Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 2 किशोरावस्था को समझना Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 2 किशोरावस्था को समझना
Bihar Board Class 11 Home Science किशोरावस्था को समझना Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
किशोरों के जीवन में किसका अधिक महत्त्व होता है ? [B.M.2009A]
(क) अध्यापक का
(ख) माता-पिता का
(ग) मित्रों का
(घ) समाज का
उत्तर:
(ग) मित्रों का
प्रश्न 2.
‘व्युबटि पीरियड’ किस अवस्था को कहते हैं ? [B.M. 2009A]
(क) 12-15 वर्ष
(ख) 10-12 वर्ष
(ग) 14-18 वर्ष
(घ) 20-22 वर्ष
उत्तर:
(क) 12-15 वर्ष
प्रश्न 3.
लगभग 12 से लेकर 18 वर्ष तक के बीच की अवस्था को कहा जाता है – [B.M.2009A]
(क) किशोरावस्था
(ख) पूर्व किशोरावस्था
(ग) मध्य किशोरावस्था
(घ) उत्तर किशोरावस्था
उत्तर:
(क) किशोरावस्था
प्रश्न 4.
किशोरावस्था को कहा जाता है- [B.M.2889A]
(क) यौवनारंभ की अवस्था
(ख) ‘सुनहरी-अवस्था’
(ग) “टीन्स” अवस्था
(घ) पुरुषत्व की अवस्था
उत्तर:
(ख) ‘सुनहरी-अवस्था’
प्रश्न 5.
लड़कियों की अंतःस्रावी ग्रंथियों से हार्मोन उत्सर्जित होता है – [B.M.2009A]
(क) एस्ट्रोजन (Estrogen)
(ख) जाइनोस्ट्रोजन (Gynostrogen)
(ग) गोनडस्ट्रोजन (Gonadstrogon)
(घ) Rgtobulin
उत्तर:
(क) एस्ट्रोजन (Estrogen)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
किशोरावस्था को परिभाषित करें।
उत्तर:
किशोरावस्था (Adolescence) लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है “परिपक्वता की दिशा में विकसित होना।” इसे (Teenage) भी कहते हैं. जो 13 -19 (ThirteenNineteen) वर्ष तक मानी जाती है।
प्रश्न 2.
यौवनारंभ (Puberty) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यौवनारंभ का शाब्दिक अर्थ है यौवन का आरम्भ अर्थात् विकास की वह अवस्था जिसमें अलिंगता समाप्त होकर लिंगता आ जाती है और बालोचित शरीर, दृष्टिकोण और व्यवहार पीछे छूट जाते हैं।
प्रश्न 3.
“वृद्धि स्फुरण” (Growth Spurt) को स्पष्ट करें।
उत्तर:
वृद्धि स्फुरण (Growth Spurt) अर्थात् किशोर के कद व वजन में अत्यन्त तीव्र और आकस्मिक गति से वृद्धि होना है। इस अवस्था में शारीरिक परिमाण में भी परिवर्तन आता है। यह विकास या वृद्धि व्यक्तिगत होती है।
प्रश्न 4.
पूर्व किशोरावस्था की अवधि स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्व किशोरावस्था 12 वर्ष से 15 वर्ष तक की अवधि को मानते हैं। यह जीवन का वह काल है, जिसे प्रायः तनाव व तूफान (Stress and Storm) की आयु कहा जाता है।
प्रश्न 5.
उत्तर किशोरावस्था (Late Adolescence) का तात्पर्य समझाएँ।
उत्तर:
उत्तर किशोरावस्था में 16 वर्ष से 18 वर्ष तक की अवधि सम्मिलित है। नव किशोर से अंतर स्पष्ट करने के लिए उत्तर किशोरावस्था में पहुँचे हुए लड़के-लड़कियों को सामान्यतः ‘युवक’, ‘युवती’ जैसे नाम दिए जाते हैं।
प्रश्न 6.
मोनेड्स (Gonads) से क्या तात्पर्व है ?
उत्तर:
गोनैड्स जननतंत्र की लिंग ग्रन्थि है। पुरुष गोनैडों को अंडं प्रन्थियाँ तथा स्त्री गोनैडों को अंडाशय कहते हैं। वे जन्म के समय से ही विद्यमान रहते हैं, परन्तु यौवनारंभ में ही गोनैड-प्रेरक हॉरमोन द्वारा सक्रिय किए जाते हैं।
प्रश्न 7.
