Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
Bihar Board Class 12 Political Science राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers
राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियां प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 1.
भारत के विभाजन के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) भारत विभाजन “द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त” का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला बदली होगी।
उत्तर:
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
Rashtra Nirman Ki Chunauti Question Answer Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 2.
निम्नलिखित सिद्धान्तों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें।
उत्तर:
(1) – (ii)
(2) – (i)
(3) – (iv)
(4) – (iii)
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 3.
भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए। जिस राज्यों की सीमाएँ दिखाई गयी हो। और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
(क) जूनागढ़
(ख) मणिपुर
(ग) मैसूर
(घ) ग्वालियर
Rashtra Nirman Ki Chunautiyan Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 4.
नीचे दो तरह की राय लिखी गई है –
विस्मय: रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ। इन्द्रप्रीत: यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बल प्रयोग भी हुआ था, जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है। देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर:
विस्मय का विचार अधिक तार्किक व सच्चाई के नजदीक है कि देशी रियासतों का भारतीय संघ में मिलने से इन क्षेत्रों की जनता व प्रशासन में लोकतन्त्रात्मक संस्कृति का विकास हुआ है क्योंकि प्रजातन्त्र की चुनावी व प्रशासनिक प्रक्रिया पूरे भारत में समान रूप से चली। इन्द्रप्रीत के विचार यहाँ तक सही है कि लोकतन्त्र में आम सहमति भी होती है सो इन देशी रियासतों को भारत में मिलाने के लिए आमतौर पर आम सहमति सही प्राप्त की गई है भले ही इनका तरीका कुछ भी रहा हों समय के साथ सभी राज्य व देशी रियासतें राष्ट्र धारा में मिल गये हैं। हम सभी भारतीय हैं व भारतीय संविधान के अनुसार ही इन पर प्रशासन चल रहा है।
Rashtra Nirman Ke Pramukh Aadhar Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 5.
नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गये हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन हैं:-
आज आपने अपने सर पर कांटो का ताज पहना है सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा ………… आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा ……. अब लगातार आपकी परीक्षा ली जायेगी। मोहन दास कर्मचंद गाँधी भारत आजादी की जिंदगी को जागेगा ………. हम पुराने में नए की ओर कदम बढ़ायेगे ………. आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिन्दुस्तान अपने को फिर से पालेगा ……. आज हम जो जश्न मना रहे हैं, वह एक कदम भर है, संभावनाओं के द्वारा खुल रहे हैं ……. जवाहरलाल नेहरू इन दो बयानों से राष्ट्र निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जंच रहा हैं और क्यों?
उत्तर:
उपर्युक्त दो बयान दो प्रमुख नेताओं के हैं जिन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है व जिन्होंने राष्ट्र निर्माण की दिशा तय करने में अपनी परिपक्व सोच प्रदान की है अतः राष्ट्र निर्माण के सम्बन्ध में ये दोनों ही बयान अत्यन्त उपयुक्त व सच्चाई युक्त हैं हमें राष्ट्र निर्माण के रास्ते में धैर्य से व विनम्रता से चलने की जरूरत है क्योंकि यह सफर चुनौतियों व जिम्मेदारियों से भरा हुआ है। इसके साथ-साथ आजादी के साथ हमारा पुनः जागरण हुआ है एक नया सवेरा है तथा इसमें अब सुनहरे भविष्य की अनेक सम्भावनाएँ हैं जिसमें हम अपनी राहें खुद तय करेंगे तथा अपने तरीके भी खुद निश्चित करेंगे।
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Question Answer Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 6.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया। क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क है अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?
उत्तर:
भारत का धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक देश है इसमें विभिन्न धर्मों को अपनाने वाले व मानने वाले लोग हैं बहुसंख्या में हिंदू हैं परन्तु भारत में विभाजन के बाद भी बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता की है। भारत के संविधान में भी सभी धर्मों के लोगों को धर्म के मामले में पूर्ण स्वतन्त्रता दी है। राज्य का ना अपना कोई धर्म है, ना ही राज्य किसी धर्म के रास्ते में बाधा बनेगा और ना ही राज्य किसी विशेष धर्म को कोई प्रोत्साहन देगा।
पं० जवाहरलाल नेहरू की भारतीय धर्मनिरपेक्षता की धारणा ऐतिहासिक, मानवीय व वैज्ञानिक है जो पूर्ण रूप से तार्किक है। भारतीय समाज ने धैर्य व सहनशीलता के साथ सभी धर्मों को व वर्गों को अपनाया है। भारत में सदैव समाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक स्तर प विभिन्नता में एकता रही है। गये विचार पूर्ण रूप से तार्किक व व्यवहारिक है। मुसलमान जो भारत में रह रहा है भारत से अलग नहीं हो सकता है व भारतीय समाज का अभिन्न भाग है।
Rashtriya Nirman Ki Chunautiyan Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 7.
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण के चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या हैं?
उत्तर:
आजादी के समय देश के पूर्वी ओर पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण के चुनौती के लिहाज से निम्न मुख्य अन्तर निम्न हैं –
- पूर्वी इलाके जिनमें मुख्य रूप से उत्तरी पूर्वी राज्य आते हैं भाषायी व सांस्कृतिक प्रभुत्व के खिलाफ आन्दोलन की समस्या थी जो वहाँ पर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बाधा बनी हुई थी। जबकि पश्चिमी क्षेत्र में साम्प्रदायिकता की समस्या राष्ट्र के निर्माण में बाधक बनी हुई थी।
- पूर्वी क्षेत्र में अलगाववादी प्रवर्तिया भी राष्ट्रवाद में बाधक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्र में साम्प्रदायिक ताकतें राष्ट्र निर्माण में बाधक थी।
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां कक्षा 12 Bihar Board Political प्रश्न 8.
राज्य पुर्नगठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?
उत्तर:
आजादी के कुछ वर्षों के बाद विभिन्न राज्यों से भाषा के आधार पर अलग राज्य की माँग प्रारम्भ हो गयी। प्रारम्भ में केन्द सरकार ने इस प्रकार की माँगों की ओर इस सोच के आधार पर ध्यान नहीं दिया कि भाषा के आधार पर राज्यों के गठन से देश की एकता अखंडता को खतरा उत्पन्न हो जायेगा, परन्तु बाद में इस विषय पर विचार करने के लिए 1953 में राज्य पुर्नगठन आयोग State Reorganisation Commission का गठन किया।
इस आयोग का कार्य राज्यों के भाषा आधार पर गठन की मांग पर विचार करने तथा राज्यों के सीमांकन के मामल पर गौर करना था। राज्य पुर्नगठन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं की निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की इन्हीं सिफारिशों के आधार पर 1956 में राज्य पुर्नगठन अधिनियम State Re-organisation Act 1956 पारित किया गया। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये।
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 9.
कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्वमान्य विश्वास, इतिहास राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एक सूत्र में बंधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।
उत्तर:
ऊपरोक्त कथन सत्य है क्योंकि राज्य एक व्यापक व विस्तृत समुदाय होता है। वास्तव में राष्ट्रीयताओं के आधार पर बना राज्य राष्ट्र कहलाता है। राष्ट्रीयताओं को लोगों को हम ऐसे समूह के रूप में देखते हैं जिनका समान अतीत, समान नस्ल, समान संस्कृति, समान भौगोलिकता, एक समान इतिहास, समान भविष्य की आकांक्षाएँ होती है इन्ही आधार पर एक निश्चित क्षेत्र में रहने वाले लोग एकता के सूत्र में बंधे होते हैं। इस सूत्र को राष्ट्रीयता कहते हैं।
भारत निम्न विशेषताओं के आधार पर एक राष्ट्र है –
- विभिन्न जातियाँ
- विभिन्न धार्मिक विश्वास के लोग
- विभिन्न संस्कृतियाँ
- विभिन्न बोलियाँ
- विभिन्न भाषाएँ
- विभिन्न जलवायु
- विभिन्न त्यौहार
- समान अतीत
- समान आकांक्षाएँ
- समान इतिहास
- समान हित
- सामूहिकता की संस्कृति
- त्यौहारों का सामूहिक तरीके से मानना
- विभिन्नता में एकता
- भारतीयता का बन्धन
राष्ट्र निर्माण के सम्मुख मुख्य चुनौतियां क्या थी उल्लेख करें Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखे या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आप से बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामाग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज बीमारी से दबे हुए थे।
(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।
(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच असमानता उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?
(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने काम किया और क्यों?
उत्तर:
(क) ऊपरोक्त लेख में लेखक ने निम्न समानताओं का उल्लेख किया है –
उदाहरण:-
- विभिन्न जातियाँ – भारत में भी विभिन्न जातियाँ हैं।
- विभिन्न धर्मों के लोग – विभिन्न धर्म के लोग हैं।
- विभिन्न भाषाओं के लोग – अनेक भाषा हैं।
- विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग – विभिन्न सामाजिक वर्ग हैं।
- विभिन्न भौगौलिकताओं के लोग – भारत में भी विभिन्न भौगोलिकताएँ हैं।
(ख) भारत व सोवियत संघ में राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में निम्न असमानताएँ भी हैं –
- सोवियत संघ में सभी एक हैं विचारधारा अर्थात् राजनीतिक विचारधारा (साम्यवादी) के लोग रहते हैं। जबकि भारत में अनेक राजनीतिक विचारधाराएँ हैं।
- भारत व सोवियत संघ की राजनीतिक प्रणालियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं। भारतीयों को अपनी विभिन्न आकांक्षाओं को व्यक्त करने का पूर्ण मौलिक अधिकार है जबकि सोवियत संघ में सीमित अधिकार है जिससे उनकी राष्ट्रीयता को पूर्ण रूप से विकसित करने का अवसर नहीं मिलता।
(ग) अगर सोवियत संघ व भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की सफलताओं का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो निश्चित रूप से भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को बेहतर माना जायेगा जिसमें निम्न कारण अर्थात् तर्क हैं –
- भारत में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था है तथा भारत के लोगों को अपनी धार्मिक, सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृति व भाषीय प्राथमिकताओं व आकांक्षाओं को व्यक्त करने व उसे विकसित करने के प्रयाप्त अवसर है जबकि सोवियत संघ में केन्द्रवाद का सिद्धान्त है वहाँ की राष्ट्रीयताओं को विकसित होने के लिए इतने अधिकार नहीं है।
- सोवियत संघ व भारत की संस्कृति में अन्तर है, भारत में सदैव सहनशीलता, धर्म, समायोजन व मिलन की संस्कृति रही है। सोवियत संघ में ऐसा नहीं है।
Bihar Board Class 12 Political Science राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
Rashtra Nirman Ki Chunotiya Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 1.
राष्ट्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राष्ट्र ऐसे व्यक्तियों व समुदायों का समूह है जिनकी समान नस्ल, समान जाति, समान संस्कृति व जिनका समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है। इसके साथ-साथ इन लागों की भौगोलिक समीपता व राजनीतिक स्तर पर समान विश्वास व समान आकांक्षाएँ होती हैं। ये लोग साथ मिलकर एक समान भाई-चारे के साथ रह कर एक निश्चित क्षेत्र में रहते हैं। विश्व के लोगों का बँटवारा राष्ट्रीयता के आधार पर विभिन्न राष्ट्र राज्यों के रूप में हुआ है। राष्ट्र की अपनी एक प्रभुसत्ता सरकार होती है। ये लोग समान उद्देश्यों के साथ आपस में जुड़े रहते हैं। भारत भी राष्ट्र राज्य ही जिसमें विभिन्नता में एकता है। यह एक बहुसंख्यक समाज है जो भारतीयता के साथ जुड़ा हुआ है।
Rashtra Nirman Ki Chunotiya Question Answer In Hindi Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया समझाइये।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया एक जटिल व व्यापक प्रक्रिया है जिसमें राज्य की निश्चित सीमा में रहने वाले लोगों को विभिन्न आधार पर उत्पन्न समीपता के आधार पर एक सूत्र में बांधे जाने का प्रयास किया जाता है। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र के लोगों को उनके निजी व क्षेत्रीय हितों से ऊपर उठाकर राष्ट्रीय हितों, सामूहिक उद्देश्यों व राष्ट्रीय गरिमा व लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाता है। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न प्रकार की धार्मिक विश्वासों, संस्कृतियों व क्षेत्रों के लोगों में एक सामूहिकता का अहसास कराके उन्हें एक सूत्र से बांधने का प्रयास किया जाता है। किसी भी राष्ट्र के भविष्य व अस्तित्व के लिए राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया अत्यन्त आवश्यक है।
Ekta Akhandta Ki Chunauti Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 3.
