Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास
Bihar Board Class 12 History विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Questions and Answers
उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)
प्रश्न 1.
क्या उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे। उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार हैं कि लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के बाद जीवन की सम्भावना और पुनर्जन्म के बारे में जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं।
ऐसा विचार व्यक्त किया जाता है कि पूर्व जन्म के कर्मों से पुनर्जन्म निर्धारित होता है। नियतिवादी या भौतिकवादी लोग विश्वास करते थे कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के कर्मों का निर्धारण उसके जन्म से पहले हो जाता है।
प्रश्न 2.
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं का संक्षेप में लिखिए। उत्तर-जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षायें:
1. मोक्ष प्राप्ति:
आत्मा को कर्म बंधन से मुक्त करने को मुक्ति या निर्वाण कहा जाता है। जैन धर्म के अनुसार मोक्ष अर्थात् निर्वाण पाना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। निर्वाण पाने के तीन साधन-सम्यक् विश्वास, सम्यक ज्ञान और सम्यक् चरित्र हैं। जैनी इन्हें त्रिरत्न कहते हैं।
2. अहिंसा:
जैन धर्म में अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है। अहिंसा का अभिप्राय है-किसी जीवधारी को कष्ट न देना। जैनी पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों को भी जीव मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति को किसी भी जीव (मानव, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे आदि) को मन, वाणी या कर्म से दुःख नहीं देना चाहिए। यही कारण है कि जैनी नंगे पाँव चलते हैं, पानी छानकर पीते हैं तथा मुँह पर पट्टी बाँधते हैं ताकि कोई जीव-हत्या न हो जाए।
3. घोर तपस्या और आत्म-त्याग:
जैनी घोर तपस्या तथा शरीर को अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते हैं। उनका विश्वास है कि भूखे रहकर प्राण त्यागने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।
4. ईश्वर में अविश्वास:
जैनी ईश्वर के अस्तित्त्व को नहीं मानते हैं और ईश्वर की अपेक्षा तीर्थंकरों की पूजा करते हैं।
5. जाति-प्रथा में अविश्वास:
जैन धर्मावलंबियों के अनुसार इस धर्म में विश्वास रखने वाले समान हैं।
6. वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में अविश्वास:
जैन धर्म के अनुसार वेद ईश्वरीय ज्ञान नहीं और संस्कृत पवित्र भाषा नहीं है।
7. यज्ञ और बलि आदि में अविश्वास:
जैनी यज्ञ-हवन को मोक्ष पाने के लिए आवश्यक नहीं समझते। वे पशु-बलि का भी विरोध करते हैं।
8. पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत में विश्वास:
जैनी इस बात में विश्वास रखते हैं कि अच्छे जन्म का कारण बनते हैं और बुरे कर्म बुरे जन्म का। इसलिए व्यक्ति को अच्छा जन्म पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए।
9. उच्च नैतिक जीवन:
महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को चोरी-चुगली, लोभ, क्रोध आदि से दूर रहकर सदाचारी बनने का उपदेश दिया। महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर नाम के दो सम्प्रदायों में बाँट गया। श्वेताम्बर सफेद वस्त्र पहनते हैं, जबकि दिगम्बर नंगे रहते हैं।
प्रश्न 3.
सांची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए। अथवा, “सांची के स्तूप के अवशेषों के संरक्षण में भोपाल की बेगमों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।” प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
सांची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका –
- भोपाल के शासकों, शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम का सांची स्तूप के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए आर्थिक अनुदान दिया।
- जॉन मार्शल द्वारा सांची के स्तूप पर लिखे गए विस्तृत ग्रंथ के प्रकाशन में सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया। यही कारण था कि जॉन मार्शल ने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को सुल्तानजहाँ को समर्पित किया।
- सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए भी अनुदान दिया।
- भोपाल की बेगमों के प्रयास से सांची का स्तूप सुरक्षित रहा और किसी अन्य के हाथ में नहीं जा सका।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए:
महाराजा हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।
- (क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
- (ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
- (ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती है?
- (घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थी?
- (ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?
उत्तर:
- (क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख हुविष्क (कुषाण शासक) के शासन काल के आधार पर निश्चित की। यह अभिलेख हुविष्क के शासन के तैंतीसवें वर्ष अर्थात् 138 सा०यु० में उत्कीर्ण किया गया।
- (ख) धनवती ने बोधिसत्त की मूर्ति बौद्ध धर्म और बुद्ध के सम्मान में स्थापित की।
- (ग) धनवती अपनी मौसी बुद्धमिता और अपने माता-पिता का नाम लेती है।
- (घ) धनवती को त्रिपिटक का ज्ञान था।
- (ङ) उसने यह पाठ बुद्धमिता से सीखा था।
प्रश्न 5.
आपके अनुसार स्त्री-पुरुषा संघ में क्यों जाते थे?
उत्तर:
स्त्री-पुरुष के संघ में शामिल होने के निम्नलिखित कारण थे –
- वे बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभावित थे।
- वे बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करना चाहते थे।
- कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई थी।
- वे थेरी बनना चाहते थे अर्थात् निर्वाण प्राप्त करना चाहते थे।
- वे प्रचलित धार्मिक प्रथा (वैदिक धर्म) से खुश नहीं थे और उसे समाप्त करना चाहते थे।
निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)
प्रश्न 6.
सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?
उत्तर:
सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान का योगदान –
1. बौद्ध साहित्य के जातकों में अनेक कहानियाँ दी गई हैं। सांची की मूर्तियों को इनसे जोड़ा जाता है। उदाहरणार्थ-सांची की मूर्तिकला में ऐसा दृश्य है जो वेसान्तर जातक से मिलता है। इसमें एक दानी राजकुमार अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को सौंपकर जंगल में चला जाता है।
2. सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन से भी सहायता मिलती है। बौद्ध चरित्र लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई। कई प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए रिक्त स्थान से।
3. बुद्ध के ध्यान की दशा तथा स्तूप परिनिर्वाण के प्रतीक बन गये। चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था।
4. सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए इतिहासकारों को लोक परम्परा को समझना पड़ता है। सांची में एक जैसी अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इनका सीधा संबंध बौद्ध धर्म से नहीं है। कुछ सुन्दर स्त्रियाँ जो तोरणद्वारों के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही हैं। इसे शालभंजिका की मूर्ति कहा जाता है। यह उर्वराशक्ति की प्रतीक है।
5. सांची के स्तूप में कई स्थानों पर हाथी, घोड़े, बंदर और गाय, बैल आदि उत्कीर्ण हैं। संभवतः ये मूर्तियाँ मनुष्य के गुणों की प्रतीक हैं। उदाहरणार्थ की मूर्ति शक्ति का प्रतीक है।
प्रश्न 7.
चित्र 4.2 और 4.3 में सांची से लिए एक दो परिदृश्य दिए गए हैं आपको इनमें क्या नजर आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे, और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को पहचान कर यह बताइए कि इनमें से कौन-से ग्रामीण और कौन-से शहरी परिदृश्य हैं?
उत्तर:
चित्र 4.2 में कुछ स्त्रियों को आभूषण धारण किये हुए दिखाया गया है। इस चित्र की बायीं ओर दो झोपड़ियाँ हैं। इनके दरवाजे पर स्त्रियाँ बैठी हुई हैं। इसमें कुछ जानवरों यथा-हिरण, भैंस और घास-फूस की आकृतियाँ हैं। इसमें कुछ योद्धाओं के चित्र हैं जो धनुष-बाण धारण किये हैं और इसके बायीं ओर एक पेड़ है। इसके नीचे सम्भवतः तालाब है जिसमें भैंसे नहा रही हैं। कुछ फर्न और शैवाल भी दिखाये गये हैं। इसके नीचे रेलिंग है। निश्चित रूप से यह ग्रामीण परिदृश्य है।
चित्र 4.3 में सुन्दर पक्के स्तम्भ हैं जिसके ऊपर विभिन्न जानवर यथा-घोड़े, हाथी, शेर आदि दिखाये गये हैं। सम्भवतः यह एक हाल है जिसमें नृत्य संगीत का कार्यक्रम चल रहा है और नगरवासी एकत्रित हैं। नीचे भी वही दृश्य है परंतु भवन के झरोखे भी दिखाई दे रहे हैं। यह निश्चित रूप से शहरी परिदृश्य है।
प्रश्न 8.
