Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 5 प्रमुख विकासोचित कार्य Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 5 प्रमुख विकासोचित कार्य
Bihar Board Class 11 Home Science प्रमुख विकासोचित कार्य Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
मानव की प्रत्येक कोशिका में कितने जोड़े गुणसूत्र होते हैं। [B.M.2009A]
(क) 20
(ख) 23
(ग) 10
(घ) 15
उत्तर:
(क) 20
प्रश्न 2.
रक्त का रंग लाल होता है –
(क) Haemoglobin के कारण
(ख) ऑक्सीजन के कारण
(ग) Protein के कारण
(घ) Renucleic Acid
उत्तर:
(क) Haemoglobin के कारण
प्रश्न 3.
Iron की कमी से रोग होता है
(क) Anaemia
(ख) Pica
(ग) Diarrhoea
(घ) Pechis
उत्तर:
(क) Anaemia
प्रश्न 4.
वानस्पतिक प्रोटीन में होता है –
(क) फायटिक अम्ल
(ख) अमीनो अम्ल
(ग) साइट्रिक अम्ल
(घ) सल्फ्यूरिक अम्ल
उत्तर:
(क) फायटिक अम्ल
प्रश्न 5.
अपराध बोध (Delinquency) है –
(क) असामाजिक व्यवहार
(ख) सामाजिक व्यवहार
(ग) हिंसात्मक व्यवहार
(घ) पारिवारिक व्यवहार
उत्तर:
(क) असामाजिक व्यवहार
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
कैरियर शब्द का अर्थ लिखें ? [B.M.2009A]
उत्तर:
एक कार्य करना जिससे संतोष के साथ धन और अधिकार मिले। यह तभी संभव है जब सही व्यवस्था का चुनाव किया जाए। गलत चुनाव जीवन में असंतोष और तनाव पैदा करता है।
प्रश्न 2.
किशोरों के लिए अपने शारीरिक गठन व आकार का स्वीकरण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
विकास के परिणामस्वरूप किशोरों में तीव्र व आकस्मिक शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिनसे किशोरों को सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है और उसमें प्रौढ़ व्यवहार की आशा की जाती है।
प्रश्न 3.
व्यवसाय चुनाव किन-किन कारणों पर आधारित है ?
उत्तर:
व्यवसाय चुनाव रुचि, योग्यताएँ एवं क्षमताएँ, व्यक्तित्व आदि पर आधारित है।
प्रश्न 4.
व्यवसाय या कैरियर का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
व्यवसाय या कैरियर का अर्थ है एक कार्य करना जिससे आपको संतोष, अतिरिक्त धन और अधिकार मिले।
प्रश्न 5.
व्यवसाय चुनना जटिल है, अतः इसे चुनने के लिए कौन-सा कारक आवश्यक है ? जा-व्यवसाय चुनने के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन आवश्यक है। पाएँ जो भविष्य में कोई व्यवसाय अपनाना चाहती हैं, उनके सामने प्रमुख समस्या कान-सा होती है ?
उत्तर:
छात्राओं को भविष्य में व्यवसाय अपनाने हेतु आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलता।
प्रश्न 7.
व्यवसाय योजना का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
व्यवसाय योजना का अर्थ है अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को पहचान कर यथार्थवादी स्तर पर सोचकर ऐसा एक रुचि का कार्य चुनना जिससे आत्मिक संतोष मिलता है।
प्रश्न 8.
अपने शरीर रचना की स्वीकृति से क्या अर्थ है ?
उत्तर:
शारीरिक लम्बाई, मोटाई, अनुपात में परिवर्तन, त्वचा, स्वर, बाल इत्यादि के प्रति कुछ आकांक्षाएँ होती हैं। मस्तिष्क में सुंदर रचना वाले कई व्यक्तियों की छवि के समरूप अपने आपको बनाना चाहता है। इसे शरीर रचना की स्वीकृति कहते हैं।
प्रश्न 9.
लड़कों की सामाजिक भूमिका के उदाहरण लिखें।
उत्तर:
व्यवसाय कर आजीविका अर्जन करना, संवेगों पर नियंत्रण रखना, उच्च शिक्षा पाना इत्यादि।
प्रश्न 10.
लड़कियों की सामाजिक भूमिका के उदाहरण लिखें।
उत्तर:
घर के बड़ों की अनुमति के बिना घर से बाहर न निकलना, संतुष्ट रहना और मुख्य निर्णय न लेना, दूसरों के लिए जीना, स्वयं को महत्त्व न देना इत्यादि ।
प्रश्न 11.
किशोरावस्था में संवेगात्मक अस्वतंत्रता के दो कारण लिखें।
उत्तर:
- किशोर स्वयं ही अपने वयस्कों पर आश्रित रहना चाहता है।
- वयस्क किशोर को आश्रित रखना चाहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
मित्रों के साथ परिपक्व सम्बन्ध से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
मित्रों के साथ परिपक्व संबंध (Matured Relations with Agemates): किशोरों पर मित्रों का अद्भुत प्रभाव पड़ता है। वे इस अवस्था में स्थायी प्रवृत्ति के होने के कारण टिकाऊ मित्रता करने के योग्य हो जाते हैं। वे अब समझने लगते हैं कि कितना छिपाना है तथा कितना व्यक्त करना है और उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। किशोरावस्था में पहुँचने पर अपने समूह का समर्थन तथा स्वीकृति एक दृढ़ शक्ति का काम करती है। समकक्ष वर्ग द्वारा समर्थन या विरोध का अब इतना प्रभाव होता है कि जीवन के अनेक क्षेत्रों में वह किशोर के माता-पिता तथा शिक्षकों के प्रभाव को भी कम कर देता है।
प्रश्न 2.
किशोरों को अपने शारीरिक गठन व आकार का स्वीकरण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
विकास के परिणामस्वरूप किशोरों में तीव्र व आकस्मिक शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिनसे किशोर को सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। जैसे ही आकार व गठन में वह प्रौढ़ के समान दिखने लगता है उससे प्रौढ़ व्यवहार की आशा की जाती है परन्तु मानसिक रूप से वह इतना परिपक्व नहीं हो पाता जिस कारण उसे समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 3.
आत्म मूल्यांकन में रूप का क्या स्थान है ?
उत्तर:
आत्म मूल्यांकन में रूप का स्थान: व्यक्ति जब अपने या दूसरों के द्वारा सुन्दर या असुंदर समझा जाने लगता है तो इसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व के मूल्य के बारे में व्यक्ति की राय अपने शारीरिक रूप के विषय में उसकी राय को प्रभावित करती है और उसके द्वारा स्वयं प्रभावित होती है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के बाल-कल्याण संस्थान (Institute of child welfare) में आठ वर्षों की अवधि तक चले वृद्धि अध्ययन में यह पाया गया कि 93 लड़कों में से कम से कम 29 लड़के आठ वर्षों में कभी न कभी निश्चित रूप से अपने शारीरिक लक्षणों के कारण विक्षुब्ध हुए।
प्रश्न 4.
