के धर्माधिकारियों के आदेश से उसे जीवित जला दिया गया।

फिर भी तर्क पर आधारित सिद्धांत को काटा नहीं जा सका । जर्मन खगोलशास्त्री जॉन केपलर (1571-1630 ई.) ने भी प्रमाणों द्वारा इस सिद्धांत की पुष्टि की। उसने यह भी बताया कि पृथ्वी की भांति अन्य ग्रह भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। उनका मार्ग वृत्तीय नहीं, अपितु दीर्घवृत्ताकार (अंडाकार) है। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियो (1564-1642 ई.) ने स्वयं एक दूरबीन बनाई और उसकी सहायता से सूर्य, तारों तथा ग्रहों को देखा। उसने भी घोषणा की कि कोपरनिकम के विचार सत्य हैं। परंतु चर्च ने फिर से अपनी टांगे अड़ाई और उसे यह बात स्वीकार करने र विवश कर दिया कि उसने जो कहा है, वह असत्य है।

2. गैलीलियो ने अरस्तु की इस बात को भी प्रयोग द्वारा गलत सिद्ध किया कि गिरते हुए पिंडों की गति उनके भार पर निर्भर करती है। उसने बताया कि यह भार पर नहीं, अपितु दूरी पर निर्भर करती है।

3. उसी युग में इंग्लैंड के महान् वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ आइजक न्यूटन (1642-17271) ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिससे खगोल विज्ञान को एक नई दिशा मिली। उसने सिद्ध किया की पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु को ऊपर से नीचे खींचती है। न्यूटन के इस अन्वेषण का व्यापक प्रभाव पड़ा । लोग यह सोचने पर विवश हो गये कि विश्व कोई दैव योग (दैवी शक्ति) नहीं चला रहा । यह प्रकृति के सुव्यवस्थित नियमों के अनुसार चल रहा है।

4. पुनर्जागरण काल में खगोल विज्ञान के अतिरिक्त चिकित्सा, रसायन, भौतिक एवं गणितशास्त्र के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व उन्नति हुई। नीदरलैंड के वेसेलियस (1514-64 ई.) ने औषधि तथा शल्य प्रणाली का गहन अध्ययन करने के पश्चात् ‘मानव शरीर की संरचना (The Structure of Human Body) नामक एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उसने मानव शरीर के विभिन्न अंगों का समुचित विवरण प्रस्तुत किया। इंग्लैंडवासी विलियम हार्वे (15781657 ई.) ने पशुओं पर विभिन्न प्रयोग करके रक्त प्रवाह के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन सिद्धांतों से स्वास्थ्य तथा रोग की समस्याओं का अध्ययन नये ढंग से आरंभ हुआ।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण का लोगों के साधारण जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
पुनर्जागरण के प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है –
1. सामाजिक जीवन पर प्रभाव-पुनर्जागरण का यूरोप के समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इससे पूर्व राजा, सामंत और पादरी के अतिरिक्त किसी को समाज में सम्मान प्राप्त नहीं था। पुनर्जागरण के साथ-साथ नागरिक जीवन का महत्त्व बढ़ने लगा। नगरों में रहने वाले मध्य वर्ग के लोगों को सम्मान पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। मध्यकाल तक सामाजिक जीवन अपेक्षाकृत सरल ही था। समाज में मुख्यत: सामंत और चर्च ही प्रधान समझे जाते थे।

साधारण लोग भाग्यवादी थे और अंधविश्वासों की बेड़ियों में जकडे हए थे। वे इहलोक से ज्यादा परलोक करते थे। यही कारण था कि पादरी राज्य के अधिकारियों से भी अधिक सशक्त थे। पुनर्जागरण के कारण समाज में व्यवसाय और उद्योगों की भी उन्नति हुई। गाँवों और खेती का महत्त्व घटने लगा। धन के उत्पादन से साधनों में वृद्धि हुई। व्यवसायी, बैंकर, उद्योगपति, बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक समाज
में सम्मान प्राप्त करने लगे। सच तो यह है कि पनर्जागरण के साथ सामाजिक संतुलन बिगड़ने लगा और समाज में तनाव बढ़ने लगा।

2. धार्मिक जीवन पर प्रभाव-पुनर्जागरण का धार्मिक स्वरूप, धर्म सुधार आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ। मध्य युग में धर्म समाज की धुरी था। पश्चिमी यूरोप की जनता कैथोलिक चर्च और पूर्वी यूरोप के लोग ग्रीक आर्थोडाक्स चर्च की छत्रछाया में जीवन व्यतीत करते थे। चर्च धर्म के स्वरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करना चाहता था।

