Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Bihar Board Class 12 Political Science भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाइये।
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाए –

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 4 भारत के विदेश संबंध Part - 2 img 1
उत्तर:
(क) – (2)
(ख) – (3)
(ग) – (4)
(घ) – (1)

प्रश्न 3.
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की विदेश नीति के निर्माता माने जाते हैं। वे भारत के प्रधानमंत्री के साथ-साथ भारत के प्रथम विदेशमंत्री भी थे। उनका यह मानना था कि देश की एकता अखंडता के लिए एक दूरदर्शी, प्रभावशाली व व्यवहारिक विदेश नीति का निर्माण व इसका सही संचालन अति आवश्यक है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू 1949 में संविधान सभा की एक बहस में कहा था कि आजादी बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों से ही बनती है। यही आजादी की कसौटी भी है। बाकी सारा कुछ तो स्थानीय स्वायत्तता है। एक बार विदेशी संबंध अपने हाथ से निकलकर दूसरे के हाथ में चले जाये तो फिर जिस हद तक आपके हाथ से ये संबंध छूटे और जिन मसलों में छूटे-वहाँ तक आप आजाद नहीं रहते।

एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सप्रभुत्ता का सम्मान करने और शांति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिस तरह किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अंदरी और बाहरी धारक निर्देशित करते हैं उसी तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू व अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है।

आपकी विदेश नीति व आपके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सम्बन्धों के ऊपर आपकी आर्थिक व राजनीतिक स्वतंत्रता निर्भर करती है। विकासशील देशों के पास अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संसाधनों का अभाव होता है जिसके लिए उसे विकसित देशों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है अतः उसी के अनुरूप उनको अपनी विदेश नीति भी निश्चित करनी पड़ती है दूसरे विश्व युद्ध के बाद अनेक विकासशील देशों ने ताकतवार देशों की मर्जी के अनुसार अपनी विदेश नीति तय की थी।

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प्रश्न 4.
“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर:
निश्चित रूप से विदेश नीति के निर्माण में अन्तरिक व वाह्य परिस्थितियाँ प्रमुख रूप में निर्धारण का काम करती है। किसी भी देश की विदेशी नीति के निम्न प्रमुख तत्व होते हैं –

  1. राष्ट्रीय हित
  2. देश की जनसंख्या व विचारधारा
  3. आर्थिक परिस्थितियाँ
  4. कृषि व उद्योग विकास की स्थिति
  5. विज्ञान व तकनीकी विकास
  6. भौगोलिक व सामरिक स्थिति

उपरोक्त आन्तरिक तत्वों के अलावा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी किसी देश की विदेश नीति के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनमें निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तनाव
  2. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण मुद्दे
  3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग
  4. विचारधारा का प्रभुत्व
  5. सामूहिक विषय जैसे आंतकवाद मानव अधिकार व पर्यावरण की समस्या आदि
  6. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध का खतरा
  7. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुटबाजी

1960 के दशक में भारत की स्थिति आन्तरिक स्तर पर भी व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खराब थी। भारत कृषि के क्षेत्र में व उद्योग के क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ था। नियोजित अर्थव्यवस्था के आधार पर आर्थिक विकास के कार्य में लगा था जिसके लिए उसको अन्य देशों की आर्थिक व वैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता थी।

अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत के पास प्रयाप्त अनाज पैदा करने की क्षमता नहीं थी। बेरोजगारी व गरीबी देश में व्याप्त थी। आर्थिक विकास के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी मदद की आवश्यकता थी। इन सभी आन्तरिक स्थितियों ने भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया। इसी प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय तत्वों ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया। विदेश नीति के दो प्रमुख उद्देश्य थे प्रथम राष्ट्र की एकता व अखंडता को निश्चित करना व दूसरे आर्थिक विकास प्राप्त करना।

उस समय अर्थात् 1960 के दशक में दुनिया दो गुटों में बँटी थी कि अमेरिका का गुट व दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व का गुट। दोनों अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे। अतः उनके प्रभाव से बंधने के लिए गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया व राष्ट्रीय एकता अखंडता को निश्चित करने के लिए पंचशील का सिद्धांत व संयुक्त राष्ट्र का ना केवल प्रारम्भिक सदस्य बना बल्कि विश्व शांति को बढ़ाना अपनी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य बनाया।

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प्रश्न 5.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने के लिए कहा जाये तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक उसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के सम्बन्ध में निर्णय लेने के सन्दर्भ में निम्न दो बातों को बदला जा सकता है –

  1. परमाणु नीति
  2. निःशस्त्रीकरण

भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्वों में भारत की परमाणु नीति व निशस्त्रीकरण का समर्थन दो प्रमुख तत्व रहे हैं। अब समय आ गया है कि इन विषयों के सम्बन्ध में आज की परिस्थितियों की माँग के अनुसार कुछ आवश्यक बदलाव लाये जाये। भारत की परमाणु नीति रही है कि भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही करेगा व किसी भी परमाणु हथियार बनाने व उन्हें युद्ध के लिए प्रयोग करने का कार्य नहीं करेगा।

परंतु आज के युग में ना केवल पाँच सदस्यों अर्थात् अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन व फ्रांस के पास परमाणु बम है अथवा बम बनाने की क्षमता है बल्कि अन्य और विकसित देशों जैसे इजराइल, जर्मन, कोरिया, इन्डोनेशिया, ब्राजील व पाकिस्तान के पास भी या तो बम है अथवा परमाणु बम बनाने की क्षमता है। यह तो निश्चित है कि इन नई परमाणु शक्तियों के पास परमाणु शक्ति का युद्ध के लिए प्रयोग करने की योजनाएँ हैं इस स्थिति में भारत को अपनी परमाणु क्षमता बनाने व दिखाने की आवश्यकता है जिसके लिए उसे अपनी विदेश नीति में बदलाव करना चाहिए।

दूसरे शस्त्रीकरण का सम्बन्ध शस्त्रों के बनाने व उसके खरीदने की स्थिति से है, यद्यपि भारत ने इसका विरोध किया है परंतु जब हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में चीन व अमेरिका से शस्त्र खरीदकर हमारे खिलाफ प्रयोग किये जा रहे हैं तो इसे भी इस नीति को बदलकर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र खरीदने चाहिए। जिन विषयों को हम बनाये रखना चाहेंगे वे हैं –

