Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 1 प्राकृतिक एवं समाजविज्ञान की पद्धतियाँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 1 प्राकृतिक एवं समाजविज्ञान की पद्धतियाँ
Bihar Board Class 11 Philosophy प्राकृतिक एवं समाजविज्ञान की पद्धतियाँ Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जिस वाक्य में उद्देश्य विधेय पद की गुणवाचकता को व्यक्त न कर उद्देश्य के सम्बन्ध में नया ज्ञान देता है, कहलाता है –
(क) यथार्थ वाक्य
(ख) शाब्दिक वाक्य
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) यथार्थ वाक्य
प्रश्न 2.
जिस वाक्य में विधेय उद्देश्य पद की गुणवाचकता (Connotation) को व्यक्त करता है, उसे कैसा वाक्य कहते हैं?
(क) शाब्दिक वाक्य
(ख) यथार्थ वाक्य
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) शाब्दिक वाक्य
प्रश्न 3.
आगमन का सार (Essence of induction) है –
(क) आगमनात्मक कूद
(ख) सामान्य वाक्य की स्थापना
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आगमनात्मक कूद
प्रश्न 4.
यथार्थ वाक्य क्या है?
(क) उद्देश्य के सम्बन्ध में नया ज्ञान देनेवाला
(ख) विधेय में उद्देश्य पद की गुणवाचकता को व्यक्त करनेवाला
(ग) विधेय में उद्देश्य पद की गुणवाचकता को व्यक्त नहीं करनेवाला
(घ) (क) एवं (ख) दोनों
उत्तर:
(घ) (क) एवं (ख) दोनों
प्रश्न 5.
वैज्ञानिक आगमन (Scientific Induction) के मुख्य लक्ष्य क्या हैं?
(क) यथार्थ व्यापक वाक्य की स्थापना
(ख) वैज्ञानिक पद्धति का अवलोकन
(ग) यथार्थ व्यापक वाक्य को परिभाषित करना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) यथार्थ व्यापक वाक्य की स्थापना
प्रश्न 6.
“विद्वान का सम्बन्ध वैज्ञानिक पद्धति से है न कि अध्ययन विषय से” यह कथन किसका है?
(क) कार्ल पियर्सन
(ख) डिल्थे
(ग) गुडे एवं हाट
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) कार्ल पियर्सन
प्रश्न 7.
प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान का लक्ष्य है –
(क) एक
(ख) अनेक (भिन्न)
(ग) एक-दूसरे का विरोध
(घ) एक-दूसरे का पूरक
उत्तर:
(क) एक
प्रश्न 8.
कुछ विशेष उदाहरणों के आधार पर पूर्णव्यापी नियम का यथार्थ अनुमान ही आगमन (Induction) है। यह कथन किसका है?
(क) ज्वाइस (Joyce)
(ख) फाउलर (Fowler)
(ग) मिल (Mill)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ज्वाइस (Joyce)
प्रश्न 9.
वैज्ञानिक आगमन की विशेषताएँ हैं –
(क) किसी वाक्य की स्थापना करता है
(ख) विशेष उदाहरणों का निरीक्षण करता है
(ग) इसमें आगमनात्मक छलाँग (Inductive leap) होता है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 10.
सरल गणनामूलक आगमन (Induction per simple Enumeration) में अभाव होता है –
(क) कारण-कार्य नियम का
(ख) प्रकृति समरूपता सिद्धान्त का
(ग) दोनों का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) कारण-कार्य नियम का
प्रश्न 11.
आगमन एवं सरल गणनामूलक आगमन के आधार में अंतर है –
(क) सिर्फ कारण कार्य नियम का
(ख) प्रकृति समरूपता सिद्धान्त का
(ग) दोनों का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सिर्फ कारण कार्य नियम का
प्रश्न 12.
“तर्कशास्त्र” (Logic) तर्क करने की कला एवं विज्ञान दोनों हैं, यह किसने कहा था?
(क) हेटली (Whately) ने
(ख) हैमिल्टन (Hamilton) ने
(ग) थॉमसन (Thomson) ने
(घ) मिल (Mill) ने
उत्तर:
(क) हेटली (Whately) ने
प्रश्न 13.
निगमन एवं आगमन का लक्ष्य –
(क) समान है
(ख) भिन्न है
(ग) एक-दूसरे का विरोधी है
(घ) एक-दूसरे का पूरक है
उत्तर:
(घ) एक-दूसरे का पूरक है
प्रश्न 14.
“तर्कशास्त्र विचार के आकार सम्बन्धी विषयों का विज्ञान है।” तर्कशास्त्र की यह परिभाषा किसने दी?
(क) ए. सी. मित्रा
(ख) जे. एस. मिल
(ग) थॉमसन
(घ) हैमिल्टन
उत्तर:
(घ) हैमिल्टन
प्रश्न 15.
“तर्कशास्त्र तर्क करने की कला है।” यह परिभाषा किसने दी है?
(क) हेटली ने
(ख) यूबरबेग
(ग) जे. एस. मिल ने
(घ) एल्ड्रीच ने
उत्तर:
(घ) एल्ड्रीच ने
प्रश्न 16.
तर्कशास्त्र के अध्ययन का विषय है:
(क) साक्षात् ज्ञान
(ख) परोक्ष ज्ञान
(ग) आध्यात्मिक ज्ञान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 17.
तर्कशास्त्र का सम्बन्ध –
(क) वास्तविक सत्यता से है
(ख) आकारिक सत्यता से
(ग) दोनों से है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों से है
प्रश्न 18.
वास्तविक (Material Truth) का अर्थ है?
(क) विचारों का बाह्य पदार्थ से संगति
(ख) विचारों की संगति
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) विचारों का बाह्य पदार्थ से संगति
Bihar Board Class 11 Philosophy प्राकृतिक एवं समाजविज्ञान की पद्धतियाँ Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
विज्ञान का अंग्रेजी रूपान्तर ‘Science’ की उत्पत्ति किस मूल शब्द से हुई है?
उत्तर:
विज्ञान का अंग्रेजी रूपान्तर Science का मूल शब्द लैटिन भाषा का ‘Scientia’ है, जिसका अर्थ होता है ज्ञान या Knowledge।
प्रश्न 2.
आगमनात्मक कूद क्या है? अथवा, आगमनात्मक छलांग (Inductive leap) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आगमनात्मक कूद (Inductive leap) आगमन का सार (essernce of induction) है। ‘कुछ’ को देखकर जब हम ‘सभी’ के बारे में कहते हैं तो यही आगमनात्मक छलांग है।
प्रश्न 3.
वैज्ञानिक आगमन (Scientific Induction) का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
यथार्थ व्यापक वाक्य की स्थापना करना वैज्ञानिक आगमन का प्रमुख लक्ष्य है।
प्रश्न 4.
शाब्दिक वाक्य (Verbal proposition) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस वाक्य में विधेय पद की गुणवाचकता (Connotation) को व्यक्त करता है उसे शाब्दिक (Verbal) वाक्य कहते हैं। इस वाक्य से कोई नया ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। जैसे-सभी मनुष्य मरणशील होते हैं।
प्रश्न 5.
यथार्थ (real) वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस वाक्य में विधेय उद्देश्य पद की गुणवाचकता को नहीं व्यक्त करता है बल्कि उद्देश्य के सम्बन्ध में कोई नया ज्ञान देता है उसे यथार्थ (real) वाक्य कहते हैं। जैसे – ‘सभी मनुष्य मरणशील होते है’ – यह एक वास्तविक वाक्य है।
प्रश्न 6.
वैज्ञानिक पद्धति (Scientific method) का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
घटनाओं को समझाना, उनसे संबद्ध सामान्य सिद्धान्तों का निरूपण करना वैज्ञानिक पद्धति के उद्देश्य हैं, इसके साथ ही भविष्यवाणी एवं नियंत्रण भी वैज्ञानिक पद्धति के उद्देश्य हैं।
प्रश्न 7.
विज्ञान क्या है? अथवा, विज्ञान की परिभाषा दें।
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति द्वारा क्रमबद्ध रूप से ज्ञान का संग्रह ही विज्ञान है।
प्रश्न 8.
वैज्ञानिक आगमन की परिभाषा दें।
उत्तर:
विशेष उदाहरणों के निरीक्षण के पश्चात् कारण-कार्य नियम एवं प्रकृति-समरूपता के वल पर आगमनात्मक कूद लेकर यथार्थ (सामान्य) वाक्य की स्थापना को वैज्ञानिक आगमन कहते हैं।
प्रश्न 9.
अवैज्ञानिक आगमन (Unscientific Induction) किसे कहते हैं? अथवा, सरल गणनात्मक आगमन (Induction per simple Enumeration) की परिभाषा दें।
उत्तर:
विशेष उदाहरण के निरीक्षण के पश्चात् अखंडित अनुभव तथा प्रकृति-समरूपता नियम के आधार पर बिना कारण-कार्य सम्बन्ध को जानते हुए जब यथार्थ सामान्य वाक्य की स्थापना की जाती है तो उसे अवैज्ञानिक या सरल गणनात्मक आगमन कहते हैं।
प्रश्न 10.
किसने कहा कि “विज्ञान का संबंध वैज्ञानिक पद्धति से है न कि अध्ययन विषय से”?
उत्तर:
यह कथन कार्ल पियर्सन (Karl Pearson) का है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निगमन एवं आगमन में कौन अधिक मौलिक है? वस्तुवादी तर्कशास्त्रियों के मत की विवेचना करें।
उत्तर:
मिल, बेन आदि वस्तुवादी तर्कशास्त्रियों के मत में निगमनात्मक अनुमान के लिए, कम-से-कम एक सामान्य (universal) वाक्य की आवश्यकता पड़ती है और इस सामान्य वाक्य की स्थापना आगमन को आधार प्रदान करता है। आगमन के द्वारा ही सामान्य नियम की स्थापना होती है और निगमन केवल इसी नियम को व्यक्तिविशेषों पर लागू करता है। जब आगमन के द्वारा यह सामान्य वाक्य स्थापित हो जाता है कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं, तो निगमन इसे राम, मोहन आदि व्यक्तियों पर प्रयुक्त करके कहता है कि राम भी मनुष्य होने के नाते मरणशील है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आगमन ही अधिक मौलिक (fundamental) है और निगमन गौण (secondary)।
प्रश्न 2.
“निगमन आगमन का पूर्ववर्ती है।” विवेचना करें।
उत्तर:
जेवन्स (Jevons) के अनुसार निगमन आगमन के पहले आता है। इसकी पुष्टि के लिए इन्होंने अपना तर्क इस प्रकार दिया है-आगमन में सामान्य नियम स्थापित किया जाता है। इसके लिए प्राक्कल्पना का सहारा लेकर सामान्यीकरण कर दिया जाता है। किन्तु, बिना जाँच या परीक्षा के कोई सामान्य नियम नहीं बन जाता। प्राक्कल्पना को सत्य मानकर उससे संभावित निष्कर्ष निकालते हैं और इन निष्कर्षों की जाँच वास्तविक घटनाओं से करते हैं। यदि ये निष्कर्ष इन यथार्थ घटनाओं के अनुकूल होते हैं तो हम अपनी प्राक्कल्पना को सही मान लेते हैं। यदि ये अनुकूल या संगत नहीं होते, तो प्राक्कल्पना असत्य सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार, निगमन द्वारा ही प्राक्कल्पना की परीक्षा करके आगमन में सामान्य नियम की स्थापना की जाती है। इसीलिए, निगमन को आगमन का पूर्ववर्ती कहा जाता है।
प्रश्न 3.
“निगमन अवरोही क्रिया है और आगमन आरोही क्रिया।” बेकन के इस मत की व्याख्या करें।
उत्तर:
बेकन ने निगमन को ‘उतरनेवाली क्रिया’ (descending process) और आगमन को ‘चढ़नेवाली क्रिया’ (ascending process) कहा है। निगमन में सामान्य से विशेष निष्कर्ष निकालते हैं। इसमें हम अधिक व्यापकता से कम व्यापकता की ओर आते हैं। जैसे, सभी मनुष्यों को मरणशील पाकर राम को मनुष्य होने के नाते मरणशील बताते हैं। इसीलिए निगमन को उतरने की क्रिया कहा जाता है। आगमन में विशेष उदाहरणों के निरीक्षण के द्वारा सामान्य नियम की स्थापना की जाती है।
इसमें कम सामान्य से अधिक सामान्य की ओर (from less general to more general) जाते हैं। जिस प्रकार किसी पर्वत पर चढ़कर वहाँ से हमें नीचे का सामान्य रूप दिखाई पड़ता है, उसी प्रकार आगमन के निष्कर्ष पर पहुँचते ही हमें एक सामान्य नियम दृष्टिगोचर होता है। ज्यों-ज्यों पर्वत से नीचे उतरने लगते हैं, त्यों-त्यों विशेष पर नजर पड़ने लगती है। इसलिए निगमन को उतरनेवाली क्रिया और आगमन को चढ़नेवाली क्रिया कहा गया है।
प्रश्न 4.
“आगमन और निगमन एक-दूसरे में समाविष्ट हैं।” विवेचना करें।
उत्तर:
जेवन्स के अनुसार आगमन विधि का अंत सत्यापन या जाँच में होता है। इसीलिए, ये निगमन को आगमन का पूर्ववर्ती मानते हैं। इसके विपरीत, मिल के अनुसार आगमनिक खोज में सामान्यीकरण अंतिम सोपान है और इसके लिए परीक्षा या जाँच की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी कारण इन्होंने आगमन को निगमन का पूर्ववर्ती कहा है। निगमन और आगमन में वस्तुतः न तो कोई पूर्ववर्ती है और न कोई अनुवर्ती। दोनों में परस्पर विरोध का संबंध नहीं है। दोनों परस्पर पूरक हैं। इनके बीच कोई विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। दोनों में परस्पर सहयोग अपेक्षित है। इसलिए, यह कहा गया है कि “दोनों एक-दूसरे में प्रवेश करते हैं।” (Both run into each other)
प्रश्न 5.
निगमन और आगमन का भेद सिद्धान्त का नहीं बल्कि आरंभ बिन्दु का है। इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
किसी भी विषय का अध्ययन दो तरीके से किया जा सकता है – विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषणात्मक तरीके से। निगमन में हम विश्लेषणात्मक विधि को अपनाते हैं और आगमन में संश्लेषणात्मक विधि का सहारा लेते हैं। आगमन में विशेष उदाहरणों के निरीक्षण के आधार पर सामान्य वाक्य की स्थापना करते हैं, जो सत्यापित होने के बाद सामान्य नियम बन जाते हैं। निगमन में सामान्य नियम का विश्लेषण कर उसे विशेष उदाहरणों पर लागू किया जाता है। दोनों विधियों के संयोग एवं सहयोग से ही पूर्ण तत्व का ज्ञान होता है इसलिए यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि आगमन और निगमन दोनों का लक्ष्य एक है, परंतु दोनों के आरंभ बिन्दु में भिन्नता है।
प्रश्न 6.
फाउलर किस प्रकार आगमन और निगमन में भेद करते हैं?
उत्तर:
फाउलर ने आगमन और निगमन में भेद इस आधार पर किया है कि आगमन में हम कार्य से कारण की ओर जाते हैं और निगमन में कारण से कार्य की ओर। आगमन में घटनाविशेष का निरीक्षण करके इसका कारण बताते हैं। इसीलिए आगमन में कार्य से कारण की ओर जाने की बात कही गई है। निगमन में सामान्य नियम यानी कारण से विशेष (कार्य) निष्कर्ष प्राप्त करते हैं। इसलिए निगमन में कारण से कार्य की ओर जाने की बात कही गई है। फाउलर के मत की आलोचना-फाउलर का कहना सही नहीं है। आगमन में केवल कार्य से कारण का पता नहीं लगाया जाता। आगमन में हम दोनों तरफ बढ़ सकते हैं। कार्य ज्ञात रहने पर उसके कारण का पता लगाया जा सकता है और कारण ज्ञात रहने पर आगमन के द्वारा कार्य का भी पता लगाया जा सकता है। अतः, यह कहना भूल है कि आगमन द्वारा केवल कार्य से कारण का पता लगाया जाता है।
प्रश्न 7.
