Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 11th Hindi व्याकरण संधि
1. ‘संधि’ की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
दो अक्षरों की अत्यंत समीपता के कारण उनके मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते हैं। जैसे – देव+अर्चन = देवार्चन में ‘अ’ [‘व’ का अ] और ‘अ’ [अर्चन का आदि अक्षर] मिलकर ‘आ’ हो गए हैं और यह ‘संधि’ का एक रूप है।
संधि के तीन भेद माने जाते हैं – स्वर – संधि, व्यञ्जन – संधि और विसर्ग – संधि। स्वर – संधि में दो स्वर – वर्गों के बीच संधि होती है। जैसे-
- देव + आलय = देवालय
- मत + ऐक्य = मतैक्य
- सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
- महा + औषधि = महौषधि
व्यञ्जन – संधि में एक व्यञ्जन + एक स्वर अथवा एक व्यञ्जन + एक व्यञ्जन वर्ण के बीच संधि होती है। जैसे
- दिक् + अंबर = दिगंबर
- सत् + जन = सज्जन
- वाक् + ईश = वागीश
- उत् + डयन = उड्डयन
विसर्ग – संधि में विसर्ग तथा स्वर वर्ण अथवा व्यञ्जन वर्ण के बीच संधि होती है। जैसे
- निः + चय = निश्चय
- निः + फल = निष्फल
- निः + छल = निश्छल
- प्रातः + काल = प्रात:काल
- दुः + कर्म = दुष्कर्म
- अंतः + करण = अंत:करण
संधि के सामान्य नियम
2. स्वर – संधि के नियमों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
‘स्वर – संधि’ में दो स्वर – वर्गों के बीच संधि होती है। इसके प्रमुख नियम सोदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं।
[i] दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद क्रमशः वे ही ह्रस्व या दीर्घ स्वर आएँ तो दोनो मिलकर क्रमशः ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ हो जाते हैं। जैसे-
- अ + अ = आ
- अन्न + अभाव = अन्नाभाव
- आ + अ = आ
- तथा + अपि तथापि
- गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
- गिरि + ईश = गिरीश
- उ + उ = ऊ
- पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
- उ + उ = ऊ
- भानु + उदय = भानूदय
- ऋ + ऋ =ऋ
- पितृ + ऋण = पितृण
[ii] यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ ओर ‘अर्’ हो जाते हैं। जैसे-
- अ + इ = ए
- देव + इन्द्र = देवेन्द्र
- आ + इ =ए
- यथा + इष्ट = यथेष्ट
[ii] यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए तो दोनों स्थान में ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो दोनों के स्थान में ‘औ’ हो जाता है। जैसे-
- अ + ए = ऐ
- एक + एक = एकैक
- सदा + एव = सदैव
- परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
- अ + औ
- परम + औषधि = परमौषधि
[iv] यदि ‘इ’, ‘ई’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ‘इ – ई’ का ‘य’, ‘उ – ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र’ हो जाता है। जैसे-
- इ + अ
- यदि + अपि = यद्यपि
- उ + अ
- अनु + अय = अन्बय
- ऋ + आ
- पितृ + आदेश = पित्रादेश
[v] यदि ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो [क] ‘ए’ का ‘अय्’ [ख] ‘ऐ’ का ‘आय’ [ग] ‘ओ’ का ‘अ’ और [घ] ‘औ’ का ‘आ’ हो जाता है। जैसे-
[क] ने + अन = नयन
[ग] पो + अन = पवन
[ख] नै + अक = नायक
[घ] पौ + अन = पावन
3. ‘व्यञ्जन – संधि’ के नियमों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
व्यञ्जन – संधि में एक व्यञ्जन + एक स्वर अथवा एक व्यञ्जन + एक व्यञ्जन के बीच संधि होती है। इसके प्रमुख नियम सोदाहरण नीचे दिए जाते हैं।
[vi] यदि ‘क’, ‘च’, ‘त’, ‘ट्’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए या य, र, ल, व या कोई स्वर आए तो ‘क्’, ‘च’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
- दिक् + गज = दिग्गज
- अच् + अंत = अजंत
- सत् + वाणी = सवाणी
- षट् + दर्शन = षड्दर्शन
[ii] यदि ‘क’, ‘च’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’ के बाद ‘न’ या ‘म’ आए तो ‘क्’, ‘च’, ‘ट् , ‘प्’ अपने ही वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। जैसे –
- वाक् + मय = वाङ्मय
- षट् + मास = षण्मास
- अप् + मय = अम्मय
- उत् + नति = उन्नति
[iii] यदि ‘म्’ के बाद कोई स्पर्श व्यञ्जन – वर्ण आए तो ‘म्’ का अनुस्वार या बादवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। जैसे-