सही व्यवसाय के चुनाव में माता-पिता तथा विद्यालय की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
किशोर के लिए व्यवसाय चुनना एक कठिन और महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह पहचान बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। सही व्यवसाय के चुनाव में माता-पिता का एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। माता-पिता किशोर को पर्याप्त आत्मबोध कराने में सक्षम हो सकते हैं। इतना ही नहीं जानकारी प्राप्त करवाने में भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं। व्यक्तिगत रुचि और क्षमता व योग्यता की जानकारी ही नहीं बल्कि उसके स्वभाव को समझ कर उसके अनुरूप व्यवसाय कौन-सा है इसका मार्गदर्शन भी वे सफलतापूर्वक कर सकते हैं। व्यवसाय में प्रवेश हेतु उसे आवश्यक प्रोत्साहन भी दे सकते हैं।
विद्यालय भी व्यवसाय के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विद्यालय का सांस्कृतिक वातावरण व शैक्षणिक वातावरण उसकी योग्यता को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देता है। अध्यापक का प्रोत्साहन व उचित मार्गदर्शन, उसको विषय चुनाव में अपनी योग्यता परखने में सहायक हो सकता है। इतना ही नहीं उसकी रुचि व योग्यता किस विषय में है इसको आँक कर उसको अहसास दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। शैक्षणिक परिणाम भी उसे अपने प्रतियोगिता की क्षमता आँकने में मदद कर सकते हैं, जिससे उसे सही व्यवसाय चुनने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 5.
संवेगात्मक आत्मनिर्भरता से क्या समझती हों?
उत्तर:
संवेगात्मक आत्मनिर्भरता (Emotional Indpendence): बालक जैसे-जैसे किशोरावस्था की ओर बढ़ता है, आत्मनिर्भरता की उसकी क्षमता भी बढ़ती जाती है और जब वह बडा हो जाता है तब उन अनेक भावनाओं या आशंकाओं से, जो प्रारंभिक जीवन में उसमें क्रोध और भय उत्पन्न करते थे, बहुत कुछ मुक्त हो जाता है।
स्वाधीनता बढ़ने से आत्मनिर्भरता का उपयोग करने के नए-नए अवसर भी मिलते हैं जिन्हें वह माता-पिता की सहायता करके सफलता प्राप्त करना चाहता है। उसकी बौद्धिक क्षमता बढ़ जाती है। इस क्षमता में जीवन के पक्षों पर सोचने-विचारने की योग्यता की वृद्धि भी सम्मिलित है। इसके साथ ही किशोर अपनी बौद्धिक जिज्ञासाओं को बढ़ा लेता है तथा माता-पिता या अन्य उचित स्रोतों से की गई इसकी पूर्ति का आनंद उठा सकता है।
प्रश्न 6.
मनोवैज्ञानिक योग्यता से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी दोनों लिंगों के व्यक्तियों को तैयार रहना आवश्यक है ताकि वे वैवाहिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह तत्परता तथा प्रसन्नता से कर सकें। यह तो सभी की इच्छा होती है कि उसका जीवन सुखमय व्यतीत हो व उनके घर में शिशु खेलते-कूदते दिखाई दें। अपनी सन्तान को देखकर माता-पिता के हृदय में अलौकिक सुख की अनुभूति होती है।
मातृत्व एक स्वाभाविक, पवित्र एवं आनन्ददायी स्थिति है परन्तु इसमें गम्भीर उत्तरदायित्व की भावना भी होती है। इस उत्तरदायित्व को सफलतापूर्वक निभाने के लिए माता-पिता को अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। इसलिए विवाह से पूर्व पति-पत्नी को, विशेषकर पत्नी को वात्सल्य की अनुभूति के साथ-साथ पारिवारिक उत्तरदायित्व व नव शिशु के साथ आने वाले उत्तरदायित्वों को सहर्ष उठाने के लिए भी तैयार रहना आवश्यक है।
प्रश्न 7.
आर्थिक योग्यता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
आर्थिक योग्यता (Economic Fitness):
मानवीय आवश्यकताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी पूर्ति के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने पर तथा इसके पश्चात् सन्तान उत्पन्न होने पर दम्पत्ति का आर्थिक उत्तरदायित्व और अधिक जटिल एवं भारी हो जाता है। भावी सन्तान के प्रति अपना कर्तव्य निभाना वास्तव में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र सेवा है क्योंकि आज के बच्चे ही कल के राष्ट्र निर्माता हैं। बालक के श्रेष्ठतम विकास के लिए घर में उसके शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक विकास के लिए उपयुक्त सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 8.
शारीरिक वृद्धि और अनुपयुक्तता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
शारीरिक वृद्धि और अनुपयुक्तता (Awkwardness and Growth Spurt): आकस्मिक शारीरिक विकास से किशोरों के व्यवहार पर अनेक प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। पूर्व-किशोरावस्था में वह इस प्रकार के शारीरिक विकास का अंदाजा नहीं लगा पाते। वृद्धि के साथ होने वाली शारीरिक अनुपयुक्तता भी किशोरों में आकुलता पैदा.करती है। किशोर में ऊपर के शरीर की वृद्धि के कारण उसे ‘सारस’ की उपाधि दे दी जाती है।
कई किशोरों में चर्बी इकट्ठी हो जाती है तो अन्य लोग उसके मोटापे को लेकर मजाक बना लेते हैं। अगर तीव्र कद की वृद्धि के कारण कोई किशोर पतला लगने लगे तो ‘बांस’ की उपाधि दे दी जाती है। इसी प्रकार किशोरावस्था में मुहाँसे निकल आते हैं तो कई उपाधियां दे दी जाती हैं। शारीरिक वृद्धि की इन उपाधियों से किशोरों में तनाव पैदा हो जाता है। विकास व वृद्धि के कारण शरीर की गति में भी अलगपन-सा आ जाता है। यह नया प्राप्त किया शरीर व्यक्ति के तनाव का विषय बन जाता है। किशोर अपना बहुत-सा समय इसी अवसाद में गुजार देते हैं।
प्रश्न 9.
किशोरावस्था में मानसिक तनाव क्यों पाया जाता है ?