वारंगखे मुखाशारीरिक परिवर्तन लिखें।
उत्तर;
यौवनबरंभ के क्षे मुख्य. शारीरिक परिवर्तन हैं:
- द्रुत शारीरिक वृद्धि का वृद्धि स्फुरण जिसमें शारीरिक कद व वजन में अस्तमान्य व तीव्र मति से वृद्धि होती है।
- शरीर के अनुपात में परिवर्तन-शरीर के अनुपात में परिवर्तन आता है। विभिन्न अंग समान गति से नहीं बढ़ते हैं।
प्रश्न 8.
पाँच-छः किशोरियों के बीच रीवा दूसरों से काफी आमे निकल गई है। बाकी सबं उसका प्रतिवादन किस प्रकार करेंगी? कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- वह उपेक्षित की जाएगी व उसका मजाक बनाया जाएगा।
- वह हीसें के रूप में मानी जाएगी अथवा स्वीकार की जाएंगी।
प्रश्न 9.
किशोरियां शारीरिक परिवर्तनों के प्रति संवेदन क्यों हो जाती हैं ? दो कारण दीजिए।
उत्तर:
- लड़कियों में स्तनों का विकास (Breast Development in Girls)
- ऊँचाई का बढ़ना (Height Eruption)।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
अन्तर स्पष्ट करें : पूर्व किशोरावस्था तथा उत्तर किशोरावस्था।
उत्तर:
पूर्व किशोरावस्था (Early Adolescence):
- यह 12-15 वर्ष तक की अवधि तक मानी जाती है।
- यह जीवन के तूफान व तनाव की आयु है। माता-पिता व भाई-बहनों में अधिक संघर्ष हो जाता है व संवेगशीलता बचपन की अपेक्षा बढ़ जाती है।
उत्तर किशोरावस्था (Later Adolescence):
- यह 16 – 18 वर्ष तक की अवधि तकमानी जाती है।
- यह भी जीवन की एक संक्रमणकालीन अवस्था है। इसमें शारीरिक परिवर्तन पूर्णता को प्राप्त करते हैं। इस अवस्था में व्यवहार में अधिक परिपक्वता आ जाती है। इस अवस्था वाले युवक या युवती कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
यौवनारंभ (Puberty) में होने वाले चार प्रमुख शारीरिक परिवर्तनों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
यौवनारंभ विकास की वह अवस्था है जिसमें अलिंगता समाप्त होकर लिंगता आ जाती है। इस अवस्था में बालोचित शरीर, जीवन के प्रति दृष्टिकोण और बालोचित व्यवहार पीछे छूट जाते हैं। इसमें होने वाले चार प्रमुख परिवर्तन निम्न हैं –
- वृद्धि स्फुरण (Growth Spurt): इसमें कद व वजन में असामान्य व तीव्र गति से वृद्धि होती है।
- अनुपात परिवर्तन (Changes in Ratio): समस्त अंगों में वृद्धि एक समान गति से नहीं होती।
- मुख्य लैंगिक लक्षण (Primary Sex Characteristics): जननेन्द्रियाँ विकसित व ‘ कार्यशील हो जाती हैं।
- गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sex Characteristics): गुप्तांगों के ऊपर बाल, बगल में बाल, आदि विकसित होते है।
प्रश्न 3.
नव किशोर की उचित वृद्धि हेतु आवश्यक दो प्रमुख कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
किशोरावस्था में तीव्र विकास तथा वृद्धि हेतु आवश्यक दो प्रमुख कारक हैं :
1. सही पोषण (Proper Nutrition): किशोरावस्था पूरी वृद्धि की अवधि है। अगर आहार कम पोषक होगा तो किशोरों को वृद्धि हेतु पूरी ऊर्जा नहीं मिल पाएगी और कद सदा के लिए कम रह जाएगा। उचित मात्रा में व गुणवत्ता में पोषक तत्वों का होना अति आवश्यक है।
2. उचित व्यायाम (Proper Exercise): उचित व्यायाम उचित वृद्धि हेतु अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम रक्त परिभ्रमण को बढ़ावा देता है। इससे सभी ऊतकों को उचित मात्रा में सही समय पर आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं जो सही वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।
प्रश्न 4.