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास: वैष्णववाद वह मत है जिसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। विष्णुवाद के अनुयायी विष्णु को सर्वोच्च मानते हैं तथा हरि के नाम से पुकारते हैं। उनकी बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि विष्णु ने भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न रूपों में इस धरती पर अवतार लिये। यह अवतार कभी मानव तथा कभी पशु के रूप में प्रकट होते थे। भगवान विष्णु विश्व को संकट से मुक्त कराने के लिए धरती पर बार-बार जन्म लेते हैं। इन अवतारों की संख्या दस है:
- मत्स्य
- कूर्म
- वराह
- नरसिंह
- वामन
- परशुराम
- राम
- कृष्ण
- बुद्ध
- कल्कि।
विष्णु की भक्ति से सम्पूर्ण मानव जाति को सुख प्राप्त होता है। विष्णु के कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। दूसरे देवताओं की भी मूर्तियों बनाई गईं। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। लेकिन उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में दिखाया गया है।
शैववाद में शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। लगता है शैववाद सैन्धव सभ्यता से आरंभ हो गया था। वहाँ से अनेक शिवलिंग मिले हैं। शैववाद का उदय ऋग्वेद में दिये गये रुद्र के विचार से हुआ है। शिवजी को नृत्य का देवता अथवा नटराज भी कहते हैं।
शैव मत के अनुयायी शिव व पार्वती को महादेव और महादेवी कहते हैं। पार्वती सुन्दरता तथा नम्रता की देवी है। उसकी दुर्गा अथवा काली के रूप में भी पूजा की जाती है। कुछ शिवभक्त शिव के प्रतीक लोहे के त्रिशूल हाथ में उठाये रखते हैं। अन्य शिवभक्त शिवजी की लिंग के रूप में पूजा करते हैं।
उत्तरी भारत में शिवजी की कई अन्य रूपों में पूजा की जाती है जैसे कि रूद्र, नानीरुद्र, नंदीश, हर, नरेन्द्र, महाकाल, भैरव आदि । आरंभिक शैववाद को पशुपति संप्रदाय कहा जाता था । अर्थात् उन्हें पशुओं का देवता माना जाता था। शिव को बाद में स्वामी अथवा पति माना जाता था इन्हें जीवों को मुक्ति प्रदाता समझा जाता था।
प्रश्न 9.
स्तूप क्यों और कैसे बनाये जाते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्तूप निर्माण के कारण:
स्तूप एक पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि इन स्थानों पर महात्मा बुद्ध की अस्थियाँ या उससे सम्बन्धित वस्तुएँ दबायी गई हैं। टीलेनुमा इन स्तूपों की बुद्ध तथा बौद्धधर्म के प्रतीक मानकर पूजा की जाती थी।
अशोकावदान से ज्ञात होता है कि अशोक ने सभी प्रसिद्ध नगरों में स्तूप बनाने का आदेश दिया था। भरहुत, सांची सारनाथ के स्तूप सा०यु०पू० द्वितीय शताब्दी तक बन गये थे।
स्तूप निर्माण की विधि:
इन स्तूपों का निर्माण दान द्वारा किया गया था। दान देने वालों में राजा, शिल्पकार और व्यापारी आदि शामिल थे। इसमें कुछ पुरुष, महिलायें, भिक्षुक और भिक्षुणियाँ भी शामिल थीं। आरंभ में स्तूप अर्द्धगोलाकार रूप में जमाई गई मिट्टी के बनाए जाते थे।
इसे अंड भी कहने थे। आगे चलकर इसमें अनेक वस्तुएँ जुड़ गईं। यह चौकोर और गोल आकारों का मिश्रित रू; बना। अंड के ऊपर छज्जे जैसी आकृति या हर्मिक बनने लगी थी। इसको देवताओं का निवा: माना जाता था। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे यष्टि कहते थे। स्तूप के चारों ओर वेदिका होती थी। सांची और भरहुत के स्तूपों में तोरणद्वार और वेदिकायें हैं। ये बांस या लकड़ी के घेरे होते थे। इसी प्रकार की कुछ अन्य संरचनायें कुछ दूसरे स्तूपों में मिलती हैं।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10.
विश्व के रेखांकित मानचित्र पर उन इलाकों पर निशान लगाइये जहाँ बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। उपमहाद्वीप से इन इलाकों को जोड़ने वाले जल और स्थल मार्गों को दिखाइये।
उत्तर:
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11.
इस अध्याय में चर्चित धार्मिक परम्पराओं में से क्या कोई परम्परा आपके अड़ोस-पड़ोस में मानी जाती है? आज किन धार्मिक ग्रंथों का प्रयोग किया जाता है? उन्हें कैसे संरक्षित और संप्रेषित किया जाता है? क्या पूजा में मूर्तियों का प्रयोग होता है? यदि हाँ तो क्या ये मूर्तियाँ इस अध्याय में लिखी गई मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं या अलग हैं? धार्मिक कृत्यों के लिए प्रयुक्त इमारतों की तुलना प्रारंभिक स्तूपों और मंदिरों से कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 12.
इस अध्याय में वर्णित धार्मिक परम्पराओं से जुड़े अलग-अलग काल और इलाकों की कम से पाँच मूर्तियों और चित्रों की तस्वीरें इकट्ठी कीजिए। उनके शीर्षक हटाकर प्रत्येक दो लोगों को दिखाइए और उन्हें इसके बारे में बताने को कहिए। उनके वर्णनों की तुलना करते हुए अपनी खोज रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
Bihar Board Class 12 History विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
साण्युपू0 600 से सायु० 600 तक सांस्कृतिक विकास जानने के कौन-कौन से स्रोत हैं?
उत्तर:
- साहित्यिक स्रोतों में बौद्ध, जैन और ब्राह्मणों ग्रंथों से जानकारी मिलती है।
- पुरातात्विक साधनों में इमारतों, अभिलेखों एवं सांची के स्तूप से विशेष जानकारी मिलती है।
प्रश्न 2.
सांची कहाँ स्थित है?
उत्तर:
- यह भोपाल से 20 मील पर उत्तर-पूर्व की ओर पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक गाँव है।
- यहाँ प्राचीन अवशेषों की भरमार है जिसमें बौद्धकालीन तोरणद्वार और पत्थर की मूर्तियाँ मिलती हैं।
प्रश्न 3.
सायु०पू० प्रथम शताब्दी को विश्व में युगांतरकारी काल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
- इस युग में ईरान में जरथुस्ट, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू और भारत में महावीर, बुद्ध और अन्य चिंतकों का जन्म हुआ।
- उन्होंने जीवन के रहस्यों, जनता और विश्व व्यवस्था के संबंध को समझने का प्रयास किया।
प्रश्न 4.
सांची स्तूप के अवशेषों को यूरोपीय लोगों से कैसे बचाया जा सका?
उत्तर:
शाहजहाँ बेगम के अथक प्रयासों से।
प्रश्न 5.
निर्वाण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बौद्ध साहित्य में निर्वाण का अर्थ जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करना है। यह हमेशा मनुष्य के सत्कार्यों से संभव होता है।
प्रश्न 6.
तीर्थंकर का क्या अर्थ है?
उत्तर:
- जैन धर्म के संस्थापक महावीर से पहले के 23 धर्म गुरुओं या आचार्यों को तीर्थंकर कहते हैं। महावीर स्वामी को 24 वाँ तीर्थंकर माना जाता है।
- जैन लोग तीर्थंकरों की पूजा करते हैं। ये जैनों के लिए हिन्दुओं के देवताओं के समान थे।
प्रश्न 7.
उपनिषदों में किस प्रकार के विचार मिलते हैं?
उत्तर:
- उपनिषद् के विचारों से प्रकट होता है कि लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के बाद जीवन की संभावना और पुनर्जन्म के बारे में जानने के इच्छुक थे।
- लोग ऐसा उपाय या मार्ग पाने के इच्छुक थे जो उन्हें परम यथार्थ की प्रकृति को समझ सके और उसको अभिव्यक्त करने की योग्यता दे सके।
- यज्ञों के महत्त्व के बारे में भी विचार मिलते हैं।
प्रश्न 8.
त्रिपिटक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
- विनय पिटक में संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।
- सुत्तपिटक में बुद्ध की शिक्षायें हैं।
- अभिधम्म में दर्शन से जुड़े विषय है।
प्रश्न 9.
सुत्तपिटक के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के पश्चात् उसके तत्त्व कहाँ मिल जाते हैं?
उत्तर:
इसके अनुसार मृत्यु पश्चात् मनुष्य के शरीर का मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला हिस्सा जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा सांस का अंश वायु में वापस मिल जाता है। इसी तरह इन्द्रियाँ भी अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है।
प्रश्न 10.
श्वेताम्बर का क्या अर्थ है?
उत्तर:
- जैन धर्म का वह सम्प्रदाय जो श्वेत वस्त्र धाण करता था उसे श्वेताम्बर कहा गया।
- इस सम्प्रदाय के अनुयायी प्रायः उत्तर भारत में थे।
प्रश्न 11.
सुत्तपिटक के अनुसार मालिकों को सेवकों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।
उत्तर:
मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच प्रकार से देखभाल करनी चाहिए
- उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर।
- उन्हें भोजन और मजदूरी देकर।
- बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करके।
- उनके साथ सुस्वाद भोजन बांटकर।
- समय-समय पर उन्हें अवकाश देकर।
प्रश्न 12.
मध्यम मार्ग का क्या आशय है?
उत्तर:
मध्यम मार्ग का अर्थ है-विलासिता और कठोर तपस्या दोनों मार्गों से हटकर सहज जीवन बिताना।
प्रश्न 13.
अष्टांगिक मार्ग क्या है?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध द्वारा निर्वाण प्राप्त करने के लिए जिस मार्ग को अपनाने के लिए कहा गया उसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। इस मार्ग के आठ अंग निम्नलिखित हैं –
- सम्यक् दृष्टि
- सम्यक् वचन
- सम्यक् जीविका
- सम्यक् स्मृति
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् कर्म
- सम्यक् व्यायाम
- सम्यक् समाधि।
प्रश्न 14.