- अहम् + कार = अहंकार, अहङ्कार
- सम् + गम = संगम, सङ्गम
- किम् + चित् = किंचित्, किञ्चित्
- पम् + चम = पंचम, पञ्चम
[iv] यदि त – द् के बाद ‘ल’ वर्ण रहे तो त् – ‘ल’ में बदल जाते हैं और ‘न्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘न’ का अनुनासिक के साथ ‘ल’ हो जाता है। जैसे-
- त् + ल
- उत् + लास उल्लास
- न् + छ।
- महान् + लाभ = महाँल्लाभ
[v] सकार और तवर्ग का श्याकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
- प् + त
- द्रष् + ता = द्रष्टा।
- महत् + छत्र = महच्छत्र
[vi] यदि वर्गों के अंतिम वर्गों को छोड़ शेष वर्णों के बाद ‘ह’ आए तो ‘ह’ पूर्व वर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है ओर ‘ह’ के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण। जैसे-
- उत् + हत = उद्धत
- उत् + हार = उद्धार
- वाक् + हरि = वाग्घरि
- उत् + हरण = उद्धरण
[vii] ह्रस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो तो ‘छ’ के पहले ‘च’ वर्ण जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद ‘छ’ होने पर ऐसा विकल्प से होता है। जैसे-
- परि + छेद = परिच्छेद
- शाला + छादन = शालाच्छादन
4. ‘विसर्ग – संधि’ के नियमों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
विसर्ग – संधि में विसर्ग तथा स्वर – वर्ण अथवा विसर्ग तथा व्यञ्जन – वर्ण के बीच संधि होती है। इस विसर्ग – संधि के नियमों का सोदाहरण परिचय नीचे दिया जा रहा है
[i] यदि विसर्ग के बाद ‘च – छ’ हो तो विसर्ग का ‘श’, ‘ट – ठ’ हो तो तो ‘ए’ और ‘त – थ’ हो तो ‘स’ हो जाता है। जैसे-
- : + च
- निः + चय = निश्चय
[ii] यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आए और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ‘ए’ हो जाता है। जैसे-
- निः + कपट = निष्कपट
- निः + फल = निष्फल
- निः + कारण = निष्कारण
- निः + पाप = निष्पाप
[iii] यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे क, ख, प, फ में कोई वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों – का – त्यों रहता है। जैसे-
- प्रातः + काल = प्रात:काल
- पयः + पान = पयःपान
[iv] यदि ‘इ’ – ‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आए तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। जैसे-
- निः + रव = नीरव
- निः + रस = नीरस
- निः + रोग = नीरोग
- दुः + राज = दूराज
[v] यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आए और विसर्ग के बाद कोई दूसरा स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान में ‘र’ हो जाता है। जैसे-
- निः + उपाय = निरुपाय
- निः + झर = निर्झर
- निः + जल =निर्जल
- निः + धन =निर्धन
[vi] यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ स्वर आए और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतर्थ या पंचम वर्ण आए अथवा य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’
अपने पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसंधि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
- तेजः + मय = तेजोमय
- पयः + धर = पयोधर
- पयः + द = पयोद
- पुरः + हित = पुरोहित
- मनः + रथ = मनोरथ
- मनः + भाव = मनोभाव
[vii] यदि विसर्ग के आगे – पीछे ‘अ’ स्वर हो तो पहला. ‘अ’ और विसर्ग मिलकर छठे नियम की तरह ‘ओकार’ हो जाता है ओर बादवाले ‘अ’ का लोप होकर उसके स्थान में
लुप्ताकार [ऽ] का चिह्न लग जाता है। जैसे-
प्रथमः + अध्यायः = प्रथमोऽध्यायः
लेकिन, विसर्ग के बाद ‘अ’ के सिवा दूसरा स्वर आए तो यह नियम लागू नहीं होगा, बल्कि विसर्ग का लोप हो जाएगा। जैसे-
अत: + एव = अतएव
स्मरणीय : प्रमुख शब्दों की संधि – तालिका
अन्वय = अनु + अय
अंत:पुर = अंतः + पुर
अत्यधिक = अति + अधिक
अधीश्वर = अधि + ईश्वर
अन्योन्याश्रय = अन्यः + आश्रय
अभीष्ट = अभि + इष्ट
अत्याचार अति + आचार
अन्यान्य = अन्य + अन्य
अतएव = अतः + एव
अधोगति अधः + गति
आशीर्वाद आशी: + वाद
आकृष्ट = आकृष् + त
आशीर्वचन = आशी: + वचन।
अभ्युदय = अभि + उदय
आविष्कार = आविः + कार
आच्छादन = आ + छादन
आद्यन्त = आदि + अंत
आद्यारम्भ = आदि + आरंभ
अरुणोदय = अरुण + उदय
इत्यादि = इति + आदि
उच्छृखल = उत् + श्रृंखल
उन्माद = उत् + माद