आगमन और निगमन के संबंध में बक्ल के मत की विवेचना करें।
उत्तर:
बक्ल के अनुसार हम आगमन में विशेष तथ्यों से नियमों पर (from facts to laws) जाते हैं और निगमन में नियमों से विशेष तथ्यों पर (from laws to facts) जाते हैं। इसी को दूसरे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है आगमन में वस्तुविशेष (facts) से विचार (ideas) की ओर जाते हैं और निगमन में विचार से वस्तुविशेष का अनुमान लगाया जाता हैं आगमन द्वारा स्थापित नियम सैद्धान्तिक होते हैं और इनका प्रत्यक्ष घटनाविशेषों के द्वारा होता है। किन्तु, हमें इससे यह समझने की भूल नहीं करनी चाहिए कि आगमन के निष्कर्ष केवल सैद्धांतिक या मानसिक होते हैं, यथार्थ नहीं। आगमन के निष्कर्ष यथार्थ होते हैं, क्योंकि इनमें वास्तविक सत्यता (material truth) पाई जाती है। निगमन में भी सैद्धांतिक या मानसिक तत्त्व पाए जाते हैं, जिस प्रकार आगमन में यथार्थता के तत्त्व रहते हैं।
प्रश्न 8.
आगमन तर्कशास्त्र में ‘आगमनात्मक छलांग’ का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आगमन तर्कशास्त्र में आगमनात्मक छलांग का बहुत अधिक महत्व है। आगमनात्मक छलांग (inductive leap) में हम ज्ञात से अज्ञात की ओर अथवा कुछ से सब की ओर पहुँचते हैं और यथार्थ वाक्यों की स्थापना करते हैं। आगमनात्मक छलांग के द्वारा ही हम कुछ ही मनुष्यों को मरते देखकर यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि सभी मनुष्य मरणशील हैं। यदि आगमनात्मक छलांग नहीं लगाई जाए तो यथार्थ व्यापक वाक्यों की स्थापना नहीं हो पाएगी।
‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ में मनुष्य जाति के कुछ ही उदाहरणों के आधार पर संपूर्ण मनुष्य जाति के संबंध में जो निष्कर्ष निकाला गया है वह आगमनात्मक छलांग द्वारा ही संभव है। यद्यपि इस छलांग में जोखिम की संभावना रहती है तथापि तर्कशास्त्रियों ने इसे आगमन का प्राण (Essence of Induction) कहा है। जब आगमनात्मक छलांग का निष्कर्ष प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण-कार्य नियम द्वारा सत्यापित हो जाता है तो कोई भी खतरा नहीं रह जाता। आगमन तर्कशास्त्र में आगमनात्मक छलांग का महत्व मुख्य और सार रूप से इसलिए है कि इसके कारण कुछ निरीक्षित उदाहरणों के आधार पर अनिरीक्षित उदाहरणों के संबंध में सभी सामान्य निष्कर्ष निकल जाता है जो वर्तमान के लिए ही नहीं बल्कि भूत और भविष्य के लिए भी सत्य होता है।
प्रश्न 9.
आगमन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
आगमन का मुख्य उद्देश्य है नए सत्य की खोज करना अर्थात् ज्ञात के आधार पर अज्ञात के संबंध में अथवा ‘कुछ’ के आधार पर ‘सब’ के संबंध में नया ज्ञान प्राप्त करना। संसार में तरह-तरह की वस्तुएँ हैं-ये सभी वस्तुएँ एक-दूसरे से असंबंधित प्रतीत होती हैं, परन्तु वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। सभी वस्तुएँ नियमित हैं। इन वस्तुओं के अपने-अपने नियम हैं। मनुष्य जगत्, वनस्पति जगत्, पशुजगत्, सभी के अपने-अपने निश्चित नियम हैं जिनके द्वारा ये संचालित होते हैं। आगमन का उद्देश्य है वैसे निष्कर्ष-वाक्य को सत्यापित करना जो प्रकृति-समरूपता नियम के पहल कुलतः ज्ञान एवं इसमें सतत् वान इसके अंतर्गत साथ-साथ कारण-कार्य नियम पर भी आधारित होता हो अथवा जिनका सामान्यीकरण इन दोनों नियमों के आधार होता हो।
संसार में प्रत्येक वस्तु की जाति या वर्ग में एक सामंजस्य है, एक निश्चित व्यवस्था है – आगमन का मुख्य उद्देश्य है इसी सामंजस्य और निश्चित व्यवस्था के नियमों की खोज करना तथा उनके आधार पर निष्कर्ष वाक्यों को प्रमाणित करना। आगमन अपने इसी मुख्य उद्देश्य के द्वारा एक तरफ सभी हंसों के (भविष्य में) उजाले होने का संभाव्य बताता है वहीं दूसरी तरफ सभी मनुष्यों के (भविष्य में) मरणशील होने को सत्यापित करता है। आगमन का उद्देश्य है तरह-तरह के यथार्थ सामान्य वाक्यों की स्थापना करना और अंततः कारण-कार्य के आधार पर उनकी त्रैकालिक सत्यता को प्रमाणित करना।
प्रश्न 10.
विज्ञान क्या है? अथवा, विज्ञान (Science) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हिन्दी के ‘विज्ञान’ शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर ‘Science’ मूल शब्द लैटिन भाषा का ‘Scientia’ है जिसका अर्थ ज्ञान यानि Knowledge होता है। इस प्रकार, विज्ञान ज्ञान से संवद्ध है। इसलिए पद्धतिशास्त्री गुडे एवं हाट ने विज्ञान को एक ‘व्यवस्थित ज्ञान’ के रूप में परिभाषित किया है। विज्ञान के अर्थ के संबंध में दो प्रकार की वैचारिक धारणाएँ हैं। वे हैं स्थिर विचार एवं गत्यात्मक विचार। स्थिर विचार के अनुसार विज्ञान एक ऐसी क्रिया है जिससे विश्व की क्रमबद्ध सूचना प्राप्त होती है।
इस दृष्टि से विज्ञान एक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान है। गत्यात्मक विचार (Dynamic View) के अनुसार, विज्ञान एक क्रिया है, एक पद्धति है, जो वैज्ञानिकों द्वारा संपादित की जाती है। इसके अंतर्गत न केवल ज्ञान की वर्तमान स्थिति पर बल दिया गया है, बल्कि इसमें सतत् वृद्धि एवं निरंतरता पर जोर दिया गया है। मूलतः ज्ञान एवं वैज्ञानिक गतिविधि, जिसके आधार पर ज्ञान का संचय होता है, विज्ञान के पहलू हैं। विज्ञान ज्ञान का संचय भी है और एक निश्चित विधि या पद्धति भी है। ये दोनों पक्ष अंतः सम्बन्धित हैं। विज्ञान का संबंध ऐसे ज्ञान से है, जिसका संचय व्यवस्थित, नियंत्रित एवं आनुभविक ढंग से किया जाता है। वस्तुनिष्ठता, विश्वसनीयता एवं आनुभाविकता विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 11.
यथार्थ वाक्य से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जिस व्यापक अथवा सामान्य वाक्य (general proposition) में विधेय (Predi cate) उद्देश्य (Subject) पद की गुणवाचकता (connotation) को प्रकट नहीं करता है बल्कि उद्देश्य के संबंध में नया ज्ञान देता है, उसे यथार्थ वाक्य कहते हैं। जैसे-‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ एक यथार्थ वाक्य है, क्योंकि इसमें विधेय’ (मरणशीलता) अपने ‘उद्देश्य’ (मनुष्य) के संबंध में नया ज्ञान देता है। दूसरी तरफ यदि हम यह कहें कि ‘सभी मनुष्य विवेकशील होते हैं तो यह यथार्थ वाक्य नहीं है, क्योंकि इसमें विवेकशीलता’ ‘मनुष्य’ पद के संबंध में कोई नया ज्ञान नहीं देता है।
‘विवेकशीलता’ तो ‘मनुष्य पद में ही निहित है, क्योंकि ‘मनुष्य’ पद का सार गुण ‘विवेकशीलता’ है, जिसे मनुष्य पद की गुणवाचकता (connotation) कहते हैं। चूँकि उपर्युक्त वाक्य (सभी मनुष्य मरणशील हैं) में ‘मरणशीलता’ ‘मनुष्य’ पद की गुणवाचकता को व्यक्त न कर इसके संबंध में नया ज्ञान देता है, इसलिए यह यथार्थ वाक्य है।
‘सभी मनुष्य विवेकशील होते हैं। एक शाब्दिक वाक्य है, क्योंकि ‘विवेकशीलता’ मनुष्य के संबंध में कोई नया ज्ञान नहीं है। शाब्दिक वाक्य की स्थापना आगमन नहीं करता बल्कि यह ऐसे वाक्य की स्थापना करता है जिसमें विधेय अपने उद्देश्य के संबंध में नया ज्ञान देता है और जिसे यथार्थ वाक्य कहते हैं। जिस अनुमान से ज्ञान की वृद्धि होती है उसे आगमनात्मक अनुमान कहते हैं और इसीलिए यथार्थ वाक्य की स्थापना आगमनात्मक अनुमान द्वारा होती है।
प्रश्न 12.
कारण-कार्य-नियम किस प्रकार वैज्ञानिक आगमन का मुख्य आधार है?
उत्तर:
कारण-कार्य-नियम वैज्ञानिक आगमन का मुख्य आधार इसलिए है क्योंकि आगमन का निष्कर्ष मुख्य रूप से कारण-कार्य-नियम द्वारा ही सत्यापित होता है। सभी आगमनों में वैज्ञानिक आगमन को सबसे अधिक सत्य इसलिए माना गया है क्योंकि इसका सामान्य वाक्य कारण-कार्य-नियम पर आधारित होता है। मनुष्य और मरणशीलता में कारण-कार्य का संबंध है; क्योंकि ‘मनुष्य’ होना ही ‘मरणशीलता’ का कारण है।
यदि मनुष्य होना मरणशीलता का कारण है तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि भविष्य में भी मनुष्य रहेगा तो वह मरणशील होगा। वैज्ञानिक आगमन का सामान्य वाक्य ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ जब प्रकृति-समरूपता नियम के द्वारा सत्यापित होता है, तब भी यह अवैज्ञानिक ही रह जाता है क्योंकि तबतक निष्कर्ष की सत्यता संभाव्य रहती है।’ परंतु, जब इसका सामान्य वाक्य कारण-कार्य नियम द्वारा सत्यापित हो जाता है, कि मनुष्य होना ही मरणशीलता का कारण है तो यह पूर्ण वैज्ञानिक हो जाता है। इस प्रकार कारण-कार्य-नियम वैज्ञानिक आगमन की मुख्य आधार है।
प्रश्न 13.
अव्याघातक अनुभव क्या है?
उत्तर:
आज तक जो बात सत्य होती आयी है और उसका कोई भी विरोधी उदाहरण नहीं मिला है तो विरोधी उदाहरण का नहीं मिलन अव्याघातक अनुभव (uncontradicted experi ence) कहलाता है जिसके सहारे अनुमान कर लिया जाता है कि यह बात भविष्य में भी सत्य रहेगी। सरल परिगणनात्मक आगमन अथवा अवैज्ञानिक आगमन का निष्कर्ष अव्याघातक अनुभव ही आधारित होता है। अव्याघातक अनुभव पर आधारित वाक्य प्रकृति-समरूपता नियम द्वारा तो सत्य सिद्ध होते हैं, परंतु कारण-कार्य नियम के अभाव में कारण संभाव्य साबित होते हैं अर्थात् निष्कर्ष के संबंध में निश्चितता नहीं रहती कि यह भविष्य में भी सत्य रहेगा या नहीं।
जैसे – सभी काग काले होते हैं अव्याघातक अनुभव पर आधारित निष्कर्ष है। प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार यह संभावना रहती है कि भविष्य में सभी काग काले ही होंगे, परंतु इस निष्कर्ष के साथ कारण-कार्य नियम लागू नहीं होने के कारण यह सत्यापित नहीं हो पाता कि भविष्य में काग अवश्य ही काले ही दिखाई पड़ेंगे अथवा होंगे। अतः, अव्याघातक अनुभव पर आधारित यथार्थ सामान्य वाक्य का निष्कर्ष भविष्य में सत्य भी हो सकता है और असत्य भी। अव्याधातक अनुभव पर आधारित निष्कर्ष की सत्य में निश्चितता नहीं रहने के कारण ही इसे अवैज्ञानिक माना गया है। क्योंकि वैज्ञानिक निष्कर्ष की सत्यता में निश्चितता रहती है।
प्रश्न 14.
मिल के अनुसार आगमन निगमन के पहले आता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
मिल की यह सुदृढ़ मान्यता है कि आगमन निगमन के पहले आता है। मिल साहब का मत जेवन्स के मत से भिन्न है। इनके अनुसार आगमनिक खोज में सामान्यीकरण का महत्त्व बहुत अधिक है। इसी कारण ये आगमन को निगमन के पहले रखते हैं। न्याय (syllogism) निगमन का मुख्य रूप है और इसके लिए आधार के रूप में कम-से-कम एक पूर्णव्यापी (universal) वाक्य की आवश्यकता होती है और इस वाक्य की स्थापना आगमन द्वारा ही होती है। इस प्रकार आगमन ही निगमन को आधार प्रदान करता है। इसलिए यह कहना उचित है कि आगमन निगमन के पहले आता है (Induction is prior to Deduction)।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
“तर्कशास्त्र सभी विज्ञानों का विज्ञान है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
डन्स स्कॉटस (Dunsscotus) ने तर्कशास्त्र को सभी विज्ञानों का विज्ञान कहा है (Logic is the science of all sciences) यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। इसका कारण है कि सभी विज्ञानों की आधारभूत मौलिक मान्यताओं का अध्ययन तर्कशास्त्र में किया जाता है। तर्कशास्त्र की विषय-वस्तु की सहायता से ही विज्ञान को पद्धति को और अधिक सुसंगत बनाया जाता है। इसीलिए विज्ञान को विज्ञान कहा जाता है। अतः प्रत्येक विज्ञान किसी-न-किसी रूप में तर्कशास्त्र पर निर्भर करता है। अतः तर्कशास्त्र विज्ञानों का विज्ञान है। तर्कशास्त्र को सभी विज्ञानों की सामग्री के रूप में भी स्वीकार किया गया है। प्रत्येक विज्ञान को चाहे वह भौतिक हो या प्राकृतिक तर्कशास्त्र की विषय वस्तु की आवश्यकता होती है। इसी विषय वस्तु को आधार मान कर विज्ञान अपना निष्कर्ष निष्पादित करता है।
विज्ञान दो प्रकार के होते हैं। वे है-यथार्थपरक तथा आदर्शपरक। जब किसी पदार्थ को देखकर उसके सम्बन्ध में हू-ब-हू चित्रण प्रस्तुत किया जाता है तब वह यथार्थपरक कहलाता है। इसका सम्बन्ध वस्तु जिस रूप में होती है, उसी से है। यहाँ पर वास्तविक वर्णन होता है, इसलिए यथार्थपरक विज्ञान को है “है (is) विज्ञान” भी कहा जाता है। जैसे-‘कमल’ लाल है’ यानि कमल को हमने जिस रूप में देखा उसे उसी रूप में चित्रित और वर्णित किया। यथार्थपरक विज्ञान में घटनाओं का अध्ययन उसी रूप में किया जाता है जिस रूप में वे घटती हैं। इसे वस्तुपरक विज्ञान भावात्मक विज्ञान या वर्णनात्मक विज्ञान भी कहा जाता है।
दूसरी ओर आदर्शपरक विज्ञान का सम्बन्ध चाहिए से होता है, क्योंकि यह विज्ञान वस्तुओं का स्वरूप “कैसा होना चाहिए” का अध्ययन करता है। यह विज्ञान उस आदर्श को बताता है जिसके अनुरूप वस्तुओं को होना चाहिए। चूँकि इस विज्ञान का संबंध चाहिए (Cought) से है, इसीलिए इसे ‘चाहिए विज्ञान’ भी कहा जाता है। जैसे-‘हमें सत्य बोलना चाहिए’। यह आदर्श का निरूपन करता है। यह विज्ञान हमें बताता है कि क्या होना चाहिए।
तर्कशास्त्र भी वस्तुतः आदर्शपरक विज्ञान है। यह बताता है कि अनुमान किस प्रकार का होना चाहिए जिससे कि वह सत्य, वास्तविक और यथार्थ हो। वस्तुतः तर्कशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है। विज्ञान और कला में किसी भी प्रकार का विरोध नहीं है। विज्ञान का संबंध जानने तथा कला का सम्बन्ध करने से है। विज्ञान पदार्थों की वास्तविकता से तथा उसके सुव्यवस्थित ज्ञान से संबंधित है तथा कला इस ज्ञान के द्वारा किसी उद्देश्य की प्राप्ति करती है।
प्रश्न 2.