भारतीय राष्ट्रीय निर्माण की प्रक्रिया की तीन चुनौतीयाँ समझाइये।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय निर्माण की प्रक्रिया में निम्न प्रमुख चुनौतियाँ हैं –
- भारतीय एकता अखंडता को बनाये रखना।
- भारत में प्रजातन्त्र को सफल बनाना तथा विकसित करना।
- तीसरा प्रमुख दायित्व अथवा चुनौती भारत के नागरिकों का जन कल्याण करना, उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करना व उनका जीवन स्तर उभारना।
Rashtra Nirman Ka Arth Spasht Karen Bihar Board Class 12 Political प्रश्न 4.
भारत के विभाजन के क्या कारण थे?
उत्तर:
यूं तो भारत के विभाजन के अनेक कारण थे परन्तु निम्नलिखित दो कारणों को प्रमुख माना जा सकता है –
1. अंग्रेजों की फुट डालो व राज्य करो (divide and rule) की नीति अंग्रेजों का लम्बे समय तक शासन करने के पीछे कारण यह रहा है कि वे भारतीय समाज को साम्प्रदायिकता के आधार पर बाँटने में सफल रहे। 1909 (Marley Minto Reform) के भारत सरकार कानून के द्वारा साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली व इसके 1919 व 1935 के कानून में विस्तार भारतीयों को राजनीतिक स्तर पर बाँट दिया यह भारत के विभाजन का प्रमुख कारण बना।
2. दूसरा प्रमुख कारण मोहम्मद अली जिन्ना के द्वारा दी गयी दो राष्ट्र का सिद्धान्त जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदू व मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्रीयताएँ हैं जो एक साथ नहीं रह सकती। जिन्ना की यह हटधर्मी भी भारत के विभाजन का प्रमुख कारण थी।
प्रश्न 5.
भारत के विभाजन की प्रक्रिया समझाइये।
उत्तर:
भारत को 15 अगस्तर 1947 को आजादी तो प्राप्त हुई परन्तु साथ-साथ विभाजन की त्रासदी भी झेलनी पड़ी। वास्तव में यह अनुभव अत्यन्त दर्दनाक व दुर्भाग्य पूर्ण था। इसका कारण यह था कि ब्रिटिश प्रान्तों में कोई ऐसा क्षेत्र नही था जिसमें मुसलमानों का बहुमत हो। भारत में केवल दो ही क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय का बहुमत था एक पश्चिम में दूसरा पूर्वी क्षेत्र में। व दोनों ही क्षेत्रों में कोई सीधा सम्पर्क नहीं था। विभाजन के समय ही यह निश्चित किया गया था कि पाकिस्तान के दो भाग होंगे एक पश्चिम पाकिस्तान व दूसरा पूर्वी पाकिस्तान। एक अन्य विभाजन का पक्ष यह था कि सभी मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये। यह पूरी प्रक्रिया हिंसात्मक थी वह घृणा से भरी थी।
प्रश्न 6.
दो राष्ट्र के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? यह सिद्धान्त किसने दिया?
उत्तर:
दो राष्ट्र का सिद्धान्त मोहम्मद अली जिन्ना ने दिया जिसके अनुसार उनकी यह मान्यता थी कि भारत में हिंदू व मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्रीयताएँ हैं जिसमें अपने धार्मिक विश्वास है, सामाजिक मूल्य हैं, व राजनीतिक व आकांक्षाएँ हैं अत: ये एक स्थान नहीं रह सकते। अतः भारत का दो राष्ट्रों में विभाजन अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
प्रश्न 7.
भारत के विभाजन के परिणाम समझाइये।
उत्तर:
भारत के दो राष्ट्रों में विभाजन के अत्यन्त दुखदायक परिणाम निकले। जिन परिस्थितियों में भारत का विभाजन हुआ वे परिस्थितियाँ अत्यन्त हिंसात्मक व अनिश्चित थी। मानवीय इतिहास में यह अत्याधिक हिंसात्मक विभाजन था हिंदू व मुसलमान दोनों की ओर से अनेक लोग हिंसा के शिकार हुए। ना केवल क्षेत्रों का बँटवारा हुआ, बल्कि बँटवारे के साथ-साथ लोगों का अपने समान, परिवार बच्चों के साथ पलायन करना पड़ा। जिन घरों में प्रेम से हिंदू व मुस्लिम साथ-साथ रह रहे थे, उनको छोड़ कर जाना पड़ा। रास्ते में लूट-पाट व अत्याचारों का शिकार होना पड़ा। एक साम्प्रदाय के लोग दूसरे साम्प्रदाय के लोगों की जान के दुश्मन बने हुए थे। पुलिस व प्रशासन मूक दर्शक बने रहते थे। दोनों ओर से जबरदस्ती धर्म परिवर्तन हो रहा था।
प्रश्न 8.
भारत में विभाजन में मुस्लिम लीग की भूमिका समझाइये।
उत्तर:
मुस्लिम लीग एक राजनीतिक दल के रूप में 1906 में अस्तित्व में आयी। प्रारम्भ में सभी दलों का प्रमुख लक्ष्य राष्ट्रीय आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता को प्राप्त करना था। अतः प्रारम्भ में मुस्लिम लीग भी एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जिसने कांग्रेस के साथ मिलकर राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।
परन्तु धीरे-धीरे मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण संकीर्ण होता गया। इसका उद्देश्य भारत के हितों के स्थान पर केवल लीग का दृष्टिकोण संकीर्ण होता गया। इसका उद्देश्य भारत के हितों के स्थान पर केवल मुस्लिमों के हितों के साथ जुड़ गया। इस प्रकार मुस्लिम लीग एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल से साम्प्रदायिक दल बन गया जिसके आधार पर औपचारिक रूप से 1940 में पाकिस्तान की माँग रखी तथा उसको हिंसा व नफरत के आधार पर प्राप्त किया।
प्रश्न 9.
भारत के विभाजन का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत का विभाजन दो राष्ट्र के सिद्धान्त पर हुआ जिसको आधार यह था कि हिंदू व मुस्लिम दो राष्ट्रीयताएँ हैं जो साथ-साथ नहीं रह सकते। अतः भारत में हिंदू रहेंगे व पाकिस्तान में मुस्लिम रहेंगे। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। काफी संख्या में मुस्लिम भारत में ही रहे परन्तु विभाजन, के समय हुई हिंसा ने भारतीय समाज में हिंसा व आपसी नफरत का प्रभाव ऐसा हुआ कि आज भी अपसी नफरत है जो समय-समय पर साम्प्रदायिक झगड़ों के रूप उभरती है। अभी भी भारत में 25% मुस्लिम हैं।
प्रश्न 10.