चर्च की शक्ति बहुत बढ़ चुकी थी। उसकी शक्ति का प्रमाण इस बात से मिलता है कि जब ग्यारहवीं शताब्दी में पवित्र रोमन सम्राट हेनरी ने पोप ग्रेगोरी के हस्तक्षेप को मानने से इन्कार किया तो उन में उसे सर्दी के दिनों में नंगे पाँव आल्पस पर्वत पार करके पोप से क्षमा माँगने जाना पड़ा था। जब इंग्लैंड में वपाइक्लिफ और हंगरी के हंस ने चर्च में कछ सुधार करने की कोशिश की तो उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी।

चर्च के लिए पोपों का सेवाभाव समाप्त हो चुका था। विभिन्न संतों के अनुयायी होते हुए भी वे स्वयं को कैथोलिक चर्च के अधीन मानते थे। मध्ययुग में प्राचीन धर्म में कोई परिवर्तन न किया गया। परिणामस्वरूप चर्च में अंधविश्वासों और भ्रष्टाचार का बोलबाला होने लगा। राजा और सामंत तो इसके हिस्सेदार बन जाते थे इसका सारा दबाव समाज पर पड़ता था। पुनर्जागरण के कारण जब व्यक्तिवाद की स्थापना हुई तो सबसे पहले धार्मिक स्थिति की आलोचना आरम्भ हुई।

दाँते, एरासमस, टॉमस मोर से वाल्तेयर के समय तक चर्च में परिवर्तन की मांग बढ़ गई। अपने भ्रष्ट स्वरूप और आर्थिक शोषण के कारण चर्च को भी परिवर्तन अनिवार्य लगने लगा। सोलहवीं शताब्दी में चर्च का विरोध करने वालों ने प्रोटेस्टेंट चर्चा की परंपरा आरंभ की। अतः चर्च का एकाधिकार समाप्त होने लगा। मानव किसी भी सिद्धांत को अपनाने से पूर्व उसे विवेक और कसौटी पर परखने लगा।

3. आर्थिक जीवन पर प्रभाव-मध्ययुग में आर्थिक जीवन अपेक्षाकृत सरल और व्यवस्थित था। आर्थिक जीवन मुख्यतः कृषि पर आधारित था। आर्थिक संबंधों की नियोजक संस्थाएँ कम थौं। श्रमिकों और कारीगरों को निर्देशित करने वाली मुख्य संस्था ‘गिल्ड’ थी। इनके संचालक अनुयायियों के हितों की अपेक्षा निजी हितों को अधिक महत्त्व देते थे। परिणामस्वरूप विभिन्न गिल्डों में प्रतिस्पर्धा होती थी। यहाँ तक कि एक ही गिल्ड के सदस्यों में भी परस्पर शत्रुता उत्पन्न होने लगी। ये संस्थाएँ बोझ बन गई और आर्थिक प्रगति में बाधा बनने लगीं। धीरे-धीरे भौगोलिक यात्राएँ आरंभ हुई।

लोगों के व्यवसाय बढ़े और आर्थिक जीवन जटिल होने लगा। 15वीं शताब्दी आते-आते उत्पादन के साधनों में परिवर्तन आने लगा और व्यापार का क्षेत्र बढ़ा । मंडियों की खोज आरंभ हुई। बाजारों की खपत के लिए उत्पादन में वृद्धि हई। लोग गाँव छोड़ नगरों में आ कर बसने लगे। धन संचय हुआ। बैंकों तथा स्टॉक कंपनियों का श्रीगणेश हुआ। पूंजीवाद का जन्म हुआ। अब सब कुछ सरल नहीं था। व्यवस्था के लिए कानून की आवश्यकता पड़ी।

अतः सरकारी हस्तक्षेप आरंभ हुआ। पूंजीपति और सरकार निकट आई। श्रमिक लघु उत्पादन को बेचने के लिए उपनिवेशों का महत्त्व बढ़ा। इससे उपनिवेशवाद को तथा साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला। सच तो यह है कि आर्थिक जीवन जटिल हो गया । धन की वृद्धि अवश्य हुई परंतु आर्थिक विषमता बढी जिससे असंतोष फैला।