उत्तर:
मानसिक तनाव (Depression): किशोरावस्था में आते ही किशोरों को प्रौढ़ावस्था के उत्तरदायित्व निभाने के लिए तैयार होना पड़ता है। बढ़ता हुआ किशोर तनाव में रहने लगता है क्योंकि वह अभी हर समस्या को हल करने के लिए परिपक्व नहीं होता, परन्तु उससे आशाएँ उसकी योग्यता से अधिक की जाती हैं। मानसिक तनाव से वह अप्रसन्न रहने लगता है तथा किसी भी कार्य में दिलचस्पी नहीं लेता, अपने आपको कोसता है, आत्मघाती विचार मन में लाता है। शारीरिक विकास से तनावग्रस्तता आती है अगर किशोर मोटा-ताजा हो तो इस हालात में वह खाना-पीना कम कर देता है क्योंकि वह अपने शरीर के आकार के कारण मजाक का पात्र नहीं बनना चाहता।
अगर खाने-पीने पर बंदिश लगी रहती है तो किशोर का विकास पूर्ण रूप से नहीं होता और वह अपने साथियों व बहन-भाइयों से कद में छोटा रह जाता है। किशोरियों में Anorexia Nervosa की समस्या सामान्यतः हो जाती है। यह डर रहता है कि अधिक खाने से वे बड़ी हो जाएंगी तथा माता-पिता की गुड़िया नहीं रहेंगी। अत: वह डायटिंग की हद तक पहुँच जाती हैं। लम्बी अवधि तक यह समस्या ठीक.न होने पर स्वास्थ्य पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।
प्रश्न 10.
अपराधबोध (Delinquency) क्या है?
उत्तर:
अपराधबोध-किशोर जब अपनी समस्याओं से तालमेल नहीं रख पाते तो वे असामाजिक व्यवहार की ओर बढ़ते हैं। असल में उनका ऐसा करना सहायता की माँग है। बदकिस्मती से अगर उसे समय पर सहायता न मिले तो किशोर अपनी असफलताओं का शिकार स्वयं हो जाता है। “अपराधबोध वह असामाजिक व्यवहार है जिससे किशोर अवैध और हिंसात्मक कार्य करता. है।” विद्यालय से भागना भी अपराधबोध से संबंधित है।
एक विद्यार्थी जो विद्यालय से भागता है जबकि उसे स्कूल में होना चाहिए, भगोड़ा कहलाता है। भगोड़े बहुधा लड़ाइयों में भाग लेते हैं तथा सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। वह व्यक्ति जो बार-बार छोटे-छोटे अपराध करता है, अपराधीपन की ओर बढ़ रहा है। अधिकतर दोषी बच्चे वंचित पृष्ठभूमि से होते हैं। अपराधीपन की संख्या बेरोजगारी के कारण भी अधिक हो जाती है। किशोर अपराधों में अवैध कार्य करते हैं परन्तु वे इतने बड़े नहीं होते कि उन्हें प्रौढ़ कहा जा सके। इन बच्चों को अदालत में मुकदमे के लिए नहीं लाया जाता बल्कि किशोर अदालत के अन्तर्गत सुधार केन्द्रों में सुधारा जाता है।
प्रश्न 11.
व्यवसाय शब्द को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
व्यवसाय (Career): इस शब्द का तात्विक अर्थ चुनौती, उत्तरदायित्व व उपलब्धियों पर संकेन्द्रित है। दूसरे शब्दों में इनका अर्थ है एक ऐसा कार्य करना जिससे आपको सन्तोष के अतिरिक्त धन और अधिकार भी मिले। किशोरों के बीच उत्तम जीवन-स्तर के लिए होड़ लगी रहती है जब आप अपना व्यवसाय चुन रहे होते हैं। वस्तुतः आप अपने लिए अपना जीवन-स्तर चुन रहे होते हैं। अगर कार्य आपकी रुचि का हो तो उसमें उच्चतम स्तर का परिणाम लाना चाहते हैं। अतः ठीक व्यवसाय चुनने पर बहुत कुछ निर्भर करता है। व्यवसाय चुनने में आपकी सहायता करने के लिए कुछ मूल बिन्दु हैं।
व्यक्तिगत सफलता के लिए सही रुचि और विचार का होना अति आवश्यक है। आप कुछ प्रश्नों का सही उत्तर ढूंढें, जैसे “आप किस कार्य में प्रवीण हैं ? आपकी योग्यता क्या है ? आप जीवन में क्या बनना चाहेंगे?” यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि आपको अपने व्यवसाय से क्या चाहिए? अगर आपको अधिकार, पद-स्तर, धन और जीवन-स्तर चाहिए तो आपको चुनौतियों का सामना करना होगा। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनी क्षमता को सावधानी से समझें ताकि आप गलत व्यवसाय में न चले जाएं जिसके लिए आपको सारा जीवन पछताना पड़े।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
किशोरावस्था तनाव या दबाव की अवस्था होती है ? कैसे ? समझाइए ?
उत्तर:
किशोरावस्था का आरंभ शरीर में शारीरिक परिवर्तनों के शुरू होने के साथ हो जाता है। इस समय शरीर में नली विहीन ग्रन्थियाँ सक्रिय हो जाती हैं व हारमोन्स निकलने लगते हैं। यह पत्र कर तना अचानक होता है कि किशोर इन परिवर्तनों के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होता है। उसके शरीर में उथल-पुथल मची हुई होती है जिसके कारण वह बेचैनी व परेशानी महसूस करता है। इसके कई कारण हैं, जैसे –
1. शरीर में शारीरिक परिवर्तनों का तेजी से होना (Fast physical changes in the body): किशोर मानसिक रूप से इन परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं होता है क्योंकि मन से वह अभी भी बालक होता है पर शारीरिक रूप से वयस्क जैसा दिखने लगता है। उसे अपना स्वयं बड़ा अटपटा-सा लगता है।
2. संवेगात्मक परिवर्तन (Emotional Changes): शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ उसकी संवेगात्मक स्थिरता भी प्रभावित होती है। हारमोन्स के सक्रिय होने से किशोर भावात्मक रूप से बेचैन व परेशान रहता है। वह बहुत जल्दी ही उत्तेजित हो जाता है और हमेशा तनाव की स्थिति में रहता है।
3. सामाजिक परिवर्तन (Social Changes): देखने में वह वयस्क-सा दिखता है पर मन से अभी बालक होता है। दूसरे लोग उसके साथ कभी बड़ों सा व कभी बच्चों का-सा व्यवहार करते हैं, जिससे वह तल्ख हो जाता है। उससे अधिक अपेक्षाएँ की जाने लगती हैं। कई बंधन . भी लग जाते हैं विशेषकर लड़कियों पर. जो किशोरों को तनाव व दबाव में रखते हैं। इसके अन्न या विपरीत लिंग के साथियों का अनुमादन भी उन्हें चाहिए. जिसके लिए वे चिन्तित रहते हैं।
4. भावी जीवन की तैयारी (Preparation for future life): इस समय किशोरों को अपनी पढ़ाई व्यवसाय. परीक्षा में अधिक अंक, पसंद के विषय आदि चुनने की चिन्ता भी तनाव का एक कारण बन जाती है । उन्हें अभी अपनी क्षमताओं का पूर्ण ज्ञान नहीं होता और वे सही व्यवसाय चुनने के लिए असमंजस की स्थिति में होते हैं। इसी कारण इस अवस्था को तनाव व दबाव की अवस्था कहते हैं।
प्रश्न 2.