पूर्व व उत्तर परिपक्वता (Early & late maturity) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
गोनैडों की अतिक्रियाशीलता से या गोनैडों के हार्मोन की अत्यधिक मात्रा की प्राप्ति से जब यौवनारंभ समय से पूर्व आ जाता है तो पूर्वपरिपक्वता (Early maturers) या अकाल यौवनारंभ कहते हैं। गोनैडों के असामान्य विकास के कारण या पिट्यूटरी ग्रन्थि से गौनेड-प्रेरक हॉर्मोन की अपर्याप्त मात्रा मिलने के कारण, गोनैड हार्मोन अपर्याप्त मात्रा में निकलते हैं। इसमें यौवनारंभ होने में विलम्ब हो जाता है। इस स्थिति को उत्तर परिपक्वता (Late Matures) कहते हैं।
प्रश्न 5.
किशोरों के विकास में समकक्ष साथी समूह की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
समह के बिना हम मानव व्यवहार के सामाजिक रूप की कल्पना नहीं कर सकते। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इसीलिए वह समूह में रहना पसन्द करता है। किशोरावस्था के आगमन के साथ ही किशोरों की प्रवृत्ति परिवार के बाहर अपने साथियों की ओर जाने की हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति को मित्र व सम्बन्धी चाहिए, जिससे वह मेल-जोल रख सके, स्नेह कर सके. तथा विश्वास कर सके। किशोरावस्था एक अच्छी अवधि है जिसमें मित्र, अधिक मित्र तथा अच्छे मित्र बनाए जा सकते हैं।
मित्रसमूह सम-आयु, योग्यता तथा सामाजिक स्थिति का वह समूह होता है जो आपस में नैतिक मूल्यों और रुचियों पर विचार करते हैं। यह मित्रसमूह किशोरों को अपनी पहचान देता है। हर सदस्य इस समूह का हिस्सा होता है, तथा यही उसकी पहचान है। समूह के सदस्य एक ही ‘अपनी’ तरह बोलते, सोचते, काम करते तथा व्यवहार करते हैं। एक दूसरों में पूरी दिलचस्पी रखते हैं। ईमानदार, सत्यवादी तथा विश्वासपात्र होते हैं। किशोर अपने मित्रसमूह के साथ काफी समय व्यतीत करते हैं। कला, संगीत, खेलकूद, परिवार, शैक्षिक तथा राजनैतिक विषयों पर विचार करते हैं व अपने मत प्रकट करते हैं।
मित्रसमूह की गतिविधियों को पूरा सुरक्षित रखा जाता है तथा उनकी भनक पाना भी असम्भव-सा होता है। यह मित्रसमूह व्यक्तित्व का निर्माण करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है क्योंकि किशोर कोई भी समूह द्वारा अस्वीकृत किया जाने वाला कार्य नहीं करना चाहता, अत: वह उसके समूह द्वारा स्वीकृत व प्रेरित होकर ही कार्य करता है जो उसके भविष्य के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।
एक बुद्धिमान किशोर अपने मित्रों के चुनाव में विवेक का सहारा लेता है। अच्छा मित्र समूह चुनने से वह रचनात्मक कार्यों में प्रवीण होता है, आगे बढ़ता है तथा अपने उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने में सफल होता है।। इस प्रकार परिवार तथा मित्रसमूह के दबावों से बचते किशोर अपनी पहचान बनाते हुए आगे र जाते हैं।
प्रश्न 6.
किशोरावस्था में होने वाले किन्हीं तीन परिवर्तन क्षेत्रों के नाम लिखें। किसी। क क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण लक्षणों का ब्यौरा दें।
उत्तर:
किशोरावस्था को तनाव व तूफान की अवस्था कहा जाता है क्योंकि किशोर के जीवन में तीव्रता से परिवर्तन आते हैं।
जिन तीन क्षेत्रों में परिवर्तन आते है, वे हैं –
- शारीरिक (Physical)
- संवेगात्मक (Emotional)
- सामाजिक क्षेत्र (Social)।
शारीरिक परिवर्तन बहुत ही आकस्मिक व तीव्र गति से होते हैं।
- प्रारम्भिक अवस्था में शरीर की ऊँचाई व भार तेजी से बढ़ता है तथा अनुपात में भी परिव न आता है। .