4. राजनैतिक जीवन-पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप राजनीतिक जीवन भी अछूता नहीं रहा। पुनर्जागरण से पूर्व यूरोपीय समाज में सामंतों का बोलबाला था। परंतु अब मध्य वर्ग के पास धन था। उन्होंने राजाओं की धन से सहायता की। इससे राजाओं की शक्ति बढ़ी। शीघ्र ही राष्ट्रीय राजतंत्रों का विकास आरंभ हुआ। फ्रांस में फ्रांसिस प्रथम तथा हेनरी चतुर्थ के शासन काल में राष्ट्रीयता के आधार पर केंद्रीय सत्ता दुढ़ और सारे राष्ट्र की शक्ति को राजा में केंद्रित माना जाने लगा।

राष्ट्रीय राजतंत्र के विकास से पोप की सत्ता में कमी आई। राष्ट्रीय भाषाओं अर्थात् अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश के विकास से राष्ट्रों के आंतरिक संगठन मजबूत हुए और उनकी शक्ति बढ़ी। राजाओं की शक्ति के बढ़ने के साथ-साथ शासन में मध्य वर्ग में साझेदारी की वृद्धि हुई। सामंत अकेले पड़ गये। राजा और मध्य वर्ग पहले साथ-साथ चले और फिर मध्य वर्ग ने राजा की सत्ता को भी चुनौती दे दी। फ्रांसीसी क्रांति इस संघर्ष का उज्जवल उदाहरण है।

पुनर्जागरण ने केवल यूरोप की ही नहीं बल्कि विश्व के राजनीतिक जीवन में नवीन परिभाषाएँ जुटाई। राज्य को नवीन परिभाषाएँ दी गई। व्यक्ति तथा राज्य के सम्बन्ध को नये सिरे से प्रस्तुत किया गया। आधुनिक राज्य की नींव डाली गई। सच तो यह है कि जितने नये आधार खोजे गये वे उन मूल्यों से ओत-प्रोत थे जिनका पोषण पुनर्जागरण ने किया।

प्रश्न 14.
मार्टिन लूथर के जीवन तथा सफलताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
जर्मनी में प्रोटेस्टेंट लहर (धर्म-सुधार आंदोलन) का प्रवर्तक मार्टिन लूथर था। उसका जन्म 1483.ई० में जर्मनी के एक किसान परिवार में हुआ था। अत: उसमें किसानों जैसी सादगी भी थी और शक्ति भी। उसके पिता चाहते थे कि वह बड़ा होकर वकील बने और घर की प्रतिष्ठा को बढ़ाये। इसी उद्देश्य से विद्यालय भेजा गया। परंतु उसने कानून के साथ-साथ धर्मशास्त्र का अध्ययन भी आरंभ कर दिया। कानून और धर्म-शास्त्र में डिग्री प्राप्त करने के बाद वह ब्रिटेनवर्ग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हुआ। वहाँ उसे धर्मशास्त्र के गहन अध्ययन का अवसर मिला। 1505 ई० में वह अगस्टीनियम भिक्षुओं में शामिल हो गया।

धर्म के संबंध में उसके मन में अनेक प्रश्न एवं शंकाए थीं और वह इनके समाधान की जिज्ञासा रखता था। फिर भी उसकी आस्था अडिग थी। उसका इस बात में पूरा विश्वास था कि केवल आस्था और विश्वास से ही मुक्ति मिल सकती है। 1511 ई० में लूथर ने अपनी शंकाओं के समाधान के लिए रोम की यात्रा की । अभी तक इस पवित्र नगर के प्रति उसकी पूरी श्रद्धा थी। इसलिए रोम पहुँचते ही वह भावुक हो उठा और उसने ये शब्द कहे : “पवित्र रोम तुम्हें शहीदों के खून ने पवित्र बनाया है। मेरा शत-शत प्रणाम स्वीकार करो।” शीघ्र ही रोम में फैले भ्रष्टाचार को देखकर उसका मोहभंग हो गया।

इसी बीच एक ऐतिहासिक घटना घटी जिसने लूथर को पोप एवं कैथोलिक चर्च का विरोधी बना दिया। पोप को सेंट पीटर गिरजाघर के लिए धन की आवश्यकता थी। यह धन उसने क्षमा-पत्रों की बिक्री द्वारा एकत्रित करने का निर्णय किया। 1517 ई० में उसका एक प्रतिनिधि क्षमापत्रों की बिक्री करता हुआ ब्रिटेनवर्ग पहुँचा। वह लोगों से यह शब्द कह रहा था, “जैसे ही क्षमा-पत्रों के लिए दिए गए सिक्कों की खनक गूंजती है, उस आदमी की आत्मा, जिसके लिए धन दिया गया है सीधी स्वर्ग में प्रवेश कर जाती है।