सरल परिगणनात्मक आगमन क्यों ‘अपूर्ण आगमन’ कहलाता है? इसे वैज्ञानिक आगमन क्यों नहीं समझा जाता है?
उत्तर:
पूर्ण आगमन के विरोधी अथवा विपरीत अर्थ के रूप में सरल परिगणनात्मक आगमन अपूर्ण आगमन भी कहलाता हैं यह अपूर्ण आगमन इसलिए कहलाता है, क्योंकि इसमें कारण-कार्य सम्बन्ध का अभाव होता है। कारण-कार्य नियम के संबंध नहीं रहने के कारण सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष निश्चित नहीं होता। ‘सभी काग काले होते हैं’ में यह प्रमाणित होता है कि अबतक जितने भी कौए दिखाई पड़े हैं, सभी काले ही दिखाई पड़े हैं।
प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार भविष्य में भी सभी कौए काले ही दृष्टिगोचर होने चाहिए, परन्तु सरल परिगणनात्मक आगमन चूँकि कारण-कार्य नियम पर आधारित नहीं होता, इसलिए भविष्य में सभी कौओं के काले होने की केवल संभावना ही होती है, निश्चितता नहीं। अपूर्ण आगमन वह आगमनात्मक आगमन होता है। जिसमें कुछ ही विशेष उदाहरणों की जाँच के बाद पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना कर दी जाती है। इस तरह के निष्कर्ष अपूर्ण इसलिए कहलाते हैं क्योंकि ये कारण-कार्य सम्बन्ध के ज्ञान पर आधारित नहीं होते। सरल परिगणनात्मक आगमन का तर्क अथवा निष्कर्ष इसी प्रकार का होता हैं।
इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि सरल परिगणनात्मक आगमन अपूर्ण आगमन इसलिए होता है कि इसका सामान्यीकरण कारण-कार्य सम्बन्ध पर आधारित न होकर अपूर्ण उदाहरणों की गणना पर निर्भर करता है। इसमें पूर्ण आगमन की तरह सभी उदाहरणों की गणना से सामान्यीकरण नहीं किया जाता। चूंकि इसमें कुछ ही उदाहरणों की गणना पर सामान्य यथार्थ वाक्य की स्थापना कर दी जाती है, इसलिए इसे अपूर्ण आगमन कहा जाता है।
अत: सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष ‘सभी हंस सफेद होते हैं’ अपूर्ण आगमन है, क्योंकि वस्तुतः इसमें संसार के सभी हंसों की गणना नहीं की गई है बल्कि कुछ ही हंसों को सफेद देखकर यह निष्कर्ष निकाल लिया गया है कि ‘सभी हंस सफेद होते हैं’ पूर्ण आगमन में पूर्ण उदाहरणों की गणना की जाती है, जैसे-‘सभी विद्यार्थी उपस्थित हैं’ इस सामान्य वाक्य में सभी विद्यार्थियों की गणना की गयी है। अतः सरल परिगणनात्मक आगमन को अपूर्ण आगमन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें पूर्ण आगमन की भाँति सामान्य वाक्य स्थापित करने में सभी उदाहरणों की गणना नहीं की जाती। सरल परिगणनात्मक आगमन को हम वैज्ञानिक आगमन इसलिए नहीं समझते, क्योंकि –
1. यह कारण-कार्य संबंध पर आधारित नहीं है (It is not based on a casual connection):
वैज्ञानिक आगमन कारण-कार्य सम्बन्ध पर आधारित होता है-यह कारण-कार्य नियम के आधार पर किसी घटना की व्याख्या करता है कि यदि कार्य (effect) है तो उसका कोई-न-कोई कारण अवश्य होगा। जैसे – ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ वैज्ञानिक आगमन का सामान्य यथार्थ वाक्य है-इसका विरोधी उदाहरण नहीं मिल सकता क्योंकि मनुष्यता ही मरणशीलता का कारण है अर्थात् मनुष्य जन्म लेगा तो मरेगा अवश्य ही। परन्तु, सरल परिगणनात्मक आगमन कारण-कार्य नियम पर आधारित नहीं होता।
केवल कारण-कार्य नियम के लागू नहीं होने के कारण ही इसका निष्कर्ष वैज्ञानिक नहीं होता। जैसे-“इसके निष्कर्ष ‘सभी काग काले होते हैं’ में ‘काग’ और ‘कालापन’ के बीच कारण-कार्य का सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि ‘काग’ का होना ‘कालेपन’ का कारण नहीं है। वैज्ञानिक आगमन में कारण-कार्य का नियम लागू होने के कारण हम निश्चिततापूर्वक कह सकते हैं कि मनुष्य मरता है इसलिए क्योंकि वह जन्म लेता है अर्थात् ‘मृत्यु’ इसलिए है क्योंकि ‘मनुष्य’ है और भविष्य में भी यदि ‘मनुष्य’ रहेंगे तो ‘मृत्यु’ अवश्य ही रहेगी।”
लेकिन सरल परिगणनात्मक आगमन में कारण-कार्य का नियम लागू नहीं होने के कारण हम यह नहीं कह सकते कि काग का होना ही कालेपन का कारण है (अर्थात् काला इसलिए है कि क्योंकि काग है)। यह अवैज्ञानिक आगमन इसलिए है कि क्योंकि इसमें निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में यदि कागों का निरीक्षण किया जाएगा तो वे अवश्य ही काले पाये जाएँगे। अतः कारण-कार्य सम्बन्ध पर आधारित नहीं रहने के कारण सरल परिगणनात्मक आगमन का सामान्य यथार्थ वाक्य वैज्ञानिक सत्यापित नहीं हो पाता, यह अवैज्ञानिक ही रह जाता है।
2. यह वैज्ञानिक आगमन की निश्चितता तक भी नहीं पहुंच सकता (It can never reach the certainty of Scientific Induction):
सरल परिगणनात्मक आगमन को वैज्ञानिक आगमन इसलिए नहीं समझा जाता, क्योंकि इसका निष्कर्ष निश्चित न होकर संभाव्य (prob able) होता है। कारण-कार्य नियम लागू नहीं होने के कारण इसके निष्कर्ष की निश्चितता नहीं रहती और न अनिश्चितता ही अर्थात् निष्कर्ष सत्य भी प्रमाणित हो सकता है और असत्य भी। क्योंकि सरल परिगणनात्मक आगमन में हम मात्र विश्वास कर लेते हैं कि अनिरीक्षित उदाहरण निरीक्षित उदाहरणों के समान ही होंगे।
यदि भविष्य में कोई हंस काला, लाल या पीला दिखाई पड़ जाए तो सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष असत्य प्रमाणित हो जाएगा कि ‘सभी हंस सफेद होते हैं’। परन्तु, भविष्य में यदि हंस का रंग केवल सफेद ही रहे तो यह निष्कर्ष सत्य ही रहेगा। सरल परिगणनात्मक आगमन वैज्ञानिक आगमन की निश्चितता तक इसलिए भी नहीं पहुँच सकता, क्योंकि इसके निष्कर्ष की सत्यता उदाहरणों की गणना पर निर्भर करती है। अतः यह किसी भी हालत में वैज्ञानिक आगमन की निश्चितता तक नहीं पहुंच सकता।
सरल परिगणनात्मक आगमन में हम इस विश्वास पर ‘सभी काग काले होते हैं’, ‘सभी हंस सफेद होते हैं’ आदि सामान्य यथार्थ वाक्यों की स्थापना कर लेते हैं कि काग और कालेपन तथा हंस और उजलेपन में अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण संबंध है। लेकिन यह संबंध भविष्य में भी रहेगा, इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि सरल परिगणनात्मक आगमन वैज्ञानिक आगमन नहीं कहलाता। यदि इसमें कभी कारण-कार्य संबंध का पता चल जाए तो इसका निष्कर्ष सत्यापित हो जाएगा और तब यह वैज्ञानिक आगमन का रूप ले लेगा। सरल परिगणनात्मक आगमन को अपूर्ण आगमन माना जाता है। जब हम निश्चित रूप से जान जाते हैं कि इसमें कारण-कार्य का संबंध नहीं है तो इसके अनुमान का उचित कारण नहीं बताया जा सकता।
सरल परिगणनात्मक आगमन में हम सन्देह में घिरे रहते हैं क्योंकि हम विश्वास के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल लेते हैं ज्ञान के आधार पर नहीं। सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष निश्चितता और अनिश्चितता के दोराहे पर स्थित रहता है। यदि इसमें पूर्णता आ जाए अर्थात् विश्वास ज्ञान में बदल जाए तो यह वैज्ञानिक आगमन बन जाएगा नहीं तो इसकी सामान्यता और यथार्थता समाप्त हो जाएगी। पुनश्चः, सरल परिगणनात्मक आगमन चूँकि वैज्ञानिक आगमन की तरह निश्चित और सत्य निष्कर्षों की स्थापना न कर केवल स्वीकारात्मक (assertory) निष्कर्षों की ही स्थापना करता है, इसलिए इसे वैज्ञानिक आगमन नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न 3.
सरल परिगणनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन के बीच के भेद और समानता का वर्णन करें। सरल परिगणनात्मक आगमन का क्या महत्त्व (मूल्य) है?
उत्तर:
निम्नलिखित वर्णन के द्वारा सरल परिगणनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन के भेद को स्पष्ट किया जा सकता है –
वैज्ञानिक आगमन प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण-कार्य नियम पर आधारित होता है, परन्तु सरल परिगणनात्मक आगमन केवल प्रकृति-समरूपता नियम पर आधारित होता है, उसमें कारण-कार्य नियम लागू नहीं होता। जब हम वैज्ञानिक आगमन में यह निष्कर्ष स्थापित करते हैं कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ तो इस सामान्य वाक्य में ‘मनुष्य’ और ‘मरणशीलता’ में कारण-कार्य संबंध होने का ज्ञान रहता है। लेकिन जब हम परिगणनात्मक आगमन में यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ‘सभी हंस उजले होते हैं तो इस सामान्य वाक्य में ‘हंस’ और ‘उजलेपन’ में कारण-कार्य का संबंध है या नहीं, इसका हमें निश्चित ज्ञान नहीं रहता। वैज्ञानिक आगमन में सामान्य वाक्यों की स्थापना कारण-कार्य के ज्ञान के आधार पर होती है, परन्तु सरल परिगणनात्मक आगमन के सामान्य वाक्यों में इस ज्ञान को आधार नहीं बनाया जाता।
जब हम कहते हैं कि ‘सभी काग काले होते हैं तो इस सरल परिगणनात्मक आगमन में हमें यह पता नहीं रहता कि ‘काग’ कालेपन का कारण है या नहीं। ‘काग’ और ‘कालेपन’ के बीच में कारण-कार्य संबंध होने की निश्चितता नहीं रहती। यदि हमें इस बात की जानकारी हो जाए कि सरल गणनात्मक आगमन के सामान्य वाक्य में कारण-कार्य का संबंध है तो यह वैज्ञानिक आगमन कहलाएगा। सरल गणनात्मक आगमन के सामान्य वाक्य का सामान्यीकरण प्रकृति-समरूपता नियम की जानकारी के आधार पर होता है, परन्तु वैज्ञानिक आगमन में सामान्यीकरण कारण-कार्य नियम के आधार पर होता है। वैज्ञानिक आगमन के सामान्य वाक्यों पर प्रकृति-समरूपता नियम और कारण-कार्य नियम दोनों ही लागू होते हैं, परन्तु सरल परिगणनात्मक आगमन के सामान्य वाक्यों पर केवल प्रकृति-समरूपता नियम ही लागू होता है।
सरल गणनात्मक आगमन जब पूर्णता प्राप्त करता है तब वैज्ञानिक आगमन बन जाता है। इसीलिए इसे वैज्ञानिक आगमन का आरम्भ बिन्दु कहा गया है। कारण-कार्य संबंध पर आधारित न होने के कारण सरल गणनात्मक आगमन का निष्कर्ष संभाव्य होता है, परन्तु कारण-कार्य संबंध पर आधारित रहने के कारण वैज्ञानिक आगमन का निष्कर्ष निश्चित होता है। वैज्ञानिक आगमन का निष्कर्ष सदा सत्य होता है, परन्तु सरल परिगणनात्मक आगमन के निष्कर्ष के सत्य होने की सम्भावना रहती है, क्योंकि निरीक्षण का क्षेत्र जितना ही अधिक विस्तृत होता है, निष्कर्ष के सत्य होने की सम्भावना उतनी ही बढ़ जाती है। सरल परिगणनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन के बीच उपर्युक्त भेद तो हैं ही, इसके अतिरिक्त इनके बीच कुछ समानताएँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं –
1. सरल परिणगनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन दोनों में ही सामान्य यथार्थ वाक्य (general proposition) की स्थापना की जाती है। जैसे-‘सभी काग काले होते हैं’ और ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ – दोनों ही सामान्य यथार्थ वाक्य हैं।
2. दोनों वास्तविक घटनाओं के निरीक्षण पर आधारित होते हैं। जैसे अब तक जितने भी काग दिखाई पड़े हैं, सभी काले ही दिखाई पड़े हैं इसलिए ‘सभी काग काले होते हैं’ वास्तविक घटना के निरीक्षण के आधार पर स्थापित हुआ है। आजतक जितने भी मनुष्य हुए हैं सभी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं इसलिए ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ वास्तविक घटना पर आधारित सामान्य यथार्थ वाक्य है।
3. सरल परिगणनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन दोनों में ही ‘विशेष’ से ‘सामान्य’ की ओर अथवा ‘कुछ’ से ‘सव’ की ओर आगमनात्मक छलांग (Inductive leap) लगाई जाती है। जैसे-कुछ ही कागों को काला देखकर निष्कर्ष दे दिया जाता है कि ‘सभी काग काले होते हैं’ तथा कुछ ही मनुष्यों को मरते देखकर सामान्य निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ – दोनों में आगमनात्मक छलांग द्वारा निष्कर्ष निकाला जाता है।
4. सरल परिगणनात्मक आगमन और वैज्ञानिक आगमन दोनों में प्रकृति-समरूपता नियम लागू होता है। प्रकृति-समरूपता नियम लागू होने के कारण ही भविष्य में सभी कागों के काला होने तथा सभी मनुष्यों के मरणशील होने की सत्यता पर विश्वास कर लिया जाता है।
सरल परिगणनात्मक आगमन का महत्त्व (मूल्य) (Importance (value) of Induc tion per Simple Enumeration):
यद्यपि सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष सदा सत्य नहीं होता (अर्थात् भविष्य में निष्कर्ष के सत्य होने की केवल संभावना रहती है), तथापि आगमन तर्कशास्त्र में इसका बहुत ही महत्त्व है। व्यावहारिक जीवन में इसका प्रयोग बहुत आसानी से कर लिया जाता है और इसे सत्य मान लिया जाता है, यद्यपि तार्किक दृष्टिकोण से यह सत्य भी हो सकता है और नहीं भी। आगमन तर्कशास्त्र में कई उप-नियमों की स्थापना करने के लिए इसका सहारा लेना पड़ा है। तर्कशास्त्रियों ने सरल परिगणनात्मक आगमन को ‘वैज्ञानिक आगमन तक पहुँचने की आरोहण-शिला’ कहा है।
सरल परिगणनात्मक आगमन को कुछ विद्वानों ने स्वीकारात्मक निष्कर्ष (Assertory Conclusion) कहा है। किसी समूह के सभी उदाहरणों का निरीक्षण करना संभव नहीं है, इसलिए हम दैनिक जीवन में सरल परिगणनात्मक आगमन द्वारा कुछ ही उदाहरणों के निरीक्षण के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकाल लेते हैं। इस तरह निष्कर्ष निकालने में समय की बचत होती है। चूँकि सरल परिगणनात्मक आगमन व्यावहारिक जीवन में उपयोगी साबित होता है, इसलिए तर्कशास्त्रियों ने इसे व्यावहारिक आगमन (Popular Induc tion) भी कहा है। नवीन परिस्थितियों के संबंध में निष्कर्ष निकालने में सरल गणनात्मक आगमन का प्रयोग निष्कर्ष की सत्यता के लिए बहुत ही उपयुक्त होता है।
सरल परिगणनात्मक आगमन का महत्त्व इसलिए भी है कि यह वैज्ञानिक आगमन का आरम्भ बिन्दु है। जैसे ही इसका निष्कर्ष कारण-कार्य नियम पर आधारित हो जाता है वैसे ही इसका निष्कर्ष निश्चित हो जाता है और यह वैज्ञानिक आगमन का रूप ले लेता है। सरल परिगणनात्मक आगमन यद्यपि कारण-कार्य संबंध पर आधारित नहीं होता तथापि यह कारण-कार्य संबंध की ओर संकेत करता है। इसका मुख्य महत्त्व कारण-कार्य संबंध की तरफ संकेत करने में ही है। इस संबंध में Grumley (ग्रमली) का निम्नलिखित कथन उल्लेखनीय है –
“The chief value of the enumerative method lies in its power to suggest casual relation. The condition that two phenomenon (subject and predicate)
are always or very frequently connected seems sufficient ground for enter taining the hypothesis that they are casually related.” “इस गणनात्मक विधि का मुख्य महत्त्व कारण-कार्य संबंध को प्रस्तावित करने की सामर्थ्य में है। दो वस्तुओं (उद्देश्य और विधेय) के हमेशा अथवा प्रायः संबंधित रहने की स्थिति इस अनुमान को स्थापित करने के पर्याप्त आधार जान पड़ते हैं कि वे कारण-कार्य द्वारा संबंधित हैं।”
प्रश्न 4.