लिंग सम्बन्धी भूमिका और व्यवहार से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
लिंग संबंधी भूमिका और व्यवहार (Sex role and behaviour): वालक चोर-सिपाही, भाग-दौड़ के खेल पसंद करते हैं। माता-पिता भी उन्हें उन्हीं खेलों के लिए सामान लाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो उनके लिंग के अनुरूप हों। बालिकाएँ माँ का व बालक पिता का का करते हैं। यह भावना उनके मित्रों द्वारा व संचार माध्यमों द्वारा और सुदृढ़ होती है। बचपन से ही बालिकाओं की कोमल भावनाओं के विकास को महत्त्व दिया जाता है और बालकों को स्वावलंबी व आक्रामक होना चाहिए ऐसा प्रोत्साहन दिया जाता है। उन्हें रोने पर कहा जाता है कि क्या तुम लड़की हो जो रो रहे हो? रोती तो लड़कियाँ हैं।
लड़कियों को कहते हैं कि अकेले बाहर मत जाओ, किसी के साथ जाओ जिससे यह अहसास होता है कि वे कमजोर हैं और हमेशा दूसरों पर निर्भर हैं। किशोरावस्था में पहुँचने पर तो यह भेद-भाव और भी अधिक हो जाता है। किशोरों को तो प्रोत्साहित किया जाता है कि वह सभी कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले। स्कूल के टूर आदि पर भी भेजा जाता है। किशोरियों को कहा जाता है कि वह घर का काम-काज सीखे।
बाहर अकेले आने-जाने पर रोक लगती है व उन्हें हर कार्य में भाग लेने पर कहा जाता है कि तुम लड़की हो या यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है। उनकी शादी की चिन्ता माता-पिता करने लगते हैं। उनसे पारंपरिक भूमिका निभाने की अपेक्षा रखी जाती है। शहरों में शिक्षा के साथ-साथ लोगों की सोच में कुछ बदलाव आया है। इसके कारण किशोरियाँ कालेज में पढ़ाई व विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसाय किशोरों की भांति चुनने लगी हैं। गाँवों व छोटे शहरों में अभी भी परंपरागत लैंगिक भूमिका को ही महत्त्व दिया जाता है।
प्रश्न 3.
किशोरावस्था में भावी जीवन की तैयारी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
किशोरावस्था और भावी जीवन की तैयारी (Adolescence and preparation for future)-किशोरावस्था सही अर्थ में किशोर को वयस्क बनने की पहली सीढ़ी है। शारीरिक रूप से वह प्रकृति के नियमानुसार वयस्क हो रहे होते हैं। उनके शरीर पुरुष व स्त्री की तरह विकसित होते हैं। उनकी समझ, बुद्धि, मानसिक शक्तियाँ भी विकसित हो जाती हैं। आगे उन्हें माता-पिता का कार्य करना है इसलिए प्रकृति उन्हें तैयार करती है। आगे चलकर उन्हें जो व्यवसाय अपनाना है वह उसी से सम्बन्धित विषय चुनकर व्यावसायिक जीवन की तैयारी करने लगते हैं।
सामाजिक गुणों के विकास से वह भावी जीवन में समाज में जो स्थान प्राप्त करेंगे उसकी तैयारी हो जाती है। नेतृत्व के गुणों का विकास हो जाता है। समाज के प्रति उनका दृष्टिकोण सही रूप से बन जाता है। वह अपने अधिकार व उत्तरदायित्वों के प्रति सजग हो जाते हैं। सभी व्यक्तियों के साथ समायोजन करके रहना सीख जाते हैं। अपना स्वतन्त्र निर्णय लेना भी उनको आ जाता है जो कि भावी जीवन के लिए बहुत आवश्यक है।
प्रश्न 4.
लिंगोचित कार्यों में परिवर्तन के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
लिंगोचित कार्यों में परिवर्तन के कारण (Reasons for change in sex-roles):
1. जीवन-प्रणाली (Changes in life style): जब संस्कृति देहात से शहर में परिवर्तित होती है तब शक्ति को कुशलता से कम महत्त्व दिया जाता है और कुशलता के लिए किसी लिंग विशेष को दूसरे से अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है क्योंकि स्त्रियाँ किसी कार्य विशेष में पुरुषों से भी अधिक कुशल हो सकती हैं।
2. बुद्धि परीक्षण संबंधी अध्ययनों का दौर (Intelligent testing movement): इस शताब्दी के प्रारम्भ में शुरू किये गए ‘बिनेट’ के कार्यों के साथ ही विभिन्न आयु वर्गों के बुद्धि-परीक्षण का दौर-सा चल गया। अब इस तथ्य में कोई शंका नहीं रह गई है कि बुद्धि-स्तर का लिंग से कोई संबंध नहीं। अतः समान बुद्धि-स्तर ने उच्च पौरुष शक्ति को विस्थापित कर दिया है।
3. आनुवंशिकता तथा वातावरण (Heredity and environment): पर्याप्त मात्रा में किए गए अध्ययनों द्वारा स्पष्ट होता है कि वातावरण का प्रभाव जितना समझा गया था उससे कहीं अधिक पड़ता है। विभिन्न संस्कृतियों में किए गए अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि लिंगों के व्यवहार तथा कई शारीरिक परिवर्तन आनुवंशिकता से अधिक प्रशिक्षण द्वारा प्रभावित होते हैं।
4. समान शिक्षा (Similar Education): प्राथमिक शिक्षा से स्नातक की शिक्षा तथा उससे उच्च शिक्षाओं में भी दोनों लिंगों के लिए समान अवसरों ने यह सिद्ध कर दिया है कि लड़कियाँ समान शैक्षिक योग्यता प्राप्त कर सकती हैं, कई बार वे लड़कों से भी आगे निकल जाती हैं।
5. स्थानांतरण (Mobility): व्यवसाय की उन्नति के लिए जब भौगोलिक स्थानांतरण होता है तब परिवार अपने रिश्तेदारों से दूर हो जाता है तथा आपात या आवश्यकता के समय में स्त्री-रिश्तेदारी अनुपलब्ध होने के कारण पुरुष को ही कई ‘स्त्रियोचित कार्य’ करने पड़ जाते हैं। इसने भी परम्परागत लिंगोचित कार्यों को तोड़ने में मदद की है।