यह भोली-भाली जनता के साथ एक बहुत बड़ा मजाक था। लोगों को धर्म के नाम पर मूर्ख बनाया जा रहा था और उनका शोषण किया जा रहा था। लथर ने जनता के साथ हो रहे इस मजाक और शोषण का विरोध किया। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि क्षमा-पत्रों की बिक्री धर्म के मूल्य सिद्धांत की अवहेलना है। इतना ही नहीं, उसने 95 सिद्धांतों (थीसिस) की एक सूची तैयार की जिन पर वह पोप का विरोधी था। यह सूची उसने एक गिरजाघर के द्वार पर चिपका दी। लोगों में तहलका मच गया। लूथर के इस कार्य ने तो उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया। “जो प्रायश्चित कर लेता है उसे तो ईश्वर पहले ही क्षमा कर देता है।

उसे क्षमा-पत्र की क्या आवश्यकता है।” यह तर्क इतना ठोस था कि बहुत बड़ी संख्या में लोग लूथर के समर्थ बन गए । लूथर ने पहले अपने सिद्धांत लैटिन भाषा में लिखे थे। परंतु शीघ्र ही उनका अनुवाद जर्मन भाषा में किया गया । परिणामस्वरूप इन सिद्धांतों पर समस्त जर्मनी में तर्क-वितर्क होने लगा।

लूथर मन से तो पोप तथा कैथोलिक चर्च का विरोधी बन चुका था, परंतु उसने अभी तक चर्च के अधिकार को खुली चुनौती नहीं दी थी। पोप ने भी उसके विरोध को अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसने इसे ‘भिक्षुओं के बीच तू-तू मैं-मैं’ (Squable among monks) कह कर टाल दिया । परंतु 1519 ई० में स्थिति स्पष्ट हो गई। लथर ने जॉन नामक एक धर्मशास्त्र से साफ-साफ कह दिया कि वह इस बात को नहीं मानता कि पोप या चर्च कोई गलती नहीं कर सकता। यह बात चर्च की निरंकुश सत्ता पर सीधा प्रहार थी। इसके परिणाम काफी गंभीर हो सकते थे।

इसी बीच लूथर ने तीन लघु पुस्तिकाएँ (पैंफलेट) प्रकाशित की। इन पुस्तिकाओं में उसने उन मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जो आगे चलकर प्रोटेस्टेंटवाद के नाम से विख्यात हुए। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि चर्च में पवित्रता नाम की कोई चीज नहीं है ‘ईश्वर के चर्च की कैद’ (On the Babilonian Captivity of the Church of God) नामक पुस्तिका में उसने पोप एवं उसकी व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया। अपनी दूसरी पुस्तिका ‘जर्मन सामंत वर्ग को संबोधन’ (An Address to the Nobility to German Nation) में उसने चर्च की अपार संपत्ति का वर्णन करते हुए जर्मन शासकों को विदेशी प्रभाव से मुक्त होने के लिए प्रेरित किया। तीसरी पुस्तिका ‘मनुष्य की मुक्ति’ (On the Freedom of Clinstian Man) में उसने अपनी मुक्ति के सिद्धांतों का उल्लेख किया। इनके अनुसार मुक्ति के लिए मनुष्य का ईश्वर में अटूट विश्वास होना चाहिए।

लूथर की गतिविधियों से क्षुब्ध होकर पोप ने उसे धर्म से निष्कासित करने का आदेश दे दिया। परंतु लूथर ने पोप के आदेश को एक सार्वजनिक सभा में जला कर विद्रोह का झंडा फहरा दिया। 1521 ई० में उसे जर्मन राज्यों की सभा में सम्राट् के सामने प्रस्तुत होने के लिए कहा गया। उसके मित्रों ने उसे समझाया कि वह न जाये, क्योंकि उसे प्राणदंड भी दिया जा सकता है। परंतु उसने बड़े साहसपूर्ण ढंग से उत्तर दिया-“मैं अवश्य जाऊँगा, भले ही वहाँ मेरे इतने शत्रु क्यों न हों जितनी कि सामने के घर में खपरैलें।” आखिर वह गया। उसे कहा गया कि वह अपनी बातें वापस लें। परंतु उसने उत्तर दिया कि वह ऐसा तभी कर सकता है जब उसकी बातें तर्क द्वारा गलत सिद्ध कर दी जाएँ।