गाँधीजी की मृत्यु का साम्प्रदायिक झगड़ों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गाँधी जी हिंदू-मुस्लिम एकता व भाई-चारे के प्रबल समर्थक थे परन्तु वे हिंदू उन्माद के शिकार हुए जब एक कट्टरवादी हिंदू नाथूराम गोड़से ने 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी की मन्दिर जाते समय हत्या कर दी। गाँधी जी की शहादत का हिंदू मुस्लिम झगड़ों पर जादुई प्रभाव पड़ा। भारत सरकार ने उन सब संगठनों पर पाबंदी लगा दी जो साम्प्रदायिक झगड़ों को उकसा रहे थे। ऐसे संगठनों में आर. एस. एस. संगठन प्रमुख था। सरकार की इस प्रकार की सख्त कार्यवाही से गाँधी जी के बलिदान से भारत में फैली साम्प्रदायिक हिंसा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 11.
देशी रियासतों के भारत में विलय में आयी समस्याओं को समझाइये।
उत्तर:
जिस समय भारत स्वतन्त्र हुआ भारत में दो प्रकार के राज्य थे –
- देशी रियासतें
- ब्रिटिश प्रान्त
ब्रिटिश प्रान्तों पर ब्रिटिश सरकार का शासन था व देशी रियासतों पर रियासतों के शासकों का शासन था। भारत सरकार अधिनियम 1947 के आधार पर देशी रियासतों को भारत अथवा पाकिस्तान में विलय की स्वतन्त्रता थी साथ-साथ उनको स्वरूप से रहने का भी अधिकार था। इस अनिश्चितता की स्थिति में विभिन्न देशी रियासातों (लगभग 409) जो भारत में विलय करने के लिए विभिन्न राजनीतिक व कूटनीतिक प्रयास करने पड़े सरदार पटेल की कूट नीति व दृढ़ता पूर्ण प्रयासों का इसमें विशेष योगदान था।
प्रश्न 12.
विभिन्न रियासतों का भारत में विलय का साधन क्या था?
उत्तर:
तीन प्रमुख देशी रियासतों, हैदराबाद, जूनागढ़ व कश्मीर के भारत में विलय के दस्तावेजों को विलय का साधन ‘Instrument of Accession’ कहते हैं इसमें देशी रियासतों हैदराबाद, जूनागढ़ व कश्मीर के शासकों ने भारत के शासकों से हुई बात व शर्तों के आधार पर अपनी रियासतों को भारत में विलय के दस्तावेज पर अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस स्वीकृति को प्राप्त करने के लिए भारतीय नेताओं की विभिन्न स्तर पर अत्यधिक प्रयास करने पड़े।
प्रश्न 13.
भारत सरकार का राज्यों के पुर्नगठन के सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
आजादी के कुछ वर्षों के बाद ही देश के विभिन्न राज्यों से विभिन्न आधारों पर विशेष कर भाषा के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन की माँग उठने लगी। इस सम्बन्ध में भारत का दृष्टिकोण तीन आधारों से प्रभावित था –
- अधिकांश देशी रियासतों के लोग भारत में विलय चाहते हैं।
- भारत सरकार कुछ क्षेत्रों का स्वायत्तता प्रदान कर सकती है।
- विभिन्न क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करना।
इस प्रकार से भारत सरकार राज्यों के गठन को विवेकपूर्ण तरीके से निपटाना चाहती थी।
प्रश्न 14.
राज्य पुर्नगठन अधिनियम के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भाषा के आधार पर उठी राज्यों के पुर्नगठन की माँग ने केन्द्र सरकार को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि इस विषय का बारीकी से अध्ययन करने के लिए व इस विषय पर उचित परामर्श देने के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए। अतः 1953 में भारत सरकार ने इस कार्य के लिए राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन किया जिसका कार्य राज्यों की सीमाओं को पुनः निश्चित करना था। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह स्वीकार किया कि राज्यों का भाषा के आधार पर राज्यों का पुर्नगठन संभव है। इस रिपोर्ट के आधार पर अधिनियम पारित किया गया जिसको नाम State Re-organisation Act 1956 रखा गया। इसमें भाषा को राज्यों के पुर्नगठन भाषा को अत्यधिक महत्त्व दिया।
प्रश्न 15.
राज्यों के भाषा के आधार पर पुर्नगठन का प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए 1956 में कानून बनने से अनेक राज्यों से पुर्नगठन की आग उठने लगी वे अनेक राज्यों का भाषा के आधार पर पुर्नगठन किया भी गया। यद्यपि प्रारम्भ में केन्द्र सरकार को यह डर था कि भाषा के आधार पर राज्यों का गठन करने से राष्ट्रीय एकता अखंडता को खतरा हो जायेगा। परन्तु यह डर आधार हीन सिद्ध हुआ। पिछले 60 वर्षों की राजनीति के आधार पर यह अनुभव हुआ कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुर्नगठन से भारतीय प्रजातंत्र व स्थानीय प्रजातंत्र नही बल्कि मजबूत हुआ व राष्ट्रीय एकता अखंडता मजबूत हुई है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत एक राष्ट्र के रूप में समझाइये।
उत्तर:
सबसे पहले यह आवश्यक है कि हम राष्ट्र शब्द का अर्थ व्यापक अर्थों में समझे। राष्ट्र ऐसे लोगों का समूह है जिनकी समान संस्कृति, समान नस्ल, समान इतिहास, समान भौगौलिकता व समान राजनीतिक आकांक्षाएँ होती हैं। दूसरे शब्दों में समान राष्ट्रीयता के लोगों को जो एकता के सूत्र में बँध-कर सामूहिक रूप से रहते हैं राष्ट्र कहते हैं राष्ट्र के रूप में रहने वाले लोगों के समान दृष्टिकोण व समान हित होते हैं। राष्ट्र व राष्ट्रीयता शब्दों के इन अर्थों के अनुरूप भारत एक राष्ट्र है क्योंकि भारत में विभिन्नता में एकता है।
यहाँ विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, बोली, त्यौहार संस्कृति व समान अतीत के लोग रहते हैं परन्तु इनमें समान हित है व समना राजनीतिक आकांक्षाएँ है यहाँ पर रहने वाले लोगों के समान राजनीतिक विश्वास व मूल्य है, यहाँ पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर ही भाषा, बोली, मौसम व जलवायु बदलती है परन्तु भारतीय समाज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ सांझापन है लोगों के कार्यों में सामूहिकता है अतः विभिन्न प्रकार की शैली होने के बावजूद सभी भारतीय एक ही राष्ट्रीयता के सूत्र से बंधे हैं। अतः भारत एक राष्ट्र के रूप में विद्यमान है।
प्रश्न 2.