  1. गुट निरपेक्षता का सिद्धांत
  2. पंचशील का सिद्धांत क्योंकि ये दोनों सिद्धांत सदा प्रांसागिक रहेंगे।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
(क) भारत की परमाणु नीति।
(ख) विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति
उत्तर:
(क) भारत की परमाणु नीति:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू भारत की विदेश नीति के निर्माता थे। वे विश्व शांति में सबसे बड़े समर्थक थे अतः उन्होंने परमाणु ऊर्जा के लड़ाई व युद्ध में प्रयोग करने के किसी भी स्तर पर प्रयास करने का विरोध किया। भारत की विदेश नीति में भी उन्होंने यह निश्चित किया कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग केवल विकास कार्यों व शांति के लिए ही करेगा।

भारत की परमाणु ऊर्जा के संस्थापक डॉ. भावा थे जिन्होंने पंडित नेहरू के निर्देश पर परमाणु ऊर्जा का शांति के प्रयोग करने के लिए अनेक अनुसंधान किए। भारत ने 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया जिसके फलस्वरूप दुनिया के अनेक देशों ने भारत के खिलाफ प्रतिकूल प्रतिक्रिया की।

भारत सदैव परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण क्षेत्र में प्रयोग का ही समर्थक रहा व विश्व के देशों पर परमाणु विस्फोट रोकने के लिए एक व्यापक संधि के लिए जोर डाला। भारत ने परमाणु प्रसार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की गई संधियों का विरोध किया क्योंकि ये संधियाँ पक्षपातपूर्ण थी।

इसी कारण से भारत ने 1995 में बनी (सी.टी.-बी.टी.) व्यापक परमाणु निरीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये। 1998 में भारत में फिर परमाणु विस्फोट किये। अब परमाणु ऊर्जा के सम्बन्ध में भारत की नीति यह है कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग शांति के लिए करेगा लेकिन आत्म रक्षा के लिए परमाणु क्षमता बनाने का अपना विकल्प खुला रखेगा।

(ख) विदेश नीति के मामले पर सर्वसहमति:
भारत की विदेश नीति की यह विशेषता रही है कि भारतीय विदेश नीति के निश्चित मूल तत्व रहे हैं सरकार व विरोधी दलों व अन्य जनमत निर्माण करने वाले वर्गों के बीच इन तत्वों पर आमतौर से सहमति रही है अगर इन तत्वों में किसी प्रकार का परिवर्तन करने की जरूरत पड़ी तो उस पर भी आम राय अर्थात् आम सहमति बनी। जैसे परमाणु शक्ति के प्रयोग के सम्बन्ध में व परमाणु परीक्षण करने के सम्बन्ध में आम सहमति रही। पंचशील गुट निरपेक्षता, पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध व बड़ी शक्तियों के साथ सम्बन्धों पर आमतौर से सर्व सहमति रही है।

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प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ। लेकिन 1962 से 1972 की अवधि यानि महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत को विदेश के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ भारत के विदेश मंत्री भी थे। उनके अनुसार भारत की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता व अखंडता को सुरक्षित करना व भारत का आर्थिक विकास निश्चित करना था। इस उद्देश्य के अनुरूप भारत के विदेशों से सम्बन्धों का निर्धारण किया। पंचशील व गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों को अपनाया गया।

दुर्भाग्यवश भारत को 1962 से लेकर 1972 के दशक में तीन युद्धों को झेलना पड़ा जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ, 1965 में भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा व तीसरा युद्ध 1971 में भारत को पाकिस्तान के साथ ही करना पड़ा। यह सच है कि भारत को 1962 से 1972 के दशक में तीन युद्धों का सामना करना पड़ा परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि ये भारत की विदेश नीति भी असफलता का परिणाम था। भारत ने चीन के साथ 1954 में पंचशील का समझौता किया चीन ने इस समझौते को तोड़ा तो यह चीन के द्वारा किया गया विश्वासघात था।

चीन ने एक बड़ा भारत का हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया परंतु बाद में भी वह अपनी पुरानी सीमा पर बापिस चला गया। धीरे-धीरे भारत व चीन के सम्बन्धों में फिर सुधार हो गया। इसी प्रकार से भारत व पाकिस्तान के बीच कश्मीर के गुद्दे पर तनाव व मतभेद 1948 से ही लगातार रहे जो 1965 में युद्ध के रूप में बदल गया।

1971 में बंगलादेश व पाकिस्तान के बीच आपसी समस्या में भारत के हस्तक्षेप के कारण 1971 का युद्ध हुआ। भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध अब धीरे-धीरे सुधर रहे हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1962-1972 के बीच तीन युद्ध भारत की विदेश नीति की असफलता नहीं बल्कि तत्कालीन परिस्थितियों का ही परिणाम है।

प्रश्न 8.
क्या भारत की विदेश नीति से झलकता है कि क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है? 1971 के बंगलादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के किसी भी तत्व से यह नहीं झलकता कि भारत अपने क्षेत्र में प्रभुत्व जमाकर क्षेत्रीय महाशक्ति बनना चाहता है। भारत की विदेश नीति के दो प्रमुख तत्वों नं. 1 पंचशील नं. 2 पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने की नीति के अनुसार भारत का यह सिद्धांत है कि कोई भी किसी अन्य के अन्दरूनी मामले में हस्तक्षेप नहीं कर वे अपासी सहयोग को बढ़ाये।

साथ-साथ पंचशील का यह भी सिद्धांत है कि सभी एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता अखंडता व प्रभुसत्ता का सम्मान करे तथा एक-दूसरे पर आक्रमण ना करे। शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सिद्धांत भी भारतीय विदेश नीति का प्रमुख तत्व है। गुट निरपेक्षता का उद्देश्य यह है कि तृतीय विश्व के देशों की राष्ट्रीय एकता व अखंडता सुरक्षित रहे व आर्थिक विकास में सभी तृतीय विश्व के विकासशील व अविकसित देश आपस में सहयोग करें।