- जननेन्द्रियों का विकास तीव्र गति से होता हैं जो कि यौन परिपक्वता का लक्षण है।
- त्वचा कठोर व मोटी हो जाती है।
- स्वर में परिवर्तन आता है। लड़कियों की आवाज सुरीली व लड़कों की भारी हो जाती है।
- आन्तरिक अंगों के आकार में वृद्धि होती है।
- पेशियाँ विकसित होती हैं।
प्रश्न 7.
किशोरावस्था में ‘विषमलिंगियों में रुचि’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
केशोरावस्था में लैंगिक रुचियों का विकास तीन अवस्थाओं में होता है। प्रारम्भ में किशोर अपने से ही प्रेम करने लगते हैं जो एक स्वाभाविक अभिवृत्ति है। इसके – यत् लड़ व लड़कियों में ऐसे व्यक्ति से प्रेम हो जाता है जिसका वह दूर से प्रशंसक होता तब उसे यक पूजा कहा जाता है। वह अनजाने ही अपने आप को उस व्यक्ति के समरूप मानने लगता है।
जैसे-जैसे किशोर की आयु बढ़ती जाती है उसकी बड़े आयु के व्यक्तियों में रुचि समाप्त हो जाती है। आरम्भ में लड़कियाँ किसी भी लड़के के व लड़का सभी लड़कियों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं जो उसके सम्पर्क में आती हैं, परन्तु फिर भी वे झेंपते एवं संकोच करते रहते हैं। विषमलिंगियों को आकर्षित करने की इच्छा होते हुए भी प्रायः इस आयु में किशोरों में एक झेंप होती है।
विषमलिंगियों में रुचि उत्पन्न होने के कारण वे उनका ध्यान खींचने के लिए बहुत कुछ करते हैं जैसे आंडबरपूर्ण हाव-भाव तथा भाषा, असाधारण पोशाक, बाल संवारने का असाधारण ढंग आदि। यौवनारंभ में उत्पन्न हुए शारीरिक परिवर्तनों की तीव्र जिज्ञासा अब कम हो जाती है। यदि उचित जानकारी मिले तो उसकी रुचि तो बनी रहती है परन्तु जिज्ञासा शांत हो जाती है। वह पथभ्रष्ट होने से बच जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
यौवनारंभ में होने वाले चार महत्त्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन करें।
उत्तर:
यौवनारंभ विकास की वह अवस्था है जिसमें अलिंगता समाप्त होकर लिंगता आ जाती है। इस अवस्था में बालोचित शरीर, जीवन के प्रति दृष्टिकोण और बालोचित व्यवहार छूट जाते हैं। इसमें होने वाले चार प्रमुख परिवर्तन हैं:
- वृद्धि स्फुरण (Growth Spurt): इसमें शारीरिक वृद्धि असामान्य व तीव्र गति से होने के कारण कद व वजन तेजी से बढ़ते हैं। लड़कियों में 11-15 वर्ष के बीच लड़कों में 13-18 वर्ष में यह वृद्धि तीव्रता लेती है।
- शरीर के अनुपात में बदलाव (Changes in body proportion): शरीर में वृद्धि तो होती है परन्तु शरीर के समस्त अंग समान गति से नहीं बढ़ते।
- मख्य लैंगिक लक्षणों का विकास (Development of SexualCharacteristics): यौवनारंभ में जननेन्द्रियाँ आकार में बड़ी हो जाती हैं और कार्य की दृष्टि से परिपक्व हो जाती
- गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characteristics): सामान्य विकास क्रम में गौण लैंगिक लक्षण मुख्य लैंगिक लक्षणों से पहले आते हैं। जैसे गुप्तांगों के ऊपर बाल, बगल में बाल आदि।
प्रश्न 2.