सरल परिगणनात्मक आगमन का क्या तात्पर्य है? इसके मुख्य लक्षणों का वर्णन करें। अथवा, अवैज्ञानिक आगमन को परिभाषित करते हुए इसकी विशिष्टताओं की विवेचना करें।
उत्तर:
सरल परिगणनात्मक आगमन हमारे अव्याघातक अनुभव पर आधारित होता है। अव्याघातक अनुभव (uncontradicted experience) वह अनुभव है जिसमें यह निरीक्षण किया जाता है कि कुछ वस्तुएँ अथवा घटनाएँ ऐसी हैं जिनका विरोधी उदाहरण नहीं मिलता है। सरल परिगणनात्मक आगमन में प्रकृति-समरूपता नियम (The Law of the uniformity of Nature) के आधार पर व्यापक यथार्थ वाक्य की स्थापना की जाती है। सरल गणनात्मक आगमन को ‘मिल’ (Mill) ने इस प्रकार परिभाषित किया है –
“इसका संबंध उन सभी वाक्यों की व्यापक सच्चाइयों की प्रकृति का आरोपण करने में है जो उस प्रत्येक उदाहरण के लिए सत्य होती है, जिनके बारे में हम जान पाते हैं।” (“It consists in ascribing the character of general truths to all proposi tions which are true in every instance that we happen to know of”) बी. एन. राय के अनुसार-“सरल परिगणनात्मक आगमन वह है जिसमें विना कारण-कार्य संबंध की व्याख्या का प्रयास किए ही मात्र एक समान अथवा अव्याघातक अनुभव के आधार पर व्यापक यथार्थ वाक्य की स्थापना की जाती है।” (“Induction per simple Enumeration is the establishment of a general read proposition on the ground of mere uni form or uncontradicted experience without any attempt at explaining a casual connection”)
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सरल गणनात्मक आगमन में निरीक्षित घटनाओं को एक ही तरह का पाकर तथा उसका विरोधी कभी कुछ नहीं पाकर व्यापक यथार्थ वाक्य की स्थापना की जाती है। सरल गणनात्मक आगमन में विपरीत अथवा विरोध का अनुभव नहीं होता। जब हम हंस को देखते हैं तो उसे सफेद पाते हैं तथा इसके विपरीत अथवा विरोधी रंग का कोई हंस दिखाई नहीं पड़ता। इस प्रकार, हम आजतक निरीक्षित हंसों के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि ‘सभी हंस उजले होते हैं। काग को बराबर काला देखकर तथा उसे इसके विरोधी रंग का कभी न देखकर ही सरल गणनात्मक आगमन में व्यापक यथार्थ वाक्य की स्थापना कर दी जाती है कि सभी काग काले होते हैं।
परन्तु, जब हम सरल गणनात्मक आगमन के निष्कर्ष की सत्यता को सत्यापित करना चाहते हैं तो यह प्रकृति-समरूपता नियम के आधार पर प्रमाणित हो जाता है लेकिन कारण-कार्य सिद्धान्त द्वारा प्रमाणित नहीं होता। प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार यह प्रमाणित होता है कि भूतकाल में सभी हंस सफेद तथा सभी काग काले रहे थे, वर्तमान में हैं तथा भविष्य में रहेंगे। लेकिन कारण-कार्य सिद्धान्त के अनुसार इस निष्कर्ष की त्रैकालिक सत्यता सत्यापित नहीं होती।
चूँकि सरल परिगणनात्मक आगमन के निष्कर्ष पर कारण-कार्य नियम लागू नहीं होता अर्थात् ‘उजलापन’ और ‘हंस’ अथवा ‘कालापन’ और ‘काग’ के बीच कारण-कार्य संबंध स्थापित नहीं होता, इसलिए यह निश्चित रूप से सत्य नहीं माना जा सकता कि भविष्य में सभी हंस उजले ही होंगे अथवा सभी काग काले ही रहेंगे या लाखों वर्ष पहले सभी हंस उजले ही होंगे अथवा सभी काग काले ही रहेंगे या लाखों वर्ष पहले सभी हंस उजले अथवा सभी काग काले ही थे। आगमनात्मक निष्कर्ष तभी त्रैकालिक सत्य माना जाता है, जब वह प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण-कार्य नियम लागू नहीं होने के कारण सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष भविष्य में सत्य रहेगा या नहीं इसके संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है अर्थात् कारण-कार्य नियम लागू नहीं होने के कारण सरल गणनात्मक आगमन का निष्कर्ष संभाव्य रह जाता है, निश्चित नहीं रहता।
वैज्ञानिक आगमन की तरह इसमें, निष्कर्ष की निश्चितत नहीं रहने के कारण ही इसे अवैज्ञानिक आगमन कहा गया है। इसे सरल परिगणनात्मक आगमन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी विधि उदाहरणों की गणना पर आधारित होती है। ऐसे आगमन के. निष्कर्ष की सत्यता उदाहरणों की संख्या पर निर्भर करती है। जैसे-जितनी ही अधिक संख्या में हंसों को सफेद या कागों को काला देखेंगे उतना ही अधिक उपर्युक्त निष्कर्षों की सम्भाव्यता बढ़ जाएगी। सरल परिगणनात्मक आगमन में अनुमान करने की निम्नलिखित विधि अपनायी जाती है –
अमुक सदा सत्य पाया गया है
इसका एक भी विरोधी उदाहरण नहीं मिला है
∴ अमुक सदा सत्य है
∴ [Such and such has always been found true,
No instance to the contrary has been met with
∴ Such and such is always true]
सरल परिगणनात्मक आगमन अथवा अवैज्ञानिक आगमन के मुख्य लक्षण (Chief characteristics of Induction per simple Enumeration or Unscientific Induction):
सरल परिगणनात्मक़ आगमन की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर इसके निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं –
1. यह सामान्य वाक्य की स्थापना करता है (It establishes a general proposition):
वैज्ञानिक आगमन की तरह सरल परिगणनात्मक आगमन भी सामान्य वाक्य की स्थापना करता है। कुछ कागों को काला देखकर हम सामान्य वाक्य की स्थापना कर देते हैं कि ‘सभी काग काले होते हैं’। ‘सभी काग काले होते हैं’ एक सामान्य वाक्य (general proposition) इसलिए है, क्योंकि इसमें उद्देश्य पद को संपूर्ण वस्तुवाचकता में काला होने का अनुमान किया गया है। इसमें उद्देश्य पद ‘काग’ है और संपूर्ण वस्तुवाचकता सभी ‘काग’ हैं।
2. यह यथार्थ वाक्य की स्थापना करता है (Itestablishes a real proposition):
सरल परिगणनात्मक आगमन वैज्ञानिक आगमन की तरह की यथार्थ वाक्य की स्थापना करता है। ‘सभी काग काले होते हैं’ एक यथार्थ वाक्य भी है। यह यथार्थ वाक्य इसलिए है, क्योंकि इसमें विधेय ‘काला होना’ उद्देश्य पद ‘काग’ की गुणवाचकता को प्रकट नहीं करता। सरल परिगणनात्मक आगमन अव्याघाती अनुभव पर आधारित होता है, इसलिए इसमें जिस सामान्य वाक्य की स्थापना होती है वह यथार्थ या वास्तविक होता है। इस प्रकार यह वास्तविक वस्तुओं का निरीक्षण करता है, और यथार्थ वाक्य (real proposition) की स्थापना करता है। ‘सभी काग काले होते हैं’ एक यथार्थ वाक्य है, क्योंकि वास्तविक रूप से सभी काग काले होते हैं।
3. इसमें आगमनात्मक छलांग होती है (In it, there is an inductive leap):
वैज्ञानिक आगमन की तरह सरल गणनात्मक आगमन में भी ज्ञात से अज्ञात की ओर छलांग लगाई जाती है। जैसे-हमें कुछ कागों का काला होना ही ज्ञात होता है और इसी आधार पर हम अज्ञात की ओर छलांग लगाकर निष्कर्ष स्थापित कर देते हैं कि ‘सभी काग काले होते हैं।
4. यह उदाहरणों की गणना पर आधारित होता है। (It is based on the enumeration of instrances):
सरल परिगणनात्मक आगमन में वस्तुओं के गुणधर्म की जाँच नहीं की जाती बल्कि इसमें उदाहरणों की गणना की जाती है। निरीक्षित उदाहरणों की संख्या जितनी ही अधिक होगी सरल परिगणनात्मक आगमन का सामान्य यथार्थ वाक्य उतना ही सत्य के निकट होगा। हम जितनी ही अधिक संख्या में कागों को काला पाएँगे उतना ही निश्चिय के साथ कह सकेंगे कि सभी काग काले होते हैं।
5. यह प्रकृति-समरूपता सिद्धान्त पर आधारित है (It is based on the principles of the uniformity of Nature):
प्रकृति-समरूपता सिद्धान्त यह है कि ‘सामान्य स्थितियों में समान कारण समान कार्य उत्पन्न करता है’ (Under similar conditions the same cause produces the same effect’)। सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष प्रकृति-समरूपता सिद्धान्त पर आधारित होता है। इसमें हम ‘सभी काग काले होते हैं’ की सत्यता की जाँच प्रकृति-समरूपता सिद्धान्त के द्वारा करते हैं तो इसकी सत्यता प्रमाणित हो जाती है कि यदि आजतक काग काले पाये गये हैं तो भविष्य में भी काग काले ही पाये जाएँगे, क्योंकि प्रकृति-समरूपता सिद्धान्त के अनुसार प्रकृति का नियम सभी कालों में एक समान रहता है अर्थात् समान स्थितियों में समान कारण समान कार्य उत्पन्न करता है।
6. यह अव्याघातक अनुभव पर आधारित होता है (It is based on uncontra dicted experience):
आजतक जो बात सत्य होती आयी है तथा उसका कोई भी विरोधी उदाहरण नहीं मिला है, तो वह अव्याघातक अनुभव (uncontradicted experience) कहलाता है। सरल परिगणनात्मक अव्याघातक आगमन अनुभव पर आधारित होता है और इसी अनुभव के आधार पर सामान्य यथार्थ की स्थापना करता है। जैसे-सरल परिगणनात्मक निष्कर्ष (Induction per simple Enumerative conclustion) ‘सभी काग काले होते हैं।
इस अव्याघातक अथवा एक समान (Uniform experience) पर आधारित है कि आजतक जितने भी काग मिले हैं सभी काले रंग के पाए गए हैं और इसके विपरीत या व्याघाती रंग (उजला, पीला आदि) के नहीं पाये गये हैं। सरल परिगणनात्मक आगमन में एक ही तरह का अनुभव होने से अथवा इसके विरोधी अनुभव के अभाव के आधार पर सामान्यीकरण (generalisation) कर सामान्य यथार्थ वाक्य की स्थापना कर दी जाती है। बराबर सफेद हंस को पाकर तथा किसी दूसरे रंग के हंस को नहीं पाकर सामान्यीकरण कर दिया जाता है कि ‘सभी हंस उजले होते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि सरल परिगणनात्मक आगमन अव्याघातक अनुभव पर आधारित होता है।
7. यह कारण-कार्य से संबंध नहीं रखता (It does not ascribe in the Law of Causation):
सरल परिगणनात्मक आगमन कारण-कार्य संबंध पर आधारित नहीं होता। सरल परिगणनात्मक आगमन का निष्कर्ष यद्यपि सामान्य यथार्थ वाक्य होता है तथापि उसमें विधेय और उद्देश्य पद के बीच कारण-कार्य संबंध स्थापित नहीं होता। उदाहरण के लिए काग काले होते हैं, सामान्य वास्तविक वाक्य में ‘काग’ और ‘काला’ के वीच कारण-कार्य का संबंध नहीं है। सरल परिगणनात्मक आगमन के सामान्य यथार्थ (वास्तविक) वाक्य उदाहरणों की गणना और अव्याघातक अनुभव पर आधारित होते हैं। कारण-कार्य नियम पर सरल परिगणनात्मक आगमन के आधारित नहीं रहने के कारण हम ऐसा नहीं कह सकते कि भविष्य में सभी काग काले ही मिलेंगे।
8. यह संभाव्य निष्कर्ष की स्थापना करता है (It establishes probable conclustion):
सरल परिगणनात्मक आगमन संभाव्य निष्कर्ष की स्थापना करता है अर्थात् इसका निष्कर्ष अनिश्चित होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सरल परिगणनात्मक आगमन के निष्कर्ष के सत्य होने की केवल संभावना भर रहती है। कारण-कार्य नियम पर आधारित नहीं रहने के कारण ही इसे अवैज्ञानिक आगमन कहा गया है। अवैज्ञानिक आगमन के निष्कर्ष ‘सभी हंस उजले होते हैं’ में भविष्य में सभी हंसों के उजले होने की केवल संभावना व्यक्त होती है निश्चितता नहीं।
प्रश्न 5.
वैज्ञानिक विधि (Scientific method) से आप क्या समझते हैं? वैज्ञानिक विधि की प्रकृति को स्पष्ट करें। अथवा, वैज्ञानिक पद्धति क्या है? वैज्ञानिक पद्धति के लक्ष्यों (aims) को स्पष्ट करें। अथवा, वैज्ञानिक पद्धति के क्या कार्य (functions) हैं?
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति ही किसी विषय-वस्तु को विज्ञान के रूप में स्थापित करने का प्रमुख आधार है। यह पद्धति प्रत्येक विज्ञान में समान है। केवल तथ्य ही विज्ञान नहीं है बल्कि उन तथ्यों का व्यवस्थित संकलन, वर्गीकरण एवं विश्लेषण उन्हें विज्ञान की श्रेणी में रखता है। वस्तुतः वैज्ञानिक पद्धति विज्ञान की समस्त शाखाओं में एक होती है। चाहे वह प्राकृतिक विज्ञान हो अथवा सामाजिक विज्ञान। कार्ल पियर्सन (Karl Pearson) के अनुसार, The scientific method is one and the same in all branches.