हीनयान सम्प्रदाय के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर:
- हीनयान सम्प्रदाय के लोग बौद्ध धर्म के प्राचीन स्वरूप को मानते हैं। वे कट्टरपंथी हैं तथा बौद्ध धर्म के कठोर नियमों का पालन करने पर जोर देते हैं।
- उनके विचार से अष्टांगिक मार्ग अपनाकर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 15.
वज्रयान का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी में बौद्ध विहार विलासिता के केन्द्र बन गये। अब वहाँ वे सभी कार्य किये जाने लगे जिनपर बुद्ध ने प्रतिबंध लगाया था। बौद्ध धर्म के इस नये स्वरूप को वज्रयान कहा गया।
प्रश्न 16.
सांची के स्तूप में जानवरों की आकृतियों क्यों उत्कीर्ण हैं?
उत्तर:
मनुष्यों के गुणों का प्रतीक मानकर ही वहाँ जानवरों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। उदाहरणार्थ-हाथी की आकृति शक्ति और ज्ञान की प्रतीक है।
प्रश्न 17.
अजन्ता के चित्रों की प्रमुख विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
- अजंता के चित्र जातकों की कथायें दिखाते हैं। इनमें राजदरबार का जीवन, शोभा यात्रायें, काम करते हुए स्त्री-पुरुष और त्यौहार मनाने के चित्र दिखाए गए हैं।
- कलाकारों ने त्रिविम रूप देने के लिए आभाथेद तकनीक का प्रयोग किया । कुछ चित्र बिल्कुल स्वाभाविक और सजीव लगते हैं।
प्रश्न 18.
गजलक्ष्मी क्या है?
उत्तर:
- सांची की मूर्तियों में कमल दल और हाथियों के बीच महिला की मूर्ति उत्कीर्ण है। ये हाथी उनके ऊपर जल छिड़क रहे हैं।
- अनेक इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थी जिन्हें प्रायः हाथियों के साथ जोड़ा जाता है।
प्रश्न 19.
थेरीगाथा क्या है?
उत्तर:
- यह एक अद्वितीय बौद्ध ग्रंथ है जो सुत्तपिटक का हिस्सा है। इसमें भिक्षुणियों द्वारा रचित छंदों का संकलन किया गया है।
- इससे महिलाओं के सामाजिक और अध्यात्मिक अनुभवों के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है।
प्रश्न 20.
चैत्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
- शवदाह के पश्चात् शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिये जाते थे।
- अंतिम संस्कार से जुड़े ये टीले ही चैत्य माने गये।
प्रश्न 21.
चार बौद्ध स्थल कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
- लुम्बिनी: यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। यह स्थल नेपाल में है।
- बोधगया: यहाँ उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। यह स्थान बिहार में है।
- सारनाथ: यह स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।
- कुशीनगर: यह स्थान देवरिया, उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था।
प्रश्न 22.
अमरावती के स्तूप की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था।
- इसमें ऊँचे-ऊँचे तोरणद्वार तथा सुंदर मूर्तिया थीं।
प्रश्न 23.
बोधिसत्व की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
- बोधिसत्व को एक दयावान जीव माना गया जो सत्कर्मों से पुण्य कमाते थे।
- इस पुण्य का प्रयोग वे निर्वाण प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि दूसरों की सहायता करने के लिए करते थे।
प्रश्न 24.
सांची क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
- सांची का स्तूप प्राचीन भारत की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। पहाड़ी पर स्थित यह स्तूप एक मुकुट सा दिखाई देता है।
- सांची के स्तूप से बौद्ध धर्म का इतिहास लिखने हेतु पर्याप्त जानकारियाँ मिली। सांची बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है।
प्रश्न 25.
नियतवादी और भौतिकवादी किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर:
- नियतवादी आजविक परम्परा के थे। उनके अनुसार जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है। इसे बदला नहीं जा सकता।
- भौतिकवादी उपदेशक लोकायत परम्परा के थे। वे दान-दक्षिणा, चढ़ावा आदि देने को खोखला झूठ और मूों का सिद्धांत मानते थे। वे जीवन का भरपूर आनन्द लेने में विश्वास रखते थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
वैदिक-काल की यज्ञ-परम्परा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैदिक-काल की यज्ञ परम्परा:
- सा०यु०पू० 1500 से सा०यु०पू० 1000 तक वैदिक परम्परा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता हैं। यह एक प्राचीन परम्परा थी।
- यज्ञों के समय वैदिक देवताओं अग्नि, इन्द्र और सोम आदि का उच्चारण किया जाता था। ऋग्वेद इनका संग्रह है।
- इन यज्ञों के माध्यम से लोग मवेशी, पुत्र प्राप्ति, स्वास्थ्य, लंबी आयु आदि पाने के लिए प्रार्थना करते थे।
- प्रारंभ में यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे। उत्तर वैदिक-काल (1000 साव्यु०पू० से 500 सा०यु०पू०)। कुछ यज्ञ गृहस्थियों द्वारा किये जाते थे।
- राजसूय और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे। इनके अनुष्ठान के लिए उन्हें ब्राह्मण पुरोहितों पर निर्भर रहना पड़ता था।
प्रश्न 2.
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के क्या प्रभाव पड़े? अथवा, जैन धर्म का कला तथा स्थापत्य के विकास में योगदान बताइए।
उत्तर:
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खण्डन किया। इस कारण देश में जाति-प्रथा के बंधन शिथिल पड़ गए। इस मत के सरल सिद्धांतों की लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने पशु-बलि, कर्मकांड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया। अब वैदिक धर्म एक बार फिर से सरल रूप धारण करने लगा। जैन धर्म में अहिंसा पर बल दिया गया था।
इस सिद्धांत को अपना कर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए। जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। दिलवाड़ा का जैन मंदिर, आबू पर्वत का जैन मंदिर, एलोरा की गुफाएँ तथा खजुराहों के जैन मंदिर कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। इस धर्म के कारण कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की।
प्रश्न 3.
बौद्ध ग्रंथ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किये जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथ की तैयारी और संरक्षण –
- महात्मा बुद्ध चर्चा और बातचीत करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे। पुरुष, महिलायें और संभवत: बच्चे इन प्रवचनों को सुनते थे और इन पर चर्चा करते थे।
- बुद्ध के किसी भी संभाषण को उनके जीवन काल में नहीं लिखा गया। उनके उपदेश चर्चा के रूप में ही सुरक्षित थे।
- बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् पाँचवी-चौथी शताब्दी सा०यु०पू० में उनके शिष्यों ने वरिष्ठ श्रमणों की वैशाली में एक सभा बुलाई। वहाँ पर उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया।
- इन संग्रहों को त्रिपिटक कहा जाता था। प्रारंभ में उन्हें मौखिक रूप से संप्रेषित किया जाता था। बाद में लिखकर विषय और लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण किया गया।
प्रश्न 4.
सामान्य युग पूर्व छठी शताब्दी में नये धार्मिक सम्प्रदायों का उदय होने के कारण बताइये।
उत्तर:
- हिन्दू धर्म में कर्मकाण्डों की प्रधानता: ब्राह्मणों तथा पुरोहितों द्वारा अपनी स्वार्थ-सिद्धि के कारण हिंदू धर्म में जटिलता बढ़ गई। साधारण व्यक्ति इस कर्मकाण्डी व्यवस्था को बोझ समझने लगा। पशु बलि के कारण धर्म की पवित्रता समाप्त हो गई।
- संस्कृत भाषा का दुरुह होना: वैदिक धर्म की भाषा संस्कृत होने के कारण धर्म साधारण व्यक्ति की समझ से परे हो गया। धर्म के सिद्धांतों को प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिन-प्रतिदिन की भाषा में समझना चाहते थे। बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के प्रवर्तकों द्वारा जन-भाषा में धार्मिक उपदेश दिये गये।
- नवीन कृषि-व्यवस्था: कृषि के विस्तार के कारण बैलों तथा अन्य पशुओं की माँग बढ़ने लगी। हिंदू धर्म में बलि के कारण इन पशुओं का अभाव होता जा रहा था। जैन तथा बौद्ध धर्म द्वारा अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया।
- दोषपूर्ण वर्ण-व्यवस्था: जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उद्भव का एक महत्त्वपूर्ण कारण दोषपूर्ण वर्ण-व्यवस्था थी। वर्ण-व्यवस्था के कठोर नियमों के अन्तर्गत शूद्रों को समस्त प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
प्रश्न 5.