भारत की राष्ट्रीय निर्माण प्रक्रिया में तीन प्रमुख बाधाएँ समझाइये।
उत्तर:
भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में लगा है। इस प्रक्रिया में भारत के सामने तीन प्रमुख चुनौतीयाँ है जो निम्न हैं –
- भारतीय राष्ट्रीय एकता अखंडता को बनाये रखना जिसके लिए विभिन्न अवसरों पर विभिन्न माध्यमों से प्रयास किये जा रहे हैं कि सभी भारतीयों में राष्ट्रवाद ही भावना विकसित हो।
- दूसरी चुनौती भारतीय प्रजातंत्र को मजबूत करने व इसको सफल बनाने के लिए नागरिकों को तैयार करना।
- तीसरी चुनौती भारत के समान भारतीयों का जन कल्याण का कार्य करना। लोगों की न्यूनतम आवश्कताओं को पूरा करना व उनका जीवन स्तर उठाना। इस उद्देश्य के लिए भारत में अनेक योजनाएँ व कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं।
प्रश्न 3.
भारत के विभाजन के प्रमुख कारणों को समझाइये।
उत्तर:
भारत का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जिसके अनेक कारण थे। इनमें प्रमुख कारण निम्न थे –
- मुस्लिम लीग का साम्प्रदायिक दृष्टिकोण।
- मुहम्मद अली जिन्ना की महत्त्वकांक्षा व हटधर्मी।
- भारत में रह रहे मुसलानों में असुरक्षा की भावना।
- मुसलमानों का सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक पिछड़ापन।
- अंग्रेजों की फूट डालो व राज्य करो की नीति।
- हिंदू संगठनों की कट्टरवादिता।
- कांग्रेस की गलत नीतियाँ।
- साम्प्रदायिक झगड़े।
- मुहम्मद अली जिन्ना का दो राष्ट्रवादी का सिद्धान्त।
- मुसलमान का धार्मिक कट्टरवाद।
- अंग्रेजों की फूट डालों व राज करों की नीति।
- ऐतिहासिक कारण।
प्रश्न 4.
उन परिस्थितियों को समझाइये जिनमें भारत विभाजन अनिवार्य हो गया।
उत्तर:
भारत में साम्प्रदायिक भावना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। मुस्लिम युग व मुगलों के समय में धार्मिक कट्टरवाद ने भारतीय समाज को प्रभावित किया। अंग्रेजों ने भारत में आकर इस साम्प्रदायिक भावना को भड़का कर भारतीय समाज को लगातार विभाजित किया।
यद्यपि भारतीय पुनः
जागरण से भारतीय समाज में हिन्दुओं व मुसलमानों में एकता की भावना बढ़ी व सभी ने साथ मिलकर राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ किया। परन्तु धीरे-धीरे मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण बदला व जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धान्त पर 1940 में पाकिस्तान की माँग औपचारिक रूप से उठा दी जिसको अंग्रेजों व कांग्रेस ने स्वीकार नहीं किया। कैविनर मिशन योजना 1946 में जब पाकिस्तान का कोई जिक्र नहीं पाया तो जिन्ना से सीधी कार्यवाही (Direct Action) की घोषणा कर दी जिसने सारे देश में हिंदू व मुसलमानों में झगड़े, मारकाट व हिंसा फैल गयी जिससे भारत का विभाजन अनिवार्य बन गया जिससे 1947 में माउंटवैटन योजना के आधार पर भारत का विभाजन हुआ।
प्रश्न 5.
विभाजन के समय भारत में हुई चुनौतियों व कठिनाइयों को समझाइये।
उत्तर:
भारत का विभाजन माउंटवेटन योजना 1947 अर्थात् भारत सरकार अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया था जिसमें सरकार को निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा –
- भारत मुसलमानों की आबादी एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि भारत में मुसलमानों की आबादी में घने क्षेत्र पूर्वी भाग व पश्चिमी भाग में बसे थे।
- भारत के सभी मुसलमान पाकिस्तान में नहीं जाना चाहते थे अर्थात् कुछ मुसलमान भारत में ही रहना चाहते थे।
- भारत के पंजाब व बंगाल में मुसलमानों में बहुमत के साथ-साथ यहाँ पर हिंदू भी अच्छी संख्या में रहते थे अत: इनका विभाजन करना एक कठिन कार्य था। इन दो राज्यों के विभाजन में सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा।
- चौथी समस्या जो भारत के विभाजन के समय में आयी वह यह थी कि दोनों ही क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के स्थानान्तरण की थी कि उसे कैसे निश्चित किया जाये। पाकिस्तान में लाखों हिंदू व सिख अल्पसंख्यक के रूप में थे वे इसी प्रकार से लाखों की संख्या में भारत में मुसलमान भी अल्पसंख्यकों के रूप में रह गये।
- भारत व पाकिस्तान में जाने वाले क्षेत्रों को निश्चित करने के लिए गठित आयोग की सिफारिशे अस्पष्ट थी।
प्रश्न 6.
भारत के विभाजन के परिणाम समझाइये।
उत्तर:
भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक घटना थी। जिसके भारतीय समाज, राजनीतिक व अर्थव्यवस्था के लिए दूरगामी प्रभाव पड़े। प्रमुख परिणाम निम्न हैं –
- इतनी बड़ी संख्या में लोगों का इतनी लम्बी दूरी के लिए पलायन अत्यन्त दर्दनाक व दुखद था। रास्ते में लूटपाट व हिंसक घटनाओं ने इस प्रक्रिया को और अधिक दुखदायी बना दिया। महिलाओं व बच्चों के लिए यह अनुभव अत्यन्त परेशानी दायक था।
- दोनों वर्गों की ओर से एक-दूसरे पर अत्याचार किये गये व दोनों ही वर्गों में एक-दूसरे के लिए ईर्ष्या का वातावरण था।
- बड़े पैमाने पर सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
- लोग अपने प्रियजनों व नातियों व रिस्तेदारों से बिछुड़ गये।
- यह एक बड़ी मानवीय त्रासदी थी।
- एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा दर्द भरी व अनिश्चितताओं से भरी थी।
प्रश्न 7.