6. छोटे परिवार की प्रवृत्ति (Trend towards smaller family): छोटे परिवारों के कारण स्त्रियों के कार्यों में कमी आई है जिससे उन्हें अपने परम्परागत कार्यों (पत्नी तथा माँ के) से कुछ राहत मिली है और वह बाहर के कार्यों में भी संलग्न हो पाई है।
7. उच्च स्तर की प्राप्ति इच्छा (Desire for higher standard): अपने स्तर को ऊँचा उठाने के लिए, पर्याप्त पूंजी एकत्र करने के लिए तथा बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए अकेले पुरुष की कमाई पूरी न पड़ने के कारण स्त्रियों को घर के बाहर निकल कर ‘पुरुषोचित’ कहे जाने वाले कार्यों को करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
8. स्त्रियों की उच्च शिक्षा (Higher education for women): प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध हो जाने के कारण अब स्त्रियों को पहले की तरह अपनी जीवन सिर्फ पति तथा बच्चों या घरेलू कार्यों में नहीं बिताना पड़ता। वह अब बाहरी कार्यों की विस्तृत दुनिया में प्रवेश कर चुकी हैं और सफलता भी प्राप्त कर रही हैं।
9. सामान्य व्यवसाय अवसंर (Equal opportunities for occupation): कानूनों के परिवर्तन ने तथा अन्य संस्थाओं के दबाव ने स्त्रियों के लिए व्यवसाय के समान अवसर खोल दिए हैं जिसने उन्हें विभिन्न व्यवसायों, उद्योगों तथा अन्य कार्यों में प्रवेश दे दिया है और इन परम्परागत ‘पुरुषोचित कार्यों के लिए उसने स्वयं को उपयुक्त भी सिद्ध कर दिया है।
10. स्वास्थ्य तथा मृत्यु दर के आंकड़े (Health and Mortality Statistics): इन आंकड़ों ने सिद्ध किया है कि पिछले 50 वर्षों से अधिक समय में स्त्रियों को ऐसी कोई विशेष ‘बीमारी’ नहीं घेरती है और यही नहीं स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक आयु तक पहुँचती हैं। इन आंकड़ों ने स्त्रियों से चिपके ‘कमजोर लिंगी’ के लेबल को एक हद तक हटा दिया है।
11. स्त्रियों की अधिक उपलब्धियाँ (More achievements of females) यदि समान प्रशिक्षण तथा उसका उपयोग करने के लिए समान उत्साह तथा अवसर. स्त्रियों को दिए जाएँ तो वह प्राथमिक कक्षाओं से लेकर अपने नौकरी की सेवानिवृत्ति तक पुरुषों से अधिक कार्यान्वयन में सक्षम हैं।
प्रश्न 5.
व्यवसाय चयन को प्रभावित करने वाले तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यवसाय चयन को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting Career)व्यवसाय का चयन एक कठिन विषय है। इसके लिए बहुत-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. रुचि (Interest): किशोर की रुचि किस ओर है यह उसके व्यवसाय चयन पर प्रभाव डालती है। जैसे अगर बालक अपने आस-पास के प्रति सजग है और भाषा पर अधिकार है तो वह संचार व पत्रकारिता जैसे व्यवसाय चुन सकता है। अगर उसे अभिनय में रुचि है तो वह उसका प्रशिक्षण ले सकता है।
2. व्यक्तित्व (Personality): प्रत्येक व्यक्ति अपना एक अलग व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है। एक ही घर के बच्चे भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। कुछ किशोर बहिर्मुखी होते हैं। उन्हें व्यवसाय अपने व्यक्तित्व के अनुरूप चुनना चाहिए। जैसे ऐसा व्यवसाय जिसमें वह ‘बहुत से लोगों से मिले व बातें करे, जैसे-सेक्रेटरी, रिपोर्टर, नेता, समाज सेवक आदि। अन्तर्मुखी किशोरों को ऐसा व्यवसाय चुनना चाहिए जो उनके अनुरूप हो। ऐसे बालक कलाकार, संवेदनशील कथाकार, डॉक्टर, वैज्ञानिक आदि बन सकते हैं।
3. योग्यताएँ व क्षमताएँ (Abilities and Capabilities): व्यवसाय के चुनाव में बहुत आवश्यक है कि बालक उस व्यवसाय का चयन करे जिसके वहं योग्य हो, नहीं तो वह उसमें। सफल नहीं हो पाएगा। जिस बालक का विज्ञान या गणित में अच्छा रुझान है वह इंजीनियर बनने म ए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) गृह विज्ञान, वर्ग-11945 की कोशिश कर सकता है। जिस बालक में नेतृत्व की योग्यता है वह नेता व समाज सेवक बन सकता है।
जिसमें अभिनेता बनने के गुण हों उसे वैसा प्रशिक्षण लेना चाहिए। जिनमें दूसरों को प्रभावित करने के गुण हों वे शिक्षक, निर्देशक आदि व्यवसाय चुन सकते हैं। अच्छा तर्क करने वाले वकालत कर सकते हैं। एक कवि या साहित्य सृजन के योग्य बालक को जबरदस्ती गणित या विज्ञान पढ़ाकर इंजीनियर बनाने की कोशिश विफल रहेगी । इसीलिए व्यवसाय अपनी क्षमताओं व योग्यताओं के अनुरूप चुनना चाहिए। .
4. प्रशिक्षण के अवसर (Chances of Training): किशोरों में रुचि व योग्यता दोनों होते हुए भी अगर उन्हें उचित प्रशिक्षण नहीं मिलेगा तो वह अपना व्यवसाय ठीक से नहीं चुन पाएँगे। उदाहरण के लिए रमेश को डॉक्टर बनने की लगन थी पर उसके गाँव के स्कूल में विज्ञान विषय नहीं था और हॉस्टल में उसके पिता भेज नहीं सकते थे। इस कारण उसे राजनीतिशास्त्र और वाणिज्य जैसे विषय लेने पड़े। वह उनमें पास हुआ पर सेकेंड डिजीवन में, जबकि विज्ञान में हमेशा उसके अच्छ नंबर आते थे। अत: व्यवसाय का चुनाव प्रशिक्षण के अवसर देखते हुए करना चाहिए।
प्रश्न 6.
व्यवसाय के चुनाव में क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं ?