हीनयान और महायान में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हीनयान और महायान में अंतर:
1. मूर्ति पूजा:
महायान धर्म वाले बुद्ध को देवता मानने लगे, जबकि हीनयान वाले बुद्ध को केवल महान् मनुष्य ही समझते थे और बुद्ध की मूर्तियाँ बनाने के पक्ष में नहीं थे। महायान धर्मावलम्बियों ने इसके विपरीत उनकी पत्थर की मूर्तियाँ बनानी आरंभ कर दी।
2. तर्क के स्थान पर विश्वास:
हीनयान मत वाले व्यक्तिगत प्रयत्न और अच्छे कर्मों पर जोर देते थे। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है, “जब देवता भी बुरे कर्मों के फल से नहीं बच सकते तो देवताओं की पूजा करने से क्या लाभ ?” परंतु महायान वाले विश्वास और पूजा पर अधिक जोर देते थे, इसलिए उन्होंने बुद्ध की पूजा करनी आरंभ कर दी। इस प्रकार तर्क का स्थान विश्वास ने ले लिया।
3. पाली भाषा के स्थान पर संस्कृत:
महायान सम्प्रदाय की बहुत सी पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखी गईं, जबकि हीनयान सम्प्रदाय वालों की सभी पुस्तकें पाली भाषा में हैं।
4. बौद्ध भिक्षुओं की उपासना:
महायान धर्म में न केवल बुद्ध को भगवान मानकर उनकी उपासना आरंभ हो गई अपनी उपासना और पवित्रता के कारण प्रसिद्धि पाने वाले भिक्षुओं की उपासना भी की जाने लगी और उनकी मूर्तियाँ बनाकर बौद्ध मंदिरों में रखी जाने लगीं।
5. निर्वाण की अपेक्षा स्वर्ग:
महायान मत वालों ने भी अब जन-साधारण के सामने स्वर्ग: को अपनी अंतिम मंजिल बताया। यह परिवर्तन जन-साधारण को आकर्षित करने के लिए किया गया था। वास्तव में बौद्ध धर्म वाले यह अनुभव कर रहे थे कि हिन्दू धर्म उनसे अधिक प्रचारित है, इसलिए उन्होंने ऐसे ढोंग रचने आरंभ किये।
6. प्रार्थना तथा भेंट:
महात्मा बुद्ध ने प्रार्थना और बलि की आवश्यकता पर बल नहीं दिया था। परंतु महायानी बौद्धों ने महात्मा बुद्ध को भगवान मानकर उनकी प्रार्थना आरंभ कर दी । फल–फूल की भेंट भी दी जाने लगी। इस प्रकार बौद्ध धर्म में भी हिन्दू धर्म के तत्वों का समावेश होने लगा। बुद्ध को अवतार समझा जाने लगा।
प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म में परिवर्तन की घटना से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में परिवर्तन की घटना : महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् कुछ समय तक भिक्षुओं ने बड़ा पवित्र जीवन व्यतीत किया, जिसके कारण वे लोगों में बड़े प्रिय हो गये थे। धीरे-धीरे उन्होंने संघ के नियमों की अवहेलना करनी आरंभ कर दी।
भिक्षुओं को ऐसा प्रतीत होने लगा कि उनके लिए बुद्ध के बनाए हुए नियमों पर चलना कठिन हो गया है। इससे बौद्ध। धर्म के अनुयायियों में मतभेद पैदा होने लगे। धीरे-धीरे मतभेद इतने बढ़ गए कि पहली शताब्दी सा०यु० में बौद्ध धर्म दो भागों में बँट गया –
- हीनयान मत वाले पुराने धर्म को, जिसकी नींव बुद्ध ने रखी थी, और
- महायान वाले धर्म के परिष्कृत स्वरूप को मानते थे। इस घटना को बौद्ध धर्म में परिवर्तन कहते हैं।
प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म ने धार्मिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
धार्मिक जीवन पर प्रभाव:
- बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने हिन्दू धर्म की बुराइयों को लोगों के सामने रखा। इससे हिन्दू-धर्म का स्वरूप सुधरने लगा।
- बौद्ध लोगों ने जाति-पाँति और ऊँच-नीच का विरोध करके धार्मिक एकता की भावना को बढ़ाया।
- महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ बनती देखकर हिन्दुओं ने भी अपने देवताओं की मूर्तियाँ बनानी शुरू कर दी। इससे मूर्तिकला ने निखार पाया।
- प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० वी० ए० स्मिथ (Dr. V.A. Smith) के अनुसार हिन्दू धर्म और बौद्ध मत वालों के बीच विविध परिचर्चाओं एवं गोष्ठियों ने भक्ति के विभिन्न सम्प्रदायों को जन्म दिया और भक्ति-भावना बढ़ने लगी।
प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के क्या कारण थे?
उत्तर-बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण:
1. बौद्ध धर्म में संघ का योगदान:
धर्म का प्रचार करने के लिए इस धर्म में संघों की स्थापना की गई। इनमें पढ़ने तथा पढ़ाने का काम होता था, प्रचार करने के कार्यक्रम बनाए जाते थे और बुरे तथा अपवित्र भिक्षुओं को दण्ड दिया जाता था। इन संघों के माध्यम से प्रचार का काम सुव्यवस्थित ढंग से होता रहा और बौद्ध धर्म लगातार उन्नति करता रहा।
2. समय के साथ परिवर्तन:
बहुत से हिन्दू लोग बौद्ध धर्म की सरलता और सिद्धांतों से आकर्षित होकर इस धर्म में आ गये परंतु उनके लिए राम, कृष्ण, इन्द्र आदि. की पूजा छोड़ना बहुत कठिन था। बौद्ध धर्म ने यह देखकर धीरे-धीरे हिन्दू धर्म की कुछ ऐसी बातें अपना ली जिन्हें जन-साधारण के लिए छोड़ना बहुत कठिन था। बौद्ध धर्म की महायान शाखा में रहकर लोग हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी महात्मा बुद्ध की शिक्षा पर चल सकते थे। इस प्रकार बौद्ध धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।
3. बौद्ध धर्म में विश्वविद्यालय:
इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म के प्रचार में तक्षशिला विश्वविद्यालय, गया के महाबोधि विश्वविद्यालय तथा नालंदा विश्वविद्यालय ने विशेष योगदान दिया। इन विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्र भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। वे बुद्ध धर्म के तत्वों से प्रभावित हुए और वापस लौटने के बाद उन्होंने अपने-अपने देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
4. राज्य संरक्षण:
बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में राजकीय संरक्षण का विशेष हाथ रहा । अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन जैसे अनेक राजाओं ने बौद्ध धर्म को अपनाया तथा इसको राज्यधर्म घोषित करके उसके प्रचार के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी। भिक्षुओं की राजकोष से सहायता की गई और उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ दी गईं।
प्रश्न 9.
बौद्ध धर्म का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
बौद्ध धर्म पर सामाजिक जीवन का प्रभाव: बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज को अनेक प्रकार से प्रभावित किया:
- बौद्ध मत वालों ने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया और सब लोगों को बराबरी का स्थान दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे जाति-प्रथा की दृढ़ता दूर होती गई। लोगों में भेदभाव घटने से भाईचारा बढ़ा और जिससे भारतीय समाज एकता के सूत्र में बँधा।
- बौद्ध धर्म को छोड़कर वापस हिन्दू धर्म में आने पर लोगों ने अपनी नई जातियाँ बना ली।
- लोगों में मांस खाने की प्रवृत्ति कम हो गई और वे मांसाहारी से शाकाहारी बन गए।
- किसी जीव-जन्तु को दु:ख न देने की अहिंसा भावना से समाज को एक नई अन्तर्दृष्टि और शक्ति प्रदान की।
प्रश्न 10.
बुद्ध के अनुयायियों में कौन-कौन से वर्ग शामिल थे?
उत्तर:
बौद्ध अनुयायियों के वर्ग:
- अनुयायियों में कुछ ऐसे भिक्षु थे जो धम्म के शिक्षक या श्रमण बन गये। उनका जीवन सादा होता था और शिक्षा धर्म अपनाकर जीवन-यापन करने लगे।
- बुद्ध के प्रिय शिष्य आनन्द ने महिलाओं को भी बौद्ध धर्म में शामिल कराया। आगे चलकर कई महिलायें धम्म की उपदेशिकाएँ और कुछ थेरी भी बनीं। थेरी ऐसी महिलायें थीं जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया था।
- अन्य वर्ग क्रमशः राजा, धनवान, गृहपति और सामान्यजन, कर्मकार, दास तथा शिल्पी थे।
प्रश्न 11.
गांधार कला के विषय में एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।
उत्तर:
गांधार कला:
1. प्रारंभ कला:
गांधार शैली भारतीय कला के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। सम्भवतः गांधार कला का आविर्भाव द्वितीय शताब्दी सा०यु०पू० तक हो चुका था। कनिष्क के शासनकाल में गांधार कला अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँच गयी थी। गांधार कला के प्रमुख केन्द्र थे-तक्षशिला तथा पुरुषपुर आदि। यह यूनानी तथा भारतीय शैली का समन्वय है।
2. विषय:
गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय है लेकिन इसकी तकनीक यूनानी है। यूनानी शिल्पकारों तथा कलाकारों के धार्मिक विचारों के आधार पर यूनानी रूप तथा वेशभूषा में भगवान बुद्ध की प्रतिमायें निर्मित हैं।
3. विभिन्न नाम:
यूनानी प्रभाव के कारण गांधार कला को इण्डो-ग्रीक, इण्डो-बैक्ट्रियन, इण्डो-हैलेमिक, इण्डो-रोमन, ग्रीको-रोमन तथा ग्रीको-बुद्धिस्ट कला के नाम से भी पुकारा जाता है लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसे गांधार कला ही कहा जाता है।
4. विशेषताएँ:
- (क) गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय तथा तकनीक यूनानी है।
- (ख) गांधार कला में निर्मित मूर्तियाँ साधारतणया स्लेटी पत्थर की हैं।
- (ग) भगवान् बुद्ध के बाल (hair) यूनानी तथा रोम की शैली में बनाये गये।
- (घ) मूर्तियों से दर्शित शरीर के अंगों को ध्यानपूर्वक बनाया गया है। मूर्तियों में मोटे तथा सिलवटदार वस्त्र दर्शाए गये हैं।
- (ड) गांधार शैली में धातु कला तथा अध्यात्म कला का अभाव है।
- (च) गांधार शैली में बुद्ध यूनान के अपोलो देवता के समान लगते हैं। यह सम्भवतः यूनानी प्रभाव के कारण है।
प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म की सांस्कृतिक क्षेत्र में क्या देन है?