अंत में उसने ये शब्द कहे-“मुझे यही कहना था। मैं इसके विपरीत नहीं जा सकता। ईश्वर मेरी रक्षा करें।” (Here I stand; I can’t do otherwise : God help me.”) लूथर के इन शब्दों से समस्त जर्मनी में कौतूहल फैल गया। उसके मित्र घबरा गये। उन्होंने उसे एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जहाँ वह कई वर्षों तक अध्ययन करता रहा। इसी बीच उसने बाइबिल का अनुवाद जर्मन भाषा में किया। उसका यह अनुवाद इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि इसे आज भी जर्मन भाषा एवं साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है।

मार्टिन लूथर के विचार एवं उनका प्रसार (The Ideas of Martin Luther and their spread) –

मार्टिन लूथर के मुख्य विचार निम्नलिखित थे –

  • उसने ईसा तथा बाइबिल की सत्ता को स्वीकार किया, परंतु चर्च की सार्वभौमिकता एवं निरंकुशता को नकार दिया।
  • उसने इस बात का प्रचार किया कि चर्च द्वारा निर्धारित कर्मों से मुक्ति नहीं मिल सकती।
  • इसके लिए ईश्वर में अटूट आस्था रखना आवश्यक है।
  • उसने पूर्व प्रचलित सात संस्कारों में से केवल तीन को ही मान्यता दी। ये थेनामकरण, प्रायश्चित तथा प्रसाद।
  • किसी भी व्यक्ति को न्याय से ऊपर न समझा जाए।
    चर्च के चमत्कार व्यर्थ हैं।
  • चर्च में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए पादरियों को विवाह करके सभ्य नागरिकों की तरह रहने की अनुमति दी जाए।
  • उसने घोषणा की कि उसका धर्म-ग्रंथ सबके लिए है और सभी उसका ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

आगामी कुछ वर्षों में नवीन जागृति आई और वे अधिक-से-अधिक संख्या में लूथर द्वारा चलाए गए चर्च विरोधी आंदोलन में भाग लेने लगे। उन्होंने न तो पोप की कोई परवाह की और न ही सम्राट् की। उन्होंने चर्च की संपत्ति छीन ली तथा कैथोलिक पूजा-उपासना का परित्याग कर दिया। कैथोलिक मठ नष्ट-भ्रष्ट कर दिए गए। पोप की राजनीतिक, धार्मिक तथा आर्थिक सत्ता को अमान्य घोषित कर दिया गया। 1524 ई० तक समस्त जर्मनी में लूथरवादी शिक्षाएँ अनिवार्य लगने लगा।

सोलहवीं शताब्दी में चर्च का विरोध करने वालों ने प्रोटेस्टेंट चर्चा की परंपरा आरंभ की। अतः चर्च का एकाधिकार समाप्त होने लगा। मानव किसी भी सिद्धांत को अपनाने से पूर्व उसे विवेक और कसौटी पर परखने लगा। प्रचलित हो गईं। परंतु इसी समय कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिनके परिणामस्वरूप लूथरवादी आंदोलन काफी सीमित हो गया। केवल उत्तरी जर्मन राज्यों में ही उसका प्रभाव बना रहा।

प्रोटेस्टेंट चर्च का जन्म (Establishment of Protestant Church) – 1526 ई० में स्पीयर में पवित्र रोमन साम्राज्य की स्थापना की सभा हुई जिसका उद्देश्य धर्म सुधार आंदोलन की समस्या को हल करना था। परंतु इस समय तक क्योंकि जर्मनी के शासकगण लूथरवाद व कैथोलिक दलों में विभक्त हो चुके थे, अतः यह सभा धर्म-सुधार आंदोलन का कोई स्थायी समाधान न कर सकी। इस सभा ने धार्मिक समस्या के समाधान या धर्म संबंधी निश्चय का उत्तरदायित्व स्थानीय शासकों पर छोड़ दिया। यह निश्चित किया गया कि प्रत्येक राजा धर्म के विषय में ऐसा मार्ग अपनायेगा कि वह अपने आचरण के लिए ईश्वर और सम्राट के पति उत्तरदायी होगा।