वैज्ञानिक पद्धति एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत तथ्यों का संकलन, सत्यापन, वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति का उद्देश्य सामान्य नियमों की खोज या विवरण प्रस्तुत करना है, जिससे विषय-वस्तु को समझा जा सके। नियंत्रित रूप से पूर्वानुमान के लिए प्रयुक्त किया जा सके। स्पष्टतः वैज्ञानिक पद्धति द्वारा संकलित ज्ञान ही विज्ञान है। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति या लक्ष्य (Nature or aims of Scientific methods) उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हम वैज्ञानिक पद्धति के निम्नलिखित प्रकृति या उद्देश्य की चर्चा कर सकते हैं।
1. विवरण एवं समझ:
वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किसी भी विषय-वस्तु की व्यापक जानकारी हेतु विवरण (description) एवं समझ (understanding) देने की कोशिश की जाती है। दूसरे शब्दों में विषय-वस्तु को समझने एवं वर्गीकृत करने का प्रयत्न किया जाता है। तथ्यों के संकलन के आधार पर घटनाओं के विभिन्न पक्षों को वर्णित करना, उनके स्वरूपों एवं विविधताओं को स्पष्ट करना प्रत्येक वैज्ञानिक पद्धति का मुख्य कार्य है। किसी भी विषय के विविध स्वरूपों को वर्गीकरण द्वारा स्पष्ट किया जाता है।
2. व्याख्या यानि विश्लेषण (Explanation):
तथ्यों के आधार पर विषय-वस्तु के पारस्परिक सम्बन्धों की अर्थपूर्ण व्याख्या वैज्ञानिक पद्धति का दूसरा महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। विज्ञान केवल अनेक तथ्यों का संकलन नहीं है बल्कि उन तथ्यों के अर्थपूर्ण सम्बन्धों की खोज भी है, जिससे सामान्य नियमों एवं तथ्यों की खोज की जा सके। वैज्ञानिक पद्धति चरों (variables) के पारस्परिक संबंधों को अर्थपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है।
3. भविष्यवाणी एवं नियंत्रण:
वैज्ञानिक पद्धति की महत्त्वपूर्ण प्रकृति भविष्यवाणी एवं नियंत्रण (prediction and control) भी होती है। जब हम विषय-वस्तु की प्रकृति, स्वरूप एवं विविधताओं को समझकर, स्पष्टकर साथ ही उनके अर्थपूर्ण विश्लेषण एवं सिद्धान्तों के विकास के आधार पर अपनी विषय-वस्तु के बारे में पूर्वानुमान लगा सकते हैं तो उनके सम्बन्ध में भविष्यवाणी कर सकते हैं।
भविष्यवाणी की क्षमता का संबंध वैज्ञानिक ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग से है। विषय-वस्तु से संबंधित विश्लेषण एवं भविष्यवाणी के आधार पर घटनाक्रम पर नियंत्रण भी कर सकते हैं। इसका प्रयोग हम इच्छित उद्देश्य (desired aim) मानव कल्याण की दृष्टि से भी कर सकते हैं। संक्षेप में हम कह सकते कि वैज्ञानिक पद्धति का उद्देश्य घटनाओं की समझ एवं वर्णन, व्याख्या, भविष्यवाणी एवं नियंत्रण है। कहने का अभिप्राय विषय-वस्तु को समझना, संबद्ध सिद्धान्तों का निरूपण, भविष्यवाणी तथा नियंत्रण वैज्ञानिक पद्धति का अंतिम लक्ष्य है।
प्रश्न 6.
अध्ययन पद्धति की दृष्टि से प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) एवं समाज विज्ञान (Social Science) में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) एवं सामाजिक विज्ञान (Social Science) के बीच अन्तर का मुख्य आधार यह है कि प्राकृतिक घटनाएँ एवं सामाजिक घटनाएँ एक जैसी नहीं हैं। प्राकृतिक यानि भौतिक विषय-वस्तु का अध्ययन काफी विशिष्टता से किया जाता है। इस वजह से जब भी हम विज्ञान की बात करते हैं तो लोगों का ध्यान भौतिक, रसायन आदि प्राकृतिक विज्ञानों की ओर चला जाता है। यहीं यह सवाल उठता है कि समाज विज्ञान जिसे हम व्यवहार विज्ञान (Behavioural Science) भी कह सकते हैं, का प्राकृतिक विज्ञानों की तरह अध्ययन संभव है कि नहीं। समाज विज्ञान की प्रकृति की भिन्नता के आधार वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग के संबंध में काफी आपत्तियाँ उठाई जाती हैं।
पश्चिमी दार्शनिक डिल्थे (Dilthey) के सामने भी यह प्रश्न था कि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन प्राकृतिक विज्ञान की पद्धति से नहीं किया जा सकता है। क्योंकि दोनों की विषय-वस्तु की प्रकृति एवं दृष्टिकोण भिन्न हैं। प्राकृतिक विज्ञान तथ्यों का अध्ययन करते हैं जबकि सामाजिक विज्ञान का संबंध अर्थपूर्ण व्यवहार से है, जिसकी समझकर ही व्याख्या की जा सकती है। डिल्थे के समकालीन रिकर्ट (Rickert) के विचार उनसे भिन्न थे। उनके अनुसार घटना या विषय-वस्तु अलग हो सकते हैं लेकिन उनकी अध्ययन-पद्धति में समानता संभव है। उनकी दृष्टि में प्राकृतिक घटनाओं की तरह सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन संभव है।
प्राकृतिक विज्ञान एवं समाज विज्ञान में अंतर हम निम्नलिखित ढंग से कर सकते हैं –
1. प्राकृतिक विज्ञान की विषय:
वस्तु मूर्त (concrete) एवं वस्तुनिष्ट होती है। जबकि समाज विज्ञान की प्रकृति अमूर्त (Abstract) एवं जटिल होती है। समाजविज्ञान की अमूर्तता एवं व्यक्तिनिष्ठता के कारण सामाजिक घटना का प्रत्यक्ष अवलोकन एवं निश्चित माप थोड़ा कठिन कार्य है।
2. प्राकृतिक विज्ञान की विषय:
वस्तु की जटिलता एवं परिवर्तनशीलता, समाजविज्ञान की तुलना में कम है। लेकिन गहराई से देखें तो किसी भी विषय की जटिलता सापेक्ष होती है, जैसे-जैसे उनका अध्ययन किया जाता है, वे सरल होती जाती हैं। भौतिक विज्ञान में भी तो ऐसे विषय हैं जो जटिल हैं। उदाहरण के लिए अणुकेन्द्र के चारों ओर घूमने वाले परमाणु की गति के बारे में वैज्ञानिक अभी तक निश्चित अनुक्रम ढूँढ नहीं पाए हैं।
3. वैज्ञानिक शुद्धता के लिए आवश्यक है कि विषय:
वस्तु की गणना एवं माप की जाए। भौतिक विज्ञान की वस्तुएँ गणनात्मक (Quantitative) रूप से विश्लेषित की जा सकती हैं, जबकि सामाजिक विज्ञान की प्रकृति गुणात्मक है। उसके गुणात्मक अध्ययन में परेशानी होती है।
4. प्राकृतिक विज्ञान में कार्य:
कारण सम्बन्ध को प्रदर्शित यानि खोजने हेतु प्रयोगशाला है जहाँ नियंत्रित अवस्था में अध्ययन किया जा सकता है। दूसरी ओर, समाज विज्ञान में मानव-व्यवहार के साथ प्रयोग करना कई सांस्कृतिक एवं नैतिक समस्या उत्पन्न कर सकता है।
5. प्राकृतिक विज्ञान में पूर्वानुमान (Prediction) की पूरी क्षमता होती है, दूसरी ओर, समाज विज्ञान में भौतिक विज्ञान की अपेक्षा मानव व्यवहार के संबंध में पूर्वानुमान लगाना अधिक कठिन होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सामाजिक घटनाओं की जटिलता, परिवर्तनशीलता, अमूर्तता आदि गुणों के कारण उनके संबंध में यथार्थ पूर्वानुमान कठिन है।
प्रश्न 7.
आगमन क्या है? वैज्ञानिक आगमन की परिभाषा दें तथा इसकी मुख्य विशेषताओं (लक्षणों) का वर्णन करें।
उत्तर:
आगमन सामान्य वाक्यों की स्थापना करता है। एक ओर जहाँ निगमन अपने सर्वव्यापी आधार वाक्य की वास्तविक सत्यता की कल्पना करता है, वहीं दूसरी ओर आगमन उसकी वास्तविक सत्यता को प्रमाणित करता है। सामान्य वाक्यों (general proposition) की वास्तविक सत्यता (Material Truth) को प्रमाणित करने के लिए आगमन विशेष उदाहरणों को खोजता है। कुछ निरीक्षित घटनाओं के अनुभव के आधार पर जिस सर्वव्यापी अथवा पूर्णव्यापी वाक्य (Universal Proposition) की स्थापना की जाती है, उसे सामान्यीकरण (generalisation) कहते हैं। सामान्यीकरण द्वारा स्थापित पूर्णव्यापी वाक्य सामान्य अथवा व्यापक यथार्थ वाक्य (general proposition) होता है।
आगमन में हम अंशव्यापी वाक्य से पूर्णव्यापी वाक्य (Universal Proposition) की ओर बढ़ते हैं। इसमें हम कुछ उदाहरणों का निरीक्षण कर सबों के बारे में निष्कर्ष निकालते हैं। ज्वाइस ने आगमन को परिभाषित करते हुए कहा है, “Induction is the legitimate derivation of universal laws from individual cases.” (कुछ विशेष उदाहरणों के आधार पर पूर्णव्यापी नियम का यथार्थ अनुमान ही आगमन है।) फाउलर ने आगमन की परिभाषा इस प्रकार दी “Induction is the legitimate inference of the general from the particular or of the more general from the less general.” (विशेष के आधार पर सामान्य अथवा कम व्यापक के आधार पर अधिक व्यापक का यथार्थ अनुमान ही आगमन है)
श्याम, गोपाल, राम आदि मनुष्यों को मरते देखकर हम आगमन में यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’। यह एक पूर्णव्यापी वाक्य है और वास्तविक भी। सामान्य अथवा व्यापक वाक्य (general proposition) की वास्तविकता आगमनात्मक अनुमान द्वारा प्रमाणित की जाती है। आगमन का मुख्य लक्ष्य है आगमनात्मक अनुमान (Inductive Inference) द्वारा वास्तविक सामान्य वाक्य (Real general proposition) की स्थापना करना। ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ एक वास्तविक सामान्य वाक्य है, जो पूर्णव्यापी (Universal) है। आगमन प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण-कार्य नियम के सहारे पूर्णव्यापी वाक्यों की सत्यता को प्रमाणित करता है और उसका निष्कर्ष (Conclusion) वास्तविक पूर्णव्यापी अथवा सामान्य वाक्य (real general proposition) होता है।
वैज्ञानिक आगमन (Scientific Induction):
सामान्य (व्यापक) वाक्यों की स्थापना के कई तरीके हैं जिनमें एक ही तरीका ऐसा है जो वैज्ञानिक (Scientific) है, जिसे वैज्ञानिक आगमन (Scientific induction) कहा जाता है। मिल ने वैज्ञानिक आगमन को परिभाषित करते हुए कहा है – “Scientific Induction is the establishment of a general real proposition, based on the observation of particular instances, in reliance on the Law of Uniformity of Nature and the law of Causation.” (प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण-कार्य के नियमानुसार विशेष उदाहरणों के निरीक्षण पर आधारित सामान्य वाक्य की स्थापना ही आगमन है।) वैज्ञानिक आगमन का उदाहरण है –
श्याम मर गया
करीम मर गया
जौन मर गया
∴ सभी मनुष्य मरणशील हैं
उपर्युक्त उदाहरण में श्याम, करीम, जौन को मरते हुए देखकर सभी मनुष्यों के मरणशील होने का जो अनुमान किया गया है वह वैज्ञानिक आगमनात्मक अनुमान है। इसमें हम कुछ मनुष्यों को मरते देखकर एक सामान्य निष्कर्ष निकालते हैं कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’। यह एक सामान्य अथवा व्यापक वाक्य (general proposition) है। यह वाक्य केवल श्याम, करीम और जौन के लिए ही सत्य नहीं है बल्कि संसार के सभी मनुष्यों के लिए सत्य है।
सभी मनुष्यों की मरणशीलता का ज्ञान प्रत्यक्ष से संभव नहीं है क्योंकि सभी मनुष्यों को मरते हुए देखा नहीं जा सकता। आगमनात्मक अनुमान में प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष का ज्ञान प्राप्त किया जाता हैं आगमनात्मक अनुमान का निष्कर्ष आधार से अधिक व्यापक होता है। ‘श्याम मर गया’ (आधार वाक्य) से अधिक व्यापक है ‘सभी मनुष्य मरणशील है’ जो निष्कर्ष वाक्य है। ‘सभी मनुष्य मरणशील है’ निष्कर्ष वाक्य एक सामान्य वाक्य है जो वर्तमान, भूत और भविष्यत् सभी कालों के लिए सत्य है। ‘कुछ’ के आधार पर ‘सभी’ के संबंध में सामान्य अथवा व्यापक वाक्य (general proposition) की स्थापना करने की क्रिया ही आगमन कहलाती है।
परन्तु आगमनात्मक अनुमान में ज्ञात के आधार पर अज्ञात की ओर अथवा विशेष के आधार पर सामान्य की ओर छलांग लगाने में गलती की संभावना रहती है, जिसे आगमनात्मक खतरा (inductive Risk) कहा जाता है। हम कुछ ही घटनाओं के आधार पर किस प्रकार सबों के संबंध में निष्कर्ष निकाल सकते हैं? प्रत्यक्ष के आधार अप्रत्यक्ष के संबंध में निष्कर्ष निकालने में गलती हो सकती है। ज्ञात के आधार पर अज्ञात के संबंध में निष्कर्ष निकालने के लिए आगमन के ठोस वैज्ञानिक आधार हैं। ये हैं-प्रकृति-समरूपता नियम (Law of the Uniformity of Nature) तथा कारण-कार्य नियम (Law of Causation)।
इन दोनों नियमों के आधार पर जिस सामान्य वाक्य की स्थापना की जाती है वह सभी स्थान और काल के लिए सत्य होता है। यथार्थ उदाहरणों के निरीक्षण के आधार पर सामान्य वाक्य की स्थापना होती है, इसलिए सामान्य वाक्यों में वास्तविक सत्यता भी होती है। इसलिए इन नियमों पर आधारित सामान्य अथवा व्यापक वाक्य यथार्थ सामान्य वाक्य अथवा वास्तविक व्यापक वाक्य (real general proposition) कहलाते हैं। वैज्ञानिक आगमन में जो बात विशेष उदाहरण के लिए सत्य होती है वह उस तरह के सभी उदाहरणों के लिए सत्य होती है। आगमनात्मक अनुमान के अनुसार यदि ‘मरणशीलता’ कुछ मनुष्यों के लिए सत्य है तो यह मनुष्य जाति के सभी व्यक्तियों के लिए सत्य होगी।
वैज्ञानिक आगमन की विशेषताएँ (Characteristics of Scientific Induction):
वैज्ञानिक आगमन के संबंध में मिल (Mill) ने जो परिभाषा दी है उसके आधार पर इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं –
1. वैज्ञानिक आगमन किसी वाक्य की स्थापना करता है (Scientific Induction establishes a proposition):
आगमनात्मक निष्कर्ष कोई वाक्य होता है। दो प्रत्ययों (ideas) का योग कोई वाक्य होता है। जैसे-‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ में ‘मनुष्य’ और ‘मरणशीलता’ दो प्रत्यय हैं, जिसमें ‘मनुष्य’ उद्देश्य के स्थान पर है तथा ‘मरणशीलता’ विधेय के स्थान पर। इन दोनों प्रत्ययों के बीच आगमनात्मक अनुमान द्वारा संबंध स्थापित करने पर एक वाक्य की स्थापना होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आगमन सर्वप्रथम किसी वाक्य की स्थापना करता है।
2. वैज्ञानिक आगमन सामान्य वाक्य की स्थापना करता है (Scientific Induction establishes a general proposition):
वाक्य दो प्रकार के होते हैं अंशव्यापी (Particu lar) तथा पूर्णव्यापी (Universal)। जैसे-‘कुछ मनुष्य मरणशील हैं’ एक अंशव्यापी वाक्य है, क्योंकि इसमें ‘मरणशील’ कुछ ही व्यक्तियों को कहा गया है। इस वाक्य में विधेय सम्पूर्ण उद्देश्य के संबंध में ज्ञान नहीं देता है। ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं।’ एक पूर्णव्यापी वाक्य है, क्योंकि इस वाक्य में विधेय सम्पूर्ण उद्देश्य के संबंध में ज्ञान देता है। इस वाक्य में ‘मरणशील’ सभी व्यक्तियों को कहा गया है। पूर्णव्यापी वाक्य का ज्ञान अनुभव द्वारा नहीं होता, क्योंकि हम कुछ ही व्यक्तियों को मरते हुए (अनुभव द्वारा) देख सकते हैं सबों को नहीं।