समकक्ष साथीसमूह के किशोरों पर होने वाले दुष्प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य मूल प्रवृत्ति से सामाजिक अथवा मिलनसार प्राणी है तथा संगति में ही अधिक सुख महसूस करता है। किशोरावस्था एक अत्यन्त छोटी अवधि है जिसमें एक किशोर सारे तनाव और संघर्ष के बावजूद अपनी पहचान बनाने की चेष्टा करता है। मित्रसमूह या समकक्ष साथीसमूह किशोरों को अपनी पहचान देता है। किशोर अपने साथीसमूह के साथ काफी समय व्यतीत करता है। उसका प्रभाव भी किशोर पर काफी हद तक रहता है। समूह द्वारा उकसाये जाने पर कई बार किशोर वह कार्य भी कर जाता है जिसे वह स्वयं अनुचित समझता है।
जब किशोर अपनी स्वीकृति प्राप्त करने हेतु या बनाए रखने हेतु इतना आगे बढ़ जाए कि अपनी निजी रुचियों, अभिरुचियों तथा मूल्यों को रखने का अपना अधिकार भी खो दे तो वह एक प्रकार का आत्म समर्पण हो जाता है जिससे उसका अपना व्यक्तित्व भी बिखर सकता है। साथी समूह द्वारा अस्वीकृत होने पर किशोर अप्रसन्न व असुरक्षित महसूस करते हैं, विचारों को प्रतिकूल बना लेते हैं जिससे उनका व्यक्तित्व टूट सकता है।
वे कई बार समूह पर अपने आपको थोपने का प्रयत्न करते हैं, जिससे समूह उन्हें और भी दुत्कारता है और वे और भी अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं, विचारों को प्रतिकूल बना लेते हैं जिससे उनका व्यक्तित्व टूट सकता है। इस तरह वे सामाजिक कौशलों को सीखने के अवसर भी गँवा देते हैं। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि समकक्ष साथीसमूह यदि रचनात्मक कार्यों में संलग्न न हों तो वह किशोर के व्यक्तित्व को छिन्न-भिन्न करके रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, परन्तु यदि रचनात्मक कार्यों में लीन हो तो वह व्यक्त्वि को विकसित करने में सक्षम हो सकता है।
प्रश्न 3.
किशोरावस्था में यौन परिवर्तनों का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर:
हमारे समाज में बालक व बालिकाओं को किशोरावस्था में होने वाले यौन परिवर्तनों की जानकारी नहीं होती। क्योंकि किसी घर या विद्यालय में इस विषय पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं होती। वे इन परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली भावनाओं जैसे विषमलिंगी के प्रति आकर्षण आदि को समझ नहीं पाते। वे इन यौन विषयों और अपने में हो रहे नए परिवर्तनों को जानने की इच्छा रखते हैं लेकिन किसी से खुल कर बात भी नहीं करना चाहते।
इस जानकारी के लिए उन्हें अपने ही जैसे संगी-साथी मिलते हैं जो आधी अधूरी और कई बार तो गलत जानकारी देते हैं, जिससे उनके अन्दर यौन सम्बन्धी गलत धारणाएँ बन जाती हैं जो आगे जाकर उनके यौन जीवन को प्रभावित करती हैं।
सेक्स के प्रति गलत दृष्टिकोण बनने से वे स्वस्थ यौन जीवन नहीं जी पाते हैं। इसके लिए बालकों को शरीर-विज्ञान, यौन परिवर्तनों का महत्त्व एवं गलत धारणाओं के नुकसान से परिचित कराना आवश्यक है। इससे किशोर व किशोरियों इन परिवर्तनों को सही रूप से ग्रहण करेंगे व गुमराह होने से बच जाएँगे और अपने को भावी जीवन के लिए तैयार कर पाएँगे। इसके लिए सही समय पर यौनशिक्षा देना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
किशोर व किशोरियों के शारीरिक विकास में होने वाले चार प्रमुख अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रश्न 5.
सही शारीरिक (Right Physical Development) विकास के लिए कौन-कौन-से सहायक तत्त्व आवश्यक हैं ?