1971 के बंगलादेश के संदर्भ में ऐसा कहा जाता रहा है कि भारत ने पाकिस्तान के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप करके पाकिस्तान का विभाजन कराया व इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहता है। भारत के कई ऊँचे प्रमुख देश जैसे श्रीलंका नेपाल भी कुछ ऐसा ही सोचने लगे हैं परंतु सच्चाई यह नहीं है। भारत ईमानदारी के साथ गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत व पंचशील के सिद्धांत पर चल रहा है।

भारत ने सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के गठन व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अतः यह कहना गलत है कि भारत ने एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में व्यवहार किया है। बंगलादेश में भारत ने मानवीय आधारों पर हस्तक्षेप किया व सार्क के सभी देशों के साथ विशेषकर छोटे राज्यों जैसे नेपाल, भूटान व मालद्वीप जैसे देशों के साथ बड़े भाई की भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 9.
किसी देश का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह से उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति का उदाहरण देकर इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर:
किसी देश की विदेश नीति के कुछ निश्चित निर्धारक तत्व होते हैं जिनका सम्बन्ध उस देश की आन्तरिक स्थिति जैसे, सामाजिक आर्थिक स्थिति, वैज्ञानिक तकनीकी विकास, भौगोलिक सामरिक स्थिति, विचारधारा, सैनिक शक्ति व संधि-समझौते पर निर्भर करती है व साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति व अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण पर निर्भर करती है परंतु देश का शासक दल व उसका नेता भी उस देश की विदेश नीति को निश्चित रूप से प्रभावित करता है भारत के सन्दर्भ में भी हम इस तथ्य को समझ सकते हैं।

भारत के प्रथम प्रधानममंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री के साथ-साथ देश के विदेश मंत्री भी रहे। भारत की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचारों की, प्राथमिकताओं की दृष्टिकोणों की व व्यक्तित्व की इतनी अधिक छाप है कि उन्हें भारत की विदेश नीति का निर्माता कहा जाता है। 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रहे।

उन्होंने भारत की गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों के आधार पर सभी देशों व महाशक्तियों के साथ बराबर के सम्बन्ध रखें। उन्होंने भारत के विकास में सोवियत संघ का भी सहयोग लिया व अमेरिका से भी मदद ली। परंतु इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद, भले ही भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत वही रहे परंतु इंदिरा गाँधी ने भारतीय सम्बन्धों को सोवियत संघ की ओर अधिक मोड़ दिया व 1971 में सोवियत संघ के साथ संधि की।

जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री रहे श्री मोरारजी देशाई के समय में भारतीय सम्बन्धों का रूप अमेरिका की ओर रहा। इसी प्रकार परमाणु ऊर्जा के प्रयोग के लिए भारत की सदैव यह नीति रही कि परमाणु परीक्षण नहीं करेंगे व परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उपयोग के लिए किया जायेगा परंतु एन. डी. ए. की सरकार में प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस नीति में व्यापक परिवर्तन कर 1998 में कई परमाणु परीक्षण किये। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि किसी देश की विदेश नीति उसके नेतृत्व पर भी निर्भर करती है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

गुट निरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल ना करना …… इसका अर्थ होता है चीजों को यथासंभव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसको कभी जरूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिये को अपनाने को जगह स्वतंत्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना …… जवाहरलाल नेहरू

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की संधि से गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों का उलंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?

उत्तर:
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू गुट निर्पेक्ष आंदोलन के संस्थापक थे। गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का उद्देश्य एशिया अफ्रीका व लेटिन अमेरिका के देशों को अमेरिका व सोवियत संघ के सैनिक गठबंधनों (नेटो व वार्षा सन्धि) से अलग रखना था ताकि इन देशों की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय एकता व अखंडता को किसी प्रकार का कोई नया खतरा पैदा हो।

सोवियत संघ व अमेरिका इन नये स्वतंत्र देशों को अपने-अपने प्रभाव में लाने का प्रयास कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने सैनिक गठबंधन बनाये थे। पंडित नेहरू ने इन नये स्वतंत्र देशों को गुट निरपेक्षता की नीति के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया कि किसी सैनिक गठबंधन की सदस्यता लेने पर उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। गुट निरपेक्षता का उद्देश्य इन नये देशों में आपसी सहयोग को बढ़ाना था।

(ख) अगस्त 1971 में भारत ने सोवियत संघ के साथ मित्रता व सहयोग की सन्धि की जो किसी भी प्रकार का कोई सैनिक समझौता नहीं था। इस प्रकार के सहयोग के समझौते तो भारत व अमेरिका के बीच भी चल रहे थे। अत: सोवियत संघ के साथ यह समझौता गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का उलंघन नहीं करता। यह समझौता समय की कसौटी पर खरा उतारा। 1971 (दिसम्बर) को जब भारत व पाकिस्तान के युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपना सातवाँ बेडा बंगाल की खाड़ी में भेजा तो सोवियत संघ ने इसका जवाब दिया जिससे अमेरिका को पीछे हटना पड़ा।

(ग) अगर सोवियत संघ व अमेरिका के सैन्य गुट ना बनते तो हो सकता है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन का यह स्पष्ट रूप न होता। परंतु यह तो निश्चित ही है कि द्वितीय विश्व के बाद दुनिया दो गुटों में बँट गयी थी। एक साम्यवादी गुट जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था व दूसरा पूँजीवादी गुट जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था।

दोनों ही गुट अपना-अपना प्रभाव इन क्षेत्रों पर बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद की पेशकश कर रहे थे। अत: इस सन्दर्भ में भी गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत प्रासांगिक है। गुटरिपेक्षता के सिद्धांत का उद्देश्य यह भी है कि निर्णय विषय की योग्यता पर किया जाये व मान सम्मान व उचित शर्तों पर किसी से सहायता ली जाये।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध व विदेश नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विज्ञान व तकनीकी ने विश्व को एक छोटा सा गाँव बना दिया जिस प्रकार से एक छोटे समाज में आपस में अन्तर निर्भरता होती है उसी प्रकार से विश्व के सभी देशों में आपसी अन्तर निर्भरता बढ़ रही है यातायात, संचार, व्यापार के क्षेत्र व साथ-साथ खेल व संस्कृति के क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच सम्बन्धों में विस्तार हो रहा है।