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रभाव या सांस्कृतिक क्षेत्र में देन:
बौद्ध धर्म ने शिक्षा एवं कला के क्षेत्र में भी अपना अप्रतिम योगदान दिया –
1. बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर ही अशोक, हर्ष और कनिष्क जैसे राजाओं ने सारे देश को सुन्दर विहारों, स्तूपों, मठों, मूर्तियों और स्तम्भों आदि से सजा दिया था। अशोक के बनाये हुए स्तम्भ आज भी अपनी कल्पना के लिए अद्वितीय है। कनिष्क के शासन काल में गांधार कला ने बड़ी उन्नति की। इस काल के बने हुए नमूने, विशेषकर बुद्ध की मूर्तियाँ, अपने सौन्दर्य में अद्वितीय हैं।
2. साहित्य के क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की हजारों पुस्तकें जन-साधारण की भाषा ‘प्राकृत’ में लिखी गईं। इस प्रकार जन-साधारण की भाषा में कए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) एक नए साहित्य का विकास हुआ। ये साहित्यिक पुस्तकें ऐसी निधि हैं जिसके लिए भारत को अब तक बड़ा गर्व हैहै।
3. बौद्ध धर्म के प्रचारक अन्य देशों में धर्म-प्रचार करने के लिए गए। उनके साथ-साथ भारतीय संस्कृति भी अन्य देशों में फैल गई और भारत का उन देशों के साथ व्यापार सम्पर्क बढ़ने लगा। इस प्रकार आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की बड़ी देन है।
प्रश्न 13.
गुप्तकालीन कलाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन कला:
1. वास्तुकता:
गुप्त-काल सृजन और विकास का युग था। एक ओर वास्तुकला की पूर्ववर्ती कला शैली का चरमोत्कर्ष और दूसरी ओर मंदिर वास्तुकता का विकास भी इसी काल में हुआ।
2. गुफा वास्तुकला:
इसका उत्कर्ष अजन्ता की गुफाओं में देखने को मिलता है।
3. मंदिर-निर्माण कला:
फाह्यान के लेखों से पता चलता है कि बड़े-बड़े नगरों में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। इनमें देवगढ़ का पाषाण निर्मित मंदिर और भितरगांव का मंदिर अद्भुत मूर्ति कला के लिए प्रसिद्ध है। भूमर का शिव मंदिर और खोह का एकमुखी शिवलिंग भी प्रसिद्ध है। सारनाथ का धुमेख स्तूप और नालंदा का बौद्ध मंदिर भी इसी काल में बने।
4. मूर्तिकला:
सारनाथ और मथुरा केन्द्र थे। बुद्ध की मूर्तियों के साथ-साथ अब शिव, विष्णु, कार्तिकेय, सूर्य आदि की मूर्तियाँ भी बनाई जाने लगीं। यह कला गांधार और कुषाणकाल की कलाओं से भी अधिक उन्नत थी।
प्रश्न 14.
भारतीय कला में मथुरा कला का क्या योगदान है?
उत्तर:
मथुरा कला का योगदान:
मथुरा की मूर्तिकला का आरंभ पहली शताब्दी सा०यु० में हुआ। इस शैली की मूर्तियाँ इतनी अधिक लोकप्रिय हुईं कि उन्हें तक्षशिला, मध्य एशिया, उत्तरी-पश्चिमी प्रदेश, सरस्वती और सारनाथ आदि प्रदेशों को भेजा गया और भारत के सभी मंदिरों में इन्हें लगाया गया।
मथुरा में मूर्तियाँ लाल रेत के पत्थरों से बनाई जाती थी और उन पर पॉलिश की जाती थी। मथुरा के नागराटे नामक स्थान पर कनिष्क की बिना सिर की मूर्ति और खड़ी हुई लाटें, बुद्ध की कई मूर्तियाँ और यक्ष और यक्षी की मूर्तियाँ इसी कला में बनाई गई हैं। आरंभिक काल में इस स्कूल पर शायद जैन धर्म का प्रभाव पड़ा था। मथुरा के दस्तकारों ने बहुत-सी ऐसी मूर्तियाँ बनायी हैं जिनमें तीर्थंकर पांव पर पांव रखकर ज्ञान-मुद्रा में दिखाए गए हैं।
प्रश्न 15.
सांची क्यों बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
सांची स्थल के बचने और अमरावती के नष्ट होने के कारण:
1. अमरावती के स्तूप की खोज साँची-स्तूप से थोड़ा पहले (1796) हो चुकी थी। तब तक विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाये थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना महत्त्वपूर्ण होता है।
2. अमरावती स्तूप के पत्थरों को उठाकर दूसरी जगह ले जाया गया। यही नहीं वहाँ की मूर्तियों को भी संग्रहालयों में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके कारण स्तूप का महत्त्वपूर्ण अवशेष दूसरे स्थानों पर चला गया।
3. सांची की खोज 1818 सा०यु० में हुई। इसके तीन तोरणद्वार खड़े थे और चौथा वहीं पर गिरा हुआ था। टीला भी अच्छी हालत में था। इस स्तूप के तोरणद्वारों को पेरिस या लंदन भेजने की योजना बनाई गई लेकिन राजकीय संरक्षण के कारण अंग्रेजों को इसके स्थान पर प्लास्टिक की प्रतिमूर्तियाँ दे दी गई थी।
प्रश्न 16.
बौद्ध संघ की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बौद्ध संघ की प्रमुख विशेषतायें:
- इसके सदस्य भिक्षु होते थे क्योंकि वे भिक्षा माँगकर जीविका चलाते थे।
- आरम्भ में बौद्ध संघ में केवल पुरुष शामिल होते थे, परंतु बाद में महिलाओं को भी अनुमति दे दी गयी। बुद्ध की सौतेली माँ महाप्रजापति गौतमी संघ में प्रवेश पाने वाली पहली भिक्षुणी थी। संघ में कई महिलायें धम्म की उपदेशिकायें बन गईं। आगे चलकर वे थेरी बनीं जिसका अर्थ ऐसी महिलाओं से है जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया है।
- यद्यपि बौद्ध संघ के सदस्य विभिन्न सामाजिक वर्गों के थे परंतु सभी का दर्जा समान माना जाता था।
- संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। लोग बातचीत द्वारा किसी बात पर एकमत होने का प्रयास करते थे। यदि सहमति से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन हो जाता था तो मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था।
प्रश्न 17.
बौद्ध परम्परा में महायान की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर:
बौद्ध परम्परा में महायान की उत्पत्ति:
कनिष्क के काल से बौद्ध परम्परा में परिवर्तन दिखाई देने लगता है। पहली शताब्दी सा०यु० के पूर्व बुद्ध को एक मानव माना जाता था और परिनिर्वाण के लिए व्यक्तिगत प्रयास को विशेष महत्त्व दिया जाता था। परंतु धीरे-धीरे इसमें परिवर्तन आने लगा। बहुत से बौद्ध अनुयायी बुद्ध को देवता मानने लगे और मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करने लगे। यहीं से महायान परम्परा की शुरूआत हुई।
महायान धर्म में न केवल बुद्ध को भगवान का पद दिया गया बल्कि उनकी उपासना में आरम्भ हो गयी। बौद्ध भिक्षुओं की उपासना भी की जाने लगी और उनकी मूर्तियाँ बनाकर बौद्ध मंदिरों में रखी जाने लगीं। महायान के लोग जन-साधारण के सामने स्वर्ग को अपनी अंतिम मंजिल बताते थे। यह धर्म में एक बड़ा परिवर्तन था और जन-साधारण को आकर्षित करने के लिए किया गया था। बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म से अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए वे हिन्दू देवताओं की भांति बुद्ध की पूजा भी करने लगे।
प्रश्न 18.
जैन धर्म ने भारतीय समाज को कहाँ तक प्रभावित किया?
उत्तर:
जैन धर्म का भारतीय समाज का प्रभाव:
- जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खंडन किया। फलस्वरूप देश में जाति-प्रथा के बंधन शिथिल पड़ गए।
- जैन धर्म के सिद्धांतों से प्रभावित होकर ब्राह्मणों ने पशुबलि, कर्मकांड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया और वैदिक धर्म एक बार पुनः सरल रूप धारण करने लगा।
- जैन धर्म के अहिंसा सिद्धांत ने लोगों को शाकाहारी बनने की प्रेरणा दी। इस प्रकार जानवरों की हत्या कम हो गयी।
- जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाये अर्थात् स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास हुआ। दिलवाड़ा का जैन मंदिर, एलोरा की गुफायें तथा खजुराहो के जैन मंदिर इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
प्रश्न 19.
भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी सायु०पू० को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी सा०यु०पू० का महत्त्व:
- इस काल में अनेक राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिवर्तन हुए। भारत में सा०यु०पू० छठी शाताब्दी में 16 महाजनपदों का उदय हुआ।
- वैदिक कर्मकाण्डों का प्रभाव धीरे-धीरे घटने लगा। उपनिषदों का महत्त्व बढ़ने से चिंतन का महत्त्व बढ़ने लगा। लोगों का ध्यान मोक्ष प्राप्ति के नये साधन ढूँढ़ने की ओर आकर्षित हुआ। इसके फलस्वरूप समाज में नये दार्शनिक विचारों का प्रतिपादन हुआ।
- नई दार्शनिक विचारधारा के फलस्वरूप समाज में नये सामाजिक-धार्मिक सम्प्रदायों का अभ्युदय हुआ। इनकी संख्या लगभग 62 थी। इन्होंने जैन सम्प्रदाय तथा बौद्ध सम्प्रदाय के विचारों पर सबसे अधिक प्रभाव डाला। इससे भारतीय समाज में भारी बदलाव आया।
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने आत्मसंयम तथा तपस्या पर बल दिया । ये विचार उपनिषदों में प्रतिपादित विचारों से मिलते-जुलते थे। इससे उपनिषदों की लोकप्रियता बढ़ने लगी।
प्रश्न 20.
भारत में बौद्ध धर्म के सामाजिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में बौद्ध धर्म के सामाजिक प्रभाव:
- बौद्ध धर्म के प्रभाव से लोग सदाचारी बन गये और झूठ बोलना, चोरी करना तथा निन्दा करना जैसे दोषों की निवृत्ति हुई।
- बौद्ध धर्म ने राजनीति को भी जन-कल्याणकारी स्वरूप दिया। अशोक जैसे शासकों ने युद्ध का परित्याग कर दिया और जनकल्याण के कार्यों में लग गए।
- बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने जीवों को मारना और मांस खाना बंद कर दिया।
- बौद्ध धर्म ने साहित्य का विकास भी किया। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं और उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक ग्रंथ लिखे गए त्रिपिटक, जातक ग्रंथ आदि इसके उदाहरण है।
- बौद्ध धर्म ने स्थापत्य और मूर्ति कला को भी बढ़ावा दिया। अनेक स्तूपों, मठों और विहारों का निर्माण किया गया।
प्रश्न 21.
बुद्ध की प्रथम संसार-यात्रा से उनका जीवन कैसे बदल गया? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध एक दिन भ्रमण के लिए बाहर गये जहाँ उन्होंने निम्न दृश्य देखे जिससे उनका जीवन बदल गया:
- उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति देखा जिसके शरीर पर झुरियाँ पड़ी थीं।
- एक बीमार व्यक्ति शारीरिक कष्ट से कराह रहा था।
- कुछ लोग एक लाश लेकर उसके अंतिम संस्कार के लिए जा रहे थे और रो रहे थे। इन दृश्यों को देखकर बुद्ध का मन विचलित हो गया और उन्हें अनुभूति हुई कि शरीर का क्षय और अंत निश्चित है।
- उन्होंने एक गृहत्यागी सन्यासी को देखा जो बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु से निर्भय था और उसने शांति प्राप्त कर ली थी। इन घटना से उन्होंने सन्यास का रास्ता अपनाने का निश्चय किया।
प्रश्न 22.
बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म में क्या अंतर था।
उत्तर:
बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म में अंतर:
- हिन्दू धर्म सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास करता है जबकि बौद्ध धर्म ईश्वर के प्रति मौन है।
- बौद्ध धर्म अहिंसा पर बल देता है और माँस भक्षण के विरुद्ध है लेकिन हिन्दू धर्म अहिंसा पर अधिक जोर नहीं देता। इसमें पशु एवं नरबलि के प्रावधान भी है।
- मोक्ष प्राप्त करने के लिए हिन्दू यज्ञ, बलि और कर्मकाण्ड को आवश्यक मानते हैं परंतु बौद्ध धर्म इसे नहीं मानता।
- बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म की भाँति जातीय भेदभाव, ब्राह्मणों और सस्कृत के महत्त्व को नहीं मानता।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
गुप्तकालीन कला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन कला:
(I) वास्तुकला:
इस काल में वास्तुकला या भवन निर्माण कला की विशेष उन्नति हुई। इस क्षेत्र में गुप्तों के शासन ने एक नए युग को प्रारंभ किया। इस काल के भवन निःसन्देह अद्भुत और शानदार हैं। गुप्तकाल में अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ जिनमें निम्नलिखित प्रसिद्ध हैं –
- (क) जबलपुर जिले के तिगवा नामक स्थान में विष्णु-मंदिर।
- (ख) बोध-गया तथा सांची के बौद्ध मंदिर।
- (ग) देवगढ़ का दशावतार मंदिर।
- (घ) नागोद राज्य में भुमरा का शिव मंदिर।
- (ड़) आसाम के दरंग जिले में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर दह परबतिया नामक स्थान में एक मंदिर मिला है जो काफी टूट-फूट गया है परंतु स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर बहुत श्रेष्ठ है। (च) नागोद राज्य के खोह नामक स्थान में एक शिव मंदिर मिला है।
- (छ) अजयगढ़ राज्य में नचना-कूथर नामक स्थान पर पार्वती का मंदिर।
इन मंदिरों के अतिरिक्त कुछ ईंटों के बने हुए मंदिर भी थे। झांसी का देवगढ़ मंदिर तथा कानपुर के मंदिर उत्कृष्ट स्थापत्य कला के नमूने हैं। इसके अतिरिक्त गुप्त काल की भवन निर्माण कला में अलंकृत स्तम्भों का एक विशेष स्थान है।
(II) मूर्तिकला:
गुप्तकाल में मूर्तिकला का भी चरम विकास हुआ। इस काल की मूर्तिकला की विशेषता शारीरिक सुन्दरता की ओर अधिक ध्यान न देकर भावों को प्रकट करने में है। इस काल की मूर्तिकला पूर्ण रूप से भारतीय है। इस प्रकार मूर्तिकला विदेशी प्रभाव से सर्वथा स्वतंत्र हो गई।
कुषाण काल से पहले जो कलापूर्ण कृतियाँ थीं उनमें केवल भाव ही प्रकट किए जाते थे। कुषाण काल में शारीरिक सुन्दरता पर अधिक ध्यान दिया जाता था परंतु गुप्तकाल में कुषाण युग तथा इससे पूर्वकाल की कलाकृतियों को सुन्दर समन्वय कर दिया गया।
इस काल की मूर्तियाँ भाव-प्रेषण को वरीयता देती हैं। बुद्ध की मूर्तियाँ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, प्रशांत मुस्कराहट तथा गम्भीर विचारपूर्ण मुद्रा भारतीय मूर्तिकला से अद्भुत निखार पाती है।
इस काल में गौतम बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ ही ब्राह्मणों ने भी अपने देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया। इस काल में विष्णु, शिव, ब्रह्मा, सूर्य तथा देवताओं आदि की मूर्तियाँ । बनाई गईं।
(III) चित्रकारी:
गुप्तकालीन चित्रकला अद्वितीय थी। इसकी चित्रकारी के नमूने हमें अजन्ता और बाघ की कन्दराओं से मिले हैं। ये चित्र हमारे सामने उस काल के जीवन का सजीव चित्र उपस्थित करते हैं। यद्यपि चित्रों का उद्देश्य तथागत के जीवन की घटनाओं का वर्णन करना है परंतु यह लोक जीवन से अलग नहीं है। अजन्ता के चित्रकार प्रकृति के साथ बड़ा प्रेम रखते थे। उन्होंने फलते हुए वृक्ष तथा विचरते हुए पशुओं के सजीव चित्र खींचे हैं।
ग्रिफिन्ज और फर्गुसन ने गुफा नं. XVI में दिवगंत राजकुमारी के जीवन्त चित्रण की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि वेदना और हृदय के भावों को व्यक्त करने में यह चित्रकला के इतिहास में अद्वितीय है।
अजन्ता के चित्रों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। श्रीमती हैरिन्थम का कथन है कि अजन्ता के चित्रों के कारण भारत संपूर्ण मानव-जाति की श्रद्धा का अधिकारी है।
(IV) संगीतकला:
इस काल में चित्रकला की भाँति संगीतकला का भी चरम विकास हुआ। गुप्तकालीन साहित्य से हमें ज्ञात होता है कि इस समय गायन, वादन तथा नृत्य कला का प्रचलन था। समुद्रगुप्त के सिक्कों से ज्ञात होता है कि उसकी वीणावादन में विशेष रुचि थी।
उसकी तुलना नारद ऋषि के साथ की गई है। गुप्तकाल में नृत्य का भी काफी प्रचलन था। इसके लिए शिक्षक भी नियुक्त किए जाते थे और विशेष रूप से नारियों इस कला को सीखती थी। इस सांस्कृतिक और साहित्यिक विकास के कारण ही इस युग को स्वर्ण युग कहते हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि यह कला और साहित्य के चरम विकास का युग था।