आजादी के बाद भारत के विभाजन का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत का विभाजन केवल क्षेत्रों का सम्पत्ति का व राजनीतिक तथ्यों का विभाजन ही नही था बल्कि इसमें छोटी-छोटी चीजों जैसे घर के सामानों का व दिलों का भी विभाजन था। इसमें घर की किताबों, टाईपराइटर व अन्य छोटे-छोटे सामान का भी विभाजन हुआ। विभाजन की प्रक्रिया में सरकारी कर्मचारियों व दफ्तरों का विभाजन भी हुआ। विभाजन की प्रक्रिया जहाँ सब तरफ दुखदायी व हिंसात्मक थी, वहीं विभाजन की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल भी थी।
भावनात्मक स्तर पर लोगों में परिवर्तन हुए। परिवार आपस में बिछुड़ गये । जो लोग लम्बे समय से साथ-साथ रह रहे थे वो ही सदा-सदा के लिए बिछुड़ गये। एक अनिश्चितता व दर्द से भरा वातावरण छा गया। चारो ओर हिंसा व आगजनी लूट-पाट का वातावरण रहा जिसने भारतीय समाज को सदा के लिए विभाजित कर दिया आज भी साम्प्रदायिकता भारतीय सामाजिक व्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। विभाजन के समय में अनेक बच्चे व महिलाएं अपने परिवारों से बिछुड़ गये। भारत के विभाजन के समय ऐसी भी घटनाएँ घटी जब परिवार के सदस्यों ने ही अपने परिवार का सम्मान रखने के लिए अपने ही परिवार की महिलाओं को मार दिया। इस प्रकार से विभाजन के समय एक विशेष प्रकार की मानसिकता बनी।
प्रश्न 8.
भारत के विभाजन के समय की गाँधीजी की भूमिका समझाइये।
उत्तर:
गाँधीजी मुस्लिम लीग द्वारा की गयी पाकिस्तान की माँग से अत्यन्त दुखी थे। उन्होंने अपने प्रयासों से मुस्लिम लीग के सभी प्रमुख नेताओं को यह समझाने का प्रयास किया कि मुस्लिम भारत में सुरक्षित रहेगे। हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदाय मिल कर रहेंगे व मुसलमानों का पूर्ण विकास निश्चित किया जायेगा। परन्तु मुस्लिम लीग के लोगों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जिन्ना के द्वारा प्रारम्भ की गई सीधी कार्यवाही के फलस्वरूप हुए साम्प्रदायिक झगड़ों से गाँधीजी को अत्यन्त दुःख हुआ उन्होंने पाकिस्तान की माँग के विरुद्ध आमरण अनशन भी किया परन्तु परिस्थितियों के सामने उन्हें भी विभाजन की वास्तविकता को स्वीकार करना पड़ा। गाँधीजी हिंदू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।
प्रश्न 9.
देशी रियासतों के भारत में विलय के समय आई कठिनाईयों को समझाइये।
उत्तर:
भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। उस समय अर्थात् आजादी से पहले ब्रिटिश भारत में दो प्रकार के राज्य थे एक देशी रियासतें व दूसरे ब्रिटिश प्रान्त जिन पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। देशी रियासतों पर देशी शासकों का शासन था। भारत सरकार अधिनियम 1947 जो माउंटवेटन योजना पर आधारित था, उसके अनुसार देशी रियासतों को यह अधिकार दिया गया था कि वे चाहे तो पाकिस्तान के साथ विलय हो सकती है अथवा भारत के साथ विलय हो सकते हैं व इनकों स्वतंत्र रहने का अधिकार भी दिया गया।
अधिकांश देशी रियासतों ने अपनी इच्छा से ही भारत में विलय को मंजूरी दे दी परन्तु कुछ देशी रियासतों ने अपने निर्णय लेने में अत्याधिक देर लगाई। हैदराबाद, जूनागढ़ व कश्मीर के शासकों ने निर्णय लेने में देर लगाई। तत्कालीन भारत के गृहमन्त्री श्री सरदार पटेल की कुशल प्रशासनिक व कूटनीतिक प्रयासों से इन रियासतों का भारत में विलय संभव हो सका। कश्मीर के शासक ने तो स्वतंत्र रूप में रहने का निर्णय लिया था परन्तु 1948 में पाकिस्तान के कबिलों में आक्रमण के कारण उस समय के महाराजा श्री हरीसिंह ने कुछ शतों के आधार पर भारत में विलय स्वीकार किया। इस विलय को आज तक भी चुनौती दी जाती है।
प्रश्न 10.
राज्यों के पुर्नगठन के सम्बन्ध में भारत सरकार का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
राज्यों के पुर्नगठन के सम्बन्ध में भारत सरकार की धारणा यह थी कि छोटे-छोटे राज्यों में भारत का बँटवारा राष्ट्रीय एकता अखंडता के लिए उपयुक्त नहीं होगा। सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता व परिश्रम से विभिन्न रियासतों व क्षेत्रों को भारत में मिलाया था। सरकार की इस सम्बन्ध में निम्न मान्यताएँ थी –
- भारत सरकार का मानना यह था कि अधिकांश राज्य भारतीय संघ में ही रहना चाहते हैं।
- केन्द्र सरकार प्रान्तों को और अधिक राज्यों को अधिक से अधिक सम्भव स्वायत्तत्ता देने के पक्ष में थी।
- राज्यों की सीमाओं को आपस में मिलाया।
प्रश्न 11.
मणिपुर रियासत का भारतीय संघ में विलय की प्रक्रिया को समझाइये।
उत्तर:
आजादी के चंद रोज पहले मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसकी एवेज में उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता बरकरार रहेगी। जनमत के दबाव में महाराज ने 1948 के जून में चुनाव करवाया और इस चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ। मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौम व्यस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर चुनाव हुए।
मणिपुर की विधान सभा में भारत में विलय के सवाल पर गहरे मतभेद थे। मणिपुर की कांग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में मिला दिया जाए जबकि दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ इसके खिलाफ थीं। मणिपुर की निर्वाचित विधान सभा से परामर्श किए बगैर भारत सरकार ने महाराजा पर दबाव डाला कि वे भारतीय संघ में शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें। भारत सरकार को इसमें सफलता मिली। मणिपुर में इस कदम को लेकर लोगों में क्रोध और नाराजगी के भाव पैदा हुए। इसका असर आज तक देखा जा सकता है। सितम्बर 1949 को मणिपुर के महाराजा ने मणिपुर के भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये।
प्रश्न 12.