उत्तर:
किशोरों को अपने सही शारीरिक विकास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान खना चाहिए:
1. शारीरिक विकास वह अवस्था है जब किशोर पूर्ण लम्बाई व शारीरिक गठन प्राप्त करते हैं। इस समय सही पोषण लेना बहुत आवश्यक है। पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद के लिए उन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मांसपेशी विकास के लिए प्रोटीन व वसा की आवश्यकता होती है। हड्डियों के विकास के लिए कैल्शियम व विटामिन की आवश्यकता होती है।
बालिकाओं को मुख्य रूप से लोहे (Iron) की आवश्यकता होती है क्योंकि हर माह मासिक धर्म में काफी रक्त निकल जाता है। लोहा रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। इसकी कमी से बालिकाएँ एनीमिया (रक्त की कमी) नामक रोग से ग्रस्त हो जाती हैं। इन सबके लिए किशोरों को अपने आहार में अनाज, दालें, ताजी सब्जियाँ, पत्तेदार सब्जी, दूध, दही, फल व सलाद का प्रयोग करना चाहिए। सन्तुलित भोजन लेने से उनका शारीरिक विकास भली-भाँति होगा।
2. शारीरिक विकास के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। विद्यालय में होने वाले खेल-कूदों में भाग लेना चाहिए। आजकल ऐयरोबिक्स व योग काफी प्रचलित हो रहे हैं। बालिकाओं को भी किसी-न-किसी को अपनाना चाहिए। जैसे-बैडमिन्टन, टेनिस, रस्सी कूदना आदि।
3. शारीरिक विकास के साथ-साथ अपने आस-पास या विद्यालय में होने वाले सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में भी भाग लेना चाहिए। इससे आत्म विश्वास बढ़ता है और जो भय या चिन्ता मन में होती है उससे बचा जा सकता है। समूह में कार्य करने से आनन्द की भी प्राप्ति होती है।
प्रश्न 6.
किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
किशोरावस्था की कुछ विशेषताएँ (Characteristics of Adolescence):
1. पूर्व किशोरावस्था में किशोर की स्थिति अस्पष्ट होती है (The place of Adolescent is incertain in adolescence): इस समय किशोरों को न तो बालकों में गिना जाता है न वयस्कों में। कभी उन्हें महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करने को कहा जाता है तो कभी ‘अभी तुम बच्चे हो’ कह कर काम को मना किया जाता है। इससे वह समझ नहीं पाता कि उसकी स्थिति क्या है।
2. यह यौन विकास की अवस्था है (It is a stage of Sexual development): इसमें उसके प्रजनन अंगों का विकास होता है वह अपने को भावी जीवन के लिए तैयार करता है। इससे पहले वह स्वप्रेम (Self Love) की अवस्था से गुजरता है फिर सजातीय (Homosexuality) मित्रता से व आखिर में विपरीत लिंगियों की ओर आकर्षित होता है।
3. यह एक परिवर्तन की अवस्था है (It is a stage of change): इसमें किशोर बाल्यावस्था की आदतें छोड़कर नई आदतें व दृष्टिकोण अपनाता है और नए व्यक्तित्व का निर्माण करता है। वह परिपक्वता की दहलीज पर होता है।
4. निश्चित विकास (Confirmed development): सभी किशोरों का विकास एक निश्चित प्रतिमान के अनुसार होता है। सभी किशोर पूर्व आरम्भिक किशोरावस्था में उत्सुक, असुरक्षित व उत्तेजित महसूस करते हैं। सभी का शारीरिक विकास अपनी चरम सीमा तक पहुँचता है।
5. किशोरावस्था संवेगात्मक उथल-पुथल की अवस्था है (Adolescent stage is a stage of emotional disturbance): किशोर संवेगात्मक रूप से बेचैन रहता है व उत्तेजना की स्थिति में रहता है।
6. किशोरावस्था सामाजिकता की अवस्था है (It is a musculine problem stage): किशोर समाज के प्रति नए दृष्टिकोणों का निर्माण करता है। नए सिरे से समाज के प्रति जागरूक होता है।
7. यह आदर्शवाद की अवस्था है (It is a stage of morality): किशोर अपने आदर्श बनाते हैं व उन पर चलने की कोशिश करते हैं।
8. यह एक समस्या बाहुल्य अवस्था है (Adolescent stage is a social stage): किशोर इस अवस्था में बहुत-सी समस्याएँ महसूस करता है। वह स्वयं अपने को समझ नहीं पाता। साथ ही सामाजिक दबाव को ग्रहण नहीं कर पाता । वह परेशान व अनिश्चित रहता है।