विभिन्न देशों के बीच विभिन्न क्षेत्र में चल रहे सम्बन्धों को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं। एक देश दूसरे देश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्धों का संचालन करने के लिए जिस नीति व दृष्टिकोण को अपनाता है उसे उस देश की विदेश नीति कहते हैं। प्रत्येक देश की अपनी एक विदेश नीति होती है जिसको विभिन्न आन्तरिक व वाह्य परिस्थितियाँ निश्चित करती हैं।

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प्रश्न 2.
विदेश नीति व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सम्बन्ध में राज्य की नीति निर्देशक तत्वों में दिये गये निर्देशों को समझाइये।
उत्तर:
भारत में संविधान के चौथे भाग में राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को निश्चित करने के निर्देश दिये गये हैं। इनकी मुख्य सैद्धान्तिक बाते निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. सभी देशों के बीच आपसी सम्बन्धों को मजबूत करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान रखना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों को निभाना।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को बातचीत व मध्यस्थता से तय करना।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व समझाइये।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व निम्न हैं –

  1. पंचशील
  2. गुटनिरपेक्षता
  3. अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शान्ति को बढ़ाना
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को मजबूत करना
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रजातंत्रीयकरण में सहायता करना
  6. रंगभेद की नीति का विरोध करना
  7. निःशस्त्रीकरण में सहायता करना

प्रश्न 4.
द्विध्रुवी विश्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो गुटों में बँट गयी। एक साम्यवादी गुट जिसका नेतृत्व सोवियत संघ ने किया व दूसरा गुट पूँजीवादी देशों का था जिसका नेतृत्व अमेरिका ने किया। इस प्रकार से विभाजित दो गुटों की दुनिया को द्विध्रुवी विश्व कहा गया। 1950 के बाद एशिया अफ्रीका व लेटिन अमेरिका में साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद टूट रहा था व नये देश स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आ रहे थे। दोनों ही गुट अर्थात् साम्यवाद गुट व पूँजीवादी गुट सैनिक गठबंधनों के आधार पर व आर्थिक सहायता के आधार पर इन नये स्वतंत्र देशों को अपने-अपने प्रभाव में लाने का प्रयास कर रहे थे। पूँजीवादी देशों में सैनिक गठबंधन नेटो व सेन्टो थे व साम्यवादी देशों का सैनिक गुट वारसा सन्धि था। इस प्रकार से पूरी दुनिया दो गुटों में बँटती नजर आ रही थी।

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प्रश्न 5.
पंचशील के पाँच प्रमुख सिद्धांतों को समझाइये।
उत्तर:
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों की आधारशिला पंचशील था जिस पर 1954 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ ऐनलाई ने हस्ताक्षर किया। वास्तव में पंचशील भारत व चीन के बीच ही सम्बन्धों की आधारशिला नहीं थी बल्कि यह विश्व के सभी देशों के बीच सम्बन्धों की बुनियाद थी। पंचशील भारत की विदेश नीति का प्रमुख तत्व है। इसके प्रमुख सिद्धांत निम्न हैं –

  1. एक-दूसरे के देशों की एकता, प्रभुसत्ता व अखंडता का सम्मान रखना।
  2. एक-दूसरों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना।
  3. आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  4. आपसी मतभेदों व झगड़ों को बातचीत से हल करना।
  5. सह अस्तित्व का सिद्धांत।

प्रश्न 6.
गुट निरपेक्षता के सिद्धांत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुट निरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ है कि किसी भी गुट के साथ ना जुड़ना। ऐतिहासिक सन्दर्भ में गुट निरपेक्षता का सिद्धांत नये स्वतंत्र देशों के किसी भी सैनिक गुट से अलग रहने का था। जैसा कि हम जानते हैं कि द्वितीय युद्ध के बाद अमेरिका व सोवियत संघ के नेतृत्व में सैनिक गुट बने थे जो तृतीय विश्व के देशों पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे। वास्तव में गुट निरपेक्षता का अर्थ इससे अधिक कुछ और भी है। इसका अर्थ है कि किसी भी विषय पर योग्यता के आधार पर निर्णय लेना।

प्रश्न 7.
सार्क के आठ सदस्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
सार्क एक क्षेत्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग हो बढ़ाना है। प्रारम्भ में इसमें 7 सदस्य थे अब एक सदस्य बढ़ने से इसकी संख्या 8 हो गयी है जो निम्न हैं –

  1. पाकिस्तान
  2. भारत
  3. श्रीलंका
  4. नेपाल
  5. बांगला देश
  6. मालदीव
  7. माइमार

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प्रश्न 8.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व के स्तर पर सोवियत संघ व अमेरिका दो महाशक्ति के रूप में उभर कर आयी। यूरोप के देश भी द्वितीय महायुद्ध में राजनीतिक रूप से व सैनिक रूप से कमजोर हो गये थे। दोनों ही महाशक्तियाँ अपने सैनिक गठबंधनों के माध्यम से दुनिया में अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिससे अमेरिका व सोवियत संघ के बीच तनाव बढ़ता गया। दोनों गुटों के बीच के तनाव को शीत युद्ध कहा गया।

शीत युद्ध के विश्व राजनीति को लम्बे समय तक प्रभावित किया। शीत युद्ध का अर्थ था कि किसी प्रकार के वास्तविक युद्ध के बिना तनाव बने रहना। इसमें एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक लड़ाई रहती है जिसमें एक-दूसरे के हितों को प्रभावित करना व नुकसान करने का प्रयास किया जाता रहा है। 1950 से 1990 तक के कार्यकाल में शीतयुद्ध अपनी चर्म अवस्था में दुनिया में रहा है।

प्रश्न 9.
भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर:
भारत व पाकिस्तान का उदय बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व हिंसात्मक परिस्थितियों में हुआ। आज भी भारत व पाकिस्तान के बीच मुख्य विषय निम्न हैं जो दोनों देशों के बीच बाधा बने हैं –

  1. कशमीर की समस्या
  2. धर्म के आधार पर उग्रवाद व साम्प्रदायिकता
  3. सीमा से सम्बन्धित झगड़े
  4. पाकिस्तान के द्वारा भारत में उग्रवादियों को मदद देना
  5. पाकिस्तान के द्वारा हथियारों को इकट्ठा करना।