1529 ई० में स्पीयर में ही एक अन्य सभा हुई। परंतु इस सभा ने भी सुधार आंदोलन को मान्यता प्रदान न की तथा नये सुधार आंदोलन के विरुद्ध कई कठोर निर्देश पारित कर दिये। सभा के एक पक्षीय निर्णय का लूथरवादी शासकों तथा समर्थकों ने तीव्र विरोध किया । इसी विरोध या प्रतिवाद (प्रोटेस्ट) के कारण इस सुधार आंदोलन का नाम ‘प्रोटेस्टेंट’ पड़ा । औपचारिक रूप से विरोध 19 अप्रैल, 1529 ई० को हुआ। अत: ऐतिहासिक दृष्टि से ‘प्रोटेस्टेंट’ शब्द का उदय इसी तिथि से माना जाता है। 1530 ई० में प्रोटेस्टेट धर्म का सैद्धांतिक रूप निरूपित किया गया जिसमें मार्टिन लूथर के सिद्धांतों को मान्यता मिली। इस प्रकार जर्मनी में चर्च दो भागों में बँट गया-प्रॉटेस्टेट तथा कैथोलिक चर्च।

आंग्सबर्ग की संधि (Augs Burg Treaty) – जर्मन सम्राट् चार्ल्स पंचम लूथरवाद को दबाना चाहता था। परंतु अन्य समस्याओं में उलझा होने के कारण वह ऐसा न कर सका । इसके लिए उसे 1530 ई. के बाद ही समय मिल सका। उसने आग्सबर्ग में एक सभा बुलाव और वहाँ प्रोटेस्टेंट लोगों को आदेश दिया कि वे अपने सिद्धांत सभा के सामने प्रस्तुत करें। अत: प्रोटेस्टेंटों ने एक दस्तावेज के रूप में अपने सिद्धांत सभा में रखे। इस दस्तावेज को ‘आग्सबर्ग की स्वीकृति’ कहते है परंतु चार्ल्स पंचम ने ‘आग्सबर्ग की स्वीकृति’ को अमान्य घोषित कर दिया।

फिर भी लूथरवादियों के प्रभाव तथा तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए उसने 1532 ई० में विराम संधि की जो 1546 ई० तक चली। तत्पश्चात् वह पुन: प्रोटेस्टेंटो का समूल नाश करने पर उतर आया। परिणामस्वरूप जर्मनी में 1546 ई० से 1555 ई० तक गृह युद्ध चलता रहा। जर्मनी के लिए इस गृह युद्ध के भयंकर परिणाम निकले। अत: विवश होकर सम्राट् फडीनेंड ने जर्मनी के प्रोस्टेंटों के साथ 15555 में आग्सबर्ग की संधि कर ली।

इस धि के अनुसार –

  • प्रत्येक शासक को (जनता को नहीं) अपना और प्रजा का धर्म चुनने की स्वतंत्रता दे दी गई।
  • 1552 ई० से पहले प्रोटेस्टेंट लोगों ने चर्च की जो संपत्ति अपने अधिकार में ले ली थी; वह उनकी मान ली गई।
    लूथर के अतिरिक्त अन्य किसी को मान्यता नहीं दी गई।
  • यह कहा गया कि कैथोलिक क्षेत्रों में बसने वाले लूथरवादियों को धर्म परिवर्तन के लिए विवश नहीं किया जाएगा।
  • धार्मिक आरक्षण के सिद्धांत के अनुसार यदि कोई कैथोलिक धर्म परिवर्तन करता है तो उसे अपने पद से संबंधित सभी अधिकारों का परित्याग करना होगा।

आग्सबर्ग संधि में धार्मिक संघर्ष की समस्या कुछ सीमा तक सुलझ तो गई, परंतु बहुत त्रुटिपूर्ण ढंग से । संधि में व्यक्ति को नहीं शासक को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई थी जो बहुत दिनों तक मान्य नहीं हो सकती थी। इस संधि द्वारा केवल लूथरवाद को ही वैध मान्यता दी गई। अन्य प्रोटेस्टेंट संप्रादायों (जैसे विग्लीवाद, काल्विनवाद) को कोई मान्यता नहीं मिली। यह संधि धार्मिक कलह का स्थायी निवारण न कर सकी और इस समस्या का समाधान लगभग एक सौ वर्षों के पश्चात् वैस्टफेलिया की संधि द्वारा ही किया जा सका।

प्रश्न 15.
काल्विनवाद की संक्षिप्त जानकारी दीजिए?
उत्तर:
यह सत्य है कि धर्म सुधार आंदोलन का प्रवर्तक लूथर को माना जाता है। परंतु धर्म-सुधार के क्षेत्र में काल्विन को लूथर से भी अधिक सफलता मिली । वह पहला सुधारक था जिसने एक ऐसे पवित्र संप्रदाय की स्थापना करने का प्रयास किया जिसका प्रभाव किसी एक देश में ही सीमित न रह कर पूरे विश्व में हो।