‘सबों’ के संबंध का ज्ञान आगमनात्मक अनुमान द्वारा होता है जिसका निष्कर्ष सर्वव्यापी अथवा पूर्णव्यापी वाक्य होता है। जैसे – ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ एक पूर्णव्यापी वाक्य है और यही आगमन का निष्कर्ष है। आगमन का निष्कर्ष सामान्य वाक्य अथवा व्यापक वाक्य (general proposition) कहलाता है। अतः यह स्पष्ट होता है कि आगमन का संबंध अंशव्यापी वाक्यों से न होकर पूर्णव्यापी वाक्यों से होता है। इस तरह आगमन सामान्य अथवा व्यापक वाक्य की स्थापना करता है। सामान्य वाक्य की पूर्णव्यापी वाक्य अथवा व्यापक वाक्य कहलाता है।
3. वैज्ञानिक आगमन वास्तविक वाक्य की स्थापना करता है (Scientific Induc tion establishes a real proposition):
सामान्य वाक्य अथवा व्यापक वाक्य दो प्रकार के होते हैं-शाब्दिक वाक्य (Verbal proposition) तथा वास्तविक वाक्य (real proposition)। शाब्दिक वाक्य उसे कहा जाता है जिसमें विधेय अपने उद्देश्य के संबंध में कोई नई जानकारी नहीं देता।
शाब्दिक वाक्य में विधेय (predicate) अपने उद्देश्य पद (Subject) की केवल गुणवाचकता को व्यक्त करता है। जैसे – ‘सभी मनुष्य विवेकशील हैं’ एक शाब्दिक वाक्य (Verbal proposition) है, क्योंकि इसमें विधेय अपने उद्देश्य पद के संबंध में कोई नया ज्ञान नहीं देता बल्कि उसकी गुणवाचकता (Connotation) को प्रकट करता है (विवेकशीलता मनुष्य ही गुणवाचकता होती है)। वैज्ञानिक आगमन इस तरह के वाक्यों की स्थापना नहीं करता। वैज्ञानिक आगमन शाब्दिक वाक्यों की स्थापना न कर वास्तविक वाक्यों (real proposition) की स्थापना करता है।
वास्तविक वाक्य (Real proposition) उसे कहते हैं, जिसमें विधेय (predicate) अपने उद्देश्य (Subject) के संबंध में नई जानकारी देता है। जैसे-‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ एक वास्तविक या यथार्थ वाक्य (real proposition) हैं, क्योंकि ‘मरणशीलता’ ‘सभी मनुष्यों’ के संबंध में एक नवीन ज्ञान है। ‘मरणशीलता’ ‘मनुष्य’ पद की गुणवाचकता नहीं है, मनुष्य पद की गुणवाचकता तो ‘विवेकशीलता’ और पशुता’ है। वास्तविक वाक्य (real proposition) में विधेय अपने उद्देश्य पद की गुणवाचकता को प्रकट न कर उसके संबंध में कोई नया ज्ञान देता है। उपर्युक्त वाक्य में ‘मरणशीलता’ उद्देश्य पद (सभी मनुष्यों) के संबंध में एक नया ज्ञान है। इस तरह वैज्ञानिक आगमन वास्तविक अथवा यथार्थ वाक्य की स्थापना करता है।
4. वैज्ञानिक आगमन विशेष उदाहरणों का निरीक्षण करता है (Scientific Induc tion observes particular instances):
आगमन सामान्य और वास्तविक वाक्य की स्थापना विशेष उदाहरणों के निरीक्षण के आधार पर करता है। किसी सम्पूर्ण जाति या वर्ग के प्रत्येक उदाहरण का निरीक्षण करना संभव नहीं है। इसलिए आगमन कुछ ही या विशेष उदाहरणों का निरीक्षण करता है जिनके आधार पर सामान्य वास्तविक वाक्य अथवा व्यापक यथार्थ वाक्य (general real proposition) की स्थापना होती है।
5. वैज्ञानिक आगमन में आगमनात्मक छलांग होती है (In Induction there is an Inductive leap):
वैज्ञानिक आगमन में ज्ञात से अज्ञात की ओर छलांग लगाई जाती है, जिसे आगमनात्मक छलांग कहा जाता है। आगमन में किसी जाति या वर्ग के सभी उदाहरणों का निरीक्षण नहीं होता है, फिर भी उस जाति के अनिरीक्षित उदाहरणों के लिए सत्य मान ली जाती है। कुछ ही मनुष्यों को मरते देखना निरीक्षित उदाहरण होते हैं, सभी मनुष्यों को मरते नहीं देखना अनिरीक्षित उदाहरण हैं – हम निरीक्षित उदाहरणों के आधार पर ही अनिरीक्षित उदाहरणों को आगमनात्मक अनुमान में सत्य मान लेते हैं अर्थात् ज्ञात से अज्ञात की ओर छलांग लेते हैं अथवा कुछ के आधार पर सब की ओर छलांग लगाते हैं।
‘सभी मनुष्य मरणशील है’ एक व्यापक वाक्य है, परन्तु यह मनुष्य जाति के सभी उदाहरणों के निरीक्षण पर आधारित नहीं है। इस तरह कुछ ही मनुष्यों को मरते देखकर सभी मनुष्यों की मरणशीलता का व्यापक अथवा सामान्य निष्कर्ष निकालने (ज्ञात से अज्ञात) की ओर छलांग लगाने में गलती होने की संभावना रहती है, जिसे आगमनात्मक जोखिम (Inductive Hazard) कहा जाता है। परन्तु, आगमनात्मक जोखिम को मिल (Mill) ने ‘आगमन का प्राण’ (Essence of Induction) कहा है, क्योंकि इसी के आधार पर अंततः व्यापक वास्तविक वाक्यों की स्थापना होती है।
6. वैज्ञानिक आगमन कारण:
कार्य नियम तथा प्रकृति-समरूपता सिद्धांत पर आधारित होता है (Scientific Induction is based on the Law of Causation and the Principle of the Uniformity of Nature):
विशेष उदाहरणों के आधार पर किसी सामान्य वाक्य की स्थापना करने के लिए आगमन कारण-कार्य नियम तथा प्रकृति-समरूपता नियम को सत्य मानता है। कारण-कार्य नियम के अनुसार प्रत्येक कार्य का कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है। जैसे – ‘मनुष्यता’ और ‘मरणशीलता’ में कारण-कार्य का संबंध है और ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ सामान्य वाक्य (general proposition) के रूप में इसी नियम के बल पर प्रतिस्थापित होता है।
आगमन प्रकृति-समरूपता नियम पर भी आधारित होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार समान परिस्थितियों में समान कारण समान कार्य उत्पन्न करता है। जब हम यह देखते हैं कि ‘मनुष्यता’ और ‘मरणशीलता’ में कारण-कार्य का संबंध है तब हम यह मान लेते हैं कि कारण-कार्य का यह संबंध समान परिस्थितियों में सभी घटनाओं के लिए सत्य होगा। “सभी मनुष्य मरणशील हैं’, सामान्य वाक्य में मनुष्य होना ही मरणशीलता का कारण है। प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार जो कारण आज तक जो कार्य उत्पन्न करता रहा है, उसे वह भविष्य में भी उत्पन्न करेगा। इस नियम के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यदि आज तक मनुष्य मरणशील रहा है तो वह भविष्य में भी मरणशील रहेगा। इन दोनों नियमों के आधार पर प्रत्यक्ष के द्वारा अप्रत्यक्ष के संबंध में सामान्य निष्कर्ष निकालने में कोई आगमनात्मक जोखिम (inductive hazard) नहीं होता है।
7. वैज्ञानिक आगमन नए तथ्यों की स्थापना करता है (Scientific Induction establishes new facts):
वैज्ञानिक आगमन में ज्ञात के आधार पर अज्ञात का अथवा कुछ के आधार पर सब का जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है वे नए तथ्य होते हैं। तर्कशास्त्रीय दृष्टिकोण से ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ एक सामान्य वाक्य है जिसमें ‘मरणशीलता’ मनुष्य पद की गुणवाचकता (connotation) नहीं है और जब विधेय उद्देश्य पद की गुणवाचकता को प्रकट नहीं करता तो वह उसके संबंध में किसी नए तथ्य की जानकारी देता है ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ सामान्य वाक्य है जिसमें ‘मरणशीलता’ मनुष्य पद की गुणवाचकता connotation नहीं है और जब विधेय उद्देश्य पद की गुणवाचकता को प्रकट नहीं करता तो वह उसके संबंध में किसी नए तथ्य की जानकारी देता है ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ सामान्य वाक्य है जो आगमनात्मक अनुमान द्वारा स्थापित किया गया है और इसमें ‘मरणशीलता’ मनुष्य के संबंध में एक नया तथ्य है। इस तरह देखा जाता है कि वैज्ञानिक आगमन अपने सामान्य वास्तविक वाक्य के द्वारा नए तथ्यों की स्थापना करता है।
प्रश्न 8.
आगमन का परिचय दें तथा इसके प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
परिचय (Introduction):
आगमन वह अनुमान है जिसमें हम कुछ (some) के आधार पर सब (all) के संबंध में अर्थात् विशेष (Particular) के आधार पर सामान्य (universal) संबंध में ज्ञान प्राप्ति करते हैं। आगमन पूर्णव्यापी वाक्य की वास्तविक सत्यता (material truth) की स्थापना करता है। हम जानते हैं कि पूर्णव्यापी वाक्य हमारे अनुभव पर आधारित होते हैं और हमें अनुभव विशेष घटनाओं का ही होता है सबों का नहीं। न्यूटन ने कुछ . ही फलों को वृक्ष से धरती की ओर गिरते देखा था। हम कुछ ही व्यक्तियों को मरते हुए देख सकते हैं, एक ही साथ सबों को नहीं। इस तरह निगमन में एक ही विशेष घटना के निरीक्षण के आधार पर पूर्णव्यापी वाक्य (universal proposition) की स्थापना कर दी जाती है। उदाहरण के लिए,
रमेश मरणशील है।
सुरेश मरणशील है।
महेश मरणशील है।
∴ सभी मनुष्य मरणशील हैं।
उपर्युक्त उदाहरण में ‘कुछ’ मनुष्यों को मरते देख कर ‘सभी’ मनुष्यों की मरणशीलता के संबंध में अनुमान किया गया है अर्थात् विशेष (Particular) के आधार पर सामान्य (universal) का अनुमान किया गया है। इस तरह के अनुमान को आगमन का अनुमान कहा जाता है। आगमनात्मक अनुमान द्वारा वास्तविक सत्यता की स्थापना होती है। इसमें आकारिक और वास्तविक सत्यता दोनों होती है। निगमनात्मक अनुमान में केवल आकारिक सत्यता होती है तथा इसमें व्यापक वाक्य के आधार पर निष्कर्ष निकालने की विधि बतायी जाती है। परन्तु, आगमनात्मक अनुमान का आकार तथा विषयवस्तु दोनों ही शुद्ध होते हैं। आगमन में ‘विषय’ के दृष्टिकोण से शुद्ध निष्कर्ष निकालने की विधि बतायी जाती है। आगमनात्मक अनुमान वास्तविक सत्यता से संबद्ध होता है और वास्तविक सत्यता विचार की दुनिया तथा वास्तविक जगत् दोनों में सत्य होती है।
उदाहरण के लिए, ‘सोने की अंगूठी’ विचार जगत तथा वास्तविक जगत दोनों में सत्य है। परन्तु ‘सोने का पहाड़’ विचार जगत में सत्य हो सकता है लेकिन वास्तविक जगत में नहीं। इस प्रकार ‘सोने का पहाड़’ निगमनात्मक अनुमान है क्योंकि इसमें – आकारिक सत्यता वास्तविक सत्यता नहीं। परन्तु, ‘सोने की अंगूठी’ ‘पत्थर का पहाड़’ आदि आगमनात्मक अनुमान है, क्योंकि इसमें आकारिक और वास्तविक सत्यता दोनों है। निगमनात्मक अनुमान में विचार और वास्तविक में अनुकूलता नहीं रहती, परन्तु आगमनात्मक अनुमान में विचार और वास्तविकता में अनुकूलता रहती है।
‘दुनिया की सभी वस्तुएँ नाशवान हैं’ – इस परम व्यापक वाक्य को निगमनात्मक अनुमान द्वारा प्रमाणित नहीं किया जा सकता अर्थात् वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना निगमन विधि से नहीं हो सकती; आगमन विधि द्वारा ही पूर्णव्यापी वाक्य की वास्तविक सत्यता की स्थापना हो सकती है। व्यावहारिक जीवन में हम ऐसा अनुमान करना चाहते हैं जो आकार और विषय दोनों दृष्टिकोण से सही हो। अनुमान के द्वारा सत्यता की प्राप्ति तब होती है जब अनुमान करने का तरीका और अनुमान का विषय वास्तविक होता है। जैसे –
सभी मनुष्य मरणशील हैं।
मोहन मनुष्य है।
∴ मोहन मरणशील है।
उपर्युक्त उदाहरण में अनुमान के दोनों आधार वाक्य (premises) वास्तविक हैं, इसलिए निष्कर्ष ‘मोहन मरणशील है’ भी सत्य है। अनुमान के निष्कर्ष को सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि उसके आधार वाक्य भी वास्तविक हों। उपर्युक्त उदाहरण न्याय (syllogism) का उदाहरणं है। इसके दोनों आधार वाक्य (‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ ‘मोहन मनुष्य है’) वास्तविक हैं, इसलिए निष्कर्ष भी वास्तविक है। न्याय के आधार वाक्यों में से कम-से-कम एक आधार वाक्य अवश्य ही व्यापक होता है।
व्यापक वाक्य की वास्तविकता को अनुभव से नहीं जाना जा सकता बल्कि इसके लिए आगमनात्मक अनुमान का सहारा लेना पड़ता है, क्योंकि इसके द्वारा वास्तविक व्यापक वाक्य की स्थापना की जाती है। उपर्युक्त उदाहरण में ‘सभी मनुष्य मरणशील है’ एक व्यापक वाक्य (general proposition) है, जिसके द्वारा वास्तविक व्यापक वाक्य-:मोहन मरणशील हैं’ की स्थापना की गयी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आगमनात्मक अनुमान के द्वारा व्यापक वाक्यों की वास्तविकता को प्रमाणित किया जाता है।
मिल (Mill) ने आगमन के दो प्रकार बतालए हैं उचितार्थक आगमन (induction proper) तथा अनुचितार्थक आगमन (induction improper)। उचितार्थक आगमन वह आगमन होता है, जिसमें ‘कुछ से सब की ओर’ (from ‘some’ to ‘all’) छलांग लगायी जाती है। इसे आगमनात्मक छलाँग (inductive leap) कहा जाता है, जो ज्ञात से अज्ञात की ओर होता है। उचितार्थक आगमन में ज्ञात के आधार पर अज्ञात का अनुमान किया जाता है। अनुचितार्थक आगमन वह है जिसमें उचितार्थक आगमन जैसी छलांग (leap) नहीं पायी जाती; क्योंकि इसके अनुमान वस्तुओं के निरीक्षण पर आधारित नहीं होते। उचितार्थक आगमन (induction proper) के चार भेद किए गए हैं।
ये हैं-वैज्ञानिक आगमन (Scientific Induction), अवैज्ञानिक आगमन (Unscientific Induction), सादृश्यानुमान (Argument from Anal ogy) तथा सम्भावना सिद्धान्त (Argument from probability)। अनुचितार्थक आगमन (Induction improper) के भी तीन भेद किए गए हैं – पूर्ण आगमन (Perfect Induction), तर्कसाम्यमूलक आगमन (Induction by parity of Reasoning) तथा अंश-संकलन आगमन (Induction improper) के भी तीन भेद किए गए हैं – पूर्ण आगमन (Perfect Induction), तर्कसाम्यमूलक आगमन (Induction by parity of Reasoning) तथा अंश-संकलन आगमन (Induction by colligavission of facts)।
उचितार्थक आगमन कार्य-करण सम्बन्ध पर आधारित होता है परन्तु अनुचितार्थक आगमन कार्य-कारण संबंध पर आधारित नहीं होता। आगमन का सही रूप उचितार्थक आगमन (induction proper) आगमन (induction) जैसा लगता है, तथापि इसमें आगमन के मुख्य लक्षणों का सर्वदा अभाव पाया जाता है। वैज्ञानिक आगमन, जो उचितार्थक आगमन का प्रमुख प्रकार होता है, ही आगमन का सर्वोत्तम रूप होला है। वैज्ञानिक आगमन (Scientific Induction) की विधि से जिस सामान्य वाक्य (universal proposition की स्थापना होती है वह आगमन (Induction) का सही निष्कर्ष (valid conclusion) होता है।
प्रश्न 9.
निगमन और आगमन के बीच क्या संबंध है? दोनों में कौन अधिक मौलिक है? अथवा, निगमन और आगमन की तुलना करें। इनमें पहले कौन आता है?
उत्तर:
निगमन और आगमन में संबंध (Relation between Deduction and Induction):
इन दोनों के बीच संबंध की विवेचना यहाँ की जा रही है। यहाँ मुख्य रूप से दो प्रश्न उठते हैं –
(a) दोनों में अधिक मौलिक कौन है (Which of the two is more fundamental)?
(b) दोनों में प्राथमिक या पूर्ववर्ती कौन है (Which of the two is prior)?
