Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. बाजार में क्रेताओं व विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है जो कीमत स्वीकारक होते हैं।
  2. सभी उत्पादक सामंगी वस्तु का विक्रय करते हैं।
  3. क्रेताओं एवं विक्रेताओं को एक निश्चित समय अवधि वस्तु उपलब्धता एवं कीमत के बारे में पूर्ण ज्ञान होता है।
  4. बाजार में फर्म का प्रवेश एवं बाह्य गमन स्वतंत्र होता है।

पूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं के प्रभाव:

1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होने के कारण कोई भी विक्रेता वस्तु की पूर्ति को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी प्रकार एक क्रेता वस्तु की माँग को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि बाजार आपूर्ति में एक फर्म की आपूर्ति नगण्य होती है और बाजार माँग की तुलना में एक व्यक्ति की माँग नगण्य होती है। विक्रेताओं-क्रेताओं की विशाल संख्या, समांगी वस्तु एवं बाजार के बारे में पूर्ण जानकारी के कारण पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत एक समान होती है और व्यक्तिगत माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है।

2. फर्म का स्वतंत्र प्रवेश एक बाह्य गमन यह दर्शाता है कि एक फर्म केवल लाभकारी उत्पाद स्तर तक ही उत्पादन करती है। ऐसा न होने पर फर्म बाजार से बाहर चली जायेगी और यदि वर्तमान असामान्य लाभ अर्जित करती है तो नई फर्म बाजार में प्रवेश कर सकती है।

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प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पादित मात्रा को विक्रय करके एक फर्म आगम प्राप्त करती है। उत्पाद की मात्रा एवं प्रति इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद की मात्रा × प्रति इकाई कीमत
TR = Y × P
जहाँ TR – कुल आगम
Y – उत्पादक की मात्रा एवं
P – प्रति इकाई वस्तु की कीमत
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है वह वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। अतः प्रतियोगी फार्म वस्तु की कीमत में परिवर्तन के द्वारा कुल आगम को प्रभावित नहीं कर सकती है वह केवल उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के माध्यम से ही कुल आगम को प्रभावित कर सकती है।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
उत्पाद-कीमत तल में विभिन्न उत्पाद मात्राओं के लिए खींची गई रेखा को कीमत रेखा कहते हैं। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म की कीमत रेखा एवं माँग वक्र समान रेखाएँ होती हैं।

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प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरती है?
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल आगम शून्य होता है। कुल आगम मूल बिन्दु से आरम्भ होता है। जैसे-जैसे उत्पाद में वृद्धि होती है कुल आगम में भी वृद्धि होती है। अतः आगम वक्र मूल बिन्दु से धनात्मक ढाल वाली सीधी रेखा होती है क्योंकि उत्पाद के सभी स्तरों पर वस्तु की कीमत एक समान रहती है।
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प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकार फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद के कुल आगम को औसत आगम कहते हैं।
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AR = \(\frac{TR}{y}\) = \(\frac{py}{p}\) (∵TR = py)
अतः औसत आगम प्रति इकाई कीमत के बराबर है।

प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में वृद्धि को सीमांत आगम कहते हैं।
सीमांत आगम = y1 इकाइयों से प्राप्त कुल आगम – (y1 – 1) इकाइयों से प्राप्त कुल आगम
MR = TRy1 – TRy1-1-1 अथवा MR = p × y1 – p(y1 – 1)
अथवा MR = py1 – Py1 + p
अथवा MR = p
इस प्रकार कीमत स्वीकारक फर्म का सीमान्त आगम प्रति इकाई कीमत के समान होता है।

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
निश्चित विक्रय अवधि में कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं।
लाभ = कुल आगम – कुल लागत
यदि उत्पादन स्तर धनात्मक है तो उस उत्पादन स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त है –

  1. सीमांत आगम = सीमांत लागत।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धा बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी धनात्मक स्तर पर सीमांत आगम जो एक फर्म प्रतियोगी लाभ कमाने वाली फर्म के लिए सीमांत लागत के बराबर नहीं होता तो या तो MR का मूल्य MC के मूल्य से ज्यादा होता है या कम।

1. यदि MR का मान MC के मान से ज्यादा है:
इसका अभिप्राय है कि उत्पाद की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से फर्म इस इकाई की लागत से ज्यादा आगम अर्जित कर रही हैं इसे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y0 पर MR, MC से अधिक है। उत्पादन में थोड़ी अधिक मात्रा में वृद्धि करने पर MR, MC से ज्यादा रहता है।

अत: उत्पादन स्तर y0 से y, तक बढ़ाने पर लाभ में बढ़ोतरी होती है। अत: फर्म उत्पादन स्तर y2 से दायीं ओर जब तक उत्पादन बढ़ाती है जब तक MR, MC के समान नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, जब तक MR, MC से ज्यादा रहता है। फर्म उत्पादन स्तर बढ़ाकर लाभ में वृद्धि कर सकती है। अतः MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं होती है।

2. यदि MR का मान MC के मान से कम है:
इसका अभिप्राय उत्पादन की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से, लागत की तुलना में कम आगम प्राप्त करती है। इस स्थिति को चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y3 पर MR का मान MC से कम है। अर्थात् y3 उत्पादन स्तर पर फर्म को हानि उठानी पड़ रही है।

अत: 9. उत्पादन स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम नहीं है। फर्म उत्पादन स्तर y3 से बायीं ओर उत्पादन स्तर को तब तक घटाती है जब तक MR व MC दोनों समान नहीं हो जाते हैं। अतः लाभ अधिकतम करने वाली फर्म का धनात्मक उत्पादन स्तर अधिकतम लाभ का नहीं हो सकता है यदि कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है।
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प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म उत्पादन के उस स्तर तक उत्पादन करती है जिस पर उसका लाभ अधिकतम होता है। यदि उत्पादन किसी धनात्मक स्तर पर अधिकतम लाभ हो रहा है तो निम्नलिखित शर्ते पूरी होनी चाहिए –

  1. सीमांत आगम (MR) = सीमांत लागत (MC)।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो रही हो।

यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की सीमांत लागत के समान है और MC घट रही है:
इसे चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन के y1, स्तर पर MC व वस्तु की कीमत समान है तथा MC घट रही है। उत्पादन का स्तर अधिकतम लाभ का स्तर नहीं हो सकता है। उत्पादन स्तर में बढ़ोतरी करने पर कीमत या MR, MC से ज्यादा हो जाती है। अर्थात् y1, स्तर से उत्पादन बढ़ाकर फर्म अपने लाभ को बढ़ा सकती है। इस प्रकार यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की कीमत के समान है और MC घट रही है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं है।
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प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकता है, यदि बाजार में कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत AVC कम किसी भी कीमत स्तर पर उत्पादन का धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं कर सकती है। इसे निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है –
उत्पादन के Y1, स्तर पर –
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अतः हानि का मान TFC से ज्यादा है जबकि उत्पादन के शून्य स्तर पर हानि TFC के समान होती है। अतः उत्पादन नहीं करके फर्म अपनी हानि को घटा रही है। अतः न्यूनतम AVC से कम कीमत पर फर्म उत्पादन का कोई स्तर नहीं चुनना पसंद करती है।
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प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाजार सीमांत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उन सभी कीमत स्तरों जो TVC की भरपाई कर सकते हैं, उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करती है। इस बात को निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। माना Y1, उत्पादन का ऐसा स्तर है जो दिए गए स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त को पूरा करता है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत लागत से कम है। उत्पादन के Y1, स्तर पर –
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अत: उत्पादन स्तर Y1, पर शून्य उत्पादन स्तर से कम हानि है जब वस्तु की कीमत SAC से कम परंतु AVC से ज्यादा होती है। अर्थात् एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यदि कीमत, न्यूनतम AVC से ज्यादा होता है तो फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर चयन करना पसंद करती है क्योंकि इससे हानि में कमी आती है।
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प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
किसी दी गई कीमत पर अधिकतम लाभ कमाने वाली फर्म अल्पकाल में उत्पाद की जितनी मात्रा उत्पादन के लिए चयन करती उसे आपूर्ति वक्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आपूर्ति विभिन्न कीमतों पर अधिकतम लाभ के विभिनन उत्पादन स्तरों को दर्शाती है। किसी भी कीमत जो न्यूनतम AVC के समान या अधिक हो फर्म कीमत को संगत उत्पादन की SMC के समान करेगी। ऐसी सभी कीमतों के लिए न्यूनतम AVC से व उससे ऊपर SMC वक्र संगत उत्पादन स्तरों के अधिकतम लाभ स्तरों के संयोजनों को प्रदान करते हैं। एक फर्म का न्यूनतम AVC से तथा उससे ऊपर SMC का ऊपर जाता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है।
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गहरा रेखाखण्ड अल्पकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

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प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में आवश्यकतानुसार समायोजन कर सकती है। अतः दीर्घकाल में स्थिर लागत उत्पन्न नहीं होती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर, फर्म की लागत भी शून्य होती है। अतः शून्य उत्पादन स्तर पर न लाभ न हानि की स्थिति होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के उन स्तरों का चयन करती जिससे उसकी कुल लागत को पूरा किया जा सके। दूसरे शब्दों में, फर्म उत्पादन के उन सभी स्तरों का चयन करती है जिनके लिए कीमतें न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक होती है। न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक सभी कीमतों पर LRMC का ऊपर उठता हुआ भाग दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।
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चित्र में गहरा रेखाखण्ड (LRMC) दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन तकनीक में प्रगति के माध्यम से एक फर्म उत्पादन साधनों की समान मात्रा से अधिक उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में, प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन के समान स्तर को, साधनों की कम इकाइयों के प्रयोग से भी उत्पन्न किया जा सकता है। प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से सीमान्त लागत घट जाती है। अत: SMC वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म उन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है। आवश्यक रूप से, न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः फर्म का आपूर्ति वक्र भी नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म प्रोन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है।

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प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने में एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
प्रति इकाई बिक्री पर सरकार द्वारा लगाए गए शुल्क को इकाई शुल्क कहते हैं। इकाई उत्पादन शुल्क आरोपित करने पर फर्म की सीमांत लागत बढ़ जाती है। इससे सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र को दर्शाता है। अतः कर लगाने पर फर्म का आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। इससे सीमांत लागत बढ़ जाती है। सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः साधनों आगतों की कीमत/लागत बढ़ने से आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 17.
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर बाजार आपूर्ति वक्र में खिसकाव होता है। फर्मों की संख्या बढ़ोतरी होने पर आपूर्ति में वृद्धि होती है अतः बाजार आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसके विपरीत फर्मों की संख्या में कमी होने से बाजार आपूर्ति में कमी आ जाती है। इससे आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

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प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
कीमत परिवर्तन के प्रति वस्तु की आपूर्ति में प्रतिक्रियात्मक परिवर्तन की माप को पूर्ति की लोच कहते हैं।
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प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमान्त संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए । वस्तु की प्रति इकाई बाजार कीमत 10 रुपये है।
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उत्तर:
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प्रति इकाई उत्पाद विक्रय के लिए कीमत 10 रुपये/इकाई है अतः सीमांत आगम MR व औसत आगम AR दोनों कीमत 10 रुपये प्रति इकाई के समान है। जैसे-जैसे फर्म बिक्री का स्तर बढ़ाती है कुल आगत TR एक समान दर से बढ़ती है।

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प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाता जाता है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
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उत्तर:
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प्रत्येक विक्रय स्तर पर वस्तु की कीमत एक समान 5 रुपये प्रति इकाई है।

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रुपये दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
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उत्तर:
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अधिकतम लाभ का उत्पादन स्तर 7 इकाइयाँ हैं क्योंकि उत्पादन स्तर 8 पर लाभ का स्तर ऋणात्मक है। उत्पाद स्तर 7 पर कुल लागत वक्र नीचे से कुल आगम वक्र को काटेगा।

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प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है: SS1 कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2, में फर्म-2 की पूर्ति साराणि है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
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उत्तर:
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प्रश्न 23.
एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 , तथा कालम SS2, क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 21

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प्रश्न 24.
एक बाजार में तीन समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 22
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 23

प्रश्न 25.
10 रुपये प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपये है। बाजार कीमत बढ़कर 15 रु. हो जाती है और फर्म को 150 रु. की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
उत्तर:
कीमत स्तर 10 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 50 रु.
पूत का गई इकाइया (y) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
कीमत स्तर 15 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 150 रु.
पूर्ति की/बेची गई इकाइयाँ (y1) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
कीमत में परिवर्तन ∆p1 = p1 – p0 = 15 – 10 = 5 रु.
मात्रा में परिवर्तन ∆y = y1 – y = 10 – 5 = 5 इकाइयों
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\) = \(\frac{5}{5}\) × \(\frac{10}{5}\) = 2
पूर्ति की लोच = 2

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प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु. से बदलकर 20 रु. हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरम्भिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर:
p = 5 रु.; P1 = 20 रु.
∆p = P1 – p = 20 – 5 = 15 रु;
∆y = 15 इकाइयाँ (दी गई)
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 0.5 = \(\frac{15}{15}\) × \(\frac{5}{y}\) अथवा 0.5 × y = 5
y = \(\frac{5}{0.5}\) = \(\frac{50}{5}\) = 10
y1 = y + ∆y [P1 = 15 पर आपूर्ति होगी क्योंकि पूर्ति में उसी दिशा में परिवर्तन होगा जिस दिशा में कीमत बदलती है]
= 10 + 15
= 25
आरम्भिक उत्पादन स्तर = 10 इकाइयाँ, अंतिम उत्पादन स्तर = 25 इकाइयाँ।

प्रश्न 27.
10 रुपये बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करता है। बाजार कीमत बढ़कर 30 रुपये हो जाती है। फर्म की पूर्ति कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर:
p = 10; y = 4 इकाइयाँ, P1 = 30 रुपये, y1 = ?, es = 1.25
∆p = P1 – p = 30 – 10 = 20 रुपये,
∆y = y1 – y = y1 – 4 इकाइयाँ
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) × \(\frac{10}{4}\)
अथवा 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) अथवा y1 – 4 = 1.25 × 8
अथवा y1 – 4 = 10.00 अथवा y1 = 10 + 4 = 14 इकाइयाँ
नई कीमत पर फर्म 14 इकाइयों की पूर्ति करेगी।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्थिर लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह उत्पादन लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होती है स्थिर लागत कहलाती है। जैसे इमारत का किराया, स्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

प्रश्न 2.
परिवर्तनशील लागत का अर्थ उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है। जैसे कच्चे माल का मूल्य, अस्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

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प्रश्न 3.
परिवर्तनशील औसत लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद की परिवर्तनशील लागत को औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।

प्रश्न 4.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन आगतों के स्वामी उन्हें पूर्ति करने में जो त्याग, दर्द, कष्ट आदि उठाते हैं, वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 5.
लागत फलन को परिभाषित करो।
उत्तर:
उत्पादन की निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर जो लागत आती है उसे लागत फलन कहते हैं। अथवा उत्पादन मात्रा एवं लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं।

प्रश्न 6.
सीमान्त लागत की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल लागत या कुल परिवर्तनशील लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमांत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 7.
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति बताओ।
उत्तर:
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति अंग्रेजी अक्षर U जैसी होती है।

प्रश्न 8.
औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र की प्रकृति लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC) हमेशा ऋणात्मक ढाल का वक्र होता है।

प्रश्न 9.
बाजार का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बाजार शब्द से अभिप्राय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है जिसमें क्रेता एवं विक्रेता फैले होते हैं और वस्तु विनिमय का व्यापार करते हैं।

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प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति जिसमें बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता समांगी वस्तु का विनिमय करते हैं।

प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत स्वीकारक कौन होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्म/उत्पादक कीमत स्वीकारक होती है।

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र किस प्रकृति का होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र पूर्णतः लोचदार होता है। अथवा व्यक्तिगत फर्म का प्रतियोगी बाजार में क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।

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प्रश्न 13.
कुल आगम का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कुल उत्पाद तथा इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद मात्रा × प्रति इकाई कीमत

प्रश्न 14.
लाभ की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, लागत के ऊपर अर्जित कुछ आगम को लाभ कहते हैं।

प्रश्न 15.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत आगम सदैव कीमत के बराबर होती है।

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प्रश्न 16.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमान्त आगम एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत आगम एवं कीमत दोनों एक समान होते हैं।

प्रश्न 17.
आपूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
निश्चित कीमत व निश्चित समय पर कोई फर्म किसी वस्तु की जितनी मात्रा में बिक्री करती है उसे आपूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 18.
आपूर्ति एवं स्टॉक में अंतर लिखो।
उत्तर:
किसी निश्चित समय बिन्दु पर एक फर्म के पास उपलब्ध उत्पाद की मात्रा को स्टॉक कहते हैं। एक निश्चित समय में दी गई कीमत पर उत्पादक वस्तु की जितनी मात्रा बेचने को तैयार होता है उसे आपूर्ति कहते हैं।

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प्रश्न 19.
व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर एक फर्म द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है, व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची कहलाती है।

प्रश्न 20.
बाजार पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर बाजार में उपस्थित सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई उत्पाद की मात्राओं के योग को दर्शाती है उसे बाजार पूर्ति अनुसूची कहते हैं।

प्रश्न 21.
पूर्ति में वृद्धि का अर्थ लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत के अलावा अन्य कारकों के कारण वृद्धि होती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।

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प्रश्न 22.
सीमान्त आगम की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में जितनी वृद्धि होती है उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 23.
समविच्छेद बिन्दु क्या होता है?
उत्तर:
वह बिन्दु जिस पर वस्तु की कीमत औसत लागत के समान होती है उसे समविच्छेद बिन्दु कहते हैं। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 24.
सरकार द्वारा किसी वस्तु की बिक्री पर इकाई उत्पादन शुल्क लगाने पर उसकी पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
उत्पादन शुल्क लगाने पर फर्म का पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

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प्रश्न 25.
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि फर्मों की संख्या में वृद्धि होगी तो पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा। यदि फर्मों की संख्या में कमी होगी तो पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 26.
साधन आगतों की कीमत कम होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
साधन आगतों की कीमत घटने पर आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 27.
यदि दो पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो इनमें से किस वक्र की पूर्ति लोच अधिक होगी?
उत्तर:
वह पूर्ति वक्र जो दूसरे वक्र की तुलना में ज्यादा चपटा होगा उसकी पूर्ति लोच ज्यादा होती है।

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प्रश्न 28.
पूर्ति में कमी की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत में अलावा अन्य कारकों के कारण कमी आती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं।

प्रश्न 29.
पूर्ति में संकुचन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा घटती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 30.
पूर्ति में विस्तार का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में बढ़ोतरी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा बढ़ती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं।

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प्रश्न 31.
एक फर्म के आपूर्ति वक्र पर तकनीकी प्रगति का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
तकनीकी प्रगति से एक फर्म का आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लाभ को ज्यामितीय विधि द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कीमत स्तर P1 एवं उत्पादन स्तर y1 पर –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 24

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प्रश्न 2.
यदि MR का मान MC से अधिक हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी विशिष्ट स्तर पर फर्म की सीमांत आगम, सीमांत लागत से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होता है कि उस उत्पादन इकाई के उत्पादन से फर्म को उस इकाई की लागत से अधिक आगम प्राप्त हो रहा है। अर्थात् उस इकाई का उत्पादन लाभकारी है। उत्पादन में थोड़ी अधिक वृद्धि करने पर भी MR, MC से अधिक रहता है।

अर्थात् उत्पादन की कुछ और इकाइयों का उत्पादन बढ़ाकर फर्म लाभ को बढ़ा सकती है। अतः जब MR, MC से अधिक होता है तो फर्म उत्पादन स्तर को बढ़ाने का प्रयास करती है और जब तक MR व MC समान नहीं होते उसके लाभ में भी बढ़ोतरी होती रहती है। इसलिए MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 25
उत्पादन स्तर y0 पर MR > MC लाभ
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR > MC लाभ में बढ़ोतरी
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

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प्रश्न 3.
यदि MR का मान MC से कम हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि किसी विशिष्ट उत्पादन स्तर पर MR, MC से कम होता है, इसका मतलब यह होता है कि उस इकाई का उत्पादन करने पर फर्म को उसकी लागत से कम आगम प्राप्त होता है। अतः उस इकाई. का उत्पादन फर्म के लिए हानिप्रद है। उत्पादन स्तर में थोड़ी कमी से भी MR, MC से कम रहता है अर्थात् फर्म को हानि उठानी पड़ती है लेकिन हानि के स्तर में उत्पादन स्तर में वृद्धि करने पर कमी आती है।

फर्म उत्पादन स्तर को कम करती है, जब तक MR, MC से कम होती है और इस प्रकार उत्पादन स्तर कम करके कुल हानि में भी कमी आती है। उत्पादन स्तर घटाने का सिलसिला उस उत्पादन स्तर तक रहता है जब तक MR व MC समान नहीं होते हैं। अतः यदि MR का मान MC से कम होता है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं हो सकती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 26
चित्र में उत्पादन स्तर y0 पर MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

प्रश्न 4.
दीर्घकालीन समता बिन्दु की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन बढ़ाना उस स्तर तक जारी रखती है जब तक कीमत, न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत (LARC) से अधिक रहती है। जब कीमत न्यूनतम LRAC के समान हो जाती है तो फर्म उत्पादन स्तर न बढ़ाने का निर्णय कर सकती है। यदि कीमत, न्यूनतम LRAC से कम रह जाती है तो फर्म उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से कुल लागत को पूरा नहीं कर सकती है।

अत: फर्म उत्पादन के उस स्तर पर उत्पादन बढ़ाना बंद करती है जहाँ (Min.) LRAC कीमत के बराबर होती है। अतः आपूर्ति वक्र नीचे चला जाता है। अंतिम कीमत उत्पादन स्तर संयोजन वहाँ प्राप्त होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र को नीचे से काटता है। इस बिन्दु पर कीमत, न्यूनतम LRAC दोनों समान हो जाते हैं इस बिन्दु से उत्पादन स्तर घटाने पर कुल TR, कुल लागत से कम हो जाती है। आगे और फर्म को हानि उठानी पड़ती है। अत: फर्म को उस बिन्दु से आगे उत्पादन बढ़ाना पसंद नहीं जहाँ LRAC, कीमत के समान हो जाती है उससे आगे उत्पाद बढ़ाने पर फर्म को उठानी पड़ती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 27

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प्रश्न 5.
क्या होता है जब कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक परंतु न्यूनतम औसत लागत से कम होती है?
उत्तर:
माना उत्पादन स्तर y निम्नलिखित दो शर्तों को पूरा करता है –

  1. कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है तथा
  2. कीमत, अल्पकालीन न्यूनतम औसत लागत से कम है।

कीमत का मान न्यूनतम SAC से कम है अर्थात फर्म को हानि पड़ेगी। कीमत का मान न्यूनतम AVC से ज्यादा है इसका अभिप्राय है TR का मान TVC से अधिक होगा। इस स्थिति में फर्म उत्पाद को बेचकर सम्पूर्ण लागत की भरपाई नहीं कर सकती है। फर्म TVC एवं TFC का कुछ भाग उत्पाद को बेचकर पूरा कर रही है। यदि फर्म उत्पादन स्तर शून्य रखने का निर्णय करेगी तो फर्म की कुल हानि कुल स्थिर लागत के समान होगी। इस प्रकार हानि के स्तर को कम करने के लिए फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करने का निर्णय लेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 28
जब P = Min AVC कुल हानि सम्पूर्ण छायांकित भाग
जब P > Min AVC and
P < Min SAC – हानि क्रोस छायांकित भाग

प्रश्न 6.
संक्षेप में फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु (Shutdown point) समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उस उत्पादन स्तर तक उत्पादन करने का निर्णय करती है जब तक कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत (Min AVC) के समान या इससे अधिक होती है। यदि कीमत स्तर, न्यूनतम AVC से कम हो जाता है तो फर्म अपनी कुल परिवर्तनशील लागत की भरपाई उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से नहीं कर सकती है। अतः यह बिन्दु जिस पर SMC नीचे से AVC वक्र को काटती है फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 29

प्रश्न 7.
उत्पादक संतुलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
उत्पादक संतुलन उत्पादन की वह स्थिति होती है जब फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। उत्पादक की साम्य अवस्था में फर्म का कुल आगम, कुल लागत समान होता है। गणितीय रूप में उत्पादक संतुलन को नीचे लिखा गया है –
कुल आगम (TR) = कुल लागत (TC)
दूसरे शब्दों में उत्पादक उस स्थिति में साम्य की अवस्था में होता है जब फर्म उत्पाद के लिए मिलने वाला कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है। साम्य की अवस्था में – कीमत (AR) = सीमांत लागत (MC) साम्य की अवस्था में फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

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प्रश्न 8.
संक्षेप में समविच्छेद बिन्द की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
दीर्घकाल में यदि कोई फर्म सामान्य लाभ से कम अर्जित करती है तो वह उत्पादन कतई नहीं करती है। अल्पकाल में कोई फर्म सामान्य लाभ से कम स्तर पर भी उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में फर्म हानि उठाकर भी उत्पादन जारी रख सकती है। लेकिन कोई भी फर्म अल्पकाल में भी उत्पादन नहीं करेगी। यदि उत्पाद की कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से कम रहती है। आपूर्ति वक्र पर वह बिन्दु जिस पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। अल्पकाल में जिस बिन्दु पर SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। दीर्घकाल में समविच्छेद बिन्दु आपूर्ति वक्र RMC वक्र के उस बिन्दु पर होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 30
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 31

प्रश्न 9.
उदाहरण सहित सामान्य लाभ की परिभाषा समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन करने के लिए फर्म विभिन्न साधन आगतों का प्रयोग करती है। अधिकांशतः साधनों का प्रयोग करने के लिए फर्म इनकी कीमत प्रत्यक्ष रूप से चुकाती है। फर्म उत्पादन में कुछ निजी साधनों का प्रयोग भी करती है। निजी साधनों के बाजार मूल्य को अस्पष्ट लागत कहते हैं। स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों के योग को कुल लागत कहते हैं।

उत्पाद को बाजार में बेचकर फर्म जितना आगम प्राप्त करती है उसे कुल आगम कहते हैं। कुल लागत पर कुल आगम के अधिशेष को लाभ कहते हैं। लाभ का वह स्तर जिस पर फर्म केवल स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतों की भरपाई कर पाती है सामान्य लाभ कहलाता है। दूसरे शब्दों में सामान्य लाभ वह न्यूनतम लाभ होता है जो फर्म को व्यवस्था में बने रहने के लिए अवश्य प्राप्त होना चाहिए। सामान्य लाभ को शून्य लाभ भी कहते हैं क्योंकि इस स्तर पर फर्म की कुल आगम व कुल लागत दोनों एक समान होते हैं।

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प्रश्न 10.
अवसर लागत की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
किसी गति विधि की अन्य सभी वैकल्पिक गतिविधियों के अधिकतम् मूल्य को अवसर लागत कहते हैं। माना पारिवारिक व्यापार में निवेश के अलावा वह उक्त धनराशि को शून्य प्रतिफल के लिए अपनी तिजोरी में रख सकता है अथवा 10 प्र.श. ब्याज पर बैंक में जमा करवा सकता है। अतः वैकल्पिक गतिविधियों में निवेश का अधिकतम प्रतिफल बैंक में धनराशि जमा करवाना है। बैंक जमा करवाना पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है। एक बार घरेलू व्यापार में निवेश करने के बाद अवसर लागत की अवधारणा खत्म हो जाएगी। परंतु जब तक पारिवारिक व्यापार में निवेश नहीं किया जाता है तब तक बैंक जमा से ब्याज के रूप में प्रतिफल पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है।

प्रश्न 11.

  1. इकाई लोचदार पूर्ति वक्र एवं
  2. शून्य लोचदार पूर्ति वक्र बनाइए

उत्तर:
1. धनात्मक ढाल वाला पूर्ति वक्र जो मूल बिन्दु से गुजरता है, इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 32

2. क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत पूर्ति वक्र, शून्य लोचदार को दर्शाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 33

प्रश्न 12.
कोई तीन कारक लिखिए जो आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति को ऊपर/बायीं ओर खिसकाने वाले कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
  2. उत्पाद शुल्क लगाना/उत्पाद शुल्क में वृद्धि
  3. फर्मों की संख्या में कमी
  4. प्रतिस्थापक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 13.
आपूर्ति के नियम का अर्थ लिखो। इसे आपूर्ति अनुसूची एवं वक्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उत्पादक उसकी अधिक करता है तथा वस्तु की कीमत में कमी होने पर उत्पादक वस्तु की कम मात्रा में पूर्ति करता है। इसे पूर्ति का नियम कहते हैं। पूर्ति के नियम को पूर्ति अनुसूची व वक्र की सहायता से समझाया जा सकता है –

पूर्ति अनुसूची:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 34

पूर्ति अनुसूची विभिन्न कीमतों पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्राओं को दर्शाती है। जैसे जैसे कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो पूर्ति की मात्रा भी बढ़ती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 35
पूर्ति वक्र का ढाल धनात्मक है जो इस बात को दर्शाता है कि पूर्ति की मात्रा वस्तु की कीमत बढ़ने पर बढ़ जाती है।

प्रश्न 14.
समांगी उत्पाद होने का क्या अर्थ है ? बाजार में इसका कीमत निर्धारण में प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
समांगी उत्पाद का अभिप्राय है एक समान वस्तु। इसका मतलब होता है सभी उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ रंग, आकार, शक्ल, स्वाद आदि में एकदम एक जैसी होती है। समांगी वस्तु का परिणाम यह होता है कि बाजार में सभी उत्पादक वस्तु की समान कीमत प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई भी उत्पादक बाजार कीमत से अधिक वसूलने की हिम्मत करता है तो समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण वह वस्तु की मात्रा बाजार में नहीं बेच सकता है। अर्थात समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण एक कीमत स्वीकारक के रूप में कार्य करती है वह स्वयं कीमत का निर्धारण नहीं कर सकती है।

प्रश्न 15.
वे कारक लिखो जो पूर्ति वक्र को नीचे/दायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति वक्र को दायीं ओर खिसकाने के लिए उत्तरदायी कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में कमी
  2. उत्पाद शुल्क में कमी
  3. उत्पादन तकनीक में प्रगति
  4. फर्मों की संख्या में वृद्धि

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प्रश्न 16.
माँग वक्र पर संचरण तथा माँग वक्र में खिसकाव में अंतर लिखो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति की गई मात्रा कम हो जाती है तो इससे पूर्ति वक्र पर संचरण होता है। जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति बढ़ जाती है अथवा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से पूर्ति कम हो जाती है इससे पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

पूर्ति वक्र पर संचरण पूर्ति में विस्तार या संकुचन की स्थिति में होता है जबकि पूर्ति वक्र में खिसकाव पूर्ति में वृद्धि या कमी होने पर होता है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में पूर्ति वक्र पर नीचे ऊपर तथा पूर्ति में संकुचन की स्थिति में ऊपर से नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव नीचे/दायीं ओर होता है व पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 36

प्रश्न 17.
पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन तथा पूर्ति में परिवर्तन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति में वृद्धि तथा अन्य कारकों में वृद्धि तथा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से वस्तु की पूर्ति कमी को पूर्ति में परिवर्तन कहते हैं। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची में बदलाव नहीं होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची बदला जाती है। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र पर संचरण होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

प्रश्न 18.
नीचे चित्र में विभिन्न आपूर्ति वक्र दर्शाए गए हैं। घटते क्रम में पूर्ति लोच की श्रेणियाँ लिखो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 37
उत्तर:
पूर्ति वक्र का ढ़ाल पूर्ति की लोच को निर्धारित करता है। वह सीधी रेखा जो मूल बिन्दु से गुजरती है इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाती है। इस वक्र की तुलना अधिक चपटे वक्र की पूर्ति लोच इकाई से अधिक तथा इससे अधिक ऊर्द्धवाधर ढाल वाले वक्र की पूर्ति लोच इकाई से कम होती है। इन तथ्यों के आधार पर चित्र में दर्शाए गए वक्रों की पूर्ति लोच इस प्रकार होगी –

  1. वक्र C अधिक चपटा है वक्र B की तुलना में अतः यह इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
  2. वक्र B, बिन्दु से गुजर रहा है, इसकी पूर्ति लोच इकाई है।
  3. पूर्ति वक्र A अधिक उर्ध्वाधर है वक्र B की अपेक्षा अतः इसकी पूर्ति लोच इकाई से कम है।

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प्रश्न 19.
उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम को सीमांत आगम कहते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम सीमांत आगम नहीं होता है। उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय करने पर कुल आगम में होने वाली बढ़ोतरी को सीमान्त आगम कहते हैं।
MR = TRn – TRn – 1
अतः सीमांत आगम उत्पाद की अंतिम इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम नहीं हो सकता है।

प्रश्न 20.
एक प्रतियोगी फर्म के लिए सीमांत आगम व कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
सीमांत आगम तथा कुल आगम में संबंध –

  1. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है और इसमें बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल आगम अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है लेकिन उसमें घटने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमांत आगम शून्य होता है तब कुल आगम अधिकतम होता है।
  4. जब सीमांत आगम ऋणात्मक होता है तब कुल आगम घटने लगता है।

प्रश्न 21.
एक अप्रतियोगी फर्म के लिए औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध:

  1. जब औसत आगम में वृद्धि होती है, कुल आगम अधिक दर से बढ़ती है।
  2. जब औसत आगम में कमी होती है, कुल आगम में घटती हुई दर से बढ़ोतरी होती है।
  3. औसत आगम तथा कुल आगम किसी भी धनात्मक विक्रय स्तर पर शून्य एवं धनात्मक नहीं हो सकते हैं।

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प्रश्न 22.
पूर्ति में वृद्धि में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जबकि पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर की ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 38

प्रश्न 23.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में वृद्धि में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती . है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं, जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति बढ़ जाती है इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति अनुसूची में बदल जाती है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि की स्थिति में पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 39

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प्रश्न 24.
पूर्ति में संकचन तथा पूर्ति में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में कमी होने से वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में प्रति अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति घट जाती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है। जबकि पूर्ति में कमी होने से पूर्ति अनुसूची बदल जाती है। पूर्ति में संकुचन की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर ऊपर नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में कमी की स्थिति में पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 40

प्रश्न 25.
पूर्ति की लोच की परिभाषा दीजिए। पूर्ति की लोच ज्ञात करने के लिए प्रतिशत विधि को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन की माप जो वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण होती है।
माना आरंभिक कीमत (p) पर वस्तु की पूर्ति = q1
कीमत स्तर (p) पर पूर्ति = q1
कीमत में परिवर्तन ∆p = P1 – p
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 41

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प्रश्न 26.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में संकुचन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं। अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत घटने से वस्तु की पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति वक्र पर ऊपर से नीचे संचरण होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 42

प्रश्न 27.
वस्तु की पूर्ति एवं समय अवधि में संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. अति अल्पकाल अथवा बाजारकाल इतनी छोटी अवधि होती है कि इसमें फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकती है।
  2. अल्पकाल वह समय अवधि होती है जिसमें फर्म केवल परिवर्तनशील साधन को बदल सकती है जबकि अन्य साधन स्थिर रहते हैं। अत: फर्म उत्पादन के परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर ही उत्पादन को बढ़ा सकती है।
  3. अर्थात फर्म एक सीमित सीमा तक ही वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है।
  4. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। अतः इस अवधि फर्म साधनों के प्रयोग से वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है। इसलिए इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।
    Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 43

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प्रश्न 28.
मूल बिन्दु से गुजरने वाले पूर्ति वक्र की लोच 1 इकाई क्यों होती है।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र के किसी बिन्दु पर \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) का अनुपात पूर्ति लोच कहलाता है जहाँ MY0 मात्रा अक्ष का भाग है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु जहाँ पूर्ति व क्रय विस्तारित पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष को काटता है। Y0 वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से क्षैतिज रेखा पर डाला गया लम्ब क्षैतिज अक्ष को काटता है।

OP0 कीमत अक्ष का वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से खींचा गया लम्ब कीमत अक्ष को काटता है। मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए बिन्दु M तथा O दोनों समान होते हैं। अत: MY0 तथा OY0 दोनों समान होते हैं। इसलिए मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए MY0 व OY0 का अनुपात 1 होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 44
es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) = \(\frac{\mathrm{OY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) [∵MY0 = OY0]

प्रश्न 29.
पूर्ति लोच को ज्ञात करने की ज्यामीतिय विधि समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की गणना आपूर्ति वक्र के उदगम के आधार पर की जाती है। पूर्ति वक्र पर स्थित किसी बिन्दु s पर MY0 तथा OY0 के अनुपात से पूर्ति लोच की गणना की जाती है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु है जिस पर पूर्ति वक्र या विस्तारित पूर्ति वक्र, मात्रा अक्ष को काटता है, Y0 मात्रा अक्ष पर वह बिन्दु है जिस पर बिन्दु s से क्षैतिज अक्ष पर डाला गया लम्ब मिलता है।
es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\)
यदि MY0 > OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से अधिक होगी
यदि MY0 = OY0 तो पूर्ति की लोच के समान होगी
यदि MY0 < OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से कम होगी
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 45
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 45a

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प्रश्न 30.
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक समान कीमत होने का कारण यह है कि इस बाजार में अधिक क्रेता व विक्रेता समान वस्तु का आदान प्रदान करते हैं। क्रेता व विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। क्रेता न्यूनतम कीमत पर वस्तु का क्रय करते हैं। यदि कोई विक्रेता अपने उत्पाद की ऊँची कीमत तय करता है तो कोई भी क्रेता उसकी वस्तु क्रय नहीं करता है, और उस फर्म को बाजार से बाहर जाना पड़ता है। प्रत्येक फर्म यह जानती है कि बाजार में इसके द्वारा की गई पूर्ति का क्या महत्व है अर्थात बाजार कीमत पर कितनी मात्रा में बिक्री की जायेगी। कोई भी फर्म बाजार कीमत से कम कीमत नहीं स्वीकार कर सकती है इसलिए एक फर्म का माँग वक्र पूर्तियोगिता में पूर्णतया लोचदार होता है।

प्रश्न 31.
पूर्ण प्रतियोगी फर्म का MR व AR का मान स्थिर क्यों होता है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी फर्म के MR व AR वक्र x अक्ष के समांतर होते हैं जो Y – 3 अक्ष को कीमत स्तर p पर काटते हैं। ये दोनों वक्र कीमत रेखा होते हैं। पूर्ण प्रतियोगी फर्म के AR एवं MR का मान समान व स्थिर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत समान रहने के कारण AR व MR का मान स्थिर रहता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 46

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को समझाइए।

  1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन
  2. समविच्छेद बिन्दु

उत्तर:
1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन:
प्रत्येक उत्पादन इकाई का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। इस लक्ष्य को पाने के लिए फर्म उत्पादन साधनों के ऐसे संयोजनों का चयन करती है जिससे उसकी उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाए। उत्पादन साधनों का ऐसा संयोजन जिसकी लागत न्यूनतम होती है, न्यूनतम लागत संयोजन कहलाता है।

2. समविच्छेद बिन्दु:
वह बिन्दु जिस पर फर्म की कुल आगम उसकी कुल उत्पादन लागत के समान होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिस बिन्दु पर कुल औसत लागत वस्तु की कीमत के बराबर होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। इसका अभिप्राय यह है कि न तो फर्म को हानि होती है और न लाभ। परंतु इस बिन्दु पर फर्म का कुल लाभ अधिकतम होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 47

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प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म की संतुलन/साम्य अवस्था को समझाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म संतुलन की अवस्था में उस बिन्दु पर पहुँचती है जहाँ सीमांत लागत बढ़ती हुई स्थिति में कीमत रेखा को काटती है। पूर्ण प्रतियोगी फर्म की साम्य अवस्था को नीचे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। चित्र में बिन्दु E अधिकतम लाभ की दोनों शर्तों को पूरा करता है इस बिन्दु पर वस्तु की कीमत व सीमांत लागत समान है तथा सीमांत लागत का ऊपर उठाता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है। इस बिन्दु पर कुल लाभ ज्यादा होगा।
कुल आगम = कीमत रेखा के अंतर्गत क्षेत्रफल कुल आगम = क्षेत्रफल
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 48

उत्पादन (इकाइयाँ) उत्पादन स्तर OQ पर फर्म को अधिकतम लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी उत्पादन स्तर पर कुल लाभ बिन्दु E पर लाभ की तुलना में कम होगा। अतः फर्म का संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ सीमांत लागत वक्र का ऊपर उठता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है।

प्रश्न 3.
वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कारक:
1. प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों की प्रकृति:
वस्तु की पूर्ति लोच साधनों की प्रकृति से प्रभावित होती है। यदि वस्तु के उत्पादन में विशिष्ट साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। दूसरी ओर यदि वस्तु के उत्पादन में सामान्य रूप उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है।

2. प्राकृतिक कारक:
प्राकृतिक कारक भी वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करते हैं यदि किसी वस्तु के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। उदाहरण के लिए जैसे टीक लकड़ी के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो इसकी पूर्ति बेलोचदार होती है।

3. जोखिम:
वस्तु की पूर्ति लोच उत्पाद की जोखिम वहन करने की इच्छा पर भी निर्भर करती है। यदि उत्पादक की जोखिम उठाने की अधिक तत्परता/इच्छा होती है तो वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है इसके विपरीत यदि उत्पादक जोखिम उठाने से बचता है तो पूर्ति लोच कम होगी।

4. वस्तु की प्रकृति:
शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की पूर्ति बेलोचदार होती है तथा टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोच अधिक होती है।

5. उत्पादन लागत:
वस्तु की उत्पादन लागत भी पूर्ति लोच को प्रभावित करती है। यदि वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ती है तो पूर्ति बेलोचदार होती है इसके विपरीत यदि उत्पादन लागत घटती है तो पूर्ति की लोच ज्यादा होती है।

6. समयावधि:
पूर्ति लोच समयावधि से बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। उत्पादक के पास जितना अधिक समय होता है पूर्ति उतनी अधिक लोचदार होती है इसके विपरीत फर्म के जितनी कम समयावधि होती है पूर्ति उतनी ही कम लोचदार होती है। समयावधि के आधार पर पूर्ति लोच को निम्न प्रकार भी समझाया जा सकता है –

7. अति अल्पकाल:
यह समय अवधि इतनी कम होती है कि इसमें उत्पादक साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकता है इसलिए पूर्ति लगभग पूर्णतः बेलोचदार होती है।

8. अल्पकाल:
इस समय अवधि में फर्म परिवर्तनशील साधनों की संख्या तो बढ़ा सकती है लेकिन सभी साधनों की संख्या नहीं बढ़ा सकती है अतः इस अवधि में पूर्ति बेलोचदार होती है।

9. दीर्घकाल:
इस अवधि फर्म में सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है अतः कीमत के अनुसार फर्म वस्तु की पूर्ति को बदल सकती है। इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।

10. उत्पादन तकनीक:
यदि वस्तु के उत्पादन की तकनीक जटिल होती है तो इसे बदलने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अतः पूर्ति लोच कम होती है। इसके विपरीत सरल उत्पादन तकनीक से उत्पन्न वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है।

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प्रश्न 4.
संक्षेप में समझाइए कि विभिन्न कारक वस्तु की पूर्ति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक –
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत व उसकी पूर्ति में सीधा संबंध होता है। सामान्यतः ऊँची कीमत पर वस्तु की अधिक पूर्ति की जाती है और नीची कीमत पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्रा कम होती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमत:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत और वस्तु की कीमत में विपरीत संबंध होता है। प्रतियोगी वस्तु की कीमत बढ़ने पर, वस्तु सापेक्ष रूप से सस्ती हो जाती है और उत्पादक के लिए उसे बेचना कम लाभप्रद हो जाता है इसलिए उत्पादक वस्तु की कम पूर्ति करता है।

3. फर्मों की संख्या:
फर्मों की संख्या तथा वस्तु की आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। किसी वस्तु के उत्पादन में जितनी अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है उसकी पूर्ति उतनी ही अधिक होती है तथा फर्मों की संख्या जितनी कम होती है पूर्ति भी उतनी ही कम होती है।

4. फर्म का उद्देश्य:
यदि फर्म का उद्देश्य अधिक लाभ कमाना होता है तो फर्म ऊँची कीमत पर अधिक उत्पादन/पूर्ति करती है। इसके विपरीत यदि कोई फर्म नाम कमाना चाहती है, यह बिक्री अधिक करना चाहती है या रोजगार स्तर को ऊँचा करना चाहती है तो कम कीमत पर भी फर्म अधिक पूर्ति करने का प्रयास करती है।

5. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत तथा वस्तु की पूर्ति में विपरीत संबंध होता है। यदि उत्पादन आगतों की कीमत कम होती है तो उत्पादन लागत कम आती है इससे फर्म अधिक उत्पादन करती है। इसके विपरीत यदि उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ती है तो लागत ऊँची होने के कारण पूर्ति घट जाती है।

6. उत्पादन तकनीक में परिवर्तन:
उत्पादन तकनीक एवं वस्तु की पूर्ति में सीधा संबंध होता है उन्नत उत्पादन तकनीक के प्रयोग से उत्पादन लागत घटती है जिसमें उत्पादक वस्तु की अधिक पूर्ति करता है।

7. भावी कीमत:
यदि उत्पाक को ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में वस्तु की कीमत घटने वाली है तो वर्तमान में वस्तु की अधिक पूर्ति करेगा इसके विपरीत यदि निकट भविष्य में कीमत बढ़ने की संभावना होती है तो उत्पादक वस्तु की वर्तमान पूर्ति को कम करेगा।

8. सरकारी नीति:
सरकार की कर नीति एवं आर्थिक सहायता की नीति भी वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है। कर की ऊँची दर वस्तु की पूर्ति को घटाती है और आर्थिक सहायता वस्तु की पूर्ति को प्रोत्साहित करती है।

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प्रश्न 5.
पूर्ति लोच की विभिन्न श्रेणियों के बारे में समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की श्रेणियाँ –
1. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (शून्य लोचदार पूर्ति):
यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की पूर्ति अप्रभावित रहती है तो पूर्ति लोच शून्य या पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 49
चित्र में कीमत स्तर Op, Op1, Op2, पर पूर्ति की गई मात्रा एक समान OQ रहती है। अतः – पूर्ण बेलोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत होता है।

2. अपूर्ण लोचदार या इकाई से कम लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम होता है तो पूर्ति लोच इकाई से कम होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 50
चित्र में pp1, में प्रतिशत परिवर्तन, पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन QQ1 से ज्यादा है।

3. इकाई लोचदार पूर्तिवक्र:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के समान होता है तो पूर्ति लोच इकाई के बराबर होती है। इकाई लोचदार पूर्ति वक्र मूल बिन्दु से गुजरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 51

4. लोचदार या इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति:
जब कीमत परिवर्तन होने पर पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से ज्यादा होता है तो पूर्ति लोच इकाई से अधिक होती है। इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति वक्र बढ़ाने पर कीमत अक्ष को काटता है।

5. अनन्त लोचदार/पूर्णतया लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में नगण्य परिवर्तन या बिना किसी परिवर्तन के कारण वस्तु की पूर्ति बदल जाती है तो पूर्ति लोच पूर्णतया लोचदार/अनन्त लोचदार कहलाती है। पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 52

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प्रश्न 6.
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक:
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत उसकी बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊँची कीमत पर बाजार पूर्ति अधिक एवं नीची कीमत पर बाजार पूर्ति कम होती है।

2. उत्पादन तकनीक:
बाजार पूर्ति उत्पादन तकनीक से भी प्रभावित होती है। यदि नई एवं उन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन लागत कम हो जाती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है। दूसरी पिछड़ी एवं लागत बढ़ाने वाली तकनीक का प्रयोग करने पर बाजार पूर्ति कम होती है।

3. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत से उत्पादन लागत का निर्धारण होता है। साधनों की कीमत बढ़ने पर उत्पादन लागत बढ़ जाती है इससे बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत उत्पादन साधनों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और बाजार पूर्ति कम हो जाती है।

4. कर नीति:
कर नीति भी बाजार पूर्ति को प्रभावित करती है यदि सरकार उत्पादन शुल्क की दर बढ़ा देती है या आर्थिक सहायता कम कर देती है उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। परिणामतः वस्तु की बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत यदि सरकार शुल्क की दर घटा देती है अथवा आर्थिक सहायता बढ़ा देती है तो उत्पादन लागत घट जाती है इससे बाजार पूर्ति में वृद्धि हो जाती है।

5. फर्मों की संख्या:
यदि किसी वस्तु की उत्पादन में अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है इसके विपरीत वस्तु के उत्पादन में जितनी कम संख्या में फर्म संलग्न होती है वस्तु की बाजार शर्ते उतनी कम होती है।

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प्रश्न 7.
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारकों को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक:
1. तकनीकी परिवर्तन:
उत्पादन की नई एवं प्रोनोत्त तकनीक जो उत्पादन लागत को घटाती है पूर्ति में वृद्धि पैदा करती है जिससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसकी विपरीत पिछड़ी एवं घिसी हुई तकनीक से उत्पादन लागत बढ़ जाती है जो पूर्ति में कमी उत्पन्न करती है परिणामतः पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

2. साधन आगतों की कीमत में परिवर्तन:
साधनों आगतों की कीमतें जैसे मजदूरी दर, कच्चे माल का मूल्य, किराया आदि सीमांत लागत को प्रभावित करते हैं। सीमांत लागत के परिवर्तित होने से पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है। साधन आगतों में वृद्धि (कमी) से सीमांत ज्यादा (कम) हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं (दायीं) ओर खिसक जाता है।

3. करों में परिवर्तन:
उत्पादकों को बिक्री पर कर देना पड़ता है। करों की दर में, परिवर्तन से सीमांत लागत बढ़ जाती है। इस प्रकारा करों में वृद्धि (कमी) से सीमांत लागत में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। अतः करों में वृद्धि (कमी) से पूर्ति वक्र में बायीं (दायी) ओर खिसकाव उत्पन्न होता है।

4. संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन:
दिए गए साधनों से एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है फर्म उस वस्तु के उत्पादन के उत्पादन में ज्यादा प्रयोग करती है जिसका उत्पादन ज्यादा लाभकारी होता है। अतः प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी (वृद्धि) से वस्तु की पूर्ति ज्यादा (कम) हो जाती है परिणामतः पूर्ति वक्र दायों (बायीं) ओर खिसक जाता है।

5. फर्मों की संख्या में परिवर्तन:
फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होने से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र में दायीं (बायीं) और खिसकाव उत्पन्न होता है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका के पूरा करो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 53
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 54

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 2.
एक फर्म की कुल आगम अनुसूची नीचे दी गई है इससे औसत आगम, सीमांत आगम तथा कीमत की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 55
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 56

क्यों औसत आगम प्रत्येक उत्पादन स्तर पर स्थिर है और कीमत हमेशा औसत आगम के बराबर रहती है। इस प्रकार कीमत स्तर 7 रु. है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 57
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 58

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 59
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 60

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार वस्तु की बाजार कीमत 25 रु. है।

  1. 0 – 8 उत्पादन इकाई के लिए फर्म की कुल आगम अनुसूची बनाइए।
  2. माना बाजार कीमत बढ़कर 30 रु. हो जाती है। नया कुल अधिक ढ़ालू या चपटा होगा।

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 61

2. नई कीमत 30 रु. पर कुल आगम अनुसूची
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 62
नया कुल आगम वक्र अधिक ढ़ालू होगा।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 63
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 64

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 65
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 66

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प्रश्न 8.
एकाधिकारी फर्म की माँग अनुसूची नीचे दी गई है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 67
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 68

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका से कुल आगम, औसत आगम तथा सीमांत आगत ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 69
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 70

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका से औसत आगम व सीमांत आगम का परिकलन करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 71
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 72

प्रश्न 11.
जब बाल पैन की कीमत 4रु./इकाई है तो एक बाल पैन निर्माता प्रति दिन 8 पैन बेचता है। जब कीमत बढ़कर 5 रु./इकाई हो जाती है तो वह प्रतिदिन 10 पैन बेचने का निर्णय करता है। पैन की कीमत पूर्ति लोच की गणना करो।
हल:
p = Rs.4 q = 38 पैन
∆p = Rs. (5 – 4) = Rs.1 ∆q = 10 – 8 = 2 पैन
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\) es = \(\frac{2}{1}\) × \(\frac{4}{8}\) = 1 (चरों के मूल्य रखने)
पैन की पूर्ति कीमत लोच = 1

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प्रश्न 12.
जब आम की कीमत 24 रु./किग्रा. है तो एक आम विक्रेता 80 क्विंटल आम प्रतिदिन बेचना चाहता है। यदि आम की पूर्ति लोच 2 है तो आम विक्रेता 30 रु./इकाई आम की कितनी मात्रा बेचेगा?
हल:
p = Rs. 24 प्रति किलो q = 80 क्विंटल
∆p = Rs. (30 – 24) प्रति किलो
∆q = q1 – 80 क्विंटल = Rs.6 प्रति किलो
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) (मूल्य प्रतिस्थापित करने पर)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{4}{80}\)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{1}{20}\) या, q1 – 80 = 20 × 2
q1 = 40 + 80 = 120
30 रु./इकाई कीमत 120 क्विंटल आम बेचेगा। .

प्रश्न 13.
एक वस्तु की पूर्ति लोच 25 है । 5 रु./इकाई पर एक विक्रेता 300 इकाइयों की पूर्ति करता है। 4रु./इकाई कीमत पर वह वस्तु की कितनी मात्रा की पूर्ति करेगा?
हल:
p = Rs. 5
∆p = 4 – 5 = Rs.(-1)
es = 2.5; es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{5}{300}\), 2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{1}{60}\)
या, q1 – 300 = 2.5 × (-1) × 60 = – 150 या, q1 = – 150 + 300 = 150
4 रु./इकाई कीमत पर वह 150 इकाइयाँ बेचेगा।

प्रश्न 14.
8 रु./इकाई कीमत एक वस्तु की आपूर्ति 200 रु./इकाइयाँ हैं । इसकी पूर्ति लोच 1.5 है। यदि वस्तु की कीमत बढ़कर 10 रु./इकाई हो जाए तो नई कीमत पर पूर्ति की गई मात्रा की गणना करो।
हल:
p = 3D 8 रु. प्रति इकाई
∆p = 10 – 8 = 2 रु. प्रति इकाई
q = 200 इकाइयाँ ∆q = q1 – 200
es = 1.5
1.5 = \(\frac{q_{1}-200}{2}\) × \(\frac{1}{25}\) या, q1 – 200 = 1.5 × 2 × 25
या, q1 – 200 = 75 या, q1 = 75 + 200 = 275
नई कीमत पर पूर्ति की गई इकाइयाँ 275

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प्रश्न 15.
वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होने के कारण वस्तु की पूर्ति की गई इकाइयाँ 400 से बढ़कर 450 हो जाती हैं। पूर्ति की लोच की गणना करो।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
पूर्ति में परिवर्तन = 450 – 400 = 50 इकाइयाँ
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{50}{400}\) × 100 = \(\frac{50}{4}\) = 12.5%
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 73
= 1.25
पूर्ति में कीमत लोच = 1.25

प्रश्न 16.
8 रुपये प्रति इकाई कीमत पर एक वस्तु की गई मात्रा 400 इकाइयाँ है। इसकी पूर्ति लोच 2 है। वह कीमत ज्ञात करो जिस पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा?
हल:
p = 8 रुपये प्रति इकाई
∆p = (P1 – 8) रुपये
q = 400 इकाइयाँ
∆q = 600 – 400 = 200 इकाइयाँ
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 74
या, P1 = 2 + 8 = 10
10 रु./इकाई कीमत पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

निम्नलिखित कथनों के लिए सर्वोत्तम विकल्पों का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
आपूर्ति लोच हमें आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन का बोध कराती है –
(A) कीमत में 10 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(B) कीमत में 100 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(C) 50 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
उत्तर:
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण

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प्रश्न 2.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि

प्रश्न 3.
यदि बाजार आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक रहा है तो कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की अपरिवर्तित संख्या
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) फर्मों की संख्या में कमी

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प्रश्न 4.
फर्मों के आपूर्ति वक्रों का क्षैतिज योग होता है –
(A) बाजार आपूर्ति वक्र
(B) व्यक्तिगत आपूर्ति वक्र
(C) बाजार माँग वक्र
(D) व्यक्तिगत माँग वक्र
उत्तर:
(A) बाजार आपूर्ति वक्र

प्रश्न 5.
उत्पाद शुल्क लगाने से –
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है
(B) आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है
(C) आपूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचरण होता है
(D) आपूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचरण होता है
उत्तर:
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है

प्रश्न 6.
यदि आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में कमी
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(C) साधन आगतों की साम्य कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 7.
यदि आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी
(C) साधन आगतों की समान कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी

प्रश्न 8.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) तकनीकी प्रगति
(B) तकनीकी पिछड़ापन
(C) स्थिर तकनीकी
(D) या तो तकनीकी प्रगति या तकनीकी पिछड़ापन
उत्तर:
(A) तकनीकी प्रगति

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प्रश्न 9.
कीमत स्वीकारक फर्म सीमांत आगम होता है –
(A) कीमत से कम
(B) शुद्ध लागत के समान
(C) कीमत के समान
(D) लागत के समान
उत्तर:
(C) कीमत के समान

प्रश्न 10.
किसी फर्म का लाभ वह आगम है जो –
(A) शून्य लागत पर प्राप्त होता है
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है
(C) सकल लागत पर प्राप्त होता है
(D) अतिरिक्त लागत पर होता है
उत्तर:
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है