उत्तर:
व्यवसाय के चुनाव में कठिनाइयाँ (Difficulties in Selecting Occupation): इस अवस्था में प्रायः किशोर-किशोरियाँ चिन्तित दिखाई पड़ते हैं कि कौन-सा व्यवसाय चुनें। उन्हें बहुत-से व्यवसायों के बारे में जानकारी व उनके लिए आवश्यक प्रशिक्षण व योग्यताओं का पता नहीं चलता। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
1. अपनी क्षमताओं व योग्यताओं का ज्ञान न होना (Unawareness of Self Abilities and Capabilities): किशोर दूसरे लोगों को देखकर प्रायः भ्रमित हो जाते हैं व उनके व्यवसाय के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। वे अपनी क्षमताओं व योग्यताओं को ठीक से पहचान नहीं पाते कि वे किस व्यवसाय के लिए उपयुक्त हैं। यह स्थिति उनके लिए कष्टदायक होती है। कई बार वे गलत व्यवसाय चुन लेते हैं और बाद में परेशान होते हैं।।
2. विभिन्न व्यवसायों की जानकारी न होना (Unawareness of Various Professions): अभी भी लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध व्यवसायों के बारे में पता नहीं है। ऐसी संस्थाएँ हमारे देश में बहुत कम हैं, अगर हैं भी तो उनके बारे में सभी लोग नहीं जानते । गाँवों और छोटे शहरों में यह जानकारी न के बराबर है, जिससे उपयुक्त व्यवसाय चुनने में कठिनाई होती है।
3. व्यवसाय के लिए उपलब्ध प्रशिक्षण की जानकारी न होना (Unawareness of. Available Training Programme): कई बार हम व्यवसाय तो चुन लेते हैं पर इसके लिए हमें क्या प्रशिक्षण लेना चाहिए व ऐसी सुविधाएँ कहाँ उपलब्ध हैं यह पता नहीं होता जिससे चाह कर भी कई बार गलत चुनाव करना पड़ता है। आमतौर पर गिने-चुने व्यवसायों के प्रशिक्षण के बारे में ही लोगों को पता होता है। इसीलिए आजकल कई संस्थाएँ विद्यालयों में जाकर किशोरों को विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी देती है। हालाँकि यह सुविधा कुछ गिने-चुने शहरों
में ही है।
4. व्यवसाय से सम्बन्धित समस्याओं का ज्ञान न होना (Unawareness of Problem Related to Professions): बिल्कुल नए व्यवसाय को चुनने पर प्रायः किशोर को उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं का ज्ञान नहीं होता है। बाद में वे कठिनाई में पड़ जाते हैं । वे किशोर जो अपने पिता या परिवार के व्यवसाय को चुनते हैं, वे उनसे सम्बन्धित सभी समस्याओं व निदान के बारे में जान जाते हैं और उन व्यवसायों में सफलता प्राप्त करने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
5. व्यवसायों के बारे में संकुचित धारणाएँ (False Belief About Various Professions): हमारे समाज में लड़के और लड़कियों के मध्य हर तरह से अन्तर समझा जाता है। लड़कों को जिन व्यवसायों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है लड़कियों के लिए उन्हें उपयुक्त नहीं माना जाता। गाँवों व छोटे शहरों में यह मान्यता है कि लड़कियों को व्यवसाय चुनने की आवश्यकता नहीं है। उनके लिए गृहिणी ही बनना अच्छा है। ऐसी परिस्थिति में लड़कियाँ व्यवसाय नहीं चुन पाती हैं। अधिक-से-अधिक उनके लिए अध्यापिका व डॉक्टर बनना अच्छा समझा जाता है। ऐसे में लड़कियाँ अपनी रुचि व योग्यता के अनुसार व्यवसाय नहीं चुन पाती हैं।
6. रुचि के अनुकूल व्यवसाय के प्रशिक्षण की सुविधाएँ न होना-कई बार व्यवसाय चयन में जब रुचि व योग्यता के अनुसार चुनने पर भी वहाँ उस व्यवसाय से सम्बन्धित सुविधाएँ नहीं होती या होती भी हैं तो कारणवश स्थान नहीं मिलता। दूसरे शहर में जाने पर परिवार की सामर्थ्य व अन्य कठिनाइयाँ आगे आती हैं।
7. सामाजिक बंधन व मान्यताएँ-शादी के बाद लड़कियों को अगर ससुराल वाले नहीं चाहते तो उनकी अपनी व्यावसायिक महत्त्वाकांक्षा छोड़नी पड़ती है। वह प्रशिक्षण प्राप्त भी हो तो भी पति, परिवार व समाज उससे अपनी इस आकांक्षा को त्यागने की अपेक्षा रखते हैं। कई परिवारों में कुछ व्यवसायों के प्रति मान्यताएँ हैं कि वह ठीक नहीं हैं, जैसे-अभिनय क्षेत्र, सेक्रेटरी, रिसेप्शनिस्ट आदि। कई परिवार पुरुषों के साथ काम करने वाले व्यवसायों को गलत नजर से देखते हैं।
प्रश्न 7.
व्यावसायिक चुनाव के लिए मार्गदर्शन का महत्त्व बताइएँ।
उत्तर:
व्यावसायिक चुनाव के लिए मार्गदर्शन का महत्त्व (Importance of Guidance in Profession Selection): जैसा कि हम जानते हैं कि किशोरावस्था व्यवसाय के चुनाव का सही समय है। किशोर को अपनी रुचि, क्षमता, सामर्थ्य के अनुरूप व्यवसाय चुनना चाहिए। प्रायः ऐसा होता है कि किशोर अपने गुणों व क्षमताओं को बहुत अच्छी तरह नहीं पहचान पाते या फिर वे किसी अन्य दबाव में आकर गलत निर्णय ले लेते हैं। प्रायः किशोरों व उनके अभिभावकों को सभी उपलब्ध व्यवसायों के बारे में पता नहीं होता। माता-पिता बालक को वह बनाना चाहते हैं जो वे स्वयं नहीं बन पाते या वह खुद अपने व्यवसाय में बालक को लगाना चाहते हैं।
बालक की रुचि और क्षमताओं को ठीक से आंक भी नहीं पाते हैं। उनके सोच का क्षेत्र काफी सीमित होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई बालक खेल में अच्छा है तो माता-पिता उसे प्रोत्साहित करने की अपेक्षा अधिक सुरक्षा व धन देने वाला व्यवसाय, जैसे-अपनी दुकान चलाना या डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। उसके गुण इस असमंजस की स्थिति में दब जाते हैं। वह दुकान पर बैठने के पश्चात् भी अपनी अधूरी इच्छा के कारण दुखी रहता है। हो सकता था कि वह खेल की दुनिया में भारत का एक चमकता सितारा बनता।
इसी कारण आज इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि इस समय किशोर को उसके अभिभावकों के व्यावहारिक मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता है। इसके द्वारा माता-पिता किशोर को विभिन्न उपलब्ध व्यवसायों के बारे में बता सकते हैं। किशोर की रुचि, क्षमता व सामर्थ्य के अनुरूप व्यवसायों की जानकारी दे सकते हैं तथा वह किन्हीं व्यवसायों के बारे में अपनी भ्रान्तियाँ दूर कर सकते हैं ताकि वे किशोर को उसके उपयुक्त व्यवसाय चुनने में बाधा न बने और इस प्रकार सही व्यवसाय चुनकर किशोर अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं।
प्रश्न 8.