पहले और दूसरे प्रश्नों को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद पाया जाता है तार्किकों के दो दल हैं-एक दल अनुमान में केवल आकारिक सत्यता (formal truth) ढूँढता है और दूसरा दल वास्तविक सत्यता (material truth) पर जोर देता है। इन दोनों दलों के मत प्रस्तुत प्रश्नों पर भिन्न-भिन्न हैं।
दोनों में अधिक मौलिक कौन है (Which of the two is more fundamental):
1. आकारवादी तार्किकों (Formal logicians) का मत:
इस मत के अनुसार निगमन (Deduction) अधिक मौलिक है और आगमन (Induction) कम मौलिक या गौण है। इस मत के माननेवाले हेटले (Whateley), हेमिल्टन (Hamilton), मैनसेल (Mansel) इत्यादि, आकारवादी तार्किक हैं। इन लोगों के अनुसार, आगमन तीसरे आकार का ही एक योग है; आगमन कोई स्वतंत्र अनुमान नहीं कहा जा सकता। यह निगमन का ही एक रूप है। इसके अतिरिक्त, आगमन में प्रकृति-समरूपता नियम और कार्य-कारण नियम को आधार मानकर हम ‘कुछ’ से ‘सब’ का जो निष्कर्ष निकालते हैं उसे निगमनात्मक ढंग से निकाला जा सकता है।
‘मनुष्यत्व’ और ‘मरणशीलता’ में कार्य-करण संबंध (causal relation) देखकर और इस नियम को प्रकृति में हमेशा समान होने का विश्वास करके ही हम आगमन में ‘कुछ’ (some) से “सब’ (all) की संभावना का अनुमान करते हैं और कहते हैं, ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’। इसीलिए यह कहा जाता है कि आगमन मूल रूप में निगमनात्मक होता है। (Induction in essence is Deduction in nature)
2. वस्तुवादी तार्किकों (Material logicians) का मत:
इस मत के अनुसार आगमन (Induction) ही अधिक मौलिक है और निगमन इसी का एक रूप है। इसके समर्थक मिल (Mill), बेन (Bain) आदि वस्तुवादी तार्किक हैं। निगमनात्मक अनुमान के लिए कम-से-कम एक सामान्य (universal) वाक्य की आवश्यकता पड़ती है और इस सामान्य वाक्य की स्थापना आगमन द्वारा होती है। इस प्रकार, निगमन के आधार के रूप में पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना करके आगमन निगमन को आधार प्रदान करता है। आगमन के द्वारा ही सामान्य नियम की स्थापना होती है, और निगमन केवल इसी नियम को व्यक्ति विशेषों पर लागू करता है।
जब आगमन के द्वारा यह सामान्य वाक्य सत्यापित हो जाता है कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं, तो निगमन इसे राम, मोहन आदि व्यक्तियों पर प्रयुक्त करके कहता है कि राम भी मनुष्य होने के नाते मरणशील है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आगमन ही अधिक मौलिक है और निगमन गौण (secondary)। वास्तव में, निगमन और आगमन के विषय में दिए गए उपर्युक्त दोनों मत एकांगी (one sided) हैं।
इन दोनों में किसी एक को अधिक मौलिक और दूसरे को कम मौलिक या गौण बताना उचित नहीं है। दोनों ही समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। ये एक-दूसरे के पूरक हैं और इनमें अन्योन्याश्रय संबंध है। इनमें किसी एक को दूसरे में परिवर्तित करने से इन दोनों की ही मौलिकता नष्ट हो जाती है। अतः, इनके विषय में अधिक या कम मौलिकता का प्रश्न उठाना व्यर्थ है। दोनों में पूर्ववर्ती कौन है (which of the two is prior)। इस प्रश्न पर तर्कवेत्ताओं में – मतभेद है। यहाँ जेवन्स (Jevons) एवं मिल (Mill) के मतों की विवेचना अपेक्षित है।
जेवन्स (Jevons) का मत:
इनके अनुसार निगमन आगमन के पहले आता है। (Deduc tion is prior to Induction)। इनका तर्क इस प्रकार है-आगमन में सामान्य नियम की स्थापना की जाती है। इसके लिए प्राक्कल्पना (Hypothesis) का सहारा लेकर हम सामान्यीकरण (generalisation) कर देते हैं। किन्तु, बिना परीक्षा या जाँच (verification) के कोई सामान्य नियम नहीं बन जाता। प्राक्कल्पना की जाँच निगमनात्मक विधि द्वारा की जाती है।
निर्मित प्राक्कल्पना को सत्य मानकर उससे संभावित निष्कर्ष निकालते हैं और इन निष्कर्षों की जाँच वास्तविक घटनाओं में करते हैं। यदि ये निष्कर्ष इन घटनाओं से मेल खाते हैं, तो हम अपनी प्राक्कल्पना को सही मान लेते हैं और संगति या मेल नहीं बैठने पर प्राक्कल्पना असत्य सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार, निगमन विधि के द्वारा ही प्राक्कल्पना की परीक्षा करके आगमन में सामान्य नियम की स्थापना की जाती है। इसलिए निगमन का स्थान आगमन से पहले आता है।
मिल का मत:
मिल साहब का मत जेवन्स के मत के भिन्न है। इनके अनुसार, आगमनिक खोज में सामान्यीकरण का महत्त्व बहुत अधिक है। इसी कारण, ये आगमन को निगमन के पहले रखते हैं। न्याय (syllogism) निगमन का मुख्य रूप है और इसके लिए आधार के रूप में कम-से-कम एक पूर्णव्यापी (universal) वाक्य की आवश्यकता होती है और इस वाक्य की स्थापना आगमन द्वारा ही होती है। इस प्रकार आगमन ही निगमन को आधार प्रदान करता है।
इसलिए यह कहना उचित है कि “आगमन निगमन के पहले आता है।” (Induction is prior: to dedaction) वास्तव में, जेवन्स और मिल के कथन में आंशिक सत्यता (partial truth) है, न कि पूर्ण सत्यता। जेवन्स साहब के अनुसार, आगमन विधि का अंत सत्यापन या जाँच (verification) में होता है। इसी कारण वे निगमन को आगमन के पहले मानते हैं। किन्तु, मिल साहब के अनुसार आगमनिक खोज में सामान्यीकरण ही अंतिम सोपान है और इसके लिए परीक्षण या जाँच की कोई आवश्यकता निगमन और आगमन में किसी एक को पूर्ववर्ती बताना उचित नहीं जान पड़ता। निगमन और आगमन एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि परस्पर पूरक हैं।
निगमन और आगमन के संबंध में कुछ अन्य मत –
1. तार्किकों का कहना है कि निगमन तर्कशास्त्र में विश्लेषणात्मक विधि (analytical method) अपनाई जाती है और आगमन में संश्लेषणात्मक विधि (synthetic method) अपनाई जाती है। आगमन में विशेष उदाहरणों का निरीक्षण करके सामान्य नियम बनाए जाते हैं और निगमन में सामान्य नियम का विश्लेषण करके विशेष निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं। पूर्ण सत्य की प्राप्ति के लिए विश्लेषणात्मक और संश्लेषणात्मक दोनों विधियों का उपयोग आवश्यक है। अतः, निगमन और आगमन परस्पर पूरक हैं।
2. जेवन्स का मत:
जेवन्स महोदय के अनुसार निगमन आगमन के पहले आता है और आगमन निगमन का ही उत्क्रमिक (inverse) रूप है। सीधी क्रिया (direct process) और उत्क्रमिक क्रिया (inverse process) गणित से ली गई है। सीधी क्रिया वह है जिसमें निश्चित संख्या (data) दी हुई है और उससे निष्कर्ष निकालना रहता है। जैसे, 2 और 4 दिए हुए हैं जिनका गुणनफल 8 होता है उत्क्रमिक क्रिया में फल या परिणाम (result) पहले से दिया रहता है और उन संख्याओं को निकालना पड़ता है, जिनका वह फल या परिणाम है। जैसे, 8 दिया हुआ है और इसके अवयवों (constituents) को ज्ञात करना है। इसके अवयव हो सकते हैं –
4 × 2. 1 × 8 इत्यादि। सीधी क्रिया द्वारा प्राप्त निष्कर्ष निश्चित होता है, किन्तु, उत्क्रमिक क्रियाओं के अर्थ में आगमन को निगमन की उत्क्रमिक (inverse) रूप कहा जाता है। आगमन को निगमन का उत्क्रमिक रूप मानने का यह भी एक आधार है कि निगमन में हम कारण से कार्य की ओर जाते हैं, किन्तु, आगमन में कार्य से कारण की ओर जाते हैं। कारण (cause) का पता रहने पर इसके निश्चित फल (effect) का पता लगाना अत्यंत कठिन काम है और इसमें दोष होने की संभावना बनी रहती है, क्योंकि एक ही कार्य के कई कारण हो सकते हैं।
जेवन्स के मत की आलोचना:
निगमन को आगमन का पूर्ववर्ती कहना उचित नहीं है। आगमन को निगमन का उत्क्रमिक रूप (inverse process) भी कहना ठीक नहीं है। निगमन और आगमन एक-दूसरे के पूरक हैं। इसलिए इनमें पूर्ववर्ती (antecedent) और (conse quent) का प्रश्न उठाना ही व्यर्थ है। जेवन्स का यह कहना भी ठीक नहीं है कि कार्य (effect ज्ञात रहने पर उससे निश्चित कारण (cause) ज्ञात नहीं हो सकता, क्योंकि एक कार्य के कई कारण हो सकते हैं।
यह कहना ही दोषपूर्ण है कि एक कार्य के कई कारण होते हैं। वास्तव में, निगमन और आगमन में विरोध लाकर आगमन को निगमन की उत्क्रमिक क्रिया (inverse process) बताना किसी भी हालत में उचित नहीं कहा जा सकता। आगमनिक खोज (inductive enquiry) में निगमन और आगमन दोनों का समान महत्त्व है। ये दोनों परस्पर पूरक हैं। इन्हें विरोधी कहना इनके सही अर्थ को ठुकराना है। बेकन का मत-बेकन ने निगमन को ‘उतरनेवाली क्रिया’ (descending process) और आगमन को ‘चढ़नेवाली क्रिया’ (ascending process) कहा है। निगमन में सामान्य से विशेष निष्कर्ष निकलते हैं। इसमें हम अधिक व्यापकता से कम व्यापकता की ओर आते हैं।
जैसे, सभी मनुष्यों को मरणशील पाकर राम को मनुष्य होने के नाते मरणशील बताते हैं। इसलिए निगमन को उतरने की क्रिया कहा जाता है। आगमन में विशेष उदाहरणों के निरीक्षण के द्वारा सामान्य नियम की स्थापना की जाती है। इसमें कम सामान्य से अधिक सामान्य की ओर (form less general to more general) जाते हैं। जिस प्रकार किसी पर्वत पर चढ़कर वहाँ से हमें नीचे का सामान्य रूप दिखाई पड़ता है, उसी प्रकार, आगमन के निष्कर्ष पर पहुँचते ही हमें एक सामान्य नियम दृष्टिगोचर होता है। ज्यों-ज्यों पर्वत से नीचे उतरने लगते हैं, त्यों-त्यों विशेष वस्तुओं पर नजर पड़ने लगती है। इसलिए निगमन को उतरनेवाली क्रिया और आगमन को चढ़नेवाली क्रिया कहा गया है।
बेकन के मत की आलोचना-बेकन का मत सही नहीं कहा जा सकता। पर्वत पर चढ़ने और उतरने का मार्ग एक ही रह सकता है। इसलिए चढ़ने और उतरने की क्रियाएँ परस्पर विरोधी नहीं कही जा सकती। इसी प्रकार, आगमन और निगमन में भी विरोध नहीं कहा जा सकता। यह सत्य है कि हम आगमन में उदाहरणविशेष से सामान्य नियम पर पहुँचते हैं और निगमन में सामान्य नियम से व्यक्तिविशेष पर पहुंचते हैं। पर, इसका अर्थ यह नहीं होता कि आगमन और निगमन परस्पर विरोधी हैं। इनमें अन्योन्याश्रय संबंध है।
ये एक-दूसरे के सहयोगी एवं पूरक फाउलर (Fowler) का मत-फाउलर ने आगमन और निगमन में भेद इस आधार पर किया है कि आगमन में हम कार्य से कारण की ओर जाते हैं और निगमन में कारण से कार्य की ओर। आगमन में घटनाविशेष का निरीक्षण करके इसका कारण बताते हैं। इसीलिए आगमन ‘में कार्य से कारण की ओर जाने की बात कही गई है।
निगमन में सामान्य नियम यानी कारण से कार्य की ओर जाने की बात कही गई है। फाउलर के मत की आलोचना-फाउलर (Fowler) का कहना सही नहीं है। आगमन में केवल कार्य से कारण का पता नहीं लगाया जाता। आगमन में हम दोनों तरफ बढ़ सकते हैं। कार्य ज्ञात रहने पर उसके कारण का पता लगाया जा सकता है और कारण ज्ञात रहने पर आगमन के द्वारा कार्य का भी पता लगाया जा सकता है। अतः यह कहना भूल है कि आगमन द्वारा केवल कार्य से कारण का पता लगाया जाता है।
बक्कल (Buckle) का मत-इनके अनुसार हम आगमन में विशेष तथ्यों से नियमों पर (from facts to laws) जाते हैं और निगमन में नियमों से विशेष तथ्यों पर (from laws to facts) जाते हैं। इसी को दूसरे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-आगमन में वस्तुविशेष (facts) से विचार (ideas) की ओर जाते हैं और निगमन में विचार से वस्तुविशेष का अनुमान लगाया जाता है। आगमन द्वारा स्थापित नियम सैद्धांतिक होते हैं और इनका प्रत्यक्ष घटनाविशेषों के द्वारा होता है।
किन्तु, हमें इससे यह समझने की भूल नहीं करनी चाहिए कि आगमन के निष्कर्ष केवल सैद्धान्तिक या मानसिक होते हैं, यथार्थ नहीं। आगमन के निष्कर्ष यथार्थ होते हैं, क्योंकि इनमें वास्तविक सत्यता (material truth) पाई जाती है। निगमन में भी सैद्धान्तिक या मानसिक तत्त्व पाए जाते हैं, जिस प्रकार आगमन में यथार्थता के तत्त्व रहते हैं। उपर्युक्त मतों की विवेचना करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि आगमन और निगमन में विरोध का संबंध दिखाना भ्रामक है। इन दोनों में पूर्ण सहयोग अपेक्षित है। ये एक-दूसरे में प्रवेश करते हैं (both run into each other)। इनके बीच कोई कृत्रिम रेखा खींचकर इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 10.
निगमन से आगमन किन-किन बातों में भिन्न है? अथवा, निगमन के बाद आगमन की क्या आवश्यकता है? व्याख्या करें।
उत्तर:
तर्कशास्त्र का लक्ष्य सत्यता की प्राप्ति है। इसकी पूर्ति के लिए अनुमान का सहारा लिया जाता है। सत्यता दो प्रकार की होती है –
- आकारिक सत्यता (formal truth) और
- वास्तविक सत्यता (material truth)।
निगमन तर्कशास्त्र मुख्यतः आकारिक सत्यता से संबद्ध रहता है। सत्यता का आंशिक अध्ययन ही यहाँ हो पाता है। आगमन तर्कशास्त्र में वास्तविक सत्यता प्राप्त करना हमारा लक्ष्य रहता है। इस प्रकार निगमन और आगमन के संयुक्त प्रयास से ही तर्कशास्त्र का लक्ष्य पूरा हो सकता है। अतः, निगमन और आगमन में अत्यधिक घनिष्ठ संबंध है। फिर भी, दोनों में कई अंतर दीख पड़ते हैं।
निगमन और आगमन में अंतर (Distinction between Deduction and Induction):
दोनों में निम्नलिखित अंतर उल्लेखनीय हैं –
1. निगमन के आधार:
वाक्य मान लिए जाते हैं, किन्तु आगमन के आधार-वाक्य निरीक्षण (observation) तथा प्रयोग (experiment) पर आधृत रहते हैं। निगमन के आधार-वाक्यों को सत्य मानकर उनसे निष्कर्ष निकाला जाता है। यहाँ आधार-वाक्यों को बिना निरीक्षण-परीक्षण के ही आँख मूंदकर सत्य मान लेते हैं और इनसे निष्कर्ष निकालते हैं। जैसे –
सभी मनुष्य मरणशील हैं।
राम एक मनुष्य है
∴ राम मरणशील है।
यह निगमनात्मक अनुमान का उदाहरण है। यहाँ ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ और ‘राम एक मनुष्य है’ आधार-वाक्य (premises) हैं, जिन्हें पहले ही सत्य मान लिया गया है और उनसे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ‘राम मरणशील है’। किन्तु, आगमन के आधार-वाक्य अनुभव द्वारा प्राप्त होते हैं। बिना निरीक्षण-परीक्षण के आधार-वाक्यों को सत्य नहीं माना जा सकता है। जैसे –
राम मरणशील है
यदु मरणशील है
श्याम मरणशील है
केदार मरणशील है
……………………..