काल्विन का जन्म 1509 में फ्रांस में हुआ था। उसके माता-पिता उसे पादरी बनाना चाहते थे। उसने चर्च की छात्रवृत्ति पर पेरिस में धर्म एवं साहित्य का गहन अध्ययन किया। परंतु बाद में स्थिति को देखते हुए उसके पिता ने उसे वकील बनने का परामर्श दिया। परिणामस्वरूप वह कानून के अध्ययन में जूट गया। एक दिन उसमे एक नई प्रवृत्ति जागृत हुई। उसे अनुभव हुआ कि वह कैथोलिक चर्च में सुधार करने के लिए नहीं, अपितु उससे हटकर एक नवीन एवं पवित्र संप्रदाय की स्थापना के लिए पृथ्वी पर आया है।

उसके लिए उसे कैथोलिक चर्च में सुधार करने के लिए उसे कैथोलिक चर्च का सफल विरोध करना था। उसका दृढ़ विश्वास था कि वह अपने अकाट्य तों से ही अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है। उसने कैथोलिक चर्च से अपना संबंध तोड़ लिया और में अपने विचारों का प्रचार करने लगा। फलस्वरूप उसके प्रशंसकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी। उसकी बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए फ्रांस के शासक फ्रांसिस ने उस पर प्रतिबंध लगाना चाहा। अतः वह फ्राँस छोड़ कर स्विटजरलैंड चला गया।

स्विट्जरलैंड में काल्विन ज्विग्ली के संपर्क में आया । वहाँ उसने ईसाई धर्म के आधारभूत सिद्धांत (Institute of Christian Religion) नामक पुस्तक लिखी जिसमें उसने प्रोटेस्टेंट चर्च के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। यह पुस्तक सम्राट् फ्राँसिस को समर्पित थी। काल्चिन चाहता था कि वह फ्राँस वापस जाकर सम्राट् को अपनी पुस्तक भेंट करे और उसे अपने तर्कों से प्रभावित करे। यदि वह अपने उद्देश्य में सफल हो जाता, तो पूरा फ्रांस उसका अनुयायी बन जाता। परंतु ऐसा न हो सका। संभवतः फ्राँसिस ने उसको पुस्तक को पढ़ा ही नहीं।

फिर भी एक बात निर्विवाद कही जा सकती है कि यह पुस्तक उस समय तक लिखी गई सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक थी। उसमें काल्विन, विगली तथा लूथर के विचार अवश्य लिये गए थे। परंतु उनकी व्याख्या उसमें सर्वथा अपने ढंग से की थी। पुस्तक में कैथोलिक तथा सुधारवादी चचों की तुलना बड़ी ही प्रभावशाली ढंग से की गई थी। इस पुस्तक ने लोगों पर जादू सा प्रभाव किया और २७ ही नर्च के विरोधी संगठित होने लगे।

1536 ई० में काल्विन जेनेवा गया। वहाँ राजनीतिक तथा धार्मिक आंदोलन पहले से ही चल रहा था। उसने अपनी अद्भुत संगठन शक्ति के बल पर जेनेवावासियों को संगठित किया और उन्हें राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता दिलाई। शीघ्र ही जेनवा एक धर्म-प्रधान नगर राज्य बन गया जिसका सर्वोच्च नेता काल्विन बना। उसने नगर में एक विशुद्ध नैतिकवादी व्यवस्था का सूत्रपात किया। यदि कोई व्यक्ति अनैतिकता का प्रदर्शन करता, तो उसे कठोर दंड दिया जाता था।

काल्विन स्वयं भी सादा जीवन व्यतीत करता था और नैतिक नियमों का कठोरता से पालन करता था। शीघ्र ही उसकी ख्याति समस्त यूरोप में फैलने लगी और दूर-दूर से आकर लोग उसके विष्य बनने लगे। उसने बाईबिल का अनुवाद फ्रांसीसी भाषा में करवाया, कई स्कूल खुलवायें तथा जेनेवा विश्वविद्यालय को शिक्षा का महान् केंद्र बनाया। परिणामस्वरूप लोगों में उसकी धाक् उसी प्रकार बैठ गई जैसी कि पोप की थी। अतः अब उसे ‘प्रोटेस्टेट पोप’ कहा जाने लगा।