प्रश्न 10.
अफ्रिकन व एशियन एकता में पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान को समझाइये।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू ना केवल भारत की विदेश नीति के निर्माता थे बल्कि विश्व राजनीति में भी उनका बड़ा योगदान था। पंडित नेहरू अफ्रिकन देशों व एशियन देशों के बीच मित्रता व सहयोग के सबसे बड़े समर्थक थे जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास भी किये।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1955 में वाड्ग सम्मेलन किया जिसका उद्देश्य अफ्रीका व एशियन देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाना था। गुट निर्पेक्ष आंदोलन को लोकप्रिय बनाने व विकसित केरने का भी यही उद्देश्य था। भारत ने एशिया व अफ्रिकन देशों में सहयोग को बढ़ाने का प्रयास 1947 में ही प्रारम्भ कर दिया था। गाँधीजी ने भी अपना मिशन दक्षिण अफ्रीका में प्रारम्भ किया था।

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प्रश्न 11.
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में प्रमुख बाधक तत्व समझाइये।
उत्तर:
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों का विस्तार व विकास 1954 में हुऐ पंचशील समझौते के आधार पर हुआ भारत प्रथम देश था जिसने 1949 में अस्तित्व में आयी साम्राज्यवादी सरकार को मान्यता दी। परंतु बाद में भारत व चीन के बीच सम्बन्ध बिगड़ गये जिनके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. सीमा विवाद
  2. तिब्बत के सम्बन्ध में दृष्टिकोण
  3. तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा को राजनीतिक शरण देना
  4. चीन के द्वारा पाकिस्तान को सैनिक मदद देना
  5. चीन का कशमीर के सम्बन्ध में दृष्टिकोण
  6. भारत के खिलाफ उत्तर-पूर्वी राज्यों में उग्रवादियों को मदद देना।

प्रश्न 12.
भारत व चीन के बीच युद्ध का भारत की साम्यवादी पार्टी पर क्या प्रभाव?
उत्तर:
भारत पर चीन के द्वारा 1962 में हुए सैनिक आक्रमण का भारत की राजनीतिक स्थिति पर व्यापक प्रभाव पड़ा तत्कालीन रक्षा मंत्री व कुछ सैनिक अधिकारियों को अपने-अपने पदों से हाथ धोना पड़ा। भारत की साम्यवादी पार्टी में 1964 में विभाजन हुआ जिसका एक वर्ग CPI (M) चीन के नजदीक आ गया व दूसरा गुट (CPI) साम्यवादी दल सोवियत संघ के नजदीक गया जो कांग्रेस को समर्थन देता रहा।

प्रश्न 13.
कारगिल घटना को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
1999 के शुरूआती महीनों में भारतीय इलाके की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोड, काकसर व बतालिक पर अपने को मुजाहिद्दिन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान की सेना का इसमें पूरा-पूरा हाथ था जिसको निश्चित कर भारतीय सेना ने आवश्यक कार्यवाही प्रारम्भ की।

इन हालात से दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई जिसको कारगिल की घटना के नाम से जाना जाता है। 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई ने भारत व पाकिस्तान के बीच बने आपसी दिरवास को फिर संकट में डाल दिया पूरे विश्व का इस घटना की ओर ध्यान केन्द्रित हुआ क्योंकि इसने पूरे दक्षिण एशिया के क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया था। यह लड़ाई केवल कारगिल के इलाके तक ही सीमित रही।

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प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति को समझाइये।
उत्तर:
भारत परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल केवल शात्तिपूर्ण उद्देश्य के लिए ही करेगा। यह भारत की विदेश नीति का प्रमुख तत्व था। पंडित जवाहरलाल नेहरू परमाणु ऊर्जा के किसी भी रूप में सैनिक प्रयोग के विरुद्ध थे। परंतु भारत किसी भी ऐसे प्रयास का समर्थन नहीं करेगा जो पक्षपात व्यवहार पर आधारित हो जैसा कि बड़ी परमाणु शक्तियों, अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन व फ्रांस ने एन.पी.टी. की सन्धि के बारे में किया जिसका उद्देश्य विकासशील देशों पर परमाणु परीक्षण के लिए पाबंदी लगाना था जबकि परमाणु हथियार बनाने व रखने का अधिकार इनके पास था। इसी आधार पर भारत ने सी.टी.-बी.टी. पर भी हस्ताक्षर नहीं किये। भारत ने 1998 के विस्फोट करने के बाद दुनिया को अपनी परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में क्षमता दिखा दी है।

प्रश्न 15.
संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की विदेश नीति समझाइये।
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार भी लगभग उन्हीं सिद्धांतों के आधार पर विदेश नीति का संचालन कर रही है जो प्रारम्भ से भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व रहे हैं। यू.पी.ए. सरकार ने उदारीकरण व विश्वीकरण की नीति को बढ़ाया है व परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिका के साथ अधिक सहयोग के लिए समझौता भी किया है। चीन व सोवियत संघ के साथ भी भारत के अच्छे सम्बन्ध हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी देश की विदेश नीति के आन्तरिक व वाह्य मुख्य तत्व समझाइये।
उत्तर:
किसी देश की विदेश नीति उसकी आन्तरिक स्थिति व अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम होते हैं। प्रमुख तत्व निम्न हैं –

  1. ऐतिहासिक व सांस्कृतिक परिवेश
  2. भौगोलिक व सामरिक स्थिति
  3. आर्थिक व वाणिज्य की स्थिति
  4. राष्ट्रीय हित
  5. वैज्ञानिक व तकनीकी विकास
  6. सैनिक क्षमता
  7. विचारधारा
  8. राष्ट्र का नेतृत्व
  9. तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति
  10. शासक दल की प्राथमिकताएँ
  11. लोगों का राष्ट्रीय चरित्र
  12. राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप

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प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? इसमें अध्ययन की आवश्यकता व महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
किसी भी देश का व्यवहार व्यक्ति के व्यवहार जैसा ही होता है जिस प्रकार किसी व्यक्ति के व्यवहार को उसका व्यक्तिगत हित प्रभावित करता है, उसी प्रकार से एक राष्ट्र का व्यवहार भी उसके राष्ट्रीय हित से प्रभावित होता है विश्व में बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीयवाद में एक देश के दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों में विस्तार हुआ है। आपस में आदान-प्रदान व सहयोग के अनेक क्षेत्रों का विकास हुआ है।