किशोरावस्था की समाप्ति पर प्रौढ़ावस्था में सफल समायोजन के लिए किशोर के विकास की अनेक समस्याएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
किशोरावस्था की समाप्ति पर प्रौढ़ावस्था में सफल समायोजन के लिए किशोर के विकास में अनेक समस्याएँ आती हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
1. स्वयं के शरीर को स्वीकार करना (Accepting ones physique)-जैसे ही बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है वह यही स्वप्न संजोता रहता है कि उसका शारीरिक गठन सुन्दर आकर्षक होगा। प्रत्येक किशोर यौवन की दहलीज पर पहुंच कर मन ही मन किसी के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित होता है कि उसके समरूप होने के सपने देखता है।
किशोरावस्था में शारीरिक अनुपात, त्वचा व स्वर में परिवर्तन आते हैं तथा चेहरे पर प्रौढ़ता की झलक आने लगती है जो उसे वयस्क होने की अनुभूति देते हैं। इन परिवर्तनों के साथ-साथ किशोर यह भी अनुभव करता है कि अब आजीवन उसका शरीर व चेहरा वैसे ही बना रहेगा और जैसे सपने उसने संजोए हैं वह कभी भी पूरे नहीं होंगे। किशोर को अपनी शक्ल-सूरत से असंतोष होता है और वह निराश हो जाता है।
ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपने शरीर में हो रहे परिवर्तनों तथा वृद्धि को स्वीकार करके मानसिक तनाव से दूर रहे । उसे इस बात का संकोच नहीं करना चाहिए कि उसकी आयु के दूसरे किशोर उसकी तुलना में अधिक अच्छे हैं। उसे अपने शारीरिक गठन व शक्ल-सूरत को सहर्ष स्वीकारना चाहिए । किशोर को प्राप्त शरीर के स्वास्थ्य की उचित देखभाल करके उसे आकर्षक, सुन्दर व सुरक्षित बनाए रखने का प्रयत्न करना चाहिए। अत: किशोरों को अपने शरीर को सहर्ष स्वीकार करके किसी भी प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए ।
2. उभयलिंगी साथियों से नवीन व अधिक परिपक्व सम्बन्ध स्थापित करना: (Achieving New and More Matured Relations with Age metes of Both Sex)-किशोरावस्था में तीव्र गति से शारीरिक विकास होने तथा अन्तःस्राविक ग्रंथियों के सक्रिय हो जाने के कारण यौन परिपक्वता (Sexual maturity) आती है तथा काम-सम्बन्धी भावनाओं में भी तीव्रता से विकास होता है। यौन परिपक्वता के इस काल में किशोर एवं किशोरियों में यौनाकर्षण (Sexual attractions) होना स्वाभाविक है जो कि अब एक प्रभावी बल (Dominant force) बन जाता है।
किशोरों में शारीरिक विकास अथवा यौन परिपक्वता की धीमी या तीव्र गति उनके उभयलिंगी साथियों के साथ सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। प्रायः वह किशोर अथवा किशोरी जिसमें विकास धीमी गति से हो रहा होता है, किशोरों के उस समूह से बाहर समझे जाते हैं जिसमें विकास तीव्र गति से हो रहा है, क्योंकि समूह में सदस्यों की इच्छाएँ एक-सी अथवा समूह के प्रत्येक सदस्य से स्वीकृत होती हैं। इन समूहों को ‘दल’ कहते हैं। आयु बढ़ने के साथ-साथ जब कुछ सदस्य अपने साथियों से नवीन व परिपक्व सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाते हैं तब वह समूह से बाहर हो जाते हैं जिससे दल का आकार घटता है और अब उसे ‘गुट’ कहते हैं।
किशोरों के इन सामाजिक सम्बन्धों के प्रतिमान (Pattern) प्रायः उनके वातावरण, उनकी संस्कृति व उनके समाज पर निर्भर करते हैं जिसमें उन्होंने जन्म लिया है। उदाहरण के लिए मध्यम वर्ग के नौकरी पेशा वाले परिवारों के प्रतिमानों के कारण उन परिवारों के किशोर शिक्षा में प्रगति करने पर बल देते हैं। अत: व्यक्तित्व के उचित विकास के लिए किशोरों को अपने लिंग अथवा विषमलिंग के साथियों के साथ यथासम्भव नवीन व अधिक परिपक्व सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए।
3. अपने लिंग (पुंल्लिग अथवा स्त्रीलिंग) की सामाजिक भूमिका को अपनाना (Achieving Ones Masculine/Faminine Social Sex Role): बाल्यावस्था तक लड़के व लड़कियों में लैंगिक अपरिपक्वता के कारण भिन्नता नहीं होती है परन्तु यौवनारम्भ के साथ जननेन्द्रियों का विकास होता है जिससे लैंगिक परिपक्वता आनी आरम्भ होती है और इसी के अनुसार किशोरों में पुंल्लिग और स्त्रीलिंग के गुणों का विकास होता है। इस अवस्था में किशोरों के सामने यह गम्भीर समस्या होती है कि वह लिंगानुसार समाज द्वारा स्वीकृत भूमिका को समझे और अपनाएँ।
प्रत्येक समाज की किशोरों के लिए यौन सम्बन्धी अलग-अलग मान्यताएँ होती हैं। किशोरों को उन मान्यताओं को स्वीकार करके अपनाना पड़ता है। रूढ़िवादी भारतीय समाज में किशोर . लड़कों व किशोर लड़कियों को शादी-ब्याह के पश्चात् घर गृहस्थी का बोझ उठाना पड़ता है, परन्तु आज के आधुनिक युग में जब लड़कियाँ भी लड़कों की भांति पढ़ती-लिखती हैं व नौकरी करती हैं तंब उन्हें अनेक प्रकार के सामाजिक एवं मानसिक तनावों को सहना पड़ता है।
इसी प्रकार लड़कों को भी अपने परिवर्तन में अपनों से बड़ों तथा अपनी पत्नी के साथ समायोजन की समस्या का सामना करना पड़ता है। धीरे-धीरे भारतीय समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं जिससे आज के किशोरों एवं किशोरियों की सामाजिक भूमिका की परिभाषा में परिवर्तन आए हैं और समाज में यह परिवर्तन सामाजिक चेतना द्वारा आए हैं जो कि प्रसार माध्यमों द्वारा उचित शिक्षा से सम्भव हुए हैं। यदि कोई किशोर अपने लिंग के अनुसार निश्चित सामाजिक भूमिका अपनाने में असमर्थ होता है तो वह समायोजन की अनेक समस्याओं से घिर जाता है।