काल्विन को इतनी अधिक सफलता उसके तर्कपूर्ण सिद्धांतों के कारण मिली जो इस प्रकार थे –

मनुष्य की मुक्ति न तो कर्म से हो सकती है और न ही आस्था से। मुक्ति केवल ईश्वर की असीम कृपा से ही मिल सकती है।
मुक्ति का एकमात्र साधन बाइबिल है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति और ईश्वर के अतिरिक्त कोई माध्यम नहीं।
मनुष्य को जीवन में पवित्र आचरण का पालन करना चाहिए।

काल्विन द्वारा प्रतिपादित विचारधारा ‘काल्विनवाद’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसे मध्यम वर्ग में विशेष लोकप्रियता मिली। धीरे-धीरे फ्रांस में भी इस विचारधारा का प्रभाव बढ़ने लगा। वहाँ काल्विन के अनुयायी ‘यूनानो’ कहलाये। जर्मनी में जहाँ केवल लूथरवाद को ही मान्यता मिली थी, अब ‘काल्विनवाद’ को भी मान्यता दे दी गई। इस प्रकार यह विचारधारा धीरे-धीरे यूरोप के सभी देशों में फैल गई।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कोलम्बस अमेरिका पहुँचा ………………….
(क) 1492
(ख) 1497
(ग) 1495
(घ) 1473
उत्तर:
(क) 1492

प्रश्न 2.
1861-65 ई० तक दास प्रथा को लेकर गृहयुद्ध किस देश में हुआ?
(क) कनाडा
(ख) आस्ट्रेलिया
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका
(घ) इंगलैंड
उत्तर:
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका

प्रश्न 3.
ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज पुस्तक किसने लिखी?
(क) चार्ल्स डार्विन
(ख) ग्रेगरी मेंडल
(ग) हरगोविन्द खुराना
(घ) न्यूटन
उत्तर:
(क) चार्ल्स डार्विन

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सी सामंतों की एक श्रेणी नहीं थी?
(क) बैरन
(ख) नाइट
(ग) डयूक
(घ) सर्प
उत्तर:
(क) बैरन

प्रश्न 5.
चर्च को प्रतिवर्ष कृषकों से उसकी उपज का कान-सा भाग लेने का अधिकार था?
(क) उपज का एक तिहाई भाग
(ख) उपज का दसवाँ भाग
(ग) उपज का एक चौथाई भाग
(घ) उपज का छठा भाग
उत्तर:
(ख) उपज का दसवाँ भाग

प्रश्न 6.
अभिजात्य सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश के लिये प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन कहाँ होता था?
(क) जापान
(ख) वर्मा
(ग) भारत
(घ) चीन
उत्तर:
(घ) चीन

प्रश्न 7.
सोने और चाँदी के देश के विषय में किसने सुना था?
(क) कैनालल
(ख) वास्कोडिगामा
(ग) पिजारो
(घ) कोलम्बस
उत्तर:
(ग) पिजारो

प्रश्न 8.
हेलनीज किस देश के निवासियों को कहा जाता था?
(क) रोम
(ख) यूनान
(ग) मिस्र
(घ) चीन
उत्तर:
(ख) यूनान

प्रश्न 9.
ओलंपिक खेल किस प्राचीन सभ्यता की देन है?
(क) रोम
(ख) मिश्र
(ग) यूनान
(घ) चीन
उत्तर:
(ग) यूनान

प्रश्न 10.
यूरोप में सर्वप्रथम विश्वविद्यालय कहाँ स्थापित हुए?
(क) इटली
(ख) जापान
(ग) रूस
(घ) मिस्र
उत्तर:
(क) इटली

प्रश्न 11.
एक चर्चित कलाकार ………………..
(क) कोपरनिकस
(ख) लियानार्डो द विंची
(ग) लूथर
(घ) मार्टिन
उत्तर:
(ख) लियानार्डो द विंची

प्रश्न 12.
लास्ट सपर चित्र का निर्माण वर्ष …………………
(क) 1495
(ख) 1946
(ग) 1947
(ग) 1467
उत्तर:
(क) 1495

प्रश्न 13.
ग्रेगोरिन कलैंडर का आरंभ …………………..
(क) 1582
(ख) 1587
(ग) 1560
(घ) 1547
उत्तर:
(क) 1582

प्रश्न 14.
नाईन्टी फाईव थिसेस की रचना …………………
(क) 1517
(ख) 1518
(ग) 1516
(घ) 1520
उत्तर:
(क) 1517