जिन बातों को ध्यान में रखकर व जिस नीति के तहत कोई राष्ट्र अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्ध तय करता है उसे उस देश की विदेश नीति कहते हैं। एक देश अन्य देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्धों को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं जिनका स्वरूप लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में अन्तर्राष्ट्रवाद का स्वरूप बढ़ा है आपस में देशों के बीच संघर्ष, मतभेद, व सहयोग को अध्ययन करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण बन गया। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन एक स्वतंत्र विषय बन गया है।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व क्या हैं? इनकी सैंवाधानिक स्थिति समझाइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माता जिस प्रकार से भारत में सामाजिक व आर्थिक विकास के स्वरूप के सम्बन्धों में चिंतित थे व आवश्यक निर्देश संविधान में निश्चित किये उसी प्रकार से उन्होंने भारत की विदेश नीति व अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की भूमिका के बारे में भी दिशा निर्देश दिये जिनका विवरण भारतीय संविधान के चौथे भाग में राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में अनुच्छेद 51 में किया गया है जिसकी मुख्य बातें निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून व अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों के प्रति सम्मान व वचन बद्धता को कायम रखना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करने में सहायता देना।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मतभेदों व झगड़ों को बातचीत के माध्यम से हल करना।

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प्रश्न 4.
गुट निरपेक्षता के सिद्धांत का अर्थ व उदय का इतिहास समझाइये।
उत्तर:
द्वितीय युद्ध के बाद विश्व दो गुटों में बँट गया। एक साम्यवादी गुट व दूसरा पूँजीवादी गुट। साम्यवादी गुट का नेतृत्व सोवियत संघ ने किया व पूँजीवादी गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया। दोनों ही गुट एशिया व अफ्रीका में उपनिवेशवाद टूटने के उपरान्त अस्तित्व में आये नये स्वतंत्र देशे पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे व अपने-अपने सैनिक गठबंधनों में शामिल कर रहे थे जिससे इन स्वतंत्र देशों की स्वतंत्रता को खतरा हो रहा था।

इस स्थिति को देखकर भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री, मिश्र के राष्ट्रपति नासर, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सहारनों व यूगोस्लोविया के राष्ट्रपति मार्शल टिटो ने गुट निरपेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसका उद्देश्य इन नये देशों को इन महाशक्तियों के सैनिक गठबंधनों से दूर रखना था । गुट निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल ना होना। इस सिद्धांत का यह भी उद्देश्य था कि अफ्रीका, एशिया व लेटिन अमेरिकन देशों के बीच में आपसी सहयोग बढ़े। धीरे-धीरे यह विचार एक आंदोलन बन गया। गुट निरपेक्षता का अर्थ यह भी है कि प्रत्येक देश स्वतंत्र नीति अपनाये व मुद्दों की योग्यता के आधार पर निर्णय ले।

प्रश्न 5.
गुट निर्पेक्ष आंदोलन का विकास व महत्व समझाइये।
उत्तर:
गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का उदय व विकास द्वितीय युद्ध के बाद उत्पन्न शीत युद्ध के सन्दर्भ में हुआ। द्वितीय युद्ध की समाप्ति के बाद तृतीय युद्ध तो नहीं हुआ परंतु विश्व के अनेक क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थितियाँ पैदा होने से तनाव जारी रहा। इस तनाव पूर्ण स्थिति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शीत युद्ध का नाम दिया गया। इसका मुख्य कारण उस समय की दो महान शक्तियों सोवियत संघ व अमेरिका के बीच लगातार तनाव रहा। कोरिया संकट व हँगरी संकट अरब-इजराइल युद्ध, पाकिस्तान व भारत के बीच कशमीर विवाद ऐसे विषय रहे जिन पर अमेरिका व सोवियत संघ आमने-सामने दिखाई भी दिए जिससे युद्ध तो नहीं हुआ परंतु युद्ध जैसी परिस्थितियाँ व्यापक रही।

दोनों ही महाशक्तियों नये स्वतंत्र देशों पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिससे इनकी स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो रहा था। इस प्रभाव को नियमित करने व एशिया व अफ्रीका के देशों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए गुटरिपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित गुट निर्पेक्ष आंदोलन का विकास हुआ। इसकी आवश्यकता व महत्त्व को समझते व स्वीकार करते हुए इसका विकास हुआ। प्रारम्भ में इसकी सदस्य संख्या 25 थी, परंतु 2004 तक इसकी संख्या 103 हो गयी जो इसकी आवश्यकता व महत्त्व को दर्शाता है इसका प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 में हुआ था।

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प्रश्न 6.
आज के विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासांगिकता समझाइये।
उत्तर:
गुटनिर्पेक्ष आंदोलन अपने अस्तित्व से आज तक विश्व राजनीति में विशेषकर तृतीय विश्व के देशों के राजनीतिक व आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है आज विश्व के लगभग 200 देशों में से 103 सदस्य देश गुटनिर्पेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं। जिस समय गुट निर्पेक्ष आंदोलन 1961 में अस्तित्व में आया उस समय विश्व दो गुटों में बँटा था। एक सोवियत संघ का गुट व दूसरा अमेरिका का गुट। दोनों गुटों के बीच शीतयुद्ध का दौर था।

अब क्योंकि विश्व में, सोवियत संघ टूटने से इस गुट का प्रभाव समाप्त हो गया है व विश्व की रचना का स्वरूप ही बदल गया है अत: इस प्रकार के प्रश्न उठने लगे हैं कि क्या अब गुटनिर्पेक्ष आंदोलन के अस्तित्व की कोई प्रासांगिकता है? इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि भले ही विश्व रचना का स्वरूप बदल गया हो परंतु गुटनिर्पेक्ष आंदोलन की प्रासांगिकता आज भी है क्योंकि इसका उद्देश्य तृतीय विश्व में देशों के लिए स्वतंत्रता है।