(V) मुद्राकला:
प्रारंभ में गुप्तकालीन सम्राटों ने विदेशी मुद्राओं का अनुसरण किया परंतु बाद में भारतीयता से प्रभावित मुद्रायें चलायी। गुप्त सम्राटों की अधिकांश मुद्रायें सोने की हैं परंतु कालान्तर में उन्होंने चाँदी की मुद्रायें भी जारी की, ये मुद्रायें सुन्दर और आकर्षक हैं। इनका आकार तथा इन पर अंकित मूर्तियाँ बड़ी सुन्दर है। इन मुद्राओं पर गुप्त सम्राटों की प्रशस्ति भी लिखी गयी है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि गुप्तकाल में भारतीय साहित्य एवं कला का चहुंमुखी विकास हुआ। हेल महोदय ने गुप्तकाल की प्रशंसा करते हुए लिखा है- भारत उन दिनों शिष्य नहीं बल्कि सम्पूर्ण एशिया का शिक्षक था और पाश्चात्य सुझावों को लेकर उसने उन्हें अपने विचारों के अनुकूल बना लिया।”
प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे? बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए। अथवा, बुद्ध की शिक्षाओं की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे। उनका जन्म नेपाल के कपिलवस्तु नामक नगर में राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ। उनकी माता का नाम महामाया था। राजा शुद्धोधन के इस पुत्र के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका विवाह वैशाली की राजकुमारी यशोधरा से हुआ।
उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया । संसार में दु:ख ही दु:ख देखकर उन्होंने घर का त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े उन्होंने ज्ञान-प्राप्ति के लिये घोर तपस्या की। अंत में वे सब कुछ छोड़कर गया के समीप एक वृक्ष के नीचे बैठ गये।
यहीं उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उनका नाम ‘बुद्ध’ पड़ गया। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया। यहाँ उनके पाँच शिष्य बन गये। इसके बाद उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ने लगी।
बौद्ध धर्म की शिक्षायें:
चार मौलिक सिद्धांत और अष्टमार्ग-बुद्ध की शिक्षा के चार मौलिक सिद्धांत है –
- दुनिया दु:खों का घर है।
- इन दु:खों का कारण वासनाएँ अथवा इच्छाएँ हैं।
- इन वासनाओं को मार देने से दुःख दूर हो सकते हैं।
- इन वासनाओं का अन्त करने के लिए मनुष्य को अष्टमार्ग (Eight Fold Path) पर चलना चाहिए।
अष्टमार्ग में निम्नलिखित आठ सिद्धांत है:
- सम्यक् (शुद्धि) दृष्टि
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् वचन
- सम्यक् आचरण
- सम्यक् जीवन
- सम्यक् प्रयत्न
- सम्यक् स्मृति और
- सम्यक् समाधि।
इस मार्ग को मध्य मार्ग भी कहते हैं, क्योंकि बुद्ध एक ओर ब्राह्मणों के भोगविलासी के जीवन से घृणा करते थे और दूसरी ओर जैनियों के घोर तपस्या वाले सिद्धांत के विरुद्ध थे। वे इन दोनों के मध्य मार्ग अर्थात् सम्यक जीवन व्यतीत करने पर जोर देते थे।
1. अहिंसा:
बुद्ध ने महावीर स्वामी की भाँति अर्थात् जीवों को कष्ट न पहुँचाने पर काफी जोर दिया। उनका यह विचार था कि मनुष्य को न पशुओं का वध करना चाहिए और न उन्हें तंग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को प्रत्येक जीवधारी से प्रेम करना चाहिए, परंतु महावीर की भाँति उन्होंने इस बात का प्रचार नहीं किया कि वृक्षों, पत्थरों में भी जीवन होता है।
2. ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन:
बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व से संबंधित वाद-विवाद में नहीं पड़ना चाहते थे क्योंकि ऐसा करने से उनका धर्म भी हिन्दू धर्म की भांति समझने में कठिन हो जाता। ईश्वर है या नहीं? और यदि है तो उसका स्वरूप क्या है? वह कहाँ रहता है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बहुत वाद-विवाद हो सकता है और ऐसे वाद-विवादों से महात्मा बुद्ध बचना चाहते थे।
3. यज्ञ-बलि और कर्मकाण्ड में अविश्वास:
महावीर की भाँति महात्मा बुद्ध का भी यज्ञ और उसमें दी जाने वाली पशुओं की बलि में कोई विश्वास न था। वे तो वेदों और ब्राह्मणों को श्रेष्ठता को भी नहीं मानते थे। उनके विचारानुसार यह बाह्य आडम्बर की चीजें निर्वाण-प्राप्ति के लिए बिल्कुल निरर्थक हैं, इसलिए ऐसी चीजों का उन्होंने विरोध किया।
4. जाति-प्रथा में अविश्वास:
महात्मा बुद्ध को जात-पात के भेद-भाव को नहीं मानते थे। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था का कड़े शब्दों में विरोध किया। उनके विचार से समाज में मनुष्य के गुणों के अनुसार श्रेणियाँ बनाई जानी चाहिए न कि जाति के अनुसार।
5. निर्वाण:
बुद्ध के अनुसार जीवन का मुख्य लक्ष्य अच्छा जीवन व्यतीत करके निर्वाण प्राप्त करना है। कोई भी व्यक्ति चाहे ब्राह्मण हो अथवा शूद्र, अच्छा जीवन व्यतीत करके मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है। जब व्यक्ति जीवन-मरण के चक्कर से छूट जाता है तो बौद्ध धर्म में यह स्थिति निर्वाण कहलाती है।
6. कर्म सिद्धांत:
महात्मा बुद्ध कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते थे। वे कहते थे कि व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसी के अनुसार उसे फल मिलता है। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के फल से नहीं बच सकता।
7. शुद्धाचरण पर जोर:
महात्मा बुद्ध ने जीवन को पवित्र बनाने पर बहुत जोर दिया। उनका ध्यान, वाणी और कर्म की सच्चाई तथा पवित्रता की ओर अधिक था। जीवों पर दया करना, सत्य बोलना, चोरी ओर व्यभिचार से बचना, दूसरों की निन्दा न करना आदि तथ्यों को उनके उपदेश का सारांश कहा जा सकता है।
प्रश्न 3.
महायान की उत्पत्ति कैसे हुई? यह हीनयान से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर:
महायान की उत्पत्ति:
सम्राट कनिष्क के शासन-काल में बौद्ध-धर्म दो भागों में बँट गया-हीनयान और महायान। इसका कारण यह था कि महात्मा बुद्ध ने अनुशासन और अहिंसा के नियमों पर अधिक बल दिया था। भिक्षुओं के लिए यह कठोर जीवन बिताना बहुत कठिन था।
इसके अतिरिक्त इस काल में लोग ज्ञान-मार्ग और कर्म-मार्ग की अपेक्षा भक्ति-मार्ग को अधिक अपना रहे थे। इस परिवर्तन को ध्यान में रखकर बौद्ध धर्म में कुछ सुधार किए गए। यह सुधरा हुआ धर्म महायान कहलाया और बौद्ध-धर्म की प्राचीन शाख हीनयान कहलायी। इन दोनों शाखाओं का मध्य एशिया के उत्तरी भू-भागों में बहुत प्रचार हुआ।
हीनयान और महायान सम्प्रदायों में अन्तर:
- महायान शाखा के अनुयायी महात्मा बुद्ध को देवता माना और उनकी मूर्तियाँ बनाकर पूजा करने लगे। लेकिन हीनयान शाखा वाले बुद्ध को महान् व्यक्ति मानते थे, देवता नहीं। वे मूर्ति पूजा के पक्ष में भी नहीं थे।
- महायान शाखा के अनुयायी महात्मा बुद्ध के साथ-साथ कुछ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं (बोधिसत्त्वों) की भी पूजा करते थे जिन्होंने आत्म-त्याग द्वारा अपने जीवन को ऊँचा उठा लिया था चाहे घे निर्वाण नहीं पा सके थे। लेकिन हीनयान वाले बोधिसत्त्वों में विश्वास नहीं रखते थे।
- महायान शाखा के लोग विश्वास और श्रद्धा पर बल देते थे जबकि हीनयान शाखा वाले किसी बात को अपनाने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसते थे।
- महायान शाखा के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य स्वर्ग को पाना है लेकिन हीनयान शाखा के अनुसार अंतिम लक्ष्य निवार्ण प्राप्ति का है।
- महायान शाखा के लोग अपने प्रचार के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे लेकिन हीनयान शाखा वालों ने प्रचार करने के लिए पाली भाष्य को अपनाया।
- महायान धर्म ब्राह्मण धर्म के बहुत निकट है। इसके कई सिद्धांत ब्राह्मण धर्म से मिलते हैं। इसके विपरीत हीनयान ब्राह्मण धर्म के निकट नहीं है।
वास्तव में महायान धर्म में नवीनता थी क्योंकि इसके सिद्धांत समय के अनुकूल और बहुत सरल थे। बौद्ध भिक्षुओं ने बड़े उत्साह से इसका चीन, जापान, तिब्बत आदि देशों में प्रचार किया।
प्रश्न 4.