∴ सभी मनुष्य मरणशील हैं।
यहाँ सभी आधार-वाक्य अनुभव, अर्थात् निरीक्षण और प्रयोग पर आधृत हैं। हम इन व्यक्तियों को मरते हुए देखकर ही यह निष्कर्ष निकालते हैं कि सभी मनुष्य मरणशील हैं।
2. निगमन में हम सामान्य (universal) से विशेष (particular) या अधिक व्यापक से कम व्यापक की ओर जाते हैं, किन्तु आगमन में कम से सामान्य या विशेष से सामान्य की ओर जाते हैं। निगमन में हम अधिक व्यापकता से कम व्यापकता की ओर जाते हैं, किन्तु आगमन में कम व्यापकता से अधिक व्यापकता की ओर प्रस्थान करते हैं।
उपर्युक्त उदाहरण से यह अंतर स्पष्ट हो जाता है। निगमनात्मक अनुमान में हम सभी मनुष्यों को मरणशील मानकर राम को मरणशील सिद्ध करते हैं। राम की व्यापकता अवश्य ही सभी मनुष्यों की व्यापकता से कम है। इसीलिए निगमन में अधिक से कम की ओर जाने की बात कही गई है। आगमन के उदाहरण से हम देखते हैं कि राम, यदु, श्याम, केदार इत्यादि व्यक्तिविशेषों को मरणशील पाकर सभी मनुष्यों के मरणशील होने का अनुमान किया गया है। अतः, यहाँ विशेष से सामान्य की ओर प्रस्थान किया गया है।
3. निगमन में आधार-वाक्यों की संख्या निश्चित रहती है, किन्तु आगमन में आधार-वाक्यों की संख्या अनिश्चित रहती है। निगमनात्मक अनुमान के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं साक्षात अनुमान (immediate inference) और असाक्षात अनुमान (mediate inference)। साक्षात अनुमान में एक आधार-वाक्य रहता है और असाक्षात अनुमान में दो आधार-वाक्य होते हैं। किन्तु, आगमन में आधार-वाक्यों की संख्या कोई निश्चित नहीं है। कभी-कभी कार्य-कारण संबंध का पता चलाने के लिए दो, तीन, चार या इनसे अधिक उदाहरणों को देखने की आवश्यकता पड़ती है।
4. निगमन का संबंध आकारिक सत्यता (formal truth) से है; किन्तु आगमन का संबंध वास्तविक सत्यता (material truth) से रहता है-निगमन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि दिए हुए आधार-वाक्य से निष्कर्ष नियमानुकूल निकाला गया है कि नहीं। यदि निष्कर्ष निकालने में नियमों का पूर्ण पालन किया गया हो तो उस अनुमान का निष्कर्ष सही माना जाता है। इस निष्कर्ष में वास्तविक सत्यता का रहना कोई आवश्यक नहीं है। जैसे –
सभी विद्यार्थी बंदर है,
मोहन एक विद्यार्थी है,
∴ मोहन एक बंदर है।
इस अनुमान में अनुमान के नियमों का पालन किया गया है। इसलिए इसका निष्कर्ष आकारिक दृष्टिकोण से बिल्कुल सही है। इस निष्कर्ष में वास्तविक सत्यता का पूर्ण अभार है; क्योंकि इसके आधार अनुभवसिद्ध नहीं हैं। आगमन का लक्ष्य वास्तविक सत्यता को प्राप्त करना है। इसके आधार-वाक्य निरीक्षण और प्रयोग पर आधृत होने के कारण ऐसे निष्कर्ष देते हैं जो वास्तविक दृष्टिकोण से सही होते हैं। आगमन में आकारिक सत्यता को भी ठुकराया नहीं जाता। आकारिक और वास्तविक दोनों सत्यता की प्राप्ति आगमन में होती है।
5. निगमन के निष्कर्ष आधार-वाक्यों से कम व्यापक (universal) होते हैं, किन्तु आगमन के निष्कर्ष अपने आधार-वाक्यों से सदा अधिक व्यापक होते हैं। इसका कारण यह है कि निगमन के आधार-वाक्यों में ही इसका निष्कर्ष निहित रहता है, किन्तु आगमन के निष्कर्ष में ही इसके आधार-वाक्य चले जाते हैं।
6. निगमन और आगमन के आधारों में भी भिन्नता रहती है-विचार के नियमों (laws of thought) पर निगमन आधृत है। विचार के नियम ये हैं-व्याघातक नियम (law of contradiction), तादात्म्य नियम (law of identity) और मध्यदशा-निषेध नियम (law of excluded middle)। आगमन के आधारस्वरूप के दो नियम हैं-प्रकृति-समरूपता नियम (law of uniformity of nature) और कार्य-कारण नियम (law of causation)।
उपर्युक्त अंतरों को ध्यानपूर्वक देखने से यह संकेत मिल जाता है कि निगमन के बार आगमन की क्या आवश्यकता है। निगमन अनुमान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परन्तु. अकेले निगमन द्वारा सत्य की प्राप्ति संभव नहीं है। इसमें कुछ कमियाँ रह जाती हैं, जिनकी पूर्ति आगमन द्वारा की जाती है। आगमन की कुछ अपनी विशेषताएँ हैं, जिनका निगमन में अभाव रहता है। निगमन के बाद आगमन की आवश्यकता इसीलिए और अधिक बढ़ जाती है।
निगमन तथा आगमन दोनों का लक्ष्य सत्य की स्थापना करना है। इस प्रयास में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। निगमनात्मक अनुमान सत्य की स्थापना के लिए आगमनात्मक अनुमान पर आश्रित रहता है। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है –
(a) निगमन तर्कशास्त्र साधारणतः
आकारिक सत्यता से संबद्ध है। यदि निष्कर्ष निगमन तर्कशास्त्र के नियमों के अनुकूल है, तो इसमें आकारिक सत्यता रहती है। परन्तु, अनुमान में केवल आकारिक सत्यता (formal truth) से काम नहीं चल सकता। इसमें वास्तविक सत्यता (material truth) का होना भी आवश्यक है। इसके निष्कर्ष को यथार्थ घटनाओं से मेल खाना चाहिए। आगमन तर्कशास्त्र में वास्तविक सत्यता की प्राप्ति हमारा प्रमुख लक्ष्य रहता है। इसमें आकारिक सत्यता की उपेक्षा नहीं की जाती। यहाँ वास्तविक सत्यता के साथ-साथ आकारिक सत्यता की प्राप्ति के प्रयत्न किए जाते हैं। इस प्रकार, निगमन के साथ-साथ आगमन का उपयोग करने से संपूर्ण सत्यता की प्राप्ति संभव है।
(b) निगमन के आधार:
वाक्य आँख मूंदकर बिना किसी छानबीन के सत्य मान लिए जाते हैं और उनसे निष्कर्ष निकाले जाते हैं। ऐसे आधार-वाक्यों से विश्वसनीय निष्कर्ष नहीं प्राप्त हो सकते। आगमन तर्कशास्त्र में आधार-वाक्य निरीक्षण एवं प्रयोग द्वारा प्राप्त होते हैं। इन्हें यों ही सत्य नहीं मानलिया जाता।
(c) निगमन में निष्कर्ष इसके आधार:
वाक्यों में ही पहले से छिपा रहता है। ऐसा होने से अनुमान में नयापन की मात्रा कम हो जाती है। आगमन इस कमी को दूर करता है। इसके आधार-वाक्यों में निष्कर्ष निहित नहीं रहता। अनुभव द्वारा प्राप्त आधार-वाक्यों से प्राप्त निष्कर्ष में नयापन रहता है।
(d) निगमन द्वारा किसी सामान्य वाक्य या नियम की स्थापना नहीं होती। यह सामान्य वाक्य को पहले ही सत्य मानकर आगे बढ़ता है। यहाँ सामान्य से विशेष की ओर अथवा अधिक व्यापक से कम व्यापक की ओर जाते हैं। आगमन विशेष तथ्यों का अवलोकन करके सामान्य वाक्य या नियम की स्थापना करता है। इससे अनुमान या तर्क का महत्त्व अधिक हो जाता है।
(e) निगमन तर्कशास्त्र का कोई आधार नहीं दीख पड़ता। बिना आधार के इसका महत्त्व उतना अधिक नहीं रहता। आगमन के दो प्रकार के आधार (grounds) हैं – आकारिक आधार (formal grounds) और वास्तविक दोनों प्रकार की सत्यता पाई जाती है।
(f) निगमन में वैज्ञानिक नियमों का सहारा नहीं लिया जाता। इसीलिए इसके निष्कर्षों में वास्तविक सत्यता एवं प्रामाणिकता का अभाव रहता है। आगमन तर्कशास्त्र इस कमी को महसूस करते हुए प्रकृति-समरूपता नियम एवं कार्य-कारण नियम का सहारा लेता है। इसलिए इसके निष्कर्षों में विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता की मात्रा अधिक रहती है। किसी भी न्याय (syllogism) में निष्कर्ष की सत्यता उसके आधार-वाक्यों की सत्यता पर आधृत है। प्रश्न उठता है कि यह कैसे जाना जा सकता है कि आधार-वाक्य सत्य है। यदि निगमन के आधार पर आधार-वाक्य की सत्यता स्थापित की जाए तो हमारे चिंतन आकारिक मात्र रहता है और उसमें वास्तविक सत्यता का अभाव रहता है।
आगमन के आधार पर हमें वास्तविक सत्यता की प्राप्ति होती है। आगमन हमारे अनुभव पर निर्भर है। निगमन आगमन के बिना संभव प्रतीत नहीं होता। यहीं पर निगमन से आगमन में प्रवेश की आवश्यकता होती है। फ्रांसिस बेंकन आगमनात्मक विधि के प्रणेता माने जाते हैं। उनसे पूर्व अरस्तू ने निगमन को प्रतिपादित किया था। बेकन ने निगमन के आगमन में प्रवेश पर बल दिया, क्योंकि निगमन के सामान्य वाक्य आगमन से ही प्राप्त होते हैं। आगमन में वास्तविक सत्यता पर पहुँचने के लिए विशेष घटनाओं की जाँच की जाती है। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि निगमन के बाद आगमन की आवश्यकता रह ही जाती है।
प्रश्न 11.
क्या स्वयंसिद्ध वाक्यों तथा निगमन के द्वारा वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना हो सकती है? वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना में आगमन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना स्वयंसिद्ध वाक्यों तथा निगमन के द्वारा नहीं हो सकती –
स्वयंसिद्ध (Axioms):
कुछ ही वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य स्वयंसिद्ध होते हैं। जैसे-‘कोई वस्तु एक ही समय और स्थान में दो विरोधात्मक गुणों को नहीं रख सकती है। यह वाक्य स्वयंसिद्ध है। ऐसे वाक्य के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। अधिकांश वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य (real universal proposition) स्वयं सिद्ध नहीं होते। जैसे-‘पृथ्वी में आकर्षण शक्ति’, ‘पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है’ आदि। जो वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य स्वयं सिद्ध नहीं होते, उनकी स्थापना नहीं होती है। चूंकि अधिकांश वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य स्वयं सिद्ध नहीं होते, इसलिए उनकी स्थापना स्वयंसिद्ध वाक्यों द्वारा नहीं हो सकती।
निगमन (Deduction):
एक निगमनात्मक अनुमान का आधार-वाक्य दूसरे निगमनात्मक अनुमान का निष्कर्ष होता है। उदाहरणस्वरूप यदि हमें यह प्रमाणित करना है कि ‘सभी कवि मरणशील हैं तो निगमनात्मक अनुमान के द्वारा हम इसे इस तरह प्रमाणित कर सकते हैं –
सभी मनुष्य मरणशील हैं,
सभी कवि मनुष्य हैं,
∴ सभी कवि मरणशील हैं।
लेकिन अब प्रश्न उठता है कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ कैसे प्रमाणित होगा ? इसे हम दूसरे निगमनात्मक अनुमान द्वारा निम्नलिखित ढंग से प्रमाणित कर सकते हैं –
सभी जानवर मरणशील हैं,
सभी मनुष्य जानवर हैं,
∴ सभी मनुष्य मरणशील हैं।
फिर प्रश्न उठता है कि ‘सभी जानवर मरणशील हैं’ कैसे प्रमाणित होगा ? निगमनात्मक अनुमान के द्वारा यह इस तरह प्रमाणित होगा –
सभी जीव मरणशील हैं,
सभी जानवर जीव हैं,
∴ सभी जानवर मरणशील हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि निगमन में एक व्यापक वाक्य की स्थापना करने के लिए दूसरे अधिक व्यापक वाक्य का सहारा लेना पड़ता है और फिर दूसरे व्यापक वाक्य को स्थापित करने के लिए तीसरे अधिक व्यापक वाक्य का सहारा लेना पड़ता है। उपर्युक्त उदाहरणों में हम देखते हैं कि ‘सभी कवि मरणशील हैं’ को प्रमाणित करने के लिए इससे अधिक व्यापक वाक्य ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ की सहायता ली गई है। फिर ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं’ को प्रमाणित करने के लिए इससे अधिक व्यापक वाक्य ‘सभी जीव मरणशील हैं’ का सहारा लिया गया है।
इसी तरह यदि. ‘सभी जीव मरणशील हैं’ व्यापक वाक्य को प्रमाणित करना हो, तो हम परम व्यापक वाक्य ‘संसार की सभी वस्तुएँ नाशवान हैं’ का सहारा लेते हैं। फिर यदि यह प्रश्न उठे कि इस परम व्यापक वाक्य का क्या प्रमाण है, तो इसका उत्तर निगमनात्मक अनुमान द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस प्रकार हम पाते हैं कि सभी वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना निगमन के द्वारा नहीं हो सकती है।
आगमन की भूमिका (The role of Induction):
वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना स्वयंसिद्धि वाक्यों तथा निगमनात्मक अनुमान द्वारा नहीं हो सकती; आगमनात्मक अनुमान के द्वारा ही वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्यों की स्थापना हो सकती। आगमन में प्रकृति-समरूपता नियम तथा कारण कार्य नियम के आधार पर वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्यों की स्थापना होती है। प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार प्रकृति का व्यवहार समान परिस्थिति में सदा समान होता है तथा कारण-कार्य नियम के अनुसार संसार में जो भी घटना घटित होती है उसका कुछ-न-कुछ कारण अवश्य होता है।
ये दोनों नियम आगमनात्मक अनुमान में प्रयुक्त होते हैं जिनके द्वारा आगमन विशेष घटनाओं के आधार पर वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना करता है। कारण-कार्य नियम के अनुसार यदि ‘मृत्यु’ है तो उसका वास्तविक सर्वव्यापी कारण अवश्य होगा। प्रकृति-समरूपता नियम के अनुसार प्रकृति का व्यवहार सदा समान रहता है यदि जीव है तो वह मरेगा अवश्य ही। आगमन में इन दोनों नियमों के आधार पर वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना की जाती है जिसकी सत्यता में कोई सन्देह नहीं रह जाता।
मानलिया कि हमें परम व्यापक वाक्य ‘संसार की सभी वस्तुएँ नाशवान हैं’ को प्रमाणित करना है। संसार की सभी वस्तुएँ समाप्त हो जाती हैं’ – यदि यह कार्य है तो इसका कारण अवश्य ही होना चाहिए। आगमनात्मक अनुमान के द्वारा कारण निर्धारित करने का जो तरीका है उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संसार में वस्तुओं का होना ही उनके समाप्त होने का कारण है। मनुष्य या किसी जीव का होना ही मर जाने का कारण है।
‘वस्तु’ और ‘नाशवान’ में कारण-कार्य का संबंध है-अर्थात् वस्तु है तो वह नाशवान होगी ही। ‘मनुष्य’ और ‘मरणशीलता’ में कारण-कार्य का संबंध है और यह संबंध भविष्य में भी रहेगा, क्योंकि प्रकृति समरूप है। चूंकि प्रकृति का व्यवहार समान परिस्थिति में समान होता है, यदि आज मनुष्य होना मर जाने का कारण है तो भविष्य में भी मनुष्य होना मर जाने का कारण होगा। इस तरह इन दोनों नियमों के आधार पर आगमनात्मक अनुमान के द्वारा वास्तविक पूर्णव्यापी वाक्यों की स्थापना की जाती है।