प्रश्न 7.
पंडित जवाहरलाल नेहरू की भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में भूमिका समझाइये।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता कहना न्यायोचित है क्योंकि वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि भारत के प्रथम विदेशमंत्री भी थे कांग्रेस के प्रमुख नेता थे व चमत्कारिक व्यक्ति के धनी थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू को अन्तर्राष्ट्रीय विषयों की अच्छी समझ थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू अफ्रोएशियन एकता व इन देशों के आर्थिक विकास के बहुत बड़े समर्थक थे। सोवियत संघ की नियोजित अर्थव्यवस्था से वे बहुत प्रभावित थे। चीन व भारत के आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ आधार देने के लिए उन्होंने 1954 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ पंचशील का समझौता किया।

पंचशील का समझौता ना केवल भारत व चीन के बीच सम्बन्धों का आधार था बल्कि विश्व के देशों में आपसी सम्बन्धों को मजबूत आधार देने के लिए एक मजबूत सेतू था। दुनिया के गरीब देशों के आर्थिक विकास व उनकी स्वतंत्रता को निश्चित करने के लिए पंडित नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रतिपादन व इसके विकास में अपना विशेष योगदान दिया। पंडित नेहरू का न केवल भारत की विदेश नीति के निर्माण में योगदान था, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय के विकास में भी पंडित नेहरू का अथाह योगदान रहा।

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प्रश्न 8.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख तत्व समझाइये जिन्होंने इसके निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की विचारधारा, प्राथमिकता व दृष्टिकोणों की अमिट छाप है। जिन प्रमुख तत्वों ने भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अहम भूमिका अदा की हैं वे निम्न हैं –

  1. गुट निरपेक्षता
  2. पंचशील
  3. संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करना
  4. अन्तर्राष्ट्रवाद का विकास करना
  5. सैनिक गुटों का विरोध करना
  6. निशस्त्रीकरण में सहयोग करना
  7. रंग भेद की नीति का विरोध करना
  8. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का प्रजातंत्रीयकरण करना
  9. पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध कायम करना
  10. मानव अधिकारों की रक्षा करना

प्रश्न 9.
चीन भारत का दोस्त भी रहा व दुश्मन भी। समझाइये।
उत्तर:
चीन के साथ भारत के पुराने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत की आजादी के बाद से भी भात व चीन के अच्छे सम्बन्ध रहे हैं दोनों देशों में सांस्कृतिक कृषि व व्यापार के क्षेत्रों में आदान-प्रदान होता रहा है। चीन में साम्यवादी दल की सरकार 1949 में अस्तित्व में आयी। भारत सबसे पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी।

1954 में दोनों देशों के बीच पंचशील का समझौता हुआ जिसके आधार पर दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का विस्तार हुआ। परंतु 1959 के बाद तिब्बत पर भारत के दृष्टिकोण को लेकर व भारत के द्वारा तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को भारत में शरण देने के कारण दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में तनाव पैदा हो या जो पहले सीमा विवाद में बदला व बाद में 1962 में सैनिक युद्ध में बदल गया।

चीन ने भारत पर आक्रमण कर भारत के एक बड़े क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया व भारत के सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश तक के राज्यों पर अपना दावा कायम करने लगा। हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा देने वाला चीन भारत के हर क्षेत्र में विरोधी बन गया । पाकिस्तान के साथ 1965 में होने वाले युद्ध में भी चीन ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सैनिक मदद दी व कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान को राजनीतिक व कूटनीतिक मदद दी। यदि इस समय भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में सुधार है फिर भी कड़वाहट व तनाव का एक लम्बा अध्याय भी जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 10.
भारत व चीन के बीच तिब्बत के प्रश्न पर उत्पन्न विवाद को समझाइये।
उत्तर:
तिब्बत भारत व चीन के बीच मध्य एशिया में एक मशहूर पठार है। ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत व चीन के बीच विवाद का एक बड़ा विषय रहा है। तिब्बत का इतिहास इसके स्वतंत्र रूप से रहने की इच्छा के संघर्ष का इतिहास है। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के बहुमत के लोगों ने चीन के नियंत्रण का विरोध किया।

भारत व चीन के पंचशील के समझौते के समय चीन के प्रधानमंत्री ने इसे भारत की स्वीकृति समझा अत: जब भारत के सम्मुख तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा ने तिब्बत के लोगों के मत को रखा तब नेहरू ने तिब्बत के लोगों के प्रति अपना समर्थन दिया जिस पर चीन ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। भारत द्वारा दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने के कारण भारत व चीन के बीच सम्बन्ध और भी अधिक तनावपूर्ण हो गये।

प्रश्न 11.
भारत के विभाजन के मुख्य कारणों को समझाइये।
उत्तर:
भारतीय समाज को धर्म के आधार पर बाँटने का कार्य अंग्रेजों ने बहुत पहले ही कर दिया। मुस्लिम लीग का गठन 1906 में हुआ जो प्रारम्भ में तो उदारवादी राष्ट्रवादी पार्टी थी परंतु बाद में वह साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीति करने लगी। मोहम्मद अली जिन्ना के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन मुस्लिम लीग ने ही किया। 1940 में मुस्लिम लीग ने भारत के विभाजन पर अलग पाकिस्तान बनने की माँग औपचारिक रूप से रख दी। मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को अपने दो राष्ट्र के सिद्धांत पर उचित ठहराया। इस प्रकार से भारत का विभाजन हुआ। इसके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. अंग्रेजों की साम्प्रदायिक नीतियाँ
  2. अंग्रेजों की फूट डालो व राज्य करो की नीति
  3. अंग्रेजों का सामाजिक व आर्थिक पिछड़ापन
  4. मोहम्मद अली जिन्ना की हठधर्मी
  5. कांग्रेस की कुछ गलत नीतियाँ
  6. जिन्ना की सीधी कार्यवाही का निर्णय
  7. हिन्दू मुस्लिम झगड़े
  8. हिन्दू उग्रवाद