भारत में राज्यों के पुर्नगठन को समझाइये।
उत्तर:
देशी रियासतों के भारत में विलय के साथ ही केवल राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई इसके बाद भी अर्थात् आजादी के बाद राज्यों के पुर्नगठन का विषय भी महत्त्वपूर्ण बन गया। अनेक राज्यों से भाषा के आधार पर पुर्नगठन की मांग उठने लगी। यह प्रक्रिया केवल सीमाओं में परिवर्तन का एक सहज विषय नहीं था बल्कि भाषा के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन का एक ऐसा कार्य था जिसमें राज्यों की सीमाओं में भी परिवर्तन करना था व साथ-साथ राष्ट्र की एकता व अखंडता को भी प्रभावित होने से बचाना था व राष्ट्र की भाषीय व सांस्कृतिक एकरूपता भी बनी रहे। 1920 में कांग्रेस के नागपुर के अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया था भाषीय सिद्धान्त के आधार पर राज्यों का पुर्नगठन किया जायेगा। आजादी के बाद इस सिद्धान्त का पालन किया गया।
प्रश्न 13.
भाषा के आधार पर राज्यों का पुर्नगठन करने में सरकार को किस प्रकार की आशंका थी?
उत्तर:
आजादी के बाद विभिन्न राज्यों से राज्यों की पुर्नगठन की मांग उठने लगी। अधिकांश राज्यों में भाषीय भेदभाव की शिकायतें मिल रही थी इस प्रकार की माँगे मुख्य रूप से बॉम्बे व असम से उठ रही थी। यहाँ पर अल्पसंख्यक भाषायी लोगों को यह डर था कि बड़ी भाषाएँ अर्थात् बहुमत लोगों की भाषा अन्य भाषाओं को विकसित नहीं होने देगी। अतः ये लोग भाषा के आधार पर पृथक राज्य की माँग करने लगे। भारत सरकार की यह आशंका थी कि अगर राज्यों का भाषा के आधार पर पुर्नगठन किया गया तो यह देश की एकता अखंडता के लिए खतरा बन सकता है।
इस विषय पर गठित राज्य पुर्नगठित आयोग की सिफारिशों के आधार पर कानून पारित किया गया व राज्यों का भाषा के आधार पर ही पुर्नगठन किया गया। आयोग ने इस बात की पुष्टि की कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुर्नगठन करने से देश की एकता अखंडता को कोई खतरा नही होगा। पिछले 60 वर्षों के अनुभव ने यह प्रमाणित भी कर दिया कि भाषा के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन से राज्यों का विकास हुआ है व देश की एकता व अखंडता को कोई खतरा नहीं हुआ राज्यों का पुर्नगठन भाषा के साथ प्रशासनिक सुविधाओं के आधार पर भी किया गया है।
प्रश्न 14.
राज्य पुर्नगठन अधिनियम 1956 को विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
विभिन्न राज्यों से उठी भाषा के आधार पर राज्यों की पुर्नगठन की माँग के आधार पर केन्द्र सरकार ने 1953 में एक राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन किया जिसको यह कार्य दिया कि वह ये देखे कि क्या राज्यों का पुर्नगठन भाषा के आधार पर करना उचित होगा व इससे देश की एकता व अखंडता पर कोई खतरा तो उत्पन्न नहीं होगा। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण भाषा के आधार पर किया जाना चाहिए। कमीशन की इन सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार ने एक 1956 में राज्य पुर्नगठन कानून पारित किया जिसके आधार पर भाषा को आधार मानकर कई राज्यों में पुर्नगठन कर नये राज्यों का निर्माण किया। इस कानून के आधार पर यह स्वीकार किया गया कि भारत के समाज का मूल आधार इसका बहुल स्वरूप ही है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में विभाजन के कारण व परिणामों को समझाइये।
उत्तर:
ब्रिटिश उपनिवेशवाद भारतीय समाज को विभिन्न आधारों पर विभाजित किया। अंग्रेजों ने इस बात को समझ लिया था कि भारत में ऊँच-नीच की भावना व्याप्त है व भारतीय समाज सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ा हुआ है अत: उन्होंने इस बात का फायदा उठा कर भारत में शासन करने के लिए फूट डालो व राज करो (Devide and Rule) की नीति अपनाई जिसमें वे सफल भी हो गये। अंग्रेजों ने भारत में आपसी द्वेष बढ़ाने के लिए जातिप्रथा को बढ़ावा दिया व साम्प्रदायिकता के बीज बो दिये।
अंग्रेजी शासन की प्रत्येक नीति व कार्यक्रम का यही उद्देश्य था कि नीति को इस प्रकार से बनाया जाये व लागू किया जाये कि भारतीय समाज सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक स्तर पर बँटा रहे व उनमें असमानता व दूरी कायम रहे। अंग्रेजों के इन्हीं प्रयासों से मुस्लिम लीग जो एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था बाद में साम्प्रदायिक राजनीतिक दल बन गया जिसने अन्ततः पृथक राज्य अर्थात् पाकिस्तान की माँग रख दी। इसी प्रकार से मोहम्मद अली जिन्ना जो एक धर्मनिरपेक्ष व राष्ट्रवादी व उदारवादी नेता था, अंग्रेजों ने उनकी महत्त्वकांक्षाओं को प्रेरित करके उनमें साम्प्रदायिक व स्वार्थी दृष्टिकोण पैदा कर दिया वे केवल मुसलमानों के ही नेता बन कर रह गये जबकि प्रारम्भ में उनका दृष्टिकोण व्यापक था। अंग्रेजों की यह साम्प्रदायिक नीति ही भारत के विभाजन की प्रमुख कारण बनी।
भारत के विभाजन के गम्भीर परिणाम निकल जिनमें निम्न प्रमुख हैं –
- साम्प्रदायिक झगड़े।
- साम्प्रदायिक भावना का विकास
- राज्यों के पुर्नगठन में समस्याएँ
- भारतीय राजनीति का साम्प्रदायीकरण
- प्रशासन का साम्प्रदायीकरण
- भारत व पाकिस्तार में शीत युद्ध व वास्तविक युद्ध
- विभाजन के समय दोनों ही पक्षों अर्थात् हिन्दुओं, मुसलमानों को अनेक कष्ट उठाने पड़े
- अल्पसंख्यकों की राजनीति का विकास
- अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति
- दक्षिण एशिया की राजनीति पर प्रभाव
प्रश्न 2.