भारत में बौद्ध धर्म के अवनति के कौन-कौन से कारण थे? अथवा, बौद्ध धर्म अपनी ही जन्मभूमि पर महत्त्वहीन हो गया। क्यों? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में बौद्ध धर्म की अवनति के कारण:
सा०यु०पू० छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और छठी शताब्दी ई० तक लोकप्रिय रहा, परंतु उसके बाद उसकी अवनति होने लगी। इस अवनति के निम्नलिखित कारण थे
1. ब्राह्मण धर्म में सुधार:
जब हिन्दू लोग अन्य धर्मों में जाने लगे तो ऊँची जाति वाले लोगों और विशेषकर ब्राह्मणों को अपनी त्रुटियों का ज्ञान हुआ। अपने अस्तित्त्व को बनाए रखने के लिए अब उन्हें हठ छोड़ना पड़ा और अपने आचार-व्यवहार को बदलना पड़ा।
इस प्रकार ब्राह्मण लोग फिर से प्रिय होने लगे और उनके साथ-ही-साथ हिन्दू धर्म भी पतन के मार्ग से बच गया। हिन्दू धर्म में बुद्ध को भी एक अवतार मान लिया गया तथा अहिंसा आदि के सिद्धांत को अपना लिया गया। इसी कारण अब बौद्ध धर्म की ओर लोगों का आकर्षण जाता रहा और हिन्दू धर्म ने अपना खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त कर लिया।
2. बौद्ध संघों में अनाचार:
आरम्भ में भिक्षु लोग बड़े ऊँचे चरित्र के व्यक्ति होते थे और बौद्ध संघों में ऐसे व्यक्ति को ही लिया जाता था जो वास्तव में सदाचारी होता था। धीरे-धीरे इन संघों के पास अकूत धन एकत्र हो गया और स्त्रियों को भी लिया जाने लगा। फिर क्या था, इन संघों में अनाचार फैलने गया और भिक्षु लोग लोक-सेवा छोड़कर ऐश्वर्य की ओर भागने लगे। लोगों ने भिक्षुओं से घृणा करनी आरम्भ कर दी और बौद्धमत को त्यागना आरम्भ कर दिया।
3. बौद्ध धर्म का विभाजन:
कुछ समय तक बौद्ध लोग मिलकर प्रेम-भाव से काम करते रहे, परंतु धीरे-धीरे यह प्रेम-भाव लुप्त होता गया और मतभेद बढ़ने लगे। हीनयान और महायान के अतिरिक्त बौद्ध धर्म के सोलह अन्य टुकड़े हो गए। इस प्रकार लड़ाई-झगड़े, मतभेद और ईर्ष्या-द्वेष के बढ़ जाने से बौद्ध धर्म का शक्तिहीन होना स्वाभाविक ही था। एकता ने बौद्ध धर्म को नई ऊँचाइयाँ दी जबकि फूट ने उनका पतन सुनिश्चित कर दिया।
4. बुद्ध की मूर्ति पूजा:
बौद्ध धर्म का प्रसार उसमें मूर्ति पूजा और अन्य अन्धविश्वास न रहने के कारण हुआ। बौद्ध लोगों ने महात्मा बुद्ध को देवता मानकर उनकी मूर्तियाँ बनानी आरम्भ कर दी और उनकी पूजा करनी शुरू कर दी।
लोगों में यह धारणा बनी कि यदि बुद्ध भी एक देवता थे तो उनमें और हिन्दू धर्म के देवताओं में क्या अंतर है? हिन्दू लोगों ने भी बुद्ध को देवता मान लिया इसलिए बौद्ध धर्म में कोई विशेष अंतर न रहा। धीरे-धीरे यह धर्म में ही विलीन हो गया और कुछ समय पश्चात् भारत से बौद्ध धर्म लुप्त होने लगा।
5. बौद्ध धर्म में हिन्दू-दर्शन और संस्कृत:
धीरे-धीरे बौद्धों ने हिन्दू-दर्शन के कई सिद्धांतों को अपना लिया और परिणामस्वरूप उनका धर्म भी जटिल और गूढ़ बनता गया। यही नहीं, धीरे-धीरे बौद्धों ने लोगों की बोल-चाल की भाषा छोड़कर संस्कृत भाषा को अपना लिया। इससे उनकी भाषा फिर से कठिन हो गई। धर्म और भाषा के कठिन होने से लोगों की रुचि इस धर्म से हट गई।
6. हिन्दू धर्म का फिर से उन्नति करना:
गुप्तकाल में हिन्दू धर्म फिर से अपनी खोई हुई शक्ति को प्राप्त करने लगा। ब्राह्मणों का आदर होने लगा व सुन्दर-सुन्दर मंदिर बनने लगे। हिन्दू धर्म एक बार फिर चमक उठा। इस प्रकार राजाओं का संरक्षण मिलने से हिन्दू धर्म फिर से उन्नति करने लगा और बौद्ध लोग अब हिन्दू धर्म में वापस लौटने लगे।
7. हिन्दू उपदेशकों का काम:
हिन्दू धर्म को फिर से उन्नति की ओर ले जाने और पतन से बचाने के लिए उपदेशकों ने भी सराहनीय कार्य किया। आठवीं और नवीं शताब्दी में कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य जैसे प्रकाण्ड विद्वानों ने स्थान-स्थान पर वैदिक धर्म का उपदेश देकर हिन्दू धर्म को बौद्ध धर्म से अच्छा ठहराया और सारे देश में अपने धर्म का डंका बजा दिया। बौद्ध मत वाले ऐसे उपदेशों का सामना न कर सके। इस प्रकार इनका धर्म भारत से धीरे-धीरे लुप्त हो गया।
8. राजाओं के संरक्षण का अंत:
कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजाओं का संरक्षण मिलना बंद हो गया। गुप्त काल में भी बौद्ध धर्म को भरपूर सहायता नहीं मिली। गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के पर्याप्त प्रयास किए। हर्ष ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया परंतु उसकी मृत्यु के बाद संरक्षण मिलना बंद हो गया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में किस अंग्रेज विद्वान ने सांची की यात्रा की?
(अ) मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम
(ब) हीलर
(स) जॉन मार्शल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम
प्रश्न 2.
सांची कनखेड़ा क्या है?
(अ) एक गाँव का मेला है
(ब) एक गाँव है
(स) एक शहर है
(द) भोपाल का मुख्य उद्योग केन्द्र है
उत्तर:
(ब) एक गाँव है
प्रश्न 3.
शालभंजिका क्या है?
(अ) शाल धारण करने वाली स्त्री को कहते हैं
(ब) वृक्षों की शाखा को पकड़े हुए स्त्री को कहते हैं
(स) सुन्दर स्त्रियों को कहते हैं
(द) सांची की स्त्री मूर्तियों को कहते हैं
उत्तर:
(ब) वृक्षों की शाखा को पकड़े हुए स्त्री को कहते हैं
प्रश्न 4.
अजंता के चित्र में क्या नहीं दिखाया है?
(अ) राजदरबार का दृश्य
(ब) शोभा यात्राएँ
(स) त्यौहार मनाने के चित्र
(द) खेत की जुताई करते हुए कृषक
उत्तर:
(द) खेत की जुताई करते हुए कृषक
प्रश्न 5.
बोधिसत्वों की परम्परा किससे संबंधित थी?
(अ) महायान
(ब) हीनयान
(स) दिगम्बर
(द) श्वेताम्बर
उत्तर:
(अ) महायान
प्रश्न 6.
वैष्णववाद में कितने अवतारों की कल्पना है?
(अ) 9
(ब) 10
(स) 11
(द) 12
उत्तर:
(ब) 10
प्रश्न 7.
गांधार कला का संबंध किससे था?
(अ) बौद्ध धर्म
(ब) जैन धर्म
(स) शैव धर्म
(द) वैष्णव धर्म
उत्तर:
(अ) बौद्ध धर्म
प्रश्न 8.
बौद्ध ग्रंथों में कितने सम्प्रदायों का उल्लेख है?
(अ) 61
(ब) 62
(स) 63
(द) 64
उत्तर:
(द) 64
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन त्रिपिटक का भाग नहीं है?
(अ) विनय पिटक
(ब) सुत्तपिटक
(स) अभिधम्म पिटक
(द) उत्तराध्ययन सूत्र
उत्तर:
(द) उत्तराध्ययन सूत्र
प्रश्न 10.
लोकायत परम्परा के कौन लोग थे?
(अ) अध्यात्मवादी
(ब) प्रकृतिवादी
(स) भौतिकवादी
(द) सत्यवादी
उत्तर:
(स) भौतिकवादी
प्रश्न 11.
अष्टांगिक मार्ग किसकी खोज थी?
(अ) बुद्ध
(ब) महावीर
(स) चैतन्य महाप्रभु
(द) गोस्वामी तुलसीदास
उत्तर:
(अ) बुद्ध
प्रश्न 12.
बौद्ध संघ में शामिल होने वाली पहली महिला कौन थी?
(अ) सावित्री फुल्ले
(ब) महाप्रजापति गौतमी
(स) कुसुमावती
(द) पुष्पलता
उत्तर:
(ब) महाप्रजापति गौतमी
प्रश्न 13.
स्तूप किसकी याद में बनाये गये?
(अ) संतो की याद में
(ब) महापुरुषों की याद में
(स) राजाओं की याद में
(द) बुद्ध की याद में
उत्तर:
(द) बुद्ध की याद में
प्रश्न 14.
निम्नलिखित में कहाँ पर स्तूप नहीं है?
(अ) दिल्ली
(ब) भरहुत
(स) सांची
(द) सारनाथ
उत्तर:
(अ) दिल्ली
प्रश्न 15.
सांची के स्तूप में सर्पो का अंकन क्यों किया गया?
(अ) यहाँ के वृक्ष सर्साकार थे
(ब) यहाँ सर्प अधिक मिलते है
(स) यहाँ सर्प पूजा का केन्द्र था
(द) यह शैव धर्म का केन्द्र था
उत्तर:
(स) यहाँ सर्प पूजा का केन्द्र था