4. माता-पिता व अन्य वयस्कों से संवेगात्मक स्वाधीनता (Achieving Emotional Independence from Parents) भारतीय परिवेश में शादी से पूर्व प्रायः प्रत्येक किशोर विशेषकर लड़कियाँ अपने माता-पिता अथवा बड़े भाई-बहन पर संवेगात्मक रूप से निर्भर होते हैं। इस संवेगात्मक निर्भरता के कारण किशोरों में परिपक्वता नहीं आती है जिसके कारण उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है। बाल्यावस्था की बडों पर निर्भरता वाली प्रवत्ति यदि किशोरावस्था में त्याग दी जाए तो वयस्क होने पर समायोजन की समस्याएं कम होती हैं।
इसके विपरीत जो व्यक्ति किशोरावस्था में संवेगात्मक स्वाधीनता अर्जित नहीं कर सके हैं उन्हें वयस्क होने पर इसके दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं क्योंकि ऐसे वयस्क प्रायः स्वतंत्रता से निर्णय नहीं ले पाते और न ही स्वतंत्रता से कार्य कर पाते हैं। संवेगात्मक निर्भरता का एक कारण स्वयं किशोर हैं क्योंकि वह माता-पिता व बड़ों से प्राप्त सुरक्षा को त्यागने में हिचकिचाते हैं तथा दूसरा कारण माता-पिता हैं जो किशोर पर घर के बन्धन डाले रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें यह भय होता है कि किशोर आत्मनिर्भर होकर उनसे दूर हो जाएँगे। माता-पिता अथवा अभिभावक किशोरों को अपनी समस्याओं से जूझने का तथा उनके हल का मौका नहीं देते और उनके आत्मनिर्भरता के विकास में बाधा डालते हैं।
5. व्यवसाय के लिए तैयार करना (Preparing for Career): किशोरावस्था जीवन की ऐसी अवस्था है जिसके द्वारा व्यक्ति प्रौढ़ दायित्व के लिए तैयारी करता है। किशोरावस्था को पार करते ही उसे स्वतंत्र रूप से निर्वाह करना होता है। किसी भी व्यक्ति के जीवन का आनन्द बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उसे अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय चुनने का मौका मिले जिसे करके वह गर्व का अनुभव करे। अपनी रुचिनुसार व्यवसाय चुनने तथा उसके लिए तैयारी करने की अनुकूल अवस्था किशोरावस्था है।
अतः किशोरों के सम्मुख जो आर्थिक स्वतंत्रता की समस्या है उसे वह अपनी क्षमताओं एवं रुचियों के अनुरूप व्यवसाय चुनकर समाधान कर. सकता है। जब कोई किशोर लड़का अथवा लड़की अपने भावी जीवन के लिए अपनी योग्यता, क्षमता तथा रुचि के अनुसार व्यवसाय चुनने में असमर्थ होता है तो उसे मजबूरी में विपरीत व्यवसाय चुनना पड़ता है, जिससे वह उस कार्य को बोझ समझ कर करता है। इससे उसमें खिन्नता की भावना उत्पन्न होती है। यह भावना उसमें अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करती हैं।
6. विवाह एवं पारिवारिक जीवन के लिए तैयारी करना (Preparing for marriage and Family Life): किशोरावस्था के पांच या छ: वर्षों में किसी को स्वीकार करने व स्वीकृत किए जाने की लालसा अत्यधिक प्रबल होती है तथा इसी कारण किशोरों में स्नेह व सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार व सामाजिक भावना के विकास की पूर्ण सम्भावना होती है। इसी अवस्था में विपरीत लिंग की ओर आकर्षण भी उत्पन्न होता है। इसी समय में प्यार और विवाह की भावना विकसित होती है। उचित अवसर प्रदान करके तथा यौन शिक्षा द्वारा किशोर यौन सम्बन्धों को भली प्रकार समझ सकता है तथा जीवन में इसके महत्त्व को भी जान सकता है।
अतः विवाह एवं पारिवारिक जीवन के लिए नीव किशोरावस्था में रखी जाती है, परन्तु विवाह कब और किससे किया जाए, जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय प्रौढ़ होने पर लिए जाते हैं। भारतीय समाज में जहाँ शादी-विवाह के बन्धन को भगवान द्वारा बनाए गए बन्धन माने जाते हैं वहाँ जीवन साथी के सही चुनाव का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है। कई बार जल्दबाजी अथवा किसी दबाव में आकर की गई एक गलती व्यक्ति को जीवन भर भुगतनी पड़ती है। प्रौढावस्था में इस संदर्भ में सही निर्णय तभी लिया जा सकता है जब किशोरावस्था में इसकी सही नींव रखी गई हो।
प्रश्न 9.
आपकी सहेली शहर से गाँव जा रही है। मित्रसमूह से कैरियर में क्या तनाव पैदा हो सकता है ?
उत्तर:
मित्रसमूह संबंध (Peer Group Relations) :
- वह सोचेगी कि नए मित्र बनाना मुश्किल है। वह अपनी उम्र के मित्र बना पाएगी या नहीं।
- शुरू में अकेलापन रहेगा, हो सकता है अस्वीकृति ही मिले।
- पुराने मित्रों को याद करेगी (Missing Old Friends)।
- गाँव के लोगों की रुचि में अन्तर होने कारण वह अपने आपको संयोजित नहीं कर पाएगी।
- अपनेपन की कमी होगी क्योंकि नई मित्रता गहराई तक पहुँचने में समय लगाती है।
कैरियर में अवसर (Career Opportunity):
- गाँव में कैरियर की बहुत कम सुविधाएँ होती हैं।
- बहुत दूर-दूर तक सफर करके जाना पड़ेगा।
- मित्रों से सलाह की कमी होगी। (Lack of discussion with Peers)
- ज्यादा खबर नहीं लगती कि कहाँ पर सुविधा है। (Lack of Information)
सुझाव (Suggestion):
- उसे समझना होगा कि नई जगह पर नया वातावरण व Culture भी मनोरंजक होता है।
- गाँवों में अपने आवश्यकताओं व साधनों के अनुसार तरीके होते हैं।
- गाँव के लोगों में मैत्रीपूर्ण व्यवहार। मददगार की भावना ज्यादा होती है व सम्बन्ध खराब नहीं होते।