भारत के विभाजन के बाद भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की प्रमुख चुनौतियाँ व उद्देश्य समझाइये।
उत्तर:
आजादी के बाद भारत के लिए राह आसान नहीं थी। उसके सामने अनेक चुनौतियाँ मुँह खोले खड़ी थीं। आजादी के समय महात्मा गाँधीजी ने कहा था कि, कल हम अंग्रेजी राज की गुलामी से आजाद हो जायेगें लेकिन आधी रात को भारत का बँटवारा भी होगा। इसलिए कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन होगा और गम का भी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गाँधीजी ने भी आगे आने वाली समय की चुनौतियों की ओर संकेत दिया। हम यहाँ पर आजादी के बाद की तीन प्रमुख चुनौतियों का वर्णन कर रहे हैं जो निम्न हैं –
1. सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती भारत के सामने भारत जैसे विशाल देश को राष्ट्र के रूप में बनाना व उसे निश्चित करना कि विभिन्न जाति धर्म, भाषा, संस्कृति व भौगोलिकता वाले लोगों में राष्ट्रीयता अर्थात् भारतीयता के सूत्र में बांध कर उन्हें एकता के सूत्र में बाँधना था। अतीत के बहुत दुखद अनुभव रहे एकता के अभाव में हमने विदेशी लोगों का शासन पाया था अतः सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत को एक राष्ट्र के रूप में एक रखना तथा सभी वर्गों के लोगों में आपसी प्यार बढ़ाना।
2. दूसरी चुनौती भारतीय प्रशासकों के लिए भारत में प्रजातंत्रीय प्रणाली के लिए आवश्यक राजनीतिक संस्कृति का विकास करके प्रजातन्त्र को मजबूत करना था। जिसमें भारत काफी हद तक सफल रहा है। अब तक 60 वर्ष के प्रजातंत्रीय सफर में भारत में अनेक स्तर पर अनेक चुनाव होते रहे हैं जिससे भारतीय लोकतंत्र परिपक्व हुआ। भारत का नागरिक मतदाता के रूप में भी परिपक्व हुआ है। भारत में प्रजातंत्र की जड़े मजबूत हुई है। ये भी वास्तव में एक बड़ी चुनाती थी।
3. तीसरी प्रमुख चुनौती भारतीयों के विकास व जनकल्याण की थी जब देश आजाद हुआ भारत में गरीबी बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन व अनपढ़ता जैसी अनेक समस्याएँ थी। उन सभी को दूर करने के लिए आवश्यक प्रयास किये गये हैं व लोगों के जीवन स्तर को उठाया गया है। गाँव शहरी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया गया है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
दो राष्ट्र का सिद्धान्त किसने दिया?
(अ) जवाहर लाल नेहरू
(ब) मो. अली जिन्ना
(स) सरदार पटेल
(द) खान अब्दुल गफ्फार खान
उत्तर:
(ब) मो. अली जिन्ना
प्रश्न 2.
हिन्दुस्तान आजाद हुआ –
(अ) 1953
(ब) 1955
(स) 1956
(द) 1952
उत्तर:
(स) 1956
प्रश्न 3.
हिन्दुस्तान आजाद हुआ –
(अ) हैदराबाद
(ब) मणिपुर
(स) जूनागढ़
(द) मैसूर
उत्तर:
(ब) मणिपुर
प्रश्न 4.
हिन्दुस्तान आजाद हुआ –
(अ) 1945
(ब) 1946
(स) 1948
(द) 1950
उत्तर:
(ब) 1946
प्रश्न 5.
भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?
(अ) भारत-विभाजन “द्वि-राष्ट्र सिद्धांत” का परिणाम था।
(ब) धर्म के आधार पर दो प्रांतों-पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
(स) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान से संगति नहीं थी।
(द) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर:
(द) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
प्रश्न 6.
हिन्दुस्तान आजाद हुआ –
(अ) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को
(ब) सन् 1945 की 14 अगस्त को
(स) सन् 1946 के 15 अगस्त की मध्य रात्रि को
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को
प्रश्न 7.
भारत के लिए जो वर्ष अभूतपूर्व हिंसा और विस्थापन त्रासदी का वर्ष था, वह था –
(अ) 1962
(ब) 1971
(स) 1965
(द) 1947
उत्तर:
(द) 1947
प्रश्न 8.
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की बात
(अ) मुस्लिम लीग
(ब) हिन्दू महासभा में
(स) कांग्रेस
(द) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(अ) मुस्लिम लीग
प्रश्न 9.
‘नोआवली’ अब जिस देश में है, वह है –
(अ) पाकिस्तान
(ब) बंगलादेश
(स) भारत
(द) म्यांमार
उत्तर:
(ब) बंगलादेश
प्रश्न 10.
विभाजन के समय भारत में कुल रजवाड़ों की संख्या थी –
(अ) 565
(ब) 465
(स) 665
(द) 365
उत्तर:
(अ) 565
प्रश्न 11.
भारत में चुनाव आयोग का गठन हुआ?
(अ) जनवरी 1950 में
(ब) फरवरी 1950 में
(स) जून 1950 में
(द) अगस्त 1950 में
उत्तर:
(अ) जनवरी 1950 में
प्रश्न 12.
भारत विभाजन का श्रेय किस गवर्नर को दिया जाता है?
(अ) लॉर्ड बेवल
(ब) लॉर्ड माउन्टेबेटेन
(स) लॉर्ड कर्जन
(द) लॉर्ड लिनलिथगो
उत्तर:
(ब) लॉर्ड माउन्टेबेटेन
प्रश्न 13.
भारतीय स्वतंत्रता के साथ राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ी समस्या थी –
(अ) शिक्षा का प्रसार
(ब) आर्थिक विकास
(स) शहरीकरण
(द) देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय
उत्तर:
(द) देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय
प्रश्न 14.
किस देशी रियासत के विरुद्ध भारत सरकार के विलय हेतु बल का प्रयोग करना पड़ा?
(अ) जूनागढ़
(ब) हैदराबाद
(स) त्रावनकोर
(द) मणिपुर
उत्तर:
(ब) हैदराबाद
प्रश्न 15.
1956 में भारतीय राज्यों के पुनर्गठन का आधार क्या बनाया गया?
(अ) भाषा
(ब) भौगोलिक क्षेत्र
(स) जाति या धर्म
(द) देशी रियासत की पृष्ठभूमि
उत्तर:
(अ) भाषा
प्रश्न 16.
कश्मीर समस्या के संदर्भ में कौन सा कथन गलत है?
(अ) काश्मीर द्वारा भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया गया।
(ब) अन्य भारतीय क्षेत्रों की तरह कश्मीर के लोग चुनाव में भाग लेते हैं।
(स) कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है।
(द) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है।
उत्तर:
(द) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है।
प्रश्न 17.
स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर-जनरल कौन थे?
(अ) सी. राजगोपालाचारी
(ब) गोविंद बल्लभ पंत
(स) मौलाना अब्दुल कलाम
(द) कामराज नाडार
उत्तर:
(अ) सी. राजगोपालाचारी
II. मिलान करने वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर:
(क) – (3)
(ख) – (5)
(ग) – (4)
(घ) – (1)
(ङ) – (2)