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प्रश्न 12.
भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध व तनाव के प्रमुख विषय क्या हैं?
उत्तर:
अगस्त 1947 में भारत का विभाजन हुआ जिसके कारण भारत व पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। यह विभाजन व्यापक हिंसात्मक माहौल में हुआ जिसने अनेक प्रश्न पीछे छोड़ दिये जो आज भी भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध व तनाव का कारण बने हुए हैं। 1947 से अब तक तीन युद्ध भारत व पाकिस्तान के बीच हो चुके हैं ये विषय निम्न हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. कशमीर की समस्या
  3. उग्रवादियों का भारत में प्रवेश व हिंसात्मक कार्यवाही करना
  4. भारत में पाकिस्तान उग्रवादियों का हस्तक्षेप
  5. परमाणु परीक्षण
  6. पाकिस्तान के द्वारा जरूरत से ज्यादा सैनिक सामग्री इकट्ठा करना
  7. भारत का विश्व शक्ति के रूप में उभरना
  8. कशमीर के प्रश्न का अन्तर्राष्ट्रीयकरण पर नियंत्रण
  9. सीमा क्षेत्र में हस्तक्षेप करना
  10. कारगिल घटना

प्रश्न 13.
भारत व पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के प्रमुख कारण व परिणाम समझाइये।
उत्तर:
1970 के बाद पाकिस्तान के पूर्वी भाग में पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ जनादेश आया व अपने ऊपर दोयम नागरिक की तरह व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने लगे। इस पर पूर्वी पाकिस्तान की आवामी पार्टी के नेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया व विरोध करने वाले नागरिकों पर अत्याचार किये गये। वहाँ पर एक प्रकार से आन्तरिक कलह की स्थिति पैदा हो गई।

लाखों की संख्या में बंगला देशी शरणार्थी भारत की सीमा में घुस आये जिनके कारण भारत पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ा इन परिस्थितियों में भारत बांगलादेश में मानवीय आधार पर हस्तक्षेप किया जिसके कारण पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया जो 16 दिसम्बर 1971 तक चला। 16 दिसम्बर 1971 को बांगलादेश एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया। पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया। 1972 में शिमला में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री व श्रीमति इंदिरा गाँधी के बीच समझौता हुआ। शिमला समझौते को भारत व पाकिस्तान के बीच भावी सम्बधों का आधार माना गया।

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प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति को समझाइये।
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्राथमिकता भारत के आर्थिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक विकास की थी अत: वे परमाणु ऊर्जा का प्रयोग केवल औद्योगिक विकास के लिए ही करना चाहते थे व परमाणु ऊर्जा के किसी भी रूप में सैनिक प्रयोग के विरुद्ध थे अतः उन्होंने कभी भी परमाणु परीक्षण नहीं किया व महाशक्तियों पर परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए जोर देते रहे। परंतु 1971 के युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने नेहरू की इस नीति में परिवर्तन किया व 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया। जिसे भारत ने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया।

भारत ने महाशक्तियों के द्वारा बनाई गई 1968 की परमाणु अनुसार सन्धि का विरोध किया क्योंकि यह सन्धि पक्षपात पर आधारित थी। भारत ने 1995 में बनी व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध सन्धि का भी इस आधार पर विरोध किया व हस्ताक्षर नहीं किये। 1998 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने पुनः परमाणु परीक्षण किया व अपनी परमाणु हथियार रखने की क्षमता को दर्शाया। भारत की इस समय इस सम्बन्ध में नीति यह है कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग शांति के लिए करेगा परंतु अपने विकल्प खुले भी रखेगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत और पाकिस्तान व भारत के चीन के बीच सम्बन्धों में मुख्य बाधक तत्वों अर्थात् विषयों को समझाइये।
उत्तर:
भारत व पाकिस्तान दो अलग-अलग राज्य के रूप में हिंसात्मक वातावरण में अस्तित्व में आये। दोनों राज्यों के बीच लगातार तनाव पूर्ण सम्बन्ध रहे हैं व 1947 से 1971 तक तीन युद्ध व 2000 में कारगिल घटना भी हो चुकी है भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव के मुख्य कारण निम्न विषय हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. साम्प्रदायिकता का विरासत
  3. उग्रवादियों की पाकिस्तान में ट्रेनिंग व उनका भारत में हस्तक्षेप करना
  4. जम्मू व कशमीर की समस्या
  5. पाकिस्तान के द्वारा सैनिक हथियार इकट्ठे करना व उनका भारत के खिलाफ प्रयोग करना
  6. कशमीर के मुद्दे का पाकिस्तान के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय करण करना
  7. परमाणु परीक्षण करना
  8. अक्ष्यचिन का विषय

चीन व भारत के सम्बन्धों में तनाव के विषय:
प्रारम्भ में भारत व चीन के बीच अच्छे सम्बन्ध रहे। 1949 में भारत ने सबसे पहले चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता दी। परंतु 1959 के बाद इन के रिश्तों में तनाव आ गया जबकि 1954 में भारत व चीन के बीच पंचशील का समझौता हुआ व दोनों देशों के बीच हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे लगाये गये। तिब्बत के विषय पर दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में तनाव पैदा हो गया जो 1962 में युद्ध में बदल गया जिसमें भारत का एक बड़ा क्षेत्र उसने अपने कब्जे में ले लिया यद्यपि भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में सुधार तो हुआ परंतु निम्न विषय तनाव के कारण आज भी बने हुए हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. तिब्बत का विषय
  3. दलाईलामा को भारत द्वारा राजनीतिक शरण देना
  4. कशमीर के मुद्दे पर चीन का पाकिस्तान को समर्थन
  5. चीन द्वारा पाकिस्तान को सैनिक सामग्री देना
  6. उत्तर पूर्वी राज्यों में चीन के द्वारा उग्रवादियों को समर्थन देना।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्न में से सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का निर्माता किसे कहा जाता है?
(अ) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(ब) कृष्णा मेनन
(स) सरदार पटेल
(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(अ) पंडित जवाहरलाल नेहरू

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प्रश्न 2.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ पर हुआ?
(अ) वैलग्रेड
(ब) वाडूंगा
(स) काहिरा
(द) देहली
उत्तर:
(अ) वैलग्रेड

प्रश्न 3.
पंचशील का समझौता किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1955
(स) 1961
(द) 1965
उत्तर:
(अ) 1954

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प्रश्न 4.
वाडूंगा सम्मेलन किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1961
(स) 1955
(द) 1965
उत्तर:
(स) 1955

II. मिलान वाले प्रश्न

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 4 भारत के विदेश संबंध Part - 2 img 2
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (घ)
(4) – (ब)
